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'''उदित नारायण झा''' ([[अंग्रेजी]]: Udit Narayan, जन्म: [[1 दिसम्बर]], [[1955]], [[नेपाल]], सप्तरी जिला) एक भारतीय पार्श्व गायक हैं। उन्हें तीन देशीय पुरस्कार तथा पांच फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिले हैं। वर्ष [[2009]] में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
'''ज्यां द्रेज''' ([[अंग्रेजी]]: Jean Dreze) बेल्जियम में जनमें [[1979]] से [[भारत]] में हैं। [[2002]] में इन्हें भारत की नागरिकता मिली। अर्थशास्‍त्र पर डा ज्यां द्रेज की 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता [[अमर्त्य सेन]] के साथ मिलकर कई पुस्तकें लिखीं। ज्यां द्वारा तैयार डेढ सौ से अधिक एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख इकोनॉमिक्स के छात्रों, शोधकर्ताओं और सरकारी नीति निर्धारकों की पसंदीदा माने जाते हैं।


===परिचय===
उदित नारायण का जन्म [[1 दिसम्बर]] [[1955]] को [[नेपाल]] के सप्तरी जिले मे हुआ। उदित नारायण एक प्रख्यात गायक के रूपमें जाने जाते है नेपाल में और भारत में भी। नेपाली फ़िल्म में उन्होंने बहुत हिट गाने गाए है। उन्होंने घुट काम उम्र ही संगीत सीखना आरंभ कर दिया था। वह हिंदी सिनेमा के एक बेहतरीन गायक हैं। उदित जी का मातृभाषा मैथिली है और वो नेपालके मिथिलांचल इलाके से आते है। जैसे की नेपाल और भारत के बीच बेटी और रोटी का सम्बन्ध है उसी तरह उनका ननिहाल भारत का विहार राज्य में है।
====शिक्षा====
उदित नारायण ने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई पीबी स्कूल राजबीराज नेपाल से संपन्न की है। 
====विवाह====
उदित नारयण की पहली शादी रंजना नारयण से हुई थी।  लेकिन यह शादी कुछ ही दिन चल सकी।  इसके बाद उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक देकर नेपाली फोक सिंगर दीपा नारयण से विवह रचा लिया।  उनके एक बेटा भी है-आदित्य नारयण जोकि एक हिंदी सिनेमा में पार्श्व गायक के रूप में सक्रिय है।
===कॅरियर===
उदित नारयण ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत नेपाली फ़िल्म “सिंदुर” से की। इस फ़िल्म में उन्होंने पार्श्वगायिकी की साल [[1978]] में वह मुंबई आ गए। उदित नारायण को हिंदी सिनेमा में पहला ब्रेक राजेश रोशन ने अपनी फ़िल्म उन्नीस-बीस में दिया था।  लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा सफलता मिली सुपरहिट फ़िल्म “कयामत से कयामत तक”के गीतों के द्वारा. इस फ़िल्म में उन्होंने “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा…” जैसे गाने को अपनी आवाज दी। इस गाने के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला।  इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा के कई बेहतरीन संगीत निर्देशकों के साथ काम किया। उन्होंने मशहूर संगीतकारों जैसे ए. आर. रहमान, आर. डी. बर्मन, जगजीत सिंह, विशाल भारद्वाज आदि के साथ काम किया। उदित नारायण ने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, राजा हिंदुस्तानी, हम दिल दे चुके सनम, लगान, स्वदेश जैसी कई हिट फ़िल्मों के लिए गाने गाए।


