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| {| width="80%" align="left" class="headbg37" style="border: thick groove #003333; padding:10px;" | | ==राष्ट्रपति चुनाव में एक विधायक के मत का मूल्य== |
| | {| class="bharattable" border="1" |
| |- | | |- |
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| | ! राज्य |
| [[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]]
| | ! सीटों की संख्या<ref>विधानसभा</ref> |
| <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>गुड़ का 'सनीचर' -<small>आदित्य चौधरी</small></font></div> | | ! जनसंख्या (1971) |
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| | ! मत का मूल्य<ref>एक विधायक</ref> |
| <br />
| | ! मतों का मूल्य<ref>राज्य के कुल निर्वाचित विधायक</ref> |
| [[चित्र:Pipal.jpg|right|border|250px]]
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| <poem>
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| "पंडिज्जी ! पहले पुराना हिसाब साफ़ करो फिर गुड़ की भेली दूँगा। पुराना ही पैसा बहुत बक़ाया है। ऐसे तो मेरी दुकान ही बंद हो जाएगी"
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| "अरे सेठ ! हिसाब तो होता रहेगा गुड़ तो भिजवा देना..."
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| "पंडिज्जी मैंने कह दिया सो कह दिया... पहले आप हिसाब कर दो बस"
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| "तेरी मर्ज़ी है सेठ! वैसे गुड़ के बिना खाना अच्छा तो नहीं लगता हमको..."
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| इतना कह कर पंडित जी उदास मन से चल दिए। थोड़ी दूर ही गाँव का स्कूल था।
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| पंडित जी ने छोटे पहलवान को स्कूल की मेड़ पर बैठे देख कर पूछा-
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| "क्या बात है चौधरी कैसे मुँह लटका के बैठा है ?"
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| "क्या बताऊँ पंडिज्जी ! बड़ी तंगी चल रही है। एक के बाद एक सब काम-काज बिगड़ते जा रहे हैं। खोपड़ी भिन्नौट हो गई है, काम ही नहीं कर रही पता नईं चक्कर क्या है ?"
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| "चक्कर तो सीधा सा है, आजकल तुला राशि पर सनीचर चढ़ा हुआ है और तेरी राशि भी तो तुला ही है।"
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| "तो क्या करूं फिर...अब आप ही बताओ पंडिज्जी महाराज"
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| "करना क्या है सनीचर चढ़ा है तो उतारना भी तो पड़ेगा !"
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| "कैसे ?"
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| "कैसे क्या ! बस थोड़े से काले तिल..."
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| "अच्छाऽऽऽ"
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| "थोड़ा सरसों का तेल"
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| "अच्छाऽऽऽ"
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| "रोज सवेरे-सवेरे कुएँ पर नहा-धो के पीपल के चारों तरफ कलावा बांध के तिल और तेल चढ़ा दे"
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| "कितने दिन ?"
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| "वो तो बाद में बताऊँगा... पहले शुरू तो कर... ध्यान रखना नहाना कुएँ के ही पानी से... "
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| चौधरी छोटे पहलवान का घर, सेठ गिरधारी लाल के बिल्कुल पड़ोस में था। छोटे पहलवान ने अपना 'सनीचर' उतारना शुरू कर दिया...
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| "सेठ जी ऽऽऽ ... सेठ जी ऽऽऽ"
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| "अरे कौन आ गया सुबह तीन बजे ?"
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| सेठ जी की आदत सुबह देर से उठने की थी, बड़े अनमने होकर उन्होंने दरवाज़ा खोला
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| "क्या बात है चौधरी साब ! इतनी सुबह कैसे ?"
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| "सेठ जी जल्दी से बाल्टी, लोटा, रस्सी, कलावा, थोड़े काले तिल और एक कटोरी में सरसों का तेल देदो"
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| सेठ ने बिना कुछ पूछे सारा सामान दे दिया, क्योंकि पहलवान सिर्फ पैसे से ही कमज़ोर था बाक़ी तो उससे किसी बात की मना करने की हिम्मत इस गाँव में तो क्या दस गाँवों में भी किसी की नहीं थी।
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| ख़ैर... सेठ जी जैसे-तैसे दोबारा सो गये। फिर एक घंटे बाद...
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| "सेठ जी ऽऽऽ ... सेठ जी ऽऽऽ दरवाज़ा खोलो"
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| सेठ जी ने आँख मलते हुए दरवाज़ा खोला
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| "अब क्या हुआ ?"
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| "ये आपकी बाल्टी लोटा और रस्सी..."
