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| {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
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| |चित्र=Blankimage.png
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| |चित्र का नाम=
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| |पूरा नाम=चतुर्भुज औदीच्य
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| |अन्य नाम=
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| |जन्म=
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| |जन्म भूमि=
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| |मृत्यु=
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| |मृत्यु स्थान=
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| |अभिभावक=
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| |पति/पत्नी=
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| |संतान=
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| |गुरु=
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| |कर्म भूमि=
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| |कर्म-क्षेत्र=
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| |मुख्य रचनाएँ=औदीच्य जी का 'कवित्व' नामक निबन्ध बहुप्रशंसित है।
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| |विषय=
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| |खोज=
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| |भाषा=
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| |शिक्षा=
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| |विद्यालय=
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| |पुरस्कार-उपाधि=
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| |प्रसिद्धि=लेखक, निबन्धकार
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| |विशेष योगदान=
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| |नागरिकता=भारतीय
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| |संबंधित लेख=[[द्विवेदी युग|द्विवेदी-युग]], [[साहित्य]], [[रामचन्द्र शुक्ल]], [[भाषा]]
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| |शीर्षक 1=रचना-काल
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| |पाठ 1=[[1904]] ई.
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |शीर्षक 3=
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| |पाठ 3=
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| |शीर्षक 4=
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| |पाठ 4=
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| |शीर्षक 5=
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| |पाठ 5=
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| |अन्य जानकारी=ऐसा लगता है कि ये उन लेखकों में-से थे, जो [[साहित्य]] को जीवन का अनिवार्य अंग या व्यापार न बनाकर कभी-कभी लिखते हैं।
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=
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| }}
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| '''चतुर्भुज औदीच्य''' [[द्विवेदी युग|द्विवेदी-युग]] के निबन्धकार थे। औदीच्य जी का 'कवित्व' नामक निबन्ध बहुप्रशंसित है। प्रथम अध्याय में कवित्व की प्रशंसा, द्वितीय में कवित्व का जन्म, तृतीय में कवीत्व का भाषा से [[विवाह]] तथा चतुर्थ में मिथ्या (कल्पना) का कवित्व से सम्बन्ध स्थापन किया गया है।
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| === परिचय ===
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| '''चतुर्भुज औदीच्य''' का रचना-काल [[1904]] ई. है। यह [[द्विवेदी युग|द्विवेदी-युग]] के निबन्धकार थे। ऐसा लगता है कि ये उन लेखकों में-से थे, जो [[साहित्य]] को जीवन का अनिवार्य अंग या व्यापार न बनाकर कभी-कभी लिखते हैं। ऐसे लेखक गौण होते हुए भी [[साहित्य]] के लिए अपेक्षित वातावरण बनाने में सहायक होते हैं।
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| === लेखन शैली ===
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| औदीच्य जी का 'कवित्व' नामक [[निबन्ध]] बहुप्रशंसित है। 'कवित्व' निबन्ध में भाव, उपादान और शैली सभी महत्त्वपूर्ण थे <ref>श्रीकृष्णलाल: 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास', पृ. 354</ref>। इस निबन्ध का मूलाधर बंगला के पंचानन तर्करत्न का 'कवित्व' शीर्षक निबन्ध है। यह रूप और शैली में खण्ड-काव्य के निकट पहुँचता है। यह चार अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में कवित्व की प्रशंसा, द्वितीय में कवित्व का जन्म, तृतीय में कवीत्व का [[भाषा]] से [[विवाह]] तथा चतुर्थ में मिथ्या <ref>कल्पना</ref>का कवित्व से सम्बन्ध स्थापन किया गया है। "इस प्रकार लेखक ने एक बहुत ही कवित्वपूर्ण रूपात्मक कहानी की सृष्टि की, जिसमें कवित्व,भाषा, मिथ्या और कल्पना का मानवीयकरण हुआ है।"
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| === भाषा शैली ===
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| सम्भवत: ऐसी ही निबन्धों को ध्यान में रखकर [[रामचन्द्र शुक्ल]] ने कविता की [[भाषा]] का प्रयोग आलोचना के क्षेत्र में अनुचित माना है।<ref>'हिन्दी साहित्य का इतिहास', सप्तम संस्करण, पृ. 595-596</ref> वस्तुत: इस [[निबन्ध]] को आलोचना के क्षेत्र से अलग कर शुद्ध कलात्मक निबन्ध के अंतर्गत परिगणित करना चाहिए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=181|url=}}</ref>
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| ==संबंधित लेख==
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| {{साहित्यकार}}
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| __INDEX__
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