उदित नारायण को साल [[2009]] में भारत सरकार द्वारा [[पद्मश्री]] अवार्ड से नवाजा गया था. उदित नारायण की जादू भरी आवाज ने उन्हें तीन बार नेशनल अवार्ड का खिताब दिलाया है। उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार तीन बार मिला है जिसमें साल [[2002]] में फ़िल्म “लगान” के गाने मितवा.. दूसरी बार फ़िल्म “जिंदगी खूबसूरत है” के गाने छोटे-छोटे सपने और तीसरी बार फ़िल्म “स्वदेश” के गाने यह तारा वह तारा.. के लिए उन्हें यह खिताब दिया गया। इसके साथ ही उन्हें पांच बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्मफेयर अवार्ड भी दिया गया है। उन्हें यह अवार्ड फ़िल्म कयामत से कयामत तक, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, राजा हिंदुस्तानी, हम दिल दे चुके सनम, लगान जैसे सुपरहिट फ़िल्मों के लिए मिले। साथ ही उनकी झोली में और भी कई पुरस्कार शामिल हैं. उदित नारायण अब तक 30 भाषाओं में करीब 15 हजार गीत गा चुके हैं।
==संक्षिप्त परिचय==
ज्यां द्रेज ने इकोनॉमिक्स के विद्यार्थी ज्यां ने इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट (नई दिल्ली) से पीएचडी किया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित दुनिया के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में वह पिछले कई दशक से विजिटिंग लेक्चरर के तौर पर काम करते रहे हैं।  


===टीवी कॅरियर===
आदिम जनजातियों की विनाशलीला का मूक गवाह बनते झारखंड में ज्यां द्रेज की बातें अब तो यहाँ के शासकों को नागवार नहीं लगनी चाहिए। सरल-शालीन लहजे में द्रेज ने उस जमीनी हकीकत की बानगी भर दी है, जिसे कल तक आम लोगों का शिगुफा बताकर अफसर-नेता कन्नी काटते रहे। राज्य में नरेगा की बदहाली के पीछे अफसर-नेता-बिचौलियों की भ्रष्ट तिकडी की फजीहत करने की बजाय, महज उनका हवाला देकर इस अर्थशास्त्री ने विकास के धंसे पहियों को गति देने वाली चुनौतियां बताने की कोशिश की। वैसे भी पुते चेहरों पर और कालिख कोई क्यों खर्चे! लेकिन आम और खास में शायद यही अंतर होता है.. झारखंड की बदहाली ही नहीं, डा ज्यां द्रेज ने समाधान भी सुझाये हैं। नोबेल विजेता अमर्त्य सेन के साथ दर्जन भर पुस्तकों की रचना करने वाले, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स सहित विश्व के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में आख्यान देते रहे आर्थिक विकास विशेषज्ञ डा ज्यां द्रेज ने प्रशासनिक सुधार से लेकर कठोर राजनीतिक निर्णय तक की अनिवार्यता बतायी। सवालों का जवाब देते हुए ज्यां कहते हैं: एक राज्य जो भ्रष्टाचार और हिंसा पर सवारी कर रहा हो, जैसा झारखंड, उसके लिये ये कठिन राजनीतिक चुनौतियां हैं।
उन्होंने अपने टीवी करियर की शुरुआत इंडियन आइडल सीजन 3 से की थी।  इस सीजन में उनके साथ शो में अनु मलिक और अलीशा चिनॉय भी नजर आयीं थी।  उसके बाद सोनी टीवी के वॉर परिवार में जज के तौर पर नजर आ चुके हैं।


उदित नारायण एक प्रख्यात गायक के रूपमें जाने जाते है नेपाल में और भारत में भी। नेपाली फिल्म में उन्होंने बहुत हीट गाने गाए है। और उनका गीत अधिकतर लोगोको पसंद है। उनका स्वर में जादू है। वे किशोर अबस्था से ही गायन कला के क्षेत्र में लग गये थे जो की आज इस मुकाम पर है पूरी बोल्लीवुड में उनका एक बेहत्तर गायक माना जाता है आज भी। नेपाल में उनका स्वर से तुलना किसी गायक से भ नहीं की जा सकती है अभी के समय में भी। उदित जी का मातृभाषा मैथिली हैं और वो नेपालके मिथिलांचल इलाके से आते हैं। जैसे की नेपाल और भारत के बीच बेटी और रोटी का सम्बन्ध है उसी तरह उनका ननिहाल भारत का विहार राज्य में है।
हिंदी राज्यों में नरेगा फेल हो जाने के सवाल पर डा ज्यां अफसरशाही के आचरण को चिह्नित करते हैं। वह नक्सलियों को बाधा नहीं मानते। वह कहते हैं कि नक्सली-उपद्रव के बहाने सरकारी अफसर सुदूर आबादी की उपेक्षा करते हैं। और इधर, कानून के वही रखवाले भ्रष्टाचार और हिंसा में लिप्त पाये जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि गांवों में अबतक शासन का ‘दमनकारी’ चेहरा ही काबिज है। ज्यां कहते हैं कि भ्रष्टाचार को परास्त करना है तो राजस्थान से सीखो!
 