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| "अरे बाद में लौटा देते"
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| "नहीं-नहीं अमानत तो अमानत है"
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| दूसरे दिन, तीसरे दिन और चौथे दिन भी वही सुबह तीन बजे
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| "सेठ जी ऽऽऽ ... सेठ जी ऽऽऽ"
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| सेठ जी ने आख़िरकार पूछ ही लिया
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| "बात क्या है पहलवान रोज़ाना सुबह-सुबह ये हो क्या रहा है ?"
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| चौधरी ने पूरा क़िस्सा सुनाया कि शनीचर ने किस तरह परेशान कर रखा है
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| "अरे भैया सनीचर तुम पर क्या ये सनीचर तो मुझ पर चढ़ा है। अब तुम जाओ तुम्हारा सनीचर अब उतर गया है...चाहो तो आज शाम को जाकर पंडिज्जी से पूछ लेना... ठीक है... अब कल से सुबह तीन बजे मुझे जगाने कोई ज़रूरत नहीं है"
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| शाम को-
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| "पंडिज्जी ! मेरा सनीचर उतर गया ?"
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| "उतर गया चौधरी, पूरी तरह से उतर गया... लो गुड़ खाओ... सेठ जी ने दो भेली आज ही भिजवाई हैं। बड़े भले आदमी हैं बेचारे, उनसे एक भेली मांगो तो दो भिजवा देते हैं"
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| इसी समय वहाँ से पंडित निरंजन शास्त्री गुज़र रहे थे, दोनों की बात सुनकर रुक गए। निरंजन शास्त्री माने हुए विद्वान थे, पास के शहर से भी लोग उनकी सलाह लेने आया करते थे।
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| "क्या बात चल रही हैं पंडित ? मैंने सुना है तुम लोगों का अच्छा-बुरा करवा सकते हो, इतनी ताक़त है तुम्हारे ज्योतिष में ?"
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| "बिल्कुल शास्त्री जी अगर कोई विश्वास ना करे तो साबित कर सकता हूँ, बोलिए किसका भला-बुरा करवाना है, जिसका कहें उसी का चौपट कर दूँ"
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| "तो ठीक मेरा सत्यानाश करवा दो" शास्त्री जी गम्भीर आवाज़ में बोले
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| "आपका तो नहीं... हाँ अगर किसी और का कहें तो एक हफ़्ते में ख़ून की उल्टी ना कर जाय तो मेरा नाम बदल देना"
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| "तो फिर परमानंद का बुरा करवा दो"
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| "परमानन्द ? आपका बेटा ?"
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| "हाँ"
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| अब पंडित जी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए
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| "शास्त्री जी ! आप यहाँ तक हो ? मैं कान पकड़ता हूँ जो आपसे कभी बहस करूँ ! परमानंद आपका इकलौता बेटा है और आप उस का ही बिगाड़ करवाने के लिए तैयार हैं। आपकी ज़िद के आगे तो सब राहु, केतु, शनीचर बेकार हैं।"
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| "बात ज़िद की नहीं है पंडित ! बात ज़िम्मेदारी की है। मैं अपने भले या बुरे के लिए किसी राहु-केतु को या किसी को भी ज़िम्मेदार ठहरा दूँ तो लानत है मेरे मनुष्य होने पर... अपने कर्म से हमारी सफलता और असफलता निश्चित होती है, ना कि भाग्य और ग्रहों से... समझे... और तुम भी समझ लो छोटे पहलवान... तुम्हारी बुरी आर्थिक स्थिति की वजह शनिदेव नहीं बल्कि तुम्हारा सारे दिन गाँव में इधर से उधर समय नष्ट करते रहना और कोई रोज़गार न करना है।"
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| "मैं अच्छी तरह समझ गया सास्तरी जी ! अब मेरा सनीचर तो जिंदगी भर को परमानेन्ट उतर गया"
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| ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म हुआ...
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| अब ज़रा ये सोचें कि अपनी असफलता को कुण्डली के दोष से जोड़ना कहाँ की अक़्लमंदी है।
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| कहते हैं कि ज़िम्मेदारियाँ सदैव 'ज़िम्मेदार इंसान' को ढूँढ लेती हैं। यदि लोग किसी को एक ज़िम्मेदार इंसान नहीं समझते तो ग़लती लोगों की नहीं बल्कि उसकी ख़ुद की ही है।
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| कभी भाग्य, कभी राशि-फल, कभी ग्रहों का चक्कर; ये सब बातें स्वयं पर भरोसा करने वाले इंसान के मुँह से कभी सुनने को नहीं मिलतीं। महाभारत में युद्ध के समय एक प्रसंग आता है, जिसमें अर्जुन कहता है कि आज का युद्ध तो समाप्त हुआ अब कल फिर युद्ध होगा। इस बात पर कृष्ण ने अर्जुन को टोका कि जब कोई यह नहीं बता सकता कि एक पल बाद क्या होगा तो तुमने कैसे कह दिया कि कल युद्ध होगा ?
