"अनमोल वचन 10": अवतरणों में अंतर

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;अन्तर्दृष्टि  
==अन्तर्दृष्टि==
* हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। - चाणक्य  
* हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। - चाणक्य  
* संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। - भतृहरि  
* संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। - भतृहरि  
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* शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। - महात्मा गांधी  
* शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। - महात्मा गांधी  


 
==आलस्य पर विजय==
;जन के ऊपर कुछ नहीं
* अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। - हिंदू पंच, बलिदान अंक
* पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। - कंचनलता सब्बरवाल
* अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। - श्रीराम शर्मा आचार्य
* प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। - भगवतीचरण वर्मा
 
 
;जागरण का अर्थ
* जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। - जयशंकर प्रसाद
* जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। - स्वामी अखंडानंद
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
* दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। - कालिदास
 
 
;डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है...
* डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। - प्रेमचंद
* डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। - विनोबा भावे
* तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। - चाणक्य
 
 
;गोत्र और धन से शुद्धता नहीं
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। - मज्झिमनिकाय
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। - थेर गाथा
* लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। - विसुद्धिमग्ग
* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
* जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। - शुक्रनीति
 
 
;आलस्य पर विजय
* जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। - स्वामी अखंडानंद  
* जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। - स्वामी अखंडानंद  
* जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। - महात्मा गांधी  
* जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। - महात्मा गांधी  
पंक्ति 51: पंक्ति 22:
* मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। - अज्ञात
* मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। - अज्ञात


 
==आलोचना एक भयानक चिंगारी है==
;निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है
* निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। - अज्ञात
* अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। - संत तिरुवल्लुवर
* अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। - कालिदास
* नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। - सुदर्शन
 
 
;निंदा सहना
* जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। - वेदव्यास
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ टैगोर
* हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। - कन्फ्यूशस
* यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। - चाणक्य
* चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। - महात्मा गांधी
 
 
;कुल की प्रशंसा करने से क्या?
* कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। - शूदक
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। - बाणभट्ट
* शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। - भर्तृहरि
* उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? - स्वयंभूदेव
* शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। - रामचंद्र शुक्ल
 
 
;दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो
* लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। - डेल कारनेगी
* सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। - रस्किन
* दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। - बाइबिल
* महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। - कार्लाइल
 
 
;क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है
* तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। - वृंद
* अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। - संत तिरुवल्लुवर
* घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। - धम्मपद
* गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। - भगवान महावीर
* क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? - सेठ गोविंददास
 
 
;विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है
* विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
* जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
* विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
* विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
* विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क
 
 
;आलोचना एक भयानक चिंगारी है  
* समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। - कोल्टन  
* समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। - कोल्टन  
* गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। - डेल कारनेगी  
* गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। - डेल कारनेगी  
पंक्ति 106: पंक्ति 30:
* गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। - डेनियल
* गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। - डेनियल


 
==अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं==
;हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए
* एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
* प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
* माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात
 
 
;अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं
* अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास  
* अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास  
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूदक  
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूदक  
पंक्ति 122: पंक्ति 37:
* विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। - अज्ञात  
* विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। - अज्ञात  


 
==अहिंसा- तलवार की धार==
;सुंदर दिखना
* यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी
* सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। - सुदर्शन
* जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। - भगवतीचरण वर्मा
* सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। - अज्ञात
 
 
;अहिंसा- तलवार की धार
* अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। - महात्मा गांधी  
* अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। - महात्मा गांधी  
* जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। - विदुर  
* जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। - विदुर  
* हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। - भगवतीचरण वर्मा
* हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। - भगवतीचरण वर्मा


 
==अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें==
;मनुष्य की चाहत
* एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
* मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
* कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद
 
 
;नीति का जानकार
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। - कल्हण
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। - वेदव्यास
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। - नारायण पंडित
 
 
;अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें
* अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। - ऋग्वेद  
* अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। - ऋग्वेद  
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। - स्वामी रामतीर्थ  
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। - स्वामी रामतीर्थ  
पंक्ति 158: पंक्ति 49:
* अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। - अज्ञात  
* अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। - अज्ञात  


 
==आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका==
;आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका
* आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। - डेल कारनेगी  
* आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। - डेल कारनेगी  
* जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। - स्वेट मार्डेन  
* जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। - स्वेट मार्डेन  
पंक्ति 168: पंक्ति 58:
* शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। - वालफोर  
* शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। - वालफोर  


==आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण==
* हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। - महात्मा गांधी
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। - वेदव्यास
* सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। - शिवानंद
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। - विवेकानंद
* आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
==अध्यापक संस्कृति के माली==
* धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। - रवीन्द्र
* शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। - हितोपदेश
* मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। - पंचतंत्र
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। - राधाकृष्णन
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। - महर्षि अरविन्द


;प्रेम में चतुराई बुरी चीज
==अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा==
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - गांधी
* प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर


==आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है==
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। - शेख सादी
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
* मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। - बेकन
* यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। - अज्ञात


;स्त्री विश्वास चाहती है
==आघात सहन करे, वही संत==
* जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। - गीता
* परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। - एकनाथ
* स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। - प्रेमचंद
* संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। - लाओ-त्से
* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
* जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। - तुकाराम
* संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। - लक्ष्मीनारायण लाल
* महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। - देवीभागवत
* प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। - जैनेंद्र कुमार




;शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं...
==जन के ऊपर कुछ नहीं==
* शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
* अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। - हिंदू पंच, बलिदान अंक
* निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
* पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। - कंचनलता सब्बरवाल
* अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
* अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। - श्रीराम शर्मा आचार्य
* जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
* प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। - भगवतीचरण वर्मा
* मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ


==जागरण का अर्थ==
* जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। - जयशंकर प्रसाद
* जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। - स्वामी अखंडानंद
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
* दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। - कालिदास


;जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश...
==जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश==
* यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश रहती है। - रमण  
* यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश रहती है। - रमण  
* जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है। - प्रेमचन्द  
* जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है। - प्रेमचन्द  
पंक्ति 198: पंक्ति 109:
* नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। - रामानंद
* नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। - रामानंद


==जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है==
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
* आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
==जहां धर्म है वहां जय है==
* विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। - भट्टनारायण
* जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। - वेदव्यास
* धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। - धम्मपद
* जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। - जातक
* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
==जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी==
* जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है - वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। - सुभाषचंद वसु
* अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। - वेदव्यास
* बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। - गरुड़पुराण
* यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। - देवीभागवत
* भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। - मज्झिमनिकाय


;मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है
==जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता==
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। - रैदास
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। - राबिया
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
* जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। - विनोबा
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि


==जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे==
* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ टैगोर
* निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। - भर्तृहरि
* जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - सादी


;आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण
==जहां विनय है, वहां भय नहीं==
* हर सुधार का कुछ कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। - महात्मा गांधी
* जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। - शेक्सपियर
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। - वेदव्यास  
* नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। - मुतनव्बी
* सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। - शिवानंद
* जहां विनय है, वहां भय नहीं है। - लोकोक्ति
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। - विवेकानंद
* अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। - सेंट ऑगस्टीन
* आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
* जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। - तत्वकथा
 
==जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है==
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास  
* आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स




;सत्याग्रह की तलवार
==कुल की प्रशंसा करने से क्या?==
* सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर कोई चुरा ही सकता है। - महात्मा गांधी
* कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। - शूदक
* सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। - ईशावास्योपनिषद
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। - बाणभट्ट
* प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। - सत्य साईं बाबा
* शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। - भर्तृहरि
* सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। - विश्वामित्र
* उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? - स्वयंभूदेव
* शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। - रामचंद्र शुक्ल


==क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है==
* तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। - वृंद
* अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। - संत तिरुवल्लुवर
* घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। - धम्मपद
* गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। - भगवान महावीर
* क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? - सेठ गोविंददास


;क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है
==क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है==
* जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। - जवाहरलाल नेहरू  
* जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। - जवाहरलाल नेहरू  
* क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। - अज्ञात  
* क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। - अज्ञात  
* क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सजा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। - शरतचंद्र  
* क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सजा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। - शरतचंद्र  
* क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। - प्रेमचंद
* क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। - प्रेमचंद
==कौन धनी है, कौन निर्धन==
* अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। - इल्लीस जातक
* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। - महात्मा गांधी
* सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास (महाभारत)
==कृतज्ञता हृदय की स्मृति है==
* कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। - कहावत
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
* संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। - गोविंद दास
* काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। - कालिदास
==कार्य और सिद्धांत==
* कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
* बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। - जवाहर लाल नेहरू
* शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। - लोकमान्य तिलक
==कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है==
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। - भर्तृहरि
* अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूद्रक
* जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। - वेदव्यास




;साहस और धैर्य
==सुंदर दिखना==
* यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी
* सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। - सुदर्शन
* जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। - भगवतीचरण वर्मा
* सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। - अज्ञात
 
==स्त्री विश्वास चाहती है==
* जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। - गीता
* स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। - प्रेमचंद
* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
* संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। - लक्ष्मीनारायण लाल
* प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। - जैनेंद्र कुमार
 
==सत्याग्रह की तलवार==
* सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। - महात्मा गांधी
* सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। - ईशावास्योपनिषद
* प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। - सत्य साईं बाबा
* सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। - विश्वामित्र
 
==साहस और धैर्य==
* साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी  
* साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी  
* साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित  
* साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित  
पंक्ति 236: पंक्ति 227:
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश


==सोच-विचार कर करो==
* कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। - शेक्सपियर
* हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। - वर्जिल
* अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। - फारसी कहावत
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। - जॉर्ज इलियट


;विश्राम की बात कैसे
==सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है==
* जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेन्स
* विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
* दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। - वीणावासवदत्ता
* सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
* भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। - अष्टावक्र गीता
* इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - बाण भट्ट
* विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। - एरिस्टोफेनिज


==सत्य सदा का है==
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
* प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। - सेंट एम्ब्रोज
* सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। - अरविंद


;विचार ही कार्य का मूल है
==सभी आभूषण भार हैं==
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
* सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। - उत्तराध्ययन
* मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी


==सौन्दर्य पवित्रता में रहता है==
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
* सौन्दर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। - शिवानंद
* सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। - स्वामी विवेकानंद
* अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। - तुलसीदास
* जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। - जॉर्ज हरबर्ट


