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{{सूचना बक्सा खिलाड़ी
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|पूरा नाम=बुला चौधरी चक्रवर्ती
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|जन्म= [[2 जनवरी]], [[1970]]
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'''बुला चौधरी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bula Choudhury'', जन्म- [[2 जनवरी]], [[1970]], [[कलकत्ता]]), भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने पांचो [[महाद्वीप]] के सातों समुद्र तैर कर पार किए हैं और उन पर अपनी जीत हासिल की है। बुला चौधरी को ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ‘जल परी’ की उपाधि दी जा चुकी है। [[2003]] में उन्हें ‘ध्यानचंद लाइफटाइम एचीवमेंट’ अवॉर्ड भी दिया गया है। वह सुर्खियों में तब आईं, जब उन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीत ली। उन्होंने अपनी आयु वर्ग की सभी प्रतियोगिताएं जीत कर एकसाथ छह स्वर्ण पदक जीत लिए।


==परिचय==
बुला चौधरी का जन्म 2 जनवरी,1970 को [[कलकत्ता]]) मेंं हुआ था। इनका पूरा नाम बुला चौधरी चक्रवर्ती है। वे एक ऐसी कुशल तैराक हैं, जिन्होंने लम्बी दूरी की तैराकी के साथ-साथ प्रतियोगात्मक तैराकी में भी नाम कमाया है। वह सुर्खियों में तब आईं, जब उन्होंने मात्र 9 [[वर्ष]] की आयु में राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीत ली। उन्होंने अपनी आयु वर्ग की सभी प्रतियोगिताएं जीत कर एकसाथ छह [[स्वर्ण]] पदक जीत लिए। अपने 24 वर्षों के कैरियर में बुला चौधरी सात समुद्र और पांचों महाद्वीपों के जलडमरूमध्य को पार करने वाली विश्व की पहली महिला बन गईं। उन्होंने अपना यह विशिष्ट मुकाम तब पूर्ण किया जब [[24 अगस्त]], [[2004]] को उन्होंने [[श्रीलंका]] में तलाईमन्नार से [[तमिलनाडु]] के घनुष्कोटि तक की पाल्क स्ट्रेट की 40 कि.मी. दूरी 13 घंटे 54 मिनट में तैरकर तय की। उस समय वह 34 वर्ष की थीं। उनकी तैराकी के समय समुद्र बहुत विकराल हो गया था। तेज हवाएं चल रही थीं। एक किलोमीटर तक उन्हें बारिश का भी सामना करना पड़ा।
बुला ने बताया- ”मेरी एक बार प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई थी। उन्होंने मुझसे कहा था- ‘यू आर द रोल मॉडल ऑफ इंडियन वुमैन (आप भारतीय महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं)।’ मैं उनके कथन को सदैव याद रखती हूँ और जितना संभव होता है युवा तैराकों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहती हूँ।”
;गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड
बुला ने [[1989]] में इंग्लिश चैनल तैर कर पार किया था, फिर अपनी इस तैराकी को दोहराते हुए [[1999]] में पुन: इंग्लिश चैनल पार किया। वह दो बार इंग्लिश चैनल पार करने वाली प्रथम एशियाई महिला बन गईं।
फिर वह लंबी दूरी की तैराकी करने के लिए कमर कस कर तैयार हो गईं। उन्होंने तय किया कि वह लंबी दूरी की तैराकी करके रिकॉर्ड बनाएंगी। उन्होंने अगस्त [[2000]] को जिब्राल्टर जलडमरूमध्य (स्पेन) पार की। उनकी इस तैराकी के वक्त उनके पति तथा कोच संजीव चक्रवर्ती तथा दस वर्षीय पुत्र सर्बूजी भी उनके साथ कोलंबो आए थे। बुला चौधरी के अनुसार ”यह तैराकी सातों समुद्रों में सबसे कठिन थी, सभी भारतीयों की शुभकामनाओं से मैं यह दूरी पार कर सकी और ‘गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में स्थान पा सकी।” उनकी इस तैराकी हो सहारा इंडिया ने स्पांसर किया था।