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| भगवान राम के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकालते समय किसी ज्योतिषी ने नहीं बताया कि राम को राजगद्दी के बजाय वनवास मिलने वाला है। मेरी समझ में नहीं आता कि गुरु वशिष्ठ आख़िर कैसी कुण्डली बनाते और मिलाते थे कि राम को वनवास, फिर सीता हरण, फिर सीता वनवास... ये क्या माजरा है ?
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| ये एक ऐसा मसला है, जिसका हल विज्ञान और पौराणिक ग्रंथों की तुलना करने से होता है।
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| आदि काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ विश्व भर में मनुष्य के मस्तिष्क में वैज्ञानिक सोच भी कुलबुलाने लगी थी। एक सामान्य धारणा बनी जो कि पृथ्वी पर जीवन के क्रमिक विकास का वैज्ञानिक विश्लेषण करती थी और जो चार्ल्स डार्विन की इवॉल्यूशन थ्यॉरी का कुछ 'देसी' रूप थी। हिन्दुओं के अवतारों को अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो-
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| सबसे पहले 'मत्स्यावतार' आता है। जीव-विज्ञान के अनुसार सबसे पहले जीवन की शुरुआत समुद्र में ही हुई। भले ही 'एल्गी' और 'अमीबा' से हुई, लेकिन उस समय यहीं तक सोच बन पाई कि सबसे पहला जीव मछली है।
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| दूसरा कूर्मावतार: कूर्म अर्थात कच्छप (कछुआ) कछुआ पानी में रहता है, किंतु सांस पानी के भीतर नहीं लेता और अपने अंडे भी ज़मीन पर ही देता है। तो यह हुआ आधा पानी और आधा धरती का जीव।
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| तीसरा वराह अवतार: वराह शूकर (सूअर) को कहते हैं। मछली की तरह गर्दन न घुमा सकने वाला, लेकिन पूरी तरह धरती पर रहने वाला जल प्रेमी जानवर है।
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| नरसिंह अवतार: यह आधा पशु और आधा मनुष्य था। यह सोचा गया होगा कि मनुष्य अपने आदि रूप में पशुओं जैसा ही रहा होगा।
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| वामन अवतार: जिनका बौने क़द के आदमी के रूप में उल्लेख है और इन्होंने तीन क़दमों में धरती नाप दी। इससे यही स्पष्ट होता है कि शुरुआत का मनुष्य क़द में छोटा था और उसने धरती के अनेक स्थानों पर विचरण करना शुरू कर दिया था। वैज्ञानिक शोध भी यही बताते हैं कि मनुष्य बहुत शुरुआत में क़द में छोटा ही रहा होगा। 1974 में 40 लाख साल पुराना 'लूसी' फ़ॉसिल,<ref>[http://www.bbc.co.uk/sn/prehistoric_life/human/human_evolution/mother_of_man1.shtml Mother of man - 3.2 million years ago]</ref><ref>[http://www.youtube.com/watch?v=zv0SE52f2eQ Evolution Finding Lucy Becoming a Fossil]</ref>1992 में 'आर्दी' फ़ॉसिल,<ref>[http://news.bbc.co.uk/2/hi/8285180.stm Fossil finds extend human story]</ref> और 1983 'इदा' फ़ॉसिल<ref>[http://www.youtube.com/watch?v=ygljRTbxdc4&feature=related The Missing Link: Most Complete Fossil In Primate Evolution]</ref><ref>[http://www.guardian.co.uk/science/2009/may/19/fossil-ida-missing-link-discovery Deal in Hamburg bar led scientist to Ida fossil, the 'eighth wonder of the world']</ref> मिलने से काफ़ी हद तक वैज्ञानिकों को यही नतीजे प्राप्त हुए। खोज भारत में भी हो सकती थीं लेकिन प्राचीन काल से ही भारत में वैज्ञानिकों की उपेक्षा हुई है। जो आज भी हो रही है। सभी जानते हैं कि भारत सरकार ने हरगोविन्द खुराना को एक प्रयोगशाला उपलब्ध करवाने से मना कर दिया था। इस कारण वे अमेरिका चले गये और उन्हें जैविक गुण-धर्म (जीन्स) की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला। आजकल कोई वैज्ञानिक नहीं बनना चाहता, सब जैसे एम.बी.ए. ही करना चाहते हैं।
