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|अन्य विवरण=[[भारत]] में चरखे का इतिहास बहुत प्राचीन होते हुए भी इसमें उल्लेखनीय सुधार का काम [[महात्मा गांधी]] के जीवनकाल का ही मानना चाहिए। सबसे पहले सन् [[1908]] में गांधी जी को चरखे की बात सूझी थी जब वे [[इंग्लैंड]] में थे। उसके बाद वे बराबर इस दिशा में सोचते रहे। वे चाहते थे कि चरखा कहीं न कहीं से लाना चाहिए। सन [[1916]] में साबरमती आश्रम ([[अहमदाबाद]]) की स्थापना हुई। बड़े प्रयत्न से दो वर्ष बाद सन् [[1918]] में एक विधवा बहन के पास खड़ा चरखा मिला। | |अन्य विवरण=[[भारत]] में चरखे का इतिहास बहुत प्राचीन होते हुए भी इसमें उल्लेखनीय सुधार का काम [[महात्मा गांधी]] के जीवनकाल का ही मानना चाहिए। सबसे पहले सन् [[1908]] में गांधी जी को चरखे की बात सूझी थी जब वे [[इंग्लैंड]] में थे। उसके बाद वे बराबर इस दिशा में सोचते रहे। वे चाहते थे कि चरखा कहीं न कहीं से लाना चाहिए। सन [[1916]] में साबरमती आश्रम ([[अहमदाबाद]]) की स्थापना हुई। बड़े प्रयत्न से दो वर्ष बाद सन् [[1918]] में एक विधवा बहन के पास खड़ा चरखा मिला। | ||
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15:30, 26 मई 2011 का अवतरण
विवरण (Description) | चरखे पर सूत कातते गाँधी जी, गांधी स्मृति संग्रहालय, दिल्ली |
चित्रांकन (Author) | Wilson Loo |
स्रोत (Source) | www.flickr.com |
उपलब्ध (Available) | Delhi |
आभार (Credits) | Wilson Loo's photostream |
अन्य विवरण | भारत में चरखे का इतिहास बहुत प्राचीन होते हुए भी इसमें उल्लेखनीय सुधार का काम महात्मा गांधी के जीवनकाल का ही मानना चाहिए। सबसे पहले सन् 1908 में गांधी जी को चरखे की बात सूझी थी जब वे इंग्लैंड में थे। उसके बाद वे बराबर इस दिशा में सोचते रहे। वे चाहते थे कि चरखा कहीं न कहीं से लाना चाहिए। सन 1916 में साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) की स्थापना हुई। बड़े प्रयत्न से दो वर्ष बाद सन् 1918 में एक विधवा बहन के पास खड़ा चरखा मिला। |
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चित्र का इतिहास
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दिनांक/समय | अंगुष्ठ नखाकार (थंबनेल) | आकार | सदस्य | टिप्पणी | |
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वर्तमान | 12:25, 14 मई 2011 | ![]() | 3,264 × 2,448 (2 MB) | ऋचा (वार्ता | योगदान) |
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