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24 जनवरी का दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस के नाम से जाना जाता है। 24 जनवरी के दिन [[इंदिरा गांधी]] को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर 24 जनवरी को बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया है। आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। कामनवैल्थ गेम के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसिन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में लड़कियाँ समान रूप से भागेदारी ले रही है।
24 जनवरी का दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस के नाम से जाना जाता है। 24 जनवरी के दिन [[इंदिरा गांधी]] को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर 24 जनवरी को बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया है। आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। कामनवैल्थ गेम के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसिन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में लड़कियाँ समान रूप से भागेदारी ले रही है।
==कारण==
==कारण==
आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है लेकिन आज भी वह अनेक कुरितियों का शिकार हैं। ये कुरितियाँ उसके आगे बढ़्ने में बाधाएँ उत्पन्न करती है। पूरे देश में प्रति एक हजार लड़कों पर महज 779 लड़कियाँ हैं। यानी, पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियाँ 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले माँ बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं।
आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है लेकिन आज भी वह अनेक कुरितियों का शिकार हैं। ये कुरितियाँ उसके आगे बढ़्ने में बाधाएँ उत्पन्न करती है। पूरे देश में प्रति एक हजार लड़कों पर महज 779 लड़कियाँ हैं। यानी, पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियाँ 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले माँ बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं।
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;बाधाएँ
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लिंगानुपात कम होने का एक कारण यह भी है कि अक्सर घरों में कहा जाता है कि अगर लड़की है, तो उसे ऐसा ही होने चाहिए। इस प्रकार की बातें उसके सुधार की राह में बाधाएं बनती हैं। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के मकसद से ‘बालिका दिवस’ मनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसे बच्चियों की अपनी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे असली कारणों को सामने लाने के रूप में मनाने की जरुरत है, जो सामाजिक धारणा को समझने के साथ-साथ बच्चियों को बहन, बेटी, पत्नी या मां के दायरों से बाहर निकालने और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने में मदद के तौर पर जाना जाए।
लिंगानुपात कम होने का एक कारण यह भी है कि अक्सर घरों में कहा जाता है कि अगर लड़की है, तो उसे ऐसा ही होने चाहिए। इस प्रकार की बातें उसके सुधार की राह में बाधाएं बनती हैं। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के मकसद से ‘बालिका दिवस’ मनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसे बच्चियों की अपनी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे असली कारणों को सामने लाने के रूप में मनाने की जरुरत है, जो सामाजिक धारणा को समझने के साथ-साथ बच्चियों को बहन, बेटी, पत्नी या मां के दायरों से बाहर निकालने और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने में मदद के तौर पर जाना जाए।
====सुझाव====
====<u>सुझाव</u>====
 
राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन हमें लड़का-लड़की में भेद नहीं करने व समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। देश में लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए ही राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाने लगा है। समाज में आज भी बालक और बालिकाओं में भेदभाव किया जा रहा है। यही कारण है कि बालिकाओं को जन्म लेने से पहले भ्रूण में ही खत्म करवाया जा रहा है। सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना है। उन्होंने बाल विवाह, भू्रण हत्या, शिशु मृत्यु दर रोके जाने, स्तनपान कराने, नियमित टीकाकरण, दहेज प्रथा एवं अन्य सामाजिक ज्वलंत विषयों पर भी चर्चा की। इसके अलावा शासन द्वारा बालिकाओं के लिये जा रही महामाया गरीब बालिका आशीर्वाद योजना, सावित्री बाई फुले शिक्षा मदद योजना के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।  
राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन हमें लड़का-लड़की में भेद नहीं करने व समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए।  
देश में लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए ही राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाने लगा है। समाज में आज भी बालक और बालिकाओं में भेदभाव किया जा रहा है। यही कारण है कि बालिकाओं को जन्म लेने से पहले भ्रूण में ही खत्म करवाया जा रहा है। सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना है। उन्होंने बाल विवाह, भू्रण हत्या, शिशु मृत्यु दर रोके जाने, स्तनपान कराने, नियमित टीकाकरण, दहेज प्रथा एवं अन्य सामाजिक ज्वलंत विषयों पर भी चर्चा की। इसके अलावा शासन द्वारा बालिकाओं के लिये जा रही महामाया गरीब बालिका आशीर्वाद योजना, सावित्री बाई फुले शिक्षा मदद योजना के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। उक्त कार्यक्रमों में बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर द्वारा यूनिसेफ की सहायता से संचालित बीएफएचआई सदस्यों द्वारा उक्त कार्यक्रमों में हिस्सा लिया गया। राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर शहर के अजीतापुरा, तालाबपुरा, घुसयाना, चौबयाना में जिला कार्यक्रम अधिकारी एवं बीएफएचआई कार्यकर्ताओं द्वारा मौजूद आगनवाड़ी कार्यकत्रियों, महिलाओं और बालिकाओं को शासन की योजनाओं से अवगत कराया और उनका अधिक से अधिक लाभ लेने का आग्रह किया।


;महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित किशोर बालिकाएं
;महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित किशोर बालिकाएँ
मुद्दे व चुनौतियाँ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में महिला व बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने कहा कि बालिकाओं में किशोरावस्था काफी संवेदनशील होती है। इस उम्र में ऐसी तमाम जरूरतें व चिंताएं होती हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो बालिकाओं की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है ताकि बड़ी होकर वे शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीजों के बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना चाहिए। किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने समग्र बाल विकास सेवा, धनलक्ष्मी जैसी योजनाएं चलाई हैं। हाल ही में लागू हुई सबला योजना किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित है। इन सबका उद्देश्य लड़कियों, खासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।
बालिकाओ की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है ताकि बड़ी होकर वे शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीजों के बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना चाहिए। किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने समग्र बाल विकास सेवा, धनलक्ष्मी जैसी योजनाएं चलाई हैं। हाल ही में लागू हुई सबला योजना किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित है। इन सबका उद्देश्य लड़कियों, खासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।
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08:23, 24 जनवरी 2011 का अवतरण

24 जनवरी का दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस के नाम से जाना जाता है। 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर 24 जनवरी को बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया है। आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। कामनवैल्थ गेम के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसिन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में लड़कियाँ समान रूप से भागेदारी ले रही है।

कारण

आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है लेकिन आज भी वह अनेक कुरितियों का शिकार हैं। ये कुरितियाँ उसके आगे बढ़्ने में बाधाएँ उत्पन्न करती है। पूरे देश में प्रति एक हजार लड़कों पर महज 779 लड़कियाँ हैं। यानी, पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियाँ 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले माँ बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं।

अनुपात

कन्या भ्रूण हत्या की वजह से लड़कियों के अनुपात में काफी कमी आयी है। राजधानी दिल्ली में हर एक हजार लड़कों के मुकाबले केवल 821 लड़कियाँ हैं, जबकि पूरे देश में यह संख्या 933 है। लोगों को इसके दुष्परिणामों के प्रति आगाह करने और लड़कियों को बचाने के लिए 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।

वृद्धि दर में गिरावट

1991 की जनगणना से 2001 की जनगणना तक, हिन्दू और मुसलमानों- दोनों की ही जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है। लेकिन 2001 की जनगणना का यह तथ्य सबसे ज्यादा हैरान करता है कि 0 से 6 साल के बच्चों के लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है। देश में बच्चों का लिंग अनुपात 976:1000 (1000 लड़कों पर 976 लड़कियां) है, जो कुल लिंग अनुपात 992:1000 (1000 पुरुष पर 992 महिलाएं) के मुकाबले बहुत कम है। यहां कुल लिंग अनुपात में 8 के अंतर के मुकाबले बच्चों के लिंग अनुपात में अब 24 का अंतर दर्ज है। यह उनके स्वास्थ्य और जीवन-स्तर में गिरावट का अनुपात भी है। यह अंतर भयावह भविष्य की ओर भी इशारा करता है। एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। गौरतलब है कि ‘नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रंस राइट्स’ यानी एनसीपीसीआर की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की ज्यादातर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज्यादा समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बिताना पड़ता है। इसी तरह, सरकारी आकड़ों में दर्शाया गया है कि 6 से 10 साल की जहां 25 प्रतिशत लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है, वहीं 10 से 13 साल की 50 प्रतिशत (ठीक दोगुनी) से भी ज्यादा लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है। 2008 के एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड़कियों ने यह बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं।

बाधाएँ

लिंगानुपात कम होने का एक कारण यह भी है कि अक्सर घरों में कहा जाता है कि अगर लड़की है, तो उसे ऐसा ही होने चाहिए। इस प्रकार की बातें उसके सुधार की राह में बाधाएं बनती हैं। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के मकसद से ‘बालिका दिवस’ मनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसे बच्चियों की अपनी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे असली कारणों को सामने लाने के रूप में मनाने की जरुरत है, जो सामाजिक धारणा को समझने के साथ-साथ बच्चियों को बहन, बेटी, पत्नी या मां के दायरों से बाहर निकालने और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने में मदद के तौर पर जाना जाए।

सुझाव

राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन हमें लड़का-लड़की में भेद नहीं करने व समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। देश में लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए ही राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाने लगा है। समाज में आज भी बालक और बालिकाओं में भेदभाव किया जा रहा है। यही कारण है कि बालिकाओं को जन्म लेने से पहले भ्रूण में ही खत्म करवाया जा रहा है। सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना है। उन्होंने बाल विवाह, भू्रण हत्या, शिशु मृत्यु दर रोके जाने, स्तनपान कराने, नियमित टीकाकरण, दहेज प्रथा एवं अन्य सामाजिक ज्वलंत विषयों पर भी चर्चा की। इसके अलावा शासन द्वारा बालिकाओं के लिये जा रही महामाया गरीब बालिका आशीर्वाद योजना, सावित्री बाई फुले शिक्षा मदद योजना के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।

महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित किशोर बालिकाएँ

बालिकाओ की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है ताकि बड़ी होकर वे शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीजों के बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना चाहिए। किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने समग्र बाल विकास सेवा, धनलक्ष्मी जैसी योजनाएं चलाई हैं। हाल ही में लागू हुई सबला योजना किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित है। इन सबका उद्देश्य लड़कियों, खासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।