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| प्राचीन भारत में वैज्ञानिकों के पृथ्वी पर क्रमिक विकास को परिभाषित करने वाले यह शोध धरे के धरे रह गये और लोक-कथावाचकों और धार्मिक-कथावाचकों द्वारा बनाए गए सुरुचिपूर्ण कथानकों ने बाज़ी जीत ली और प्रचलन में भी अवतारों की चमत्कारिक छवि ही बनी रही। जनता इन अवतारों की कथाएँ रस ले कर बड़े आनन्द से सुनती थी जबकि वैज्ञानिकों की बातें बेहद गंभीर और नीरस होती थीं। कथाकारों को राजाश्रय भी था और सामान्य जनता का समर्थन भी इसलिए भारतीय वैज्ञानिक कभी भी अपने बात को स्थापित नहीं कर पाए।
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| परशुराम अवतार: यह समय वह था जब मनुष्य हाथ में शस्त्र रखने लगा था। जैसे इनके हाथ में परशु यानि फरसा होता था।
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| राम: यहाँ तक आते-आते शस्त्र के साथ अस्त्र भी आ गये जैसे- धनुष बाण और राम ने अहल्या (ऐसी भूमि जिसमें हल न चला हो) में हल चला कर उसे उपजाऊ किया। गौतम ऋषि की पत्नी की कथा कि अहल्या शाप के कारण पत्थर की हो गयी थी यही इंगित करती है। मिथिला के जनक ने सीता (हल की फाल) का आविष्कार किया और उसे राम को भेंट स्वरूप दिया। सीता का अर्थ हल की 'फाल' भी होता है और हल द्वारा बनी रेखा भी। राम कथा 'कुशीलवों' (एक कथा-वाचक जाति) द्वारा ग्रामों में कही जाती थी और बहुत प्रचलित थी जिसे बाद में बाल्मीकि ने परिष्कृत किया और अधिक सुन्दर रूप दिया।
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| कृष्ण: कृष्ण को सोलह कला से पूर्ण होने के कारण पूर्णावतार कहा गया है। शेष सभी अवतार अंशावतार थे। ग्रंथों में आता है कि आठ कला मनुष्य में होती हैं, आठ से अधिक कला वाले अवतार हैं। राम बारह कला के अंशावतार थे। इसमें एक तर्क यह भी है कि कृष्ण चंद्रवंशी थे और चंद्रमा की सोलह कलाएँ हैं। राम सूर्यवंशी थे और सूर्य बारह राशियों में बंटा हुआ है। कृष्ण को महाभारत काल का मानने में इतिहासकारों में आम सहमति नहीं है। महाभारत की कथा 'सूत' सुनाया करते थे, जिसे सूतों के मुखिया 'संजय' ने तैयार किया था। इसलिए इस महाकाव्य का नाम पहले 'जय' था। उस समय लगभग सात हज़ार श्लोक ही थे जो बाद में एक लाख से भी ऊपर जा पहुँचे। कालांतर में महाभारत के रचयिता के रूप में संजय को सब भूल गए, याद रह गये व्यास। व्यासों ने महाभारत को विशाल रूप दिया जिसे हम आज जानते हैं।
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| इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और...
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| -आदित्य चौधरी
| |
| <small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small>
| |
| </poem>
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| |}
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| {| width="20%" class="headbg37" align="right" style="border:thick groove #003333; padding:2px;"
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| |- | | |- |
| | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] | | | [[आन्ध्र प्रदेश]] |
| | | 233 |
| | | 49,386,799 |
| | | 148 |
| | | 148 x 294 = 43,512 |
| |- | | |- |
| | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | | | [[अरुणाचल प्रदेश]] |
| | | 60 |
| | | 467,511 |
| | | 08 |
| | | 08 x 60 = 480 |
| |- | | |- |
| | | | | [[असम]] |
| ----
| | | 126 |
| <div style="text-align:center; color:#003366;">पिछले सम्पादकीय लेख</div>
| | | 14,625,152 |
| ----
| | | 116 |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 24 मार्च 2012|गुड़ का सनीचर]]
| | | 116 x 126 = 14,616 |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2012|ज़माना]]
| |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012|राज की नीति]]