[[2001]] में इटली का तिरानियन समुद्र पार किया। फिर [[2002]] में ही उन्होंने अमेरिका में केटेलिना चैनल पार किया। 2003 में उन्होंने न्यूजीलैंड में कुक्स जलडमरूमध्य पार किया।
==पुरस्कार==
[[1990]] में बुला चौधरी को ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ से सम्मानित किया गया। उन्हें ‘जलपरी’ की उपाधि भी दी गई है।
;जिब्राल्टर जलडमरूमध्य विजेता
बुला चौधरी ने जिब्राल्टर जलडमरूमध्य को तैर कर रिकॉर्ड समय में पार किया था। इसे उन्होंने 3 घंटे 35 मिनट के रिकॉर्ड समय में पार कर लिया था जो आज भी एक विश्व रिकॉर्ड है। जिब्राल्टर स्ट्रेट स्पेन से मोरक्को तक है, जिसकी दूरी 20 किलोमीटर है।
[[जुलाई]] [[2002]] में बुला ने ग्रीस का टोरोनोज गल्फ पार किया जिसकी दूरी 26 किलोमीटर थी। ग्रीस का छोटा शहर मैसीडोनिया के पास निकिती चाकिडिंको से तैराकी शुरू करके कसान्ड्रा तक की दूरी उन्होंने 8 घंटे 11 मिनट में पूरी की। यह सात समुद्र पार करने के स्वप्न में चौथी तैराकी थी। वह अपने साथ तैरने वाले 29 तैराकों में से सातवें स्थान पर रहीं। मौसम और हवाओं की बाधा को पार करते हुए उन्होंने यह दूरी तय की थी।
बुला चौधरी दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के पास थी एंकरस बे से रोबिन आईलैंड पार करने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं, जिन्होंने पांचों महाद्वीपों के समुन्द्र पार किए। उन्होंने ठंडे अन्टार्कटिका पानी में 30 किलोमीटर की दूरी 3 घंटे 26 मिनट में पूरी करके एक नया कीर्तिमान कायम किया। वह इस दूरी को पार करने वाली न सिर्फ प्रथम एशियाई महिला थीं बल्कि इतने कम समय में पार करने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के समुद्र की यह तैराकी सुबह 10 बजे शुरू करके दोपहर 1:26 पर समाप्त कर दी। उन्होंने शार्क मछलियों से भरे इस अन्टार्कटिका पानी में पहले से ही तैराकी का अभ्यास किया था। इसी कारण वह इस अति कठिन समझी जाने वाली दूरी को तैर कर पार कर सकीं।<ref>{{cite web |url=https://www.kaiseaurkya.com/bula-choudhury-biography-in-hindi-language/|title=बुला चौधरी का जीवन परिचय |accessmonthday=28 सितम्बर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=कैसे और क्या |language=हिंदी }}</ref>
==अन्तरराष्ट्रीय स्तर==
बुला ने [[2001]] में इटली का टिरेनियन समुद्र जानन से सैन फेलिस सिसेरो तक पार किया। [[2002]] में ग्रीस का अन्तरराष्ट्रीय टोरोनोज गल्फ पार करने के बाद 2002 में ही अमेरिका के कैटेलिना आईलैण्ड से सैन पैंड्रो की दूरी कैटैलिना चैनल तैर कर पार की। [[2003]] में न्यूजीलैंड की कुक जलडमरूमध्य तैर कर पार की।
[[अगस्त]] [[2004]] में जब बुला ने [[श्रीलंका]] से [[तमिलनाडु]] ([[भारत]]) के बीच की पाल्कस्ट्रेट पार कर ली तब उन्होंने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा- ”यह रिकॉर्ड बनाकर मेरा स्वप्न पूर्ण हो गया है। श्रीलंका की तरफ से आधी दूरी तक हवाएं और लहरें दोनों ही भारी थीं अत: मुझे काफी चैलेंज का सामना करना पड़ा। धनुष्कोटि के पास पांच किलोमीटर तक इतनी हवा तथा लहरें थीं कि मुझे यह दूरी तय करने में दो घंटे से अधिक का समय लग गया।
