"यमुना नदी": अवतरणों में अंतर
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कार्तिक सुदी दौज को [[विश्राम घाट]] पर भाई–बहन हाथ पकड़कर एक साथ स्नान करते हैं । यह ब्रज का बहुत बड़ा पर्व है । यम की बहन यमुना है और विश्वास है कि आज के दिन जो भाई–बहन यमुना में स्नान करते हैं, यम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता । यहां यमुना स्नान के लिए लाखों में दूर–दूर से श्रृद्धालु आते हैं और विश्राम घाट पर स्नान कर पूजा आर्चना करते हैं । इसे भाई दूज भी कहते हैं और बहनें भाई को रोली का टीका भी करती हैं । | कार्तिक सुदी दौज को [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट]] पर भाई–बहन हाथ पकड़कर एक साथ स्नान करते हैं । यह ब्रज का बहुत बड़ा पर्व है । यम की बहन यमुना है और विश्वास है कि आज के दिन जो भाई–बहन यमुना में स्नान करते हैं, यम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता । यहां यमुना स्नान के लिए लाखों में दूर–दूर से श्रृद्धालु आते हैं और विश्राम घाट पर स्नान कर पूजा आर्चना करते हैं । इसे भाई दूज भी कहते हैं और बहनें भाई को रोली का टीका भी करती हैं । | ||
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04:38, 17 अप्रैल 2010 का अवतरण

Yamuna
यमुना नदी / Yamuna River
मथुरा में यमुना के 24 घाट हैं जिन्हें तीर्थ भी कहा जाता है। ब्रज में यमुना का महत्व वही है जो शरीर में आत्मा का, यमुना के बिना ब्रज और ब्रज की संस्कृति का कोई महत्व ही नहीं है।

River Yamuna, Mathura
पश्चिमी हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाक़ा) पहुंचती है। फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई इलाहाबाद में गंगा नदी में मिल जाती है (कुल लम्बाई 1370 किलोमीटर या 852 मील)। ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है । जहां भगवान् श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते है, वहां यमुना इसकी जननी मानी जाती है। इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है। अतः ब्रज में इसे यमुना मैया कहना सर्वथा सार्थक है। भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। यमुना और गंगा के दो आब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृति का गौरवशाली रुप बन सका था। जहां तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहा की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है।
उद्गम
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है। इसकी एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है। यह चोटी उत्तरप्रदेश के टिहरी-गढ़वाल ज़िले में है। बड़ी ऊंची है, 20,731 फुट। इसे सुमेरु भी कहते हैं। इसके एक भाग का नाम कलिंद है। यहीं से यमुना निकलती है। इसी से यमुना का नाम कलिंदजा और कालिंदी भी है। दोनों का मतलब कलिंद की बेटी होता है। यह जगह बहुत सुन्दर है, पर यहां पहुंचना बहुत कठिन है। अपने उद्गम से आगे कई मील तक विशाल हिमगारों और हिंम मंडित कंदराओं में अप्रकट रुप से बहती हुई तथा पहाड़ी ढलानों पर से अत्यन्त तीव्रतापूर्वक उतरती हुई इसकी धारा यमुनोत्तरी पर्वत 20,731 फीट ऊँचाई से प्रकट होती है। वहां इसके दर्शनार्थ हजारों श्रद्धालु यात्री प्रतिवर्ष भारतवर्ष के कोंने-कोंने से पहुँचते हैं। ब्रजभाषा के भक्त कवियों और विशेषतया वल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भाँति यमुना के प्रति भी अतिशय श्रद्धा व्यक्त की है। इस सम्प्रदाय का शायद ही कोई कवि हो, जिसने अपनी यमुना के प्रति अपनी काव्य - श्रद्धांजलि अर्पित न की हो। उनका यमुना स्तुति संबंधी साहित्य ब्रजभाषा भक्ति काव्य का एक उल्लेखनीय अंग है ।
यमुना स्नान, यम–द्वितीया

River Yamuna, Mathura
कार्तिक सुदी दौज को विश्राम घाट पर भाई–बहन हाथ पकड़कर एक साथ स्नान करते हैं । यह ब्रज का बहुत बड़ा पर्व है । यम की बहन यमुना है और विश्वास है कि आज के दिन जो भाई–बहन यमुना में स्नान करते हैं, यम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता । यहां यमुना स्नान के लिए लाखों में दूर–दूर से श्रृद्धालु आते हैं और विश्राम घाट पर स्नान कर पूजा आर्चना करते हैं । इसे भाई दूज भी कहते हैं और बहनें भाई को रोली का टीका भी करती हैं ।
कथा
सूर्य भगवान की स्त्री का नाम संज्ञा देवी था। इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी। संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनीचर का जन्म हुआ। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गो लोक चली आईं जो कि कृष्णावतार के समय भी थी। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि वह उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थ। बहुत समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहन की याद आई। उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना की खोज करवाई, मगर वह मिल न सकीं। फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहाँ विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुनाजी ने हर्ष विभोर होकर उनका स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर माँगने को कहा – यमुना ने कहा – हे भइया मैं आपसे यह वरदान माँगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएँ। प्रश्न बड़ा कठिन था, यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। भाई को असमंजस में देख कर यमुना बोलीं – आप चिंता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहाँ भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वे तुम्हारे लोक को न जाएँ। इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने बहन यमुनाजी को आश्वासन दिया – ‘इस तिथि को जो सज्जन अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बाँधकर यमपुरी ले जाऊँगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग होगा।’ तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।
वीथिका
-
यमुना के घाट, मथुरा
Ghats of Yamuna, Mathura -
विश्राम घाट, मथुरा
Vishram Ghat, Mathura -
यमुना स्नान, विश्राम घाट, मथुरा
Yamuna Bath, Vishram Ghat, Mathura -
कोकिला बेन द्वारा यमुना की यात्रा, मथुरा
A Yatra By Kokilaben, Mathura -
चुनरी मनोरथ, यमुना , मथुरा
Chunari Manorath, Yamuna, Mathura -
श्रीमती कोकिला बेन द्वारा यमुना पूजन, मथुरा
Worship Of Yamuna By Smt Kokila Ben, Mathura -
यमुना के घाट, मथुरा
Ghats of Yamuna, Mathura -
आरती, विश्राम घाट, मथुरा
Aarti, Vishram Ghat, Mathura -
यमुना के घाट, मथुरा
Ghats of Yamuna, Mathura -
यमुना स्नान, विश्राम घाट, मथुरा
Yamuna Bath, Vishram Ghat, Mathura -
यमुना, मथुरा
Yamuna, Mathura -
कोकिला बेन द्वारा यमुना की यात्रा, मथुरा
A Yatra By Kokilaben, Mathura -
यमुना, मथुरा
Yamuna, Mathura -
कोकिला बेन द्वारा यमुना की यात्रा, मथुरा
A Yatra By Kokilaben, Mathura -
यमुना, मथुरा
Yamuna, Mathura -
यमुना पार से मस्जिद, मथुरा
Masjid view across the Yamuna, Mathura