;चापलूसी का जहरीला प्याला
==संयम से वैर नहीं बढ़ता है==
* चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी जाएं। - प्रेमचंद
* जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
* मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। - हरिऔध
* सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
* घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। - सुदर्शन
* जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
* भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - चाणक्य
* संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान


==सत्य सदैव निराला होता है==
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी
* झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन


;पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं
==सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है==
* पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
* जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
* सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास




;शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं
==मनुष्य की चाहत==
* अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास
* एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
* शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
* मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
* शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
* अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ
* कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद


==मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है==
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि


;ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण
==मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती==
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
* अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
* ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
* ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
* ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी
 
 
;मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक  
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक  
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन  
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन  
पंक्ति 288: पंक्ति 300:
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास


==मन को शुभ संकल्प बनाओ==
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
* इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद
==मुहब्बत रूह की खुराक==
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
* प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल
* कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह
==महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें==
* विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
* किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण


;जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
* आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स


==प्रेम में चतुराई बुरी चीज==
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
* प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
==पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं==
* पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
* जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति


;परोपकार से पुण्य होता है  
==परोपकार से पुण्य होता है==
* जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र  
* जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र  
* दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि  
* दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि  
पंक्ति 304: पंक्ति 338:
* त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम  
* त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम  


 
==पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है==
;पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है
* दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान  
* दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान  
* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम  
* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम  
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* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन


 
==प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है==
;खुद को समझो
* विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। - महात्मा गांधी
* निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - विनोबा
* आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। - अज्ञात
* यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। - यशपाल
* जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। - धम्मपदं
 
 
;सोच-विचार कर करो
* कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। - शेक्सपियर
* हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। - वर्जिल
* अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। - फारसी कहावत
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। - जॉर्ज इलियट
 
 
;अध्यापक संस्कृति के माली
* धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। - रवीन्द्र
* शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। - हितोपदेश
* मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। - पंचतंत्र
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। - राधाकृष्णन
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। - महर्षि अरविन्द
 
 
;प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा  
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा  
* जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन  
* जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन  
पंक्ति 343: पंक्ति 352:
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स  
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स  


 
==पहले जैसी स्थिति==
;दो प्रकार के सच
* सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। - रामतीर्थ
* तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। - रामचंद्र शुक्ल
* ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। - खलील जिब्रान
* जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। - नवविधान
 
 
;भलाई का जीवन
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना
* जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस
 
 
;दुख का दर्शन
* पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। - भानुदत्त
* दुख स्वयं ही एक औषधि है। - विलियम कोपर
* तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। - खलील जिब्रान
* दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। - तिरुवल्लुवर
 
 
;पहले जैसी स्थिति
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद  
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद  
* पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी  
* पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी  
पंक्ति 374: पंक्ति 358:
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ


 
=='प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'==
;'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'
* इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व  
* इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व  
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत  
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत  
पंक्ति 381: पंक्ति 364:
* आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार  
* आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार  


==परोपकार का आचरण मत त्यागो==
* मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात


;कौन धनी है, कौन निर्धन
==प्रेम में स्मृति का ही सुख है==
* अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी
* जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
* जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। - इल्लीस जातक
* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। - महात्मा गांधी
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
* सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास (महाभारत)


==पत्नी और पति==
* पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक
* हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा
* अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख
* जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड
* पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां


;आघात सहन करे, वही संत
==प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं==
* परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। - एकनाथ
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
* संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। - लाओ-त्से
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
* जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। - तुकाराम
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
* महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। - देवीभागवत
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
* प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन


==प्रेम का एक कण संसार पर भारी==
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
* प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद


;विजय सदा ही भव्य होती है
==प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है==
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
* सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
* विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
* प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
* विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
* जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट
* प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
* प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर


==परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर==
* चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर
* करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि
* वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि


;सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेन्स
* दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। - वीणावासवदत्ता
* भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। - अष्टावक्र गीता
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - बाण भट्ट
* बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। - एरिस्टोफेनिज


==विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है==
* विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
* जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
* विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
* विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
* विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क


;परोपकार का आचरण मत त्यागो
==विश्राम की बात कैसे==
* मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा  
* जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा  
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य
* विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
* इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात
* विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र


==विचार ही कार्य का मूल है==
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
* मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी


;दरिद्र कौन है?
==विजय सदा ही भव्य होती है==
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
* विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
* विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट


==विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत==
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
* न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
* भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
* मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
* अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित


;सत्य सदा का है
==विद्या ही पूजनीय बनाती है==
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
* प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। - सेंट एम्ब्रोज
* सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। - अरविंद
 
 
;धन का उपयोग
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - महात्मा गांधी
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास  
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास  
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। - ओलिवर वेंडेल होल्म्स
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य


==विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है==
* प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
* विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
* पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
* जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति


;धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है
* धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। - हाल सातवाहन
* आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। - महात्मा गांधी
* धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
* धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। - वेमना


==शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं==
* शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
* निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
* अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
* जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
* मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ


;हृदय की पुस्तक
==शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं==
* संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
* अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास
* ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
* शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
* संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
* शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
* मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
* अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ
* जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
* प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर
 
