"आत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर
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उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। | उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। | ||
अरे खिल-खिलाकर | अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की। | ||
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देकर जाग गया। | मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देकर जाग गया। | ||
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उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। | उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। | ||
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी | सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की? | ||
छोटे से जीवन की कैसे | छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? | ||
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ? | क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ? |
06:52, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
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मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, |