”लेकिन जब मैंने अपनी मातृभूमि के किनारों को छुआ तो मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी, मानों मैं दुनिया के ऊपरी सिरे पर पहुंच गई होऊं, लेकिन यह सब मेरे पति व कोच संजीव चक्रवर्ती और मेरे बेटे के सहयोग से पूर्ण हो सका।” उनके पति जो पहले अन्तरराष्ट्रीय तैराक भी रह चुके हैं, का कहना था कि बुला को सफलता इस कारण मिल सकी कि उसने सुबह छह बजे के स्थान पर सुबह 2 बजे तैराकी शुरू की।
==उपलब्धियां==
#मात्र 9 वर्ष की आयु में बुला ने राष्ट्रीय तैराकी चैंपियनशिप जीती।
#9 वर्ष की आयु में अपने आयु वर्ग के सभी इवेंट जीतकर छह स्वर्ण- पदक प्राप्त किए।
#बुला ने सातों समुद और पांचों महाद्वीप के जलडमरूमध्य पार कर रिकार्ड बनाया है।
#उन्हें ‘जलपरी’ की उपाधि दी गई है।
#उन्होंने जिब्राल्टर जलडमरूमध्य विश्व रिकॉर्ड समय में तैर कर पार किया। उनका समय 3 घंटे 35 मिनट था।
#उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।
#बुला चौधरी को 2002 में तेंन्जिंग नोर्गे एडवेंचर अवार्ड प्रदान किया गया।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{भारत के प्रसिद्ध खिलाड़ी}}
[[Category:अर्जुन पुरस्कार]][[Category:खेलकूद कोश]][[Category:महिला खिलाड़ी]]
__INDEX__
__NOTOC__
शिव कपूर ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shiv Kapur'', जन्म- [[12 फरवरी]] [[1982]], [[दिल्ली]]), यह पहले भारतीय है जिन्होनें मलेशिया का ओपन एमेच्योर चैंपियनशिप मुकाबला जीता था। इन्हे भारत का दूसरा सर्वश्रेष्ठ एमेच्योर गोल्फर माना जाता है। इनके पिता का नाम पिता श्री रवि कपूर है।
शिव कपूर का जन्म 12 फरवरी1982 को [[दिल्ली]]  में हुआ हैं। वह माडर्न स्कूल से पढ़ कर उच्च शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका चला गया । वहीं से वह बुसान एशियाई खेलों में भाग लेने पहुंचा । ‘मात्र 8 वर्ष की आयु में उसने गोल्फ खेलना शुरू कर दिया,’ ऐसा कहना है उसके पिता श्री रवि कपूर का ।
बुसान खेलों के पूर्व शिव 12 बड़े चैंपियनशिप मुकाबले जीत चुका था, तब उसकी आयु मात्र 19 वर्ष थी । शिव को भारत का दूसरा सर्वश्रेष्ठ एमेच्योर गोल्फर माना जाता है । वह पहला भारतीय है जिसने मलेशिया का ओपन एमेच्योर चैंपियनशिप मुकाबला जीता था ।
बुसान खेलों के बाद शिव पहले जीत की खुशी अपने परिवार के साथ मनाने भारत आया, फिर अमेरिका की पेरडू यूनीवर्सिटी के लिए रवाना हो गया, जहां उस वक्त वह शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।
शिव ने बुसान में लोगों को बताया था कि कैसे लक्ष्मण सिंह से बातचीत का लाभ उसे हुआ । लक्ष्मण ने 1982 में एशियाड में स्वर्ण जीता था, उसके बाद इतने वर्षों बाद भारत को गोल्फ में स्वर्णिम कामयाबी मिली । लक्षण ने उनसे एशियाड को किसी और टूर्नामेंट की तरह ही लेने को कहा था और कहा था कि इससे तुम पर दबाव नहीं आएगा । दूसरे दिन तीन ओवर में 75 का खराब स्कोर बनाने के बाद भी लक्ष्मण ने उनका हौंसला बढ़ाया और फिर वह स्वर्णिम मुकाम तक पहुंचा ।
शिव एमेच्योर यानी गैर पेशेवर गोल्फर बनना चाहते हैं । अमेरिका के शीर्षस्थ खिलाड़ियों में एक शिव का सपना है कि प्रोफेशनल गोल्फर बनने के बाद वह यू. एस. टूर में खेले ।
उपलब्धियां :
1982 में उन्होंने एशियाड का स्वर्ण पदक जीता ।
वर्ष 2002 में बुसान एशियाई खेलों में उन्होंने गोल्फ का स्वर्ण पदक जीता |

11:40, 13 जनवरी 2018 के समय का अवतरण