 
;भलाई करने वाला भलाई सिखाता है
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन
 


;शांति की अपनी विजयें होती हैं
==शांति की अपनी विजयें होती हैं==
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन  
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन  
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय  
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय  
पंक्ति 474: पंक्ति 478:
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि


==शंका का अंत शांति का प्रारंभ है==
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
* गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
* शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क


;जहां धर्म है वहां जय है
==शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती==
* विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। - भट्टनारायण
* लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
* जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। - वेदव्यास
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
* धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। - धम्मपद
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। - जातक
* हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा


==शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है==
* वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
* प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात


;मन को शुभ संकल्प बनाओ
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
* इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद


==भलाई का जीवन==
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना
* जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस


;जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी
=भलाई करने वाला भलाई सिखाता है==
* जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है - वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। - सुभाषचंद वसु
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास
* अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। - वेदव्यास
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन
* बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। - गरुड़पुराण
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी  
* यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। - देवीभागवत
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर
* भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। - मज्झिमनिकाय
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन
 
 
;प्रेम में स्मृति का ही सुख है
* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी  
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
 
 
;चैंपियन कौन?
* चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। - जैक डेंपसी
* खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। - पिएर द कु बर्तिन
* मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। - बिली जीन किंग
* एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। - पैट रिले
* हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। - ओलिवर गोल्डस्मिथ
 


;जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता
==भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं==
* जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। - रैदास
* सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। - राबिया
* जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। - विनोबा
 
 
;कृतज्ञता हृदय की स्मृति है
* कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। - कहावत
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
* संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। - गोविंद दास
* काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। - कालिदास
 
 
;विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
* न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
* भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
* मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
* अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित
 
 
;भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद  
पंक्ति 540: पंक्ति 520:
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन  
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन  


 
==भगवान तुम्हारे सामने है==
;भगवान तुम्हारे सामने है
* मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा  
* मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद  
पंक्ति 548: पंक्ति 527:
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन  
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन  


 
==भजन जीभ से नहीं हृदय से==
;कार्य और सिद्धांत
* सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
* कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
* निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
* वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
* बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। - जवाहर लाल नेहरू
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
* शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। - लोकमान्य तिलक
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी




;तीन प्रकार के इंसान
==धन का उपयोग==
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - महात्मा गांधी  
* मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। - खलील जिब्रान
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स एंथनी फ्राउड
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेद व्यास
 
 
;दूसरों का भरोसा मत करो
* अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। - स्वामी रामतीर्थ
* उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। - अज्ञात
* मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। - महात्मा गांधी
 
 
;अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - गांधी  
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य  
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य  
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास  
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास  
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर  
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर  
 
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। - ओलिवर वेंडेल होल्म्स
 
;जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे...
* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ टैगोर
* निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। - भर्तृहरि
* जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - सादी


==धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है==
* धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। - हाल सातवाहन
* आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। - महात्मा गांधी
* धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
* धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। - वेमना


;पत्नी और पति
==धर्म का अर्थ==
* पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक
* हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा
* अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख
* जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड
* पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां
 
 
;धर्म का अर्थ
* धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। - विवेकानंद  
* धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। - विवेकानंद  
* विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? - भामह  
* विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? - भामह  
पंक्ति 597: पंक्ति 556:
* अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। - प्रेमचंद्र  
* अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। - प्रेमचंद्र  


==धोखा देने वाला धोखा खाता है==
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। - महात्मा गांधी
* यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। - जामी
* विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। - सोमदेव


;बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है
==धन पाला हुआ शत्रु==
* बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
* जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। - भगवान बुद्ध
* बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - एक चीनी कहावत
* किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
* 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। - गार्डनर
* जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी
* अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। - सोलन
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। - वेदव्यास


==धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है==
* प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। - सुदर्शन
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। - विल्मट
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। - डिजरायली
* महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - नेहरू
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। - गेटे


;सभी आभूषण भार हैं
==धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो==
* सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। - उत्तराध्ययन
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। - वेदव्यास
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। - महात्मा गांधी
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। - विनोबा




;प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं
==दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो==
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
* लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। - डेल कारनेगी
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
* सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। - रस्किन
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
* दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। - बाइबिल
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
* महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। - कार्लाइल
* प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन


==दो प्रकार के सच==
* सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। - रामतीर्थ
* तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। - रामचंद्र शुक्ल
* ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। - खलील जिब्रान
* जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। - नवविधान


;धोखा देने वाला धोखा खाता है
==दुख का दर्शन==
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। - भानुदत्त
* धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* दुख स्वयं ही एक औषधि है। - विलियम कोपर
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। - महात्मा गांधी
* तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। - खलील जिब्रान
* यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। - जामी
* दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। - सोमदेव
* दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। - तिरुवल्लुवर


==दरिद्र कौन है?==
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव


;जहां विनय है, वहां भय नहीं
==दूसरों का भरोसा मत करो==
* जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। - शेक्सपियर
* अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। - स्वामी रामतीर्थ
* नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। - मुतनव्बी
* उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। - अज्ञात
* जहां विनय है, वहां भय नहीं है। - लोकोक्ति
* मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। - महात्मा गांधी
* अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। - सेंट ऑगस्टीन
* जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। - तत्वकथा


