"प्रयोग:रिंकू10": अवतरणों में अंतर
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{ | {तटस्थता वक्र विश्लेषण में वस्तु X तथा Y के विभिन्न संयोगों में संबंध होता है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-20,प्रश्न-56 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +वस्तु X बढ़ेगी तथा वस्तु Yघटेगी | ||
- | -वस्तु Yबढ़ेगी तथा वस्तु X घटेगी | ||
-वस्तु X बढ़ेगी तथा वस्तु Y वस्तु स्थित रहेगी | |||
- | -वस्तु Y बढ़ेगी तथा वस्तु X भी बढ़ेगी | ||
|| | ||दो या दो से अधिक वस्तुओं के ऐसे संयोगों या युग्मो को प्रदर्शित करने वाला वक्र जिससे उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त हो, 'सम संतुष्टि वक्र', अनधिमान वक्र' या 'तटस्थता वक्र' कहलाता है। तटस्थता वक्र विश्लेषण पर सभी संयोगों के प्रति उदासीनता के लिए उपभोक्ता वस्तु X की अधिक इकाइयों के लिए Y वस्तु की कम इकाइयों का त्याग करेगा। | ||
{ | {निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-20,प्रश्न-57 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | -यदि वस्तु की मांग अधिक है तो साधन की मांग कम होगी | ||
+यदि वस्तु की मांग अधिक है तो साधन की मांग भी अधिक होगी | |||
- | -यदि वस्तु की मांग कम है तो साधन की मांग अधिक होगी | ||
- | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||उपभोक्ता की | ||एक वस्तु की मांग तथा एक साधन की मांग की प्रकृति में अंक्षर होता है। एक वस्तु की मांग प्रत्यक्ष होती है जो उसकी सीमांत उपयोगिता पर आधारित होती है, जबकि एक साधन की मांग व्युत्पन्न मांग होती है। यदि वस्तु की मांग अधिक है तो साधन की मांग भी अधिक होगी | ||
एक वस्तु की पूर्ति उसकी मुद्रा उत्पादन लागत पर निर्भर करती है जबकि एक साधन की पूर्ति उसकी अवसर लागत पर निर्भर करती है। | |||
{उस बिंदु पर उपभोक्ता साम्य में होता है, जब बजट रेखा- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-20,प्रश्न-58 | |||
|type="()"} | |||
-एक उदासीन क्रम से ऊपर होती है | |||
-उदासीन वक्र की स्पर्श रेखा होती है | |||
+उदासीन वक्र की स्पर्श रेखा होती है | |||
-एक उदासीन वक्र को कटती है | |||
||चित्र से स्पष्ट है कि IC2 उपभोक्ता की क्रय सीमा के बाहर है। PL ढाल OP/OL दोनों वस्तुओं के बीच मूल्य अनुपात प्रदर्शित करता है। IC1 वक्र पर उपभोक्ताम की उपयोगिता अधिकतम नहीं है। बिंदु E पर उपभोक्ता संस्थिति की स्थिति में है, वहां बजट रेखा, अनधिमान वक्र की स्पर्श रेखा है, अन्य सभी बिंदुओं पर बजट रेखा अनधिमान वक्रों को काटती है। बिंदु E पर वह x की OB तथा y की OA मात्रा क्रय करेगा। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
.हिक्स के अनुसार, उपभोक्ता संस्थिति की स्थिति में वहां होगा जहां मूल्य रेखा का ढाल, तटस्थता वक्र की ढाल के बराबर हो। | |||
. | .मार्शल के अनुसार, उपभोक्ता संस्थिति की स्थिति में वहां होगा जहां वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता तथा उनके मूल का अनुपात परस्पर बताबर हो। | ||
{ | {MRSxy व्यक्त करता है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-21,प्रश्न-59 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +उपभोक्ता X की एक अतिरिक्त इकाई के लिई Y की कितनी मात्रा का त्याग करता है और उसी उदासीनता-वक्र पर रहता है। | ||
- | -उपभोक्त y की एक अतिरिक्त इकाई के लिए x की कितनी इकाइयों का त्याग करता है और उसी उदासीनता-वक्र पर रहता है। | ||
- | -उपभोक्ता x की एक इकाई के लिए y की कितनी इकाइयों का त्याग करता है और ऊंचे उदासीनता-वक्र पर चढ़ जाता है | ||
-उपभोक्ता निचले उदासीनता-वक्र पर उत्तर काता है। | |||
|| | ||MRSxy से तात्पर्य x की एक अतिरिक्त इकाई के लिए y की छोड़ी गई मात्रा से है जिससे उपभोक्त संतुष्टि के उसी पर बना रहे। अत: x की मात्रा की वृद्धि के लिए y की छोड़ी गई मात्रा में उत्तरोत्तर कमी, घटती प्रतिस्थापन की सीमांत दर व्यक्ति करता है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
. | .घटती हुई प्रतिस्थापना की सीमांत दर (MRSxy=; Diminishing marginal rate of substitution) का सिद्धांत क्रमागत उपयोगिता ह्नास नियम के सिद्धांत पर आधारित है। | ||
. | .क्रमागत उपयोगिता ह्लास नियम के अनुसार, जैसे-जैसे x के मात्रा बढ़ती जाती है उससे मिलने वाली सीमांत उपयोगिता क्रमश: घटती जाती है, दूसरी ओर जैसे-जैसे y के स्टॉक में कमी होती जाती है, y की उपयोगीता बढ़ती जाती है। अत: संतुष्टि के उसी स्तर पर बने रहने के लिए यह आवश्यक है कि x के कारण उपयोगिता में वृद्धि, y के कारण उपयोगिता में कमी के बराबर होनी चाहिए। | ||
