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| *अवध काश्तकारी कानून, गवर्नर-जनरल सर जान लारेंस के समर्थन से [[1868]] ई. में पास हुआ।
| | #REDIRECT [[अवध काश्तकारी क़ानून]] |
| *[[अवध]] में नवाबों के शासनकाल में बहुत से प्रभावशाली ताल्लुकेदार नियुक्त हो गये थे, जिनमें अधिकांशत: [[राजपूत]] थे।
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| *वे क़ाश्तकारों का बुरी तरह से शोषण करते थे। अधिकांश क़ाश्तकार शिक़मी थे, जिन्हें जब चाहे तब बेदख़ल किया जा सकता था।
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| *अवध क़ाश्तकारी क़ानून के द्वारा अवध के क़ाश्तकारों की अवस्था, कुछ हद तक सुधारने की कोशिश की गई। उन्हें कुछ विशेष शर्तों पर ज़मीन पर दख़ल रखने के अधिकार प्रदान किये गये। *यह व्यवस्था की गई कि लग़ान बढ़ाने पर किसानों ने भूमि में जो स्थायी सुधार किये होंगे, उनके लिए उन्हें मुआवज़ा दिया जायेगा और न्यायालय में दर्ख़ास्त देने के बाद ही न्यायोचित आधार पर लग़ान बढ़ाया जा सकेगा।
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| *यह उपयोगी और किसानों के हित का क़ानून था।
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| {{संदर्भ ग्रंथ}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-25
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| <references/>
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| [[Category:नया पन्ना]]
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| [[Category:इतिहास कोश]]
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| [[Category:अंग्रेज़ी शासन]]
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| [[Category:औपनिवेशिक काल]]
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