==दरिद्र कौन है==
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव


;मुहब्बत रूह की खुराक
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
* प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल
* कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह


==निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है==
* निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। - अज्ञात
* अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। - संत तिरुवल्लुवर
* अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। - कालिदास
* नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। - सुदर्शन


;भजन जीभ से नहीं हृदय से
==निंदा सहना==
* सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
* जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। - वेदव्यास
* निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ टैगोर
* वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
* हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। - कन्फ्यूशस
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
* यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। - चाणक्य
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
* चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। - महात्मा गांधी


==नीति का जानकार==
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। - कल्हण
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। - वेदव्यास
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। - नारायण पंडित


;शंका का अंत शांति का प्रारंभ है
==न मित्र न शत्रु==
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। - वेदव्यास
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। - भट्टाचार्य
* अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। - भट्टनारायण
* गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
* अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। - विमल मित्र
* शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क
* नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। - हरमन हेस




;प्रेम का एक कण संसार पर भारी
==हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए==
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
* एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
* प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार  
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद
* प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार  
* माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात


==हृदय की पुस्तक==
* संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
* ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
* संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
* मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
* जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
* प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर


;धन पाला हुआ शत्रु
==हर मन एक माणिक्य है==
* जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। - भगवान बुद्ध
* वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - एक चीनी कहावत
* समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
* 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। - गार्डनर
* शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
* अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। - सोलन
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। - वेदव्यास




;धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है
==चापलूसी का जहरीला प्याला==
* प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। - सुदर्शन
* चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। - प्रेमचंद
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। - विल्मट
* मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। - हरिऔध
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। - डिजरायली
* घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। - सुदर्शन
* महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - नेहरू
* भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - चाणक्य
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। - गेटे


==चैंपियन कौन?==
* चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। - जैक डेंपसी
* खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। - पिएर द कु बर्तिन
* मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। - बिली जीन किंग
* एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। - पैट रिले
* हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। - ओलिवर गोल्डस्मिथ


;चापलूसी कब आती है
==चापलूसी कब आती है==
* मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। - गुरु रामदास  
* मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। - गुरु रामदास  
* जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। - कहावत  
* जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। - कहावत  
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* चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। - डिजराइली  
* चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। - डिजराइली  


 
==चिंता शहद की मक्खी==
;चिंता शहद की मक्खी
* चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। - सुदर्शन  
* चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। - सुदर्शन  
* यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। - रुडयार्ड किप्लिंग  
* यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। - रुडयार्ड किप्लिंग  
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;जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है
==खुद को समझो==
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
* विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। - महात्मा गांधी
* आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
* निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - विनोबा
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
* आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। - अज्ञात
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
* यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। - यशपाल
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। - धम्मपदं


==खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है==
* खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। - शिवानंद
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
* सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। - रामतीर्थ
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। - चार्ल्स कैलब काल्टन
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेंसन


;प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है
* सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
* प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
* जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
* प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
* प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर


 
==यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण==
;यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण
* मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात  
* मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात  
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी  
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी  
पंक्ति 721: पंक्ति 722:
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर  
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर  


 
==योग्यता और व्यक्तित्व==
;विद्या ही पूजनीय बनाती है
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
 
 
;न मित्र न शत्रु
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। - वेदव्यास
* महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। - भट्टाचार्य
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। - भट्टनारायण
* अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। - विमल मित्र
* नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। - हरमन हेस
 
 
;खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है
* खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। - शिवानंद
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
* सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। - रामतीर्थ
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। - चार्ल्स कैलब काल्टन
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेंसन
 
 
;सौन्दर्य पवित्रता में रहता है
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
* सौन्दर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। - शिवानंद
* सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। - स्वामी विवेकानंद
* अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। - तुलसीदास
* जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। - जॉर्ज हरबर्ट
 
 
;दरिद्र कौन है
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव
 
 
;कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। - भर्तृहरि
* अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूद्रक
* जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। - वेदव्यास
 
 
;योग्यता और व्यक्तित्व
* न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित  
* न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित  
* किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू  
* किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू  
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;संयम से वैर नहीं बढ़ता है
==लोभ निरंतर बढ़ता है==
* जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
* सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
* जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
* संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान
 
 
;विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है
* प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
* विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
* पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
* जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति
 
 
;सत्य सदैव निराला होता है
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी
* झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन
 
 
;धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। - वेदव्यास
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। - महात्मा गांधी
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। - विनोबा
 
 
;परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर
* चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर
* करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि
* वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि
 
 
;लोभ निरंतर बढ़ता है
* मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है , किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास  
* मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है , किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास  
* आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति  
* आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति  
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;सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है
==डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है==
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
* डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। - प्रेमचंद
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
* डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। - विनोबा भावे
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
* तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। - चाणक्य
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
* सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास




;हर मन एक माणिक्य है
==गोत्र और धन से शुद्धता नहीं==
* वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। - मज्झिमनिकाय
* समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। - थेर गाथा
* शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
* लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। - विसुद्धिमग्ग
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी
* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
* जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। - शुक्रनीति




;आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है
==तीन प्रकार के इंसान==
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। - शेख सादी
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
* मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। - खलील जिब्रान
* मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। - बेकन
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स एंथनी फ्राउड
* यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। - अज्ञात
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेद व्यास




;महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें
==बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है==
* विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी  
* बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी  
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
* बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
* किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
* किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण
* जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी




;शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती
==ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण==
* लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
* अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
* हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
* ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा
* ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी
 


;शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है
* वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
* प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात





07:51, 16 अक्टूबर 2011 का अवतरण

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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत

अनमोल वचन

अन्तर्दृष्टि

  • हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। - चाणक्य
  • संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। - भतृहरि
  • किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
  • शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। - महात्मा गांधी

आलस्य पर विजय

  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। - स्वामी अखंडानंद
  • जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। - महात्मा गांधी
  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। - संत ज्ञानेश्वर
  • मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। - अज्ञात

आलोचना एक भयानक चिंगारी है

  • समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। - कोल्टन
  • गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। - डेल कारनेगी
  • आलोचना एक भयानक चिंगारी है-ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। - डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। - सेनेका
  • प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। - पास्कल
  • गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। - डेनियल

अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं

  • अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूदक
  • जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। - जातक
  • विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। - अभिनंद
  • विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। - अज्ञात

अहिंसा- तलवार की धार

  • अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। - महात्मा गांधी
  • जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। - विदुर
  • हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। - भगवतीचरण वर्मा

अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें

  • अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। - ऋग्वेद
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। - स्वामी रामतीर्थ
  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। - प्रेमचन्द्र
  • यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। - हितोपदेश
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। - अज्ञात

आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका

  • आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। - डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। - स्वेट मार्डेन
  • आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। - टेनीसन
  • जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। - स्पेंसर
  • केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। - रस्किन
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। - सेनेका
  • शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। - वालफोर

आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण

  • हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। - महात्मा गांधी
  • जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। - वेदव्यास
  • सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। - शिवानंद
  • सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। - विवेकानंद
  • आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। - जवाहरलाल नेहरू

अध्यापक संस्कृति के माली

  • धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। - रवीन्द्र
  • शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। - हितोपदेश
  • मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। - पंचतंत्र
  • अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। - राधाकृष्णन
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। - महर्षि अरविन्द

अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर

आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है

  • जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। - शेख सादी
  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
  • मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। - बेकन
  • यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। - अज्ञात

आघात सहन करे, वही संत

  • परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। - एकनाथ
  • संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। - लाओ-त्से
  • जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। - तुकाराम
  • महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। - देवीभागवत


जन के ऊपर कुछ नहीं

  • अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। - हिंदू पंच, बलिदान अंक
  • पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। - कंचनलता सब्बरवाल
  • अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। - श्रीराम शर्मा आचार्य
  • प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। - भगवतीचरण वर्मा

जागरण का अर्थ

  • जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। - जयशंकर प्रसाद
  • जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। - स्वामी अखंडानंद
  • दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
  • दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। - कालिदास

जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश

  • यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश रहती है। - रमण
  • जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है। - प्रेमचन्द
  • यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। - अज्ञात
  • नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। - रामानंद

जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है

  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
  • आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
  • जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
  • जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स

जहां धर्म है वहां जय है

  • विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। - भट्टनारायण
  • जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। - वेदव्यास
  • धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। - धम्मपद
  • जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। - जातक
  • जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी

जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी

  • जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है - वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। - सुभाषचंद वसु
  • अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। - वेदव्यास
  • बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। - गरुड़पुराण
  • यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। - देवीभागवत
  • भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। - मज्झिमनिकाय

जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता

  • जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। - रैदास
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। - राबिया
  • जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। - विनोबा

जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे

  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। - भर्तृहरि
  • जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - सादी

जहां विनय है, वहां भय नहीं

  • जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। - शेक्सपियर
  • नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। - मुतनव्बी
  • जहां विनय है, वहां भय नहीं है। - लोकोक्ति
  • अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। - सेंट ऑगस्टीन
  • जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। - तत्वकथा

जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है

  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
  • आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
  • जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
  • जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स


कुल की प्रशंसा करने से क्या?

  • कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। - शूदक
  • शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। - बाणभट्ट
  • शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। - भर्तृहरि
  • उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? - स्वयंभूदेव
  • शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। - रामचंद्र शुक्ल

क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है

  • तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। - वृंद
  • अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। - संत तिरुवल्लुवर
  • घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। - धम्मपद
  • गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। - भगवान महावीर
  • क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? - सेठ गोविंददास

क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है

  • जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
  • क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। - अज्ञात
  • क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सजा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। - शरतचंद्र
  • क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। - प्रेमचंद

कौन धनी है, कौन निर्धन

  • अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। - इल्लीस जातक
  • दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। - महात्मा गांधी
  • सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास (महाभारत)

कृतज्ञता हृदय की स्मृति है

  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। - कहावत
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
  • संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। - गोविंद दास
  • काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। - कालिदास

कार्य और सिद्धांत

  • कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
  • बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। - जवाहर लाल नेहरू
  • शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। - लोकमान्य तिलक

कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है

  • कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। - भर्तृहरि
  • अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूद्रक
  • जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। - वेदव्यास