नरेगा के आर्किटेक्‍ट कहे जाने वाले ज्यां द्रेज ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की मनमानी और राज्य में नरेगा काउंसिल की अकर्मण्यता पर बेबाक टिप्पणी की है। ज्यां स्वयं केंद्रीय नरेगा काउंसिल के सदस्य भी हैं। उन्होंने मीडिया के एक खास वर्ग को भी चिह्नित किया और यह सलाह देने से नहीं चूके कि उन्हें गहराई में जाकर खोजपरक रिपोर्टिंग करके ही निष्कर्ष प्रकाशित करना चाहिए, वही होगा समाज हित।
90 के दशक में कुछ गिने चुने गायकों की ही आवाज़ सुनाई देती थी जिनमें से एक उदित भी थे. लेक‍िन साल 2008 में फ़िल्म 'टशन' में गाए उनके गाने 'फ़लक तक चल साथ मेरे' के बाद उन्होनें किसी बड़ी फ़िल्म में लीड गाना नहीं गाया है. उनकी गायकी में कुछ वक़्त से लगे इस ब्रेक पर वो कहते हैं, “यह ब्रेक तो भगवान की मर्ज़ी है. 25 सालों तक गाने के बाद अब दूसरे गायकों को लोग मौक़े दे रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है?" नेपाल और भारत के बॉर्डर के एक छोटे से गांव में पैदा हुए उद‍ित को रेड‍ियो से शुरू से लगाव था. किसान परिवार से आए उदित को गाने में लाने के लिए रेेडियो ही ज़िम्मेदार था, "उस समय लोगों के पास रेड‍ियो ही हुआ करते थे और मैं जब भी उसमें गाना सुनता तो सोचता कि इस छोटे से बक्‍से के अंदर लोग कैसे चले जाते हैं. मैं भी एक दि‍न इसके अंदर जाऊंगा.” वो कहते हैं, "रेडियो के 100 रूपयों से ही मैंने इंटरमीडियट की पढ़ाई पूरी की और इसी दौरान भारत सरकार की ओर से संगीत की छात्रवृत्‍त‍ि मिली और मैं भारत आ गया."
उदित नारायण की कामयाबी का सुरीला सफर आज भी जारी है. आमिर खान, शाहरुख खान, सलमान खान, अजय देवगन, अक्षय कुमार या फिर रितिक रोशन. यह कहना गलत न होगा कि सभी ने उदित नारायण की आवाज के साथ कामयाबी की सीढियां चढ़ीं. तो करते हैं मुलाकात उदित नारायण के साथ. उदित जी इतनी मीठी आवाज है आपकी. इसके कितनी कुदरत की देन समझते हैं और कितना आपने इसे तराशा है? कुरदत की देन को अवश्य होनी चाहिए क्योंकि आवाज ऐसी चीज है जो एक तोहफे के तौर पर मिलती है. जब तक ईश्वर का वरदान नहीं होगा तो आवाज बहुत खूबसूरत नहीं हो सकती है. उसके बाद आपकी मेहनत, भाग्य, ईमानदारी, संयम और आपके चाहने वालों की दुआएं हैं. किसी भी कलाकार को मिली कामयाबी में इन सभी बातों का योगदान होता है.

