"सूचना का अधिकार अधिनियम 2005": अवतरणों में अंतर

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==सूचना का अधिकार अधिनियम 2005==
===क्या है सूचना का अधिकार (RTI)===
[[चित्र:rtigateway_logo.jpg|thumb|300px|सूचना का अधिकार अधिनियम का प्रतीक चिन्ह<br />Logo of Right to Information Act (RTI)]]
सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act/RTI) भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है, जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। यह कानून भारत के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉडर्‌‌स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है। सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है। यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ खरीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है। इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है।
 
===किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं===
सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य कानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है। सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं। सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं। सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं।
 
===किससे मिलेगी सूचना===
इस कानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग (केन्द्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हर कार्यालय) में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ - PIO) के पद का प्रावधान है। लोक सूचना अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें। आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है। आवेदन पत्र जमा करने की पावती जरुर लें। इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है।
 
यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं। विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी।
 
===आरटीआई आवेदन कहां जमा करें===
आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) या एपीआईओ के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं। वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी। यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे।
 
आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो। और हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है।
 
===कितना आवेदन शुल्क===
आवेदन पत्र के साथ निर्धारित फीस देना जरुरी है। प्रतिलिपि/नमूना इत्यादि के रुप मे सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क देना जरुरी है। आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है। हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं। कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये। सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं। यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है। कहीं सूचना पाने के लिए शुल्क 2 रुपये है तो कहीं 5 रुपये। आवेदन शुल्क नकद, बैंक डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है। कुछ राज्यों में आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं। ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा। आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को कोई शुल्क नही देना पड़ता हैं।
 
===आवेदन का प्रारूप क्या हो===
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है। आप एक सादे कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं। (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)।
 
आवेदन का प्रारूप - लोक सूचना अधिकारी, विभाग का नाम एवं पता। आवेदक का नाम एवं पता। चाही गई जानकारी का विषय। चाही गई जानकारी की अवधि। चाही गई जानकारी का सम्पू्र्ण विवरण। जानकारी कैसे प्राप्त करना चाहेंगे- प्रतिलिपि/नमूना/लिखित/निरिक्षण। गरीबी रेखा के नीचे आने वाले आवेदक सबूत लगाएं। आवेदन शुल्क का व्यौरा-नकद, बैंक ड्राफ्ट, बैंकर्स चैक या पोस्टल ऑडर। आवेदक के हस्ताक्षर, दिनांक।
 
===सूचना के लिए कारण बताना जरूरी नही===
कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है। सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा।
 
===कौन सी सूचनाऍ नही मिलेंगी===
जो भारत की प्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों व विदेशी संबंधों के लिए घातक हो। जिससे आपराधिक जाँच पड़ताल, अपराधियों की गिरफ्तारी या उन पर मुकदमा चलाने में रुकावट पैदा हो। जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड। जिससे किसी व्यक्ति के निजी जिन्दगी में दखल-अंदाजी हो और उसका जनहीत से कोई लेना देना ना हो।
 
===स्वयं प्रकाशित की जाने वाली सूचनाऍ कौन सी है===
हर सरकारी कार्यालय की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने विभाग के विषय में निम्नलिखित सूचनाऍ जनता को स्वयं दें। अपने विभाग के कार्यो और कर्तव्यों का विवरण। अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम, शक्तियाँ एवं वेतन। विभाग के दस्तावेजों की सूची। विभाग का बजट एवं खर्च की व्यौरा। लाभार्थियों की सूची, रियायतें और परमिट लेने वालों का व्यौरा। लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता।
 
===सूचना प्राप्ति की समय सीमा===
पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए।
 
सूचनाऍ निर्धारित समय में प्राप्त होंगी - साधारण समस्या से संबंधित आवेदन 30 दिन। जीवन/स्वतंत्रता से संबंधित आवेदन 48 घंटे। तृतीय पक्ष 40 दिन। मानव अधिकार के हनन संबंधित आवेदन 45 दिन।
 
===सूचना न मिलने पर क्या करे===
यदि सूचना न मिले या प्राप्त सूचना से आप संतुष्ट न हों तो अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है। हर विभाग में प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है। सूचना प्राप्ति के 30 दिनों और आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर आप प्रथम अपील दायर कर सकते हैं। निर्धारित समय सीमा में सूचना न मिलने पर आप राज्य या केन्द्रीय सूचना आयोग को सीधा शिकायत भी कर सकते हैं। अगर आप पहली अपील से असंतुष्ट है, तब आप दूसरी अपील के फैसले के 90 दिनों के अन्दर राज्य या केन्द्रीय सूचना आयोग को कर सकते हैं।
 
===द्वितीय अपील क्या है===
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है। द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर की जा सकती है। केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग। प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है। अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं। यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं।
 
===पीआईओ द्वारा आवेदन न लेने और सूचना ना देने पर सजा===
यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करें ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं। इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें। पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता। भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो। उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी। यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6 (3) के तहत भेज सकता है।
 
लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से इंकार करता है, सूचना देने से मना करता है या जानबुझकर गलत सूचना देता है तो उस पर प्रतिदिन रु. 250 के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है व कुल रु. 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है। पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को नहीं दी जाती है, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है। हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है।
 
===लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कैसे करे===
अपीलीय अधिकारी, विभाग का नाम एव पता। लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं उसका नाम व पता। आदेश का विवरण जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं। अपील का विषय एवं विवरण। अपीलीय अधिकारी से किस तरह की मदद चाहते हैं। किस आधार पर मदद चाहते हैं। अपीलार्थी का नाम, हस्ताक्षर एवं पता। आदेश, फीस, आवेदन से संबंधित सारे कागजात की प्रतिलिपि।
 
==कैसे करे सूचना के लिए आवदेन एक उदाहरण से समझे==
यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।
 
एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया। उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था। लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया। आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया। आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे:-
 
# मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर 2009 को अर्जी दी थी। कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
# नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था। अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है। कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
# इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
# अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?
 
आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे। लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है। ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा।
 
पहला प्रश्न है :- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं।
 
कोई उन्नति हुई ही नहीं है। लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है। वरन यह काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा।
 
अगला प्रश्न है :- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया।
 
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है। एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति का़फी सतर्क होता है। इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है।
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
 
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12:22, 6 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

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