सुंदर दिखना

  • यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी
  • सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। - सुदर्शन
  • जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। - भगवतीचरण वर्मा
  • सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। - अज्ञात

स्त्री विश्वास चाहती है

  • जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। - गीता
  • स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। - प्रेमचंद
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
  • संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। - लक्ष्मीनारायण लाल
  • प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। - जैनेंद्र कुमार

सत्याग्रह की तलवार

  • सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। - महात्मा गांधी
  • सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। - ईशावास्योपनिषद
  • प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। - सत्य साईं बाबा
  • सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। - विश्वामित्र

साहस और धैर्य

  • साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी
  • साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
  • संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा
  • योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश

सोच-विचार कर करो

  • कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। - शेक्सपियर
  • हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। - वर्जिल
  • अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। - फारसी कहावत
  • बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। - जॉर्ज इलियट

सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है

  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेन्स
  • दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। - वीणावासवदत्ता
  • भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। - अष्टावक्र गीता
  • परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - बाण भट्ट
  • बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। - एरिस्टोफेनिज

सत्य सदा का है

  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
  • प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। - सेंट एम्ब्रोज
  • सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। - अरविंद

सभी आभूषण भार हैं

  • सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। - उत्तराध्ययन
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
  • संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा

सौन्दर्य पवित्रता में रहता है

  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
  • सौन्दर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। - शिवानंद
  • सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। - स्वामी विवेकानंद
  • अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। - तुलसीदास
  • जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। - जॉर्ज हरबर्ट

संयम से वैर नहीं बढ़ता है

  • जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
  • सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
  • जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
  • संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
  • संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान

सत्य सदैव निराला होता है

  • जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
  • सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी
  • झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
  • जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
  • सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन

सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है

  • दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
  • हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
  • संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
  • जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
  • सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास


मनुष्य की चाहत

  • एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
  • मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
  • जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
  • कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद

मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है

  • मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
  • यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
  • समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि

मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती

  • जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक
  • जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
  • जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास

मन को शुभ संकल्प बनाओ

  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
  • इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
  • जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात
  • हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद

मुहब्बत रूह की खुराक

  • मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
  • प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
  • प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद
  • प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल
  • कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह

महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें

  • विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी
  • दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
  • किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
  • विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण


प्रेम में चतुराई बुरी चीज

  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
  • प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
  • हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
  • कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य

पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं

  • पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
  • जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति

परोपकार से पुण्य होता है

  • जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र
  • दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि
  • परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। - पंचतंत्र
  • वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है। - कालिदास
  • त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम

पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है

  • दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान
  • यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम
  • पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
  • असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। - शेख सादी
  • यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन

प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है

  • असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा
  • जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन
  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
  • प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। - बफां
  • प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स

पहले जैसी स्थिति

  • हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद
  • पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी
  • कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन : ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। - लोकोक्ति
  • राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ

'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'

  • इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व
  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
  • 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है। - आंगिरसस्मृति
  • आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार

परोपकार का आचरण मत त्यागो

  • मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य
  • अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
  • संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
  • शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात

प्रेम में स्मृति का ही सुख है

  • प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी
  • जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
  • प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
  • प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल

पत्नी और पति

  • पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक
  • हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा
  • अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख
  • जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड
  • पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां

प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं

  • भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
  • प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
  • प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
  • प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन

प्रेम का एक कण संसार पर भारी

  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
  • जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
  • प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
  • सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद

प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है

  • सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
  • प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
  • जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
  • प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
  • प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर

परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर

  • चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर
  • करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि
  • वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास
  • परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि


विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है

  • विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
  • जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
  • विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
  • विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
  • विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क

विश्राम की बात कैसे

  • जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा
  • विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
  • सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
  • इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
  • विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र

विचार ही कार्य का मूल है

  • हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
  • मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
  • सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
  • अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
  • विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी

विजय सदा ही भव्य होती है

  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
  • विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
  • विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
  • जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट

विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत

  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
  • न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
  • भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
  • मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
  • अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित

विद्या ही पूजनीय बनाती है

  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
  • कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य

विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है

  • प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
  • विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
  • पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
  • जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति


शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं

  • शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
  • निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
  • अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
  • जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
  • मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ

शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं

  • अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास
  • शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
  • शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
  • अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ

शांति की अपनी विजयें होती हैं

  • शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन
  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय
  • जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। - वेदव्यास
  • किसी के धन का लालच मत करो। - ईशावास्योपनिषद्
  • सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि

शंका का अंत शांति का प्रारंभ है

  • शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
  • दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
  • गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
  • शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क

शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती

  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
  • सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
  • हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा

शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है

  • वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
  • मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
  • प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात


भलाई का जीवन

  • दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम
  • नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद
  • भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु
  • अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना
  • जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस

भलाई करने वाला भलाई सिखाता है=

  • चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन

भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं

  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि
  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्रनाथ
  • जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन

भगवान तुम्हारे सामने है

  • मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा
  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
  • भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। - सत्य साईं बाबा
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्र
  • जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन

भजन जीभ से नहीं हृदय से

  • सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
  • निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
  • वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी


धन का उपयोग

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - महात्मा गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। - ओलिवर वेंडेल होल्म्स

धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है

  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। - हाल सातवाहन
  • आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। - महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। - वेमना

धर्म का अर्थ

  • धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। - विवेकानंद
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? - भामह
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
  • अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। - प्रेमचंद्र

धोखा देने वाला धोखा खाता है

  • हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। - महात्मा गांधी
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। - जामी
  • विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। - सोमदेव

धन पाला हुआ शत्रु

  • जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। - भगवान बुद्ध
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - एक चीनी कहावत
  • 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। - गार्डनर
  • अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। - सोलन
  • यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। - वेदव्यास

धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है

  • प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। - सुदर्शन
  • प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। - विल्मट
  • धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। - डिजरायली
  • महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - नेहरू
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। - गेटे

धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो

  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
  • मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। - वेदव्यास
  • हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। - महात्मा गांधी
  • स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। - विनोबा


दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो

  • लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। - डेल कारनेगी
  • सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। - रस्किन
  • दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। - बाइबिल
  • महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। - कार्लाइल

दो प्रकार के सच

  • सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। - रामतीर्थ
  • तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। - रामचंद्र शुक्ल
  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। - खलील जिब्रान
  • जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। - नवविधान

दुख का दर्शन

  • पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। - भानुदत्त
  • दुख स्वयं ही एक औषधि है। - विलियम कोपर
  • तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। - खलील जिब्रान
  • दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। - तिरुवल्लुवर

दरिद्र कौन है?

  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव

दूसरों का भरोसा मत करो

  • अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। - स्वामी रामतीर्थ
  • उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। - अज्ञात
  • मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। - महात्मा गांधी

दरिद्र कौन है

  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव


निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है

  • निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। - अज्ञात
  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। - संत तिरुवल्लुवर
  • अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। - कालिदास
  • नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। - सुदर्शन

निंदा सहना

  • जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। - वेदव्यास
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। - कन्फ्यूशस
  • यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। - चाणक्य
  • चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। - महात्मा गांधी

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। - कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। - वेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। - नारायण पंडित

न मित्र न शत्रु

  • न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। - वेदव्यास
  • महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। - भट्टाचार्य
  • गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। - भट्टनारायण
  • अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। - विमल मित्र
  • नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। - हरमन हेस


हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए

  • एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
  • जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
  • प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
  • माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात

हृदय की पुस्तक

  • संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
  • ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
  • संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
  • मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
  • जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
  • प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर

हर मन एक माणिक्य है

  • वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
  • समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
  • शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
  • हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी


चापलूसी का जहरीला प्याला

  • चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। - प्रेमचंद
  • मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। - हरिऔध
  • घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। - सुदर्शन
  • भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - चाणक्य

चैंपियन कौन?

  • चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। - जैक डेंपसी
  • खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। - पिएर द कु बर्तिन
  • मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। - बिली जीन किंग
  • एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। - पैट रिले
  • हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। - ओलिवर गोल्डस्मिथ

चापलूसी कब आती है

  • मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। - गुरु रामदास
  • जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। - कहावत
  • चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। - स्माइल्स
  • चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। - डिजराइली

चिंता शहद की मक्खी

  • चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। - सुदर्शन
  • यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। - रुडयार्ड किप्लिंग
  • आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। - अज्ञात
  • प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। - स्वामी शंकराचार्य


खुद को समझो

  • विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। - महात्मा गांधी
  • निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - विनोबा
  • आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। - अज्ञात
  • यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। - यशपाल
  • जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। - धम्मपदं

खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है

  • खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। - शिवानंद
  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
  • सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। - रामतीर्थ
  • सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। - चार्ल्स कैलब काल्टन
  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेंसन


यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण

  • मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी
  • सब लोग हृदय के दृढ़ संकल्प से श्रद्धा की उपासना करते हैं, क्योंकि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। - ऋगवेद
  • यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। - रामचंद्र शुक्ल
  • श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। - अज्ञेय
  • चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। - समर्थ रामदास
  • अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर

योग्यता और व्यक्तित्व

  • न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित
  • किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू
  • योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
  • दीपक के नीचे का अंधकार दूर करने के लिए दूसरा दीपक जलाने का प्रयत्न करना चाहिए। - संस्कृत लोकोक्ति
  • किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। - लाला लाजपतराय
  • दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। - एपिक्युरस


लोभ निरंतर बढ़ता है

  • मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है , किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास
  • आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना एक फैशन ही है। - डिजरायली
  • ज्यों-ज्यों लाभ होता है त्यों-त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। - उत्तराध्ययन


डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है

  • डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। - प्रेमचंद
  • डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। - विनोबा भावे
  • तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। - चाणक्य


गोत्र और धन से शुद्धता नहीं

  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। - मज्झिमनिकाय
  • शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। - थेर गाथा
  • लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। - विसुद्धिमग्ग
  • विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
  • जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। - शुक्रनीति


तीन प्रकार के इंसान

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। - खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेद व्यास


बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है

  • बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
  • बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
  • किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
  • जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी


ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण

  • मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
  • अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
  • ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
  • ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
  • ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी



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