{ | {प्रतिस्थापन प्रभाव हमेशा होगा- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-21,प्रश्न-60 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +ऋणात्मक | ||
- | -धनात्मक | ||
- | -ऋणात्मक या धनात्मक | ||
-आय प्रभाव के बराबर | |||
|| | ||प्रतिस्थापन प्रभाव से आशय x वस्तु के मूल्य में सापेक्षिक परिवर्तन के कारण x वस्तु की मांगी गई मात्रा में परिवर्तन से है जबकि उपभोक्ता की वास्तुविक आय पूर्ववत रखी गई है। | ||
प्रतिस्थापन प्रभाव मूल्य में कमी के कारण उत्पन्न होता है। मूल्य में कमी परिवर्तन हमेशा विपरीत दिशा में होगा। अत: प्रतिस्थापन प्रभाव हमेशा ऋणात्मक होगा। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
. | .आय प्रभाव धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों हो सकता है। | ||
. | .गिफेन वस्तु के संदर्भ में आय प्रभाव इतना अधिक धनात्मक होता है कि वह ऋणात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव को समाप्त कर देता है और मूल्य प्रभाव के धनात्मक कर देता है। | ||
{एक व्यक्तिगत मांग वक्र इस मान्यता पर आधारित होता है कि निम्न तत्व को छोड़कर बाकी सब निर्धारक तत्व स्थिर रहते हैं- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-128 | {एक व्यक्तिगत मांग वक्र इस मान्यता पर आधारित होता है कि निम्न तत्व को छोड़कर बाकी सब निर्धारक तत्व स्थिर रहते हैं- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-128 | ||
पंक्ति 101: | पंक्ति 102: | ||
{पूर्ण प्रतियोगिता की वह कौन-सी विशेषता है, जो एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता पर लागू नहीं होती? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-107 | {पूर्ण प्रतियोगिता की वह कौन-सी विशेषता है, जो एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता पर लागू नहीं होती? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-107 | ||
पंक्ति 151: | पंक्ति 118: | ||
-उपरोक्त सभी। | -उपरोक्त सभी। | ||
||दीर्घकालीन साम्य की अवस्था में सभी पूर्ण प्रतियोगी फर्में केवल सामान्य लाभ प्राप्त करती हैं, क्योंकि दीर्घकाल में फर्में इस प्रकार समायोगित होती हैं कि वे अपने औसत लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु पर उत्पादन कर रही होती है और इस बिंदु पर औसत आय रेखा स्पर्श करती है, जिससे फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। | ||दीर्घकालीन साम्य की अवस्था में सभी पूर्ण प्रतियोगी फर्में केवल सामान्य लाभ प्राप्त करती हैं, क्योंकि दीर्घकाल में फर्में इस प्रकार समायोगित होती हैं कि वे अपने औसत लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु पर उत्पादन कर रही होती है और इस बिंदु पर औसत आय रेखा स्पर्श करती है, जिससे फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। | ||
{अपूर्ण प्रतियोगिता से यह संबंधित नहीं है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-111 | {अपूर्ण प्रतियोगिता से यह संबंधित नहीं है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-111 | ||
पंक्ति 187: | पंक्ति 146: | ||
{सही कथन क्या है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-50 | {सही कथन क्या है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-50 | ||
पंक्ति 262: | पंक्ति 188: | ||
.समाज कल्याण फलन सिद्धांत की धारणा का प्रतिपादन प्रो. वर्गसन ने किया। | .समाज कल्याण फलन सिद्धांत की धारणा का प्रतिपादन प्रो. वर्गसन ने किया। | ||
.कालडर के अनुसार, समाज कल्याण में वृद्धि का परीक्षण यह है कि यदि कुछ व्यक्ति पहले से अच्छी और दूसरे पहले से बुरी स्थिति में आ जाते है, तो परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने वाले हानि प्राप्त करने वालों की अप्रेक्षाकृत अधिक क्षतिपूर्ति कर सकते हैं और फिर भी स्वयं पहले से अच्छी स्थिति में हो सकते हैं। | .कालडर के अनुसार, समाज कल्याण में वृद्धि का परीक्षण यह है कि यदि कुछ व्यक्ति पहले से अच्छी और दूसरे पहले से बुरी स्थिति में आ जाते है, तो परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने वाले हानि प्राप्त करने वालों की अप्रेक्षाकृत अधिक क्षतिपूर्ति कर सकते हैं और फिर भी स्वयं पहले से अच्छी स्थिति में हो सकते हैं। | ||
{वालरस का 'सामान्य संतुलन का मॉडल' था- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-55 | {वालरस का 'सामान्य संतुलन का मॉडल' था- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-55 |
11:29, 12 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
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