"रुद्राक्ष": अवतरणों में अंतर
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*त्रिपुरासुर को जला कर भस्म करने के बाद भोले [[रुद्र]] का हृदय द्रवित हो उठा और उनकी आँख से आंसू टपक गये। आंसू जहाँ गिरे वहाँ 'रुद्राक्ष' का वृक्ष उग आया। | *त्रिपुरासुर को जला कर भस्म करने के बाद भोले [[रुद्र]] का हृदय द्रवित हो उठा और उनकी आँख से आंसू टपक गये। आंसू जहाँ गिरे वहाँ 'रुद्राक्ष' का वृक्ष उग आया। | ||
*इस लोक में और परलोक में सबसे श्रेष्ठ वस्तु 'रुद्राक्ष' है <ref>शिव पुराण</ref> | *इस लोक में और परलोक में सबसे श्रेष्ठ वस्तु 'रुद्राक्ष' है| <ref>शिव पुराण</ref> | ||
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*रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन आदि का त्याग कर देना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से हृदय शान्त रहता है, उत्तेजना का अन्त होता है और हज़ारों तीर्थों की यात्रा करने का फल प्राप्त होता है तथा व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता हैं। | *रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन आदि का त्याग कर देना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से हृदय शान्त रहता है, उत्तेजना का अन्त होता है और हज़ारों तीर्थों की यात्रा करने का फल प्राप्त होता है तथा व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता हैं। | ||
*रुद्राक्ष सड़ता नहीं है और टूट कर उसके टुकड़े नहीं होते। हर प्रकार के रुद्राक्ष का अलग अलग प्रकार का महात्म्य होता है। | *रुद्राक्ष सड़ता नहीं है और टूट कर उसके टुकड़े नहीं होते। हर प्रकार के रुद्राक्ष का अलग अलग प्रकार का महात्म्य होता है। | ||
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12:17, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

- 'रुद्र' का अर्थ शिव और 'अक्ष' का आँख अथवा आत्मा है।
- त्रिपुरासुर को जला कर भस्म करने के बाद भोले रुद्र का हृदय द्रवित हो उठा और उनकी आँख से आंसू टपक गये। आंसू जहाँ गिरे वहाँ 'रुद्राक्ष' का वृक्ष उग आया।
- इस लोक में और परलोक में सबसे श्रेष्ठ वस्तु 'रुद्राक्ष' है| [1]
- रुद्राक्ष को हिन्दू और विशेष रूप से शैव अत्यंत पवित्र मानते हैं।
- शैव, तांत्रिक रुद्राक्ष की माला पहनते हैं, उससे जप करते हैं।
- रुद्राक्ष श्वेत, लाल, काला और पीला आदि विभिन्न रंगों का होता है।
- एक से इक्कीस मुखी (आँख) रुद्राक्ष होते हैं।
- रुद्राक्ष आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
- उपनिषद में रुद्राक्ष को 'शिव के नेत्र' कहा गया है। इन्हें धारण करने से दिन-रात में किये गये सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सौ अरब गुना पुण्य प्राप्त होता है। रुद्राक्ष में हृदय सम्बन्धी विकारों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है। ब्राह्मण को श्वेत रुद्राक्ष, क्षत्रिय को लाल, वैश्य को पीला और शूद्र को काला रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
- एकमुखी रुद्राक्ष को साक्षात परमतत्त्व का रूप माना गया है,
- दोमुखी रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर का रूप कहा गया है,
- तीनमुखी रुद्राक्ष को अग्नित्रय रूप कहा गया है,
- चतुर्मुखी रुद्राक्ष को चतुर्मुख भगवान का रूप माना गया है,
- पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुंह वाले शिव का रूप है,
- छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय का रूप है, इसे गणेश का रूप भी कहते हैं।
- सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति आदि का रूप है,
- अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ माताओं का,
- नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का,
- दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का,
- ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का,
- बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु का,
- तेरहमुखी रुद्राक्ष मानोकामनाओं और सिद्धियों को देने वाला तथा
- चौदहमुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति साक्षात भगवान के नेत्रों से हुई मानी गयी है, जो सर्व रोगहारी है।
- रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन आदि का त्याग कर देना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से हृदय शान्त रहता है, उत्तेजना का अन्त होता है और हज़ारों तीर्थों की यात्रा करने का फल प्राप्त होता है तथा व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता हैं।
- रुद्राक्ष सड़ता नहीं है और टूट कर उसके टुकड़े नहीं होते। हर प्रकार के रुद्राक्ष का अलग अलग प्रकार का महात्म्य होता है।
इन्हें भी देखें: रुद्राक्षजाबालोपनिषद
टीका टिप्पणी
- ↑ शिव पुराण
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