| |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012|कौऔं का वायरस]]
| |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|छापाख़ाने का आभार]]
| |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012|बात का घाव]]
| |
| * [[भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012|चिल्ला जाड़ा]]
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| |} | |
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| {{Theme purple}}
| |
| {| width="100%"
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| |- | | |- |
| | | [[बिहार]] |
| | | 243 |
| | | 42,126,239 |
| | | 173 |
| | | 173 x 243 = 42,039 |
| | |- |
| | | [[छत्तीसगढ़]] |
| | | 90 |
| | | 11,637,497 |
| | | 129 |
| | | 129 x 90 = 11,610 |
| | |- |
| | | [[गोवा]] |
| | | 40 |
| | | 795,120 |
| | | 20 |
| | | 20 x 40 = 800 |
| | |- |
| | | [[गुजरात]] |
| | | 182 |
| | | 26,697,475 |
| | | 147 |
| | | 147 x 182 = 26,754 |
| | |- |
| | | [[हरियाणा]] |
| | | 90 |
| | | 10,036,808 |
| | | 112 |
| | | 112 x 90 = 10,080 |
| | |- |
| | | [[हिमाचल प्रदेश]] |
| | | 68 |
| | | 3,460,434 |
| | | 51 |
| | | 51 x 68 = 3,468 |
| | |- |
| | | [[जम्मू और कश्मीर]] |
| | | 87 |
| | | 6,300,000 |
| | | 72 |
| | | 72 x 87 = 6,264 |
| | |- |
| | | [[झारखण्ड]] |
| | | 81 |
| | | 14,227,133 |
| | | 176 |
| | | 176 x 81 = 14,256 |
| | |- |
| | | [[कर्नाटक]] |
| | | 224 |
| | | 29,299,014 |
| | | 131 |
| | | 131 x 224 = 29,344 |
| | |- |
| | | [[केरल]] |
| | | 140 |
| | | 21,347,375 |
| | | 152 |
| | | 152 x 140 = 21,280 |
| | |- |
| | | [[मध्य प्रदेश]] |
| | | 230 |
| | | 30,016,625 |
| | | 131 |
| | | 131 x 230 = 30,130 |
| | |- |
| | | [[महाराष्ट्र]] |
| | | 288 |
| | | 50,412,235 |
| | | 175 |
| | | 175 x 288 = 50,400 |
| | |- |
| | | [[मणिपुर]] |
| | | 60 |
| | | 1,072,753 |
| | | 18 |
| | | 18 x 60 = 1,080 |
| | |- |
| | | [[मेघालय]] |
| | | 60 |
| | | 1,011,699 |
| | | 17 |
| | | 17 x 60 = 1,020 |
| | |- |
| | | [[मिज़ोरम]] |
| | | 40 |
| | | 332,390 |
| | | 8 |
| | | 8 x 40 = 320 |
| | |- |
| | | [[नागालैण्ड]] |
| | | 60 |
| | | 516,449 |
| | | 9 |
| | | 9 x 60 = 540 |
| | |- |
| | | [[उड़ीसा]] |
| | | 147 |
| | | 21,944,615 |
| | | 149 |
| | | 149 x 147 = 21,903 |
| | |- |
| | | [[पंजाब]] |
| | | 117 |
| | | 13,551,060 |
| | | 116 |
| | | 116 x 117 = 13,572 |
| | |- |
| | | [[राजस्थान]] |
| | | 200 |
| | | 25,765,806 |
| | | 129 |
| | | 129 x 200 = 25,800 |
| | |- |
| | | [[सिक्किम]] |
| | | 32 |
| | | 209,843 |
| | | 7 |
| | | 7 x 32 = 224 |
| | |- |
| | | [[तमिलनाडु]] |
| | | 234 |
| | | 41,199,168 |
| | | 176 |
| | | 176 x 234 = 41,184 |
| | |- |
| | | [[त्रिपुरा]] |
| | | 60 |
| | | 1,556,342 |
| | | 26 |
| | | 26 x 60 = 1,560 |
| | |- |
| | | [[उत्तर प्रदेश]] |
| | | 403 |
| | | 83,849,905 |
| | | 208 |
| | | 208 x 403 = 83,824 |
| | |- |
| | | [[उत्तराखण्ड]] |
| | | 70 |
| | | 4,491,239 |
| | | 64 |
| | | 64 x 70 = 4,480 |
| | |- |
| | | [[पश्चिम बंगाल]] |
| | | 294 |
| | | 44,312,011 |
| | | 151 |
| | | 151 x 294 =44,394 |
| | |- |
| | | [[दिल्ली]] |
| | | 70 |
| | | 40,65,698 |
| | | 58 |
| | | 58 x 70 = 4,060 |
| | |- |
| | | [[पुदुचेरी]] |
| | | 30 |
| | | 471,707 |
| | | 16 |
| | | 16 x 30 = 480 |
| | |- |
| | | कुल |
| | |4120 |
| | | 549,302,005 |
| | | | | |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | | | =549,474 |
| <references/>
| |
| [[Category:सम्पादकीय]]
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