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| '''बेल वृक्ष''' (वानस्पतिक नाम 'एजिल मारमेलस') विश्व के कई हिस्सों में पाया जाता है। [[भारत]] में इस वृक्ष का [[पीपल]], [[नीम]], [[आम]], [[पारिजात]] और [[पलाश वृक्ष|पलाश]] आदि वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। [[हिन्दू धर्म]] में बेल वृक्ष भगवान [[शिव]] की अराधना का मुख्य अंग है। धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। बेल वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आँखों की रौशनी में कमी, पेट में कीडे और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिये उत्तम है। बेल की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते है।
| | #REDIRECT [[बिल्व वृक्ष]] |
| ==परिचय==
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| बेल का वृक्ष पन्द्रह से तीस फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्र युक्त होती हैं। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर [[मई]] में [[पुष्प]] लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष [[मार्च]]-मई तक [[फल]] तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फल कवच कच्ची अवस्था में [[हरा रंग|हरे रंग]] और पकने पर सुनहरे [[पीला रंग|पीले रंग]] का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है, जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।
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| ==प्राप्ति स्थान==
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| बेल के वृक्ष पूरे [[भारत]] में पाये जाते हैं। विशेष रूप से [[हिमालय]] की तराई, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में चार हज़ार फीट की ऊँचाई तक ये पाये जाते हैं। मध्य व [[दक्षिण भारत]] में बेल वृक्ष जंगल के रूप में फैले हुए हैं और बड़ी संख्या में उगते हैं। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी [[नेपाल]], [[श्रीलंका]], [[म्यांमार]], [[पाकिस्तान]], [[बांग्लादेश]], वियतनाम, लाओस, [[कंबोडिया]] एवं [[थाईलैंड]] में उगते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में भी की जाती है।
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| ==धार्मिक महत्त्व==
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| [[हिन्दू धर्म]] में बेल वृक्ष को भगवान [[शिव]] का रूप माना जाता है। मान्यता है कि इसके मूल में महादेव का वास है। इसीलिए इस वृक्ष की [[पूजा]] का बहुत महत्त्व है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शिव को बेल और बेल के पत्ते अत्यधिक प्रिय हैं। नियमित बेल पत्र अर्पित करके भगवान शिव की पूजा करने वाला भगवान शिव का प्रिय होता है। ऐसा व्यक्ति अपनी जन्मपत्री में चाहे कितने भी अशुभ योग लेकर आया हो, तब भी उससे प्रभावित नहीं होता। '[[शिवपुराण]]' में बेल के पेड़ को साक्षात शिव का स्वरूप कहा गया है। [[महर्षि व्यास]] के पुत्र सूतजी ने [[ऋषि]]-मुनियों को समझाते हुए कहा है कि- "जितने भी तीर्थ हैं, उन सबमें [[स्नान]] करने का जो फल है, वह बेल के वृक्ष के नीचे स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है।" गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य सहित जो व्यक्ति बेल के पेड़ की पूजा करता है, उसे इस लोक में संतान एवं भौतिक सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के पश्चात शिवलोक में स्थान प्राप्त करने योग्य बन जाता है। बेल के पेड़ की पूजा करने के बाद जो व्यक्ति एक भी शिव [[भक्त]] को आदर पूर्वक बेल की छांव में भोजन करवाता है, वह कोटि गुणा पुण्य प्राप्त कर लेता है। शिव भक्त को खीर एवं घी से बना भोजन करवाने वाले व्यक्ति पर महादेव की विशिष्ट कृपा होती है। ऐसा व्यक्ति कभी गरीब नहीं होता है। शाम के समय बेल की जड़ के चारों ओर [[दीपक]] जलाकर भगवान शिव का [[ध्यान]] और पूजन करने वाला व्यक्ति कई जन्मों के पाप कर्मों के प्रभाव से मुक्त हो जाता है।
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| ==औषधीय गुण==
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| आयुर्वेद में बेल वृक्ष को कई प्रकार से लाभकारी बताया गया है। इसके पत्तों, फलों आदि का औषधी के रूप में बहुत प्रयोग किया जाता है। इसके कुछ घरेलू इलाज निम्नलिखित हैं, किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित रहता है-
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| *[[गुजरात]] प्राँत के डाँग ज़िले के आदिवासी बेल और सीताफल पत्रों की समान मात्रा मधुमेह के रोगियों के देते है।
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| *गर्मियों मे पसीने और तन की दुर्गंध को दूर भगाने के लिये यदि बेल की पत्तियों का रस नहाने के बाद शरीर पर लगा दिया जाए तो समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
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| *पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बेल के कच्चे [[फल]] और पत्तियों को गौ-मूत्र में पीस लिया जाए और [[नारियल]] तेल में इसे गर्म कर कान में डाला जाए तो बधिरता दूर हो सकती है।
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| *जिन्हे हाथ-पैर, तालुओं और शरीर में अक्सर जलन की शिकायत रहती है, उन्हें कच्चे बेल फल के गूदे को नारियल तेल में एक [[सप्ताह]] तक डुबोए रखने के बाद, इस तेल से प्रतिदिन [[स्नान]] से पूर्व मालिश करनी चाहिये।
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| *बेल की जड़ों की छाल का काढ़ा मलेरिया व अन्य बुखारों में हितकर होता है।
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| *अजीर्ण में बेल की पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता है।
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| *अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से 5-10 ग्राम बिल्व चूर्ण लेने से आराम पहुँचाता है। कच्चे बेल की कचरियों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ छाँट कर ले आएँ। इन्हें बारीक पीस कर व कपड़े से छान करके शीशी में भर लें। यही बिल्व चूर्ण है। छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर देना चाहिए।
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| *आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
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| *जल जाने पर बिल्व चूर्ण, गरम किए तेल को ठंडा करके पेस्ट बना लें। जले अंग पर लेप करने से फौरन आराम आएगा। चूर्ण न होने पर बेल का पक्का गूदा साफ़ करके भी लेपा जा सकता है।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| *[http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/bel.htm बेमिसाल बेल]
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| ==संबंधित लेख==
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| {{वृक्ष}}{{भारतीय संस्कृति के प्रतीक}}
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| [[Category:वनस्पति_विज्ञान]][[Category:वनस्पति]][[Category:वनस्पति_कोश]][[Category:वृक्ष]][[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:भारतीय संस्कृति के प्रतीक]]
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