12:57, 19 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

ज्यां द्रेज (अंग्रेजी: Jean Dreze) बेल्जियम में जनमें 1979 से भारत में हैं। 2002 में इन्हें भारत की नागरिकता मिली। अर्थशास्‍त्र पर डा ज्यां द्रेज की 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के साथ मिलकर कई पुस्तकें लिखीं। ज्यां द्वारा तैयार डेढ सौ से अधिक एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख इकोनॉमिक्स के छात्रों, शोधकर्ताओं और सरकारी नीति निर्धारकों की पसंदीदा माने जाते हैं।


संक्षिप्त परिचय

ज्यां द्रेज ने इकोनॉमिक्स के विद्यार्थी ज्यां ने इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट (नई दिल्ली) से पीएचडी किया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित दुनिया के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में वह पिछले कई दशक से विजिटिंग लेक्चरर के तौर पर काम करते रहे हैं।

आदिम जनजातियों की विनाशलीला का मूक गवाह बनते झारखंड में ज्यां द्रेज की बातें अब तो यहाँ के शासकों को नागवार नहीं लगनी चाहिए। सरल-शालीन लहजे में द्रेज ने उस जमीनी हकीकत की बानगी भर दी है, जिसे कल तक आम लोगों का शिगुफा बताकर अफसर-नेता कन्नी काटते रहे। राज्य में नरेगा की बदहाली के पीछे अफसर-नेता-बिचौलियों की भ्रष्ट तिकडी की फजीहत करने की बजाय, महज उनका हवाला देकर इस अर्थशास्त्री ने विकास के धंसे पहियों को गति देने वाली चुनौतियां बताने की कोशिश की। वैसे भी पुते चेहरों पर और कालिख कोई क्यों खर्चे! लेकिन आम और खास में शायद यही अंतर होता है.. झारखंड की बदहाली ही नहीं, डा ज्यां द्रेज ने समाधान भी सुझाये हैं। नोबेल विजेता अमर्त्य सेन के साथ दर्जन भर पुस्तकों की रचना करने वाले, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स सहित विश्व के कई ख्यात विश्वविद्यालयों में आख्यान देते रहे आर्थिक विकास विशेषज्ञ डा ज्यां द्रेज ने प्रशासनिक सुधार से लेकर कठोर राजनीतिक निर्णय तक की अनिवार्यता बतायी। सवालों का जवाब देते हुए ज्यां कहते हैं: एक राज्य जो भ्रष्टाचार और हिंसा पर सवारी कर रहा हो, जैसा झारखंड, उसके लिये ये कठिन राजनीतिक चुनौतियां हैं।

हिंदी राज्यों में नरेगा फेल हो जाने के सवाल पर डा ज्यां अफसरशाही के आचरण को चिह्नित करते हैं। वह नक्सलियों को बाधा नहीं मानते। वह कहते हैं कि नक्सली-उपद्रव के बहाने सरकारी अफसर सुदूर आबादी की उपेक्षा करते हैं। और इधर, कानून के वही रखवाले भ्रष्टाचार और हिंसा में लिप्त पाये जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि गांवों में अबतक शासन का ‘दमनकारी’ चेहरा ही काबिज है। ज्यां कहते हैं कि भ्रष्टाचार को परास्त करना है तो राजस्थान से सीखो! नरेगा के आर्किटेक्‍ट कहे जाने वाले ज्यां द्रेज ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की मनमानी और राज्य में नरेगा काउंसिल की अकर्मण्यता पर बेबाक टिप्पणी की है। ज्यां स्वयं केंद्रीय नरेगा काउंसिल के सदस्य भी हैं। उन्होंने मीडिया के एक खास वर्ग को भी चिह्नित किया और यह सलाह देने से नहीं चूके कि उन्हें गहराई में जाकर खोजपरक रिपोर्टिंग करके ही निष्कर्ष प्रकाशित करना चाहिए, वही होगा समाज हित।