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<h4>[[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</h4>
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[[चित्र:4-crow-meeting.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012]]
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<center>[[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|कौऔं का वायरस]]</center>
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[[चित्र:Ghareebee.jpg|border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013]]
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013|ग़रीबी का दिमाग़]]</center>
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        तम्बू में सन्नाटा हो गया, सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। जब कोई कुछ नहीं बोला तो पहले ग़रीब की हाईस्कूल पास पत्नी अचानक बोल पड़ी-
        यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। [[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|...पूरा पढ़ें]]
"ठीक कह रहे हैं बाबू जी, ग़रीबी हमारे दिमाग़ में है... आप लोगों के दिमाग़ में नहीं... अगर हमारी ग़रीबी आपके दिमाग़ में भी होती तो हम ग़रीब नहीं होते..." [[भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013|...पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मई 2013|सभ्य जानवर]]
| [[शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी|शर्मदार की मौत]]
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|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
* [http://adityachaudhary.org अधिक जानकारी के लिए देखें- adityachaudhary.org]
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13:56, 6 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी

कौऔं का वायरस

         यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। ...पूरा पढ़ें

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