"गोनंद": अवतरणों में अंतर
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'''गोनंद''' [[कार्तिकेय]] के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द [[सारस|सारस पक्षी]] को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि<ref>पातंजलि 'योगसूत्र' और 'महाभाष्य' के रचयिता</ref>का निवासस्थान बताया है। गोनर्द [[उत्तर प्रदेश]] के [[गोंडा]] का प्राचीन नाम है। | '''गोनंद''' [[कार्तिकेय]] के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द [[सारस|सारस पक्षी]] को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि<ref>पातंजलि 'योगसूत्र' और 'महाभाष्य' के रचयिता</ref>का निवासस्थान बताया है। गोनर्द [[उत्तर प्रदेश]] के [[गोंडा]] का प्राचीन नाम है। | ||
==गोनंद नामक तीन राजा== | ==गोनंद नामक तीन राजा== | ||
गोनंद नाम के तीन राजा भी हुए जो प्राचीन [[काश्मीर]] के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और [[कल्हण]] ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतंरगिणी में उनका यथास्थान | गोनंद नाम के तीन राजा भी हुए जो प्राचीन [[काश्मीर]] के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और [[कल्हण]] ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतंरगिणी में उनका यथास्थान काफ़ी वर्णन किया है। | ||
# प्रथम गोनंद तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे [[कलियुग]] के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान [[कैलाश पर्वत]] तक बताया गया है।<ref>काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत-राज., 1.57</ref> यह गोनंद [[मगध]] के राजा [[जरासंध]] का संबंधी (भाई) था ओर [[वृष्णि संघ|वृष्णियों]] के विरुद्ध [[मथुरा]] नगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह [[बलराम]] के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया। | # प्रथम गोनंद तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे [[कलियुग]] के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान [[कैलाश पर्वत]] तक बताया गया है।<ref>काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत-राज., 1.57</ref> यह गोनंद [[मगध]] के राजा [[जरासंध]] का संबंधी (भाई) था ओर [[वृष्णि संघ|वृष्णियों]] के विरुद्ध [[मथुरा]] नगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह [[बलराम]] के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया। | ||
# द्वितीय गोनंद उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है। | # द्वितीय गोनंद उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है। | ||
# तृतीय गोनंद काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी [[अशोक]] और जालौक- जो दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे- के बाद हुआ था। लगता है, वह परंपरागत [[वैदिक धर्म]] का मानने वाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात [[राजतरंगिणी]] में कल्हण ने कही है। | # तृतीय गोनंद काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी [[अशोक]] और जालौक- जो दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे- के बाद हुआ था। लगता है, वह परंपरागत [[वैदिक धर्म]] का मानने वाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात [[राजतरंगिणी]] में कल्हण ने कही है। | ||
यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने 35 वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है।<ref>{{cite web |url=http:// | यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने 35 वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6|title=गोभिचेट्टिपालयम |accessmonthday=28 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref> | ||
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12:27, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
गोनंद कार्तिकेय के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द सारस पक्षी को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि[1]का निवासस्थान बताया है। गोनर्द उत्तर प्रदेश के गोंडा का प्राचीन नाम है।
गोनंद नामक तीन राजा
गोनंद नाम के तीन राजा भी हुए जो प्राचीन काश्मीर के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और कल्हण ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतंरगिणी में उनका यथास्थान काफ़ी वर्णन किया है।
- प्रथम गोनंद तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे कलियुग के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान कैलाश पर्वत तक बताया गया है।[2] यह गोनंद मगध के राजा जरासंध का संबंधी (भाई) था ओर वृष्णियों के विरुद्ध मथुरा नगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह बलराम के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया।
- द्वितीय गोनंद उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है।
- तृतीय गोनंद काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी अशोक और जालौक- जो दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे- के बाद हुआ था। लगता है, वह परंपरागत वैदिक धर्म का मानने वाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात राजतरंगिणी में कल्हण ने कही है।
यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने 35 वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पातंजलि 'योगसूत्र' और 'महाभाष्य' के रचयिता
- ↑ काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत-राज., 1.57
- ↑ गोभिचेट्टिपालयम (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2014।
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