"अनमोल वचन 10": अवतरणों में अंतर

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* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है।  ~ वाल्मीकि  
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है।  ~ वाल्मीकि  
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर  
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर  
===मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है===
* भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
* उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है।  ~ भट्टनारायण
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
* पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो।  ~ यूरोपिडीज
* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है।  ~ जयशंकर प्रसाद


===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके===
===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके===
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* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। - विष्णु शर्मा  
* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। - विष्णु शर्मा  
* विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। - इत्तिवृत्तक  
* विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। - इत्तिवृत्तक  
* मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। - गुरुदत्त  
* मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। - गुरुदत्त


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03:54, 18 अक्टूबर 2011 का अवतरण

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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत

अनमोल वचन

अन्तर्दृष्टि

  • हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। - चाणक्य
  • संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। - भतृहरि
  • किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
  • शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। - महात्मा गांधी

आलस्य पर विजय

  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। - स्वामी अखंडानंद
  • जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। - महात्मा गांधी
  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। - संत ज्ञानेश्वर
  • मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। - अज्ञात

आलोचना एक भयानक चिंगारी है

  • समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। - कोल्टन
  • गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। - डेल कारनेगी
  • आलोचना एक भयानक चिंगारी है-ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। - डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। - सेनेका
  • प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। - पास्कल
  • गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। - डेनियल

अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं

  • अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूदक
  • जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। - जातक
  • विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। - अभिनंद
  • विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। - अज्ञात

अहिंसा- तलवार की धार

  • अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। - महात्मा गांधी
  • जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। - विदुर
  • हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। - भगवतीचरण वर्मा

आतंकवाद और गोलकीपर

  • आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा। ~ पॉल विल्किंसन
  • आतंकवाद किसी असंभव चीज को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर। ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
  • आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की जिंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
  • किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए। ~ रुडॉल्फ गिउलियानी

अमृत और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित हैं

  • अमृत और मृत्यु दोनों इसी शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र
  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
  • वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन

अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें

  • अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। - ऋग्वेद
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। - स्वामी रामतीर्थ
  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। - प्रेमचन्द्र
  • यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। - हितोपदेश
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। - अज्ञात

आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका

  • आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। - डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। - स्वेट मार्डेन
  • आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। - टेनीसन
  • जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। - स्पेंसर
  • केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। - रस्किन
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। - सेनेका
  • शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। - वालफोर

आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण

  • हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। - महात्मा गांधी
  • जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। - वेदव्यास
  • सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। - शिवानंद
  • सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। - विवेकानंद
  • आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। - जवाहरलाल नेहरू

अध्यापक संस्कृति के माली

  • धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। - रवीन्द्र
  • शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। - हितोपदेश
  • मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। - पंचतंत्र
  • अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। - राधाकृष्णन
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। - महर्षि अरविन्द

अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर

आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है

  • जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। - शेख सादी
  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
  • मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। - बेकन
  • यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। - अज्ञात

आघात सहन करे, वही संत

  • परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। - एकनाथ
  • संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। - लाओ-त्से
  • जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। - तुकाराम
  • महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। - देवीभागवत

अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो , परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को दौड़ता है। ~ नारायण पंडित
  • खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध

  • श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। - अज्ञात
  • अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। - गांधी
  • संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। - भागवत
  • धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। - अश्वघोष
  • जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है। - शंकराचार्य

अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती

  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है, तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ तिरुवल्लुवर
  • कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
  • जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात

आचरण रहित विचार

  • आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। वेदव्यास
  • जो विद्या पुस्तक में रखी हो, मस्तिष्क में संचित हो और जो धन दूसरे के हाथ में चला गया हो, आवश्यकता पड़ने पर न वह विद्या ही काम आ सकती है और न वह धन ही। ~ चाणक्य
  • बिना अभ्यास के विद्या विष समान है। ~ अज्ञात

अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें

  • अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। ~ ऋग्वेद
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
  • यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। ~ हितोपदेश
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात

अति से अमृत भी विष बन जाता है

  • अति से अमृत भी विष बन जाता है। ~ लोकोक्ति
  • अभावों में अभाव है- बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। ~ pतिरुवल्लुवर
  • अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
  • बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करने वाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। ~ सोमदेव

आशा समुद्र के समान

  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिनोंदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं। ~ वेदव्यास
  • मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता। ~ शेख सादी
  • आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं। ~ कारमेन सिल्वा

जन के ऊपर कुछ नहीं

  • अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। - हिंदू पंच, बलिदान अंक
  • पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। - कंचनलता सब्बरवाल
  • अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। - श्रीराम शर्मा आचार्य
  • प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। - भगवतीचरण वर्मा

जागरण का अर्थ

  • जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। - जयशंकर प्रसाद
  • जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। - स्वामी अखंडानंद
  • दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
  • दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। - कालिदास

जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश

  • यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश रहती है। - रमण
  • जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है। - प्रेमचन्द
  • यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। - अज्ञात
  • नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। - रामानंद

जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है

  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
  • आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
  • जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
  • जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स

जहां धर्म है वहां जय है

  • विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। - भट्टनारायण
  • जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। - वेदव्यास
  • धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। - धम्मपद
  • जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। - जातक
  • जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी

जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी

  • जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है - वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। - सुभाषचंद वसु
  • अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। - वेदव्यास
  • बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। - गरुड़पुराण
  • यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। - देवीभागवत
  • भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। - मज्झिमनिकाय

जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता

  • जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। - रैदास
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। - राबिया
  • जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। - विनोबा

जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे

  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। - भर्तृहरि
  • जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - सादी

जहां विनय है, वहां भय नहीं

  • जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। - शेक्सपियर
  • नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। - मुतनव्बी
  • जहां विनय है, वहां भय नहीं है। - लोकोक्ति
  • अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। - सेंट ऑगस्टीन
  • जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। - तत्वकथा

जिसका मन जिससे लग गया

  • प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है। - बालजाक
  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। - साने गुरुजी
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? - दयाराम
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। - प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। - लक्ष्मीनारायण मिश्र

जवान और बूढ़े में फर्क

  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

जन्म से मुक्ति

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तक। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है क्योंकि वह गलती कर सकता है, और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

जैसे सभ्य मेहमान उठ कर जाता

  • रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं। ~ मारकस काटो
  • रिटायरमेंट के वक्त मैं ठीक उसी तरह जाना चाहूंगा जैसे किसी पार्टी से कोई सभ्य मेहमान उठ कर जाता है। ~ लियोंटाइन प्राइस
  • यकीन करें कि बुढ़ापा उम्र का सबसे शानदार दौर होता है। भले ही आप उस वक्त अपनी जिम्मेदारियों से निबट चुके होते हैं, पर तब आप फ्रंट सीट पर बैठकर उन कामों के नतीजे का मजा ले सकते हैं जो आपने सक्रिय होते हुए किए थे। ~ जेन एलेन हैरिसन
  • रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है। ~ मैगी काह्न
  • अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी जिंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है। ~ हैराल्ड जेनीन

जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~

रामकृष्ण परमहंस

  • आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।

चाणक्य

  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात

ज्यादा कीमत नहीं तो कोई भी तजुर्बा अच्छा

  • सज्जनों का लक्षण यह है कि वे सदा दया करने वाले और करुणाशील होते हैं। ~ विनोबा भावे
  • किसी का रुपया वापस किया जा सकता है लेकिन सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण हैं, जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। ~ सुदर्शन
  • कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े। ~ एक कहावत
  • सेनापति वही है जो सिपाही की सेवा को अधिकार न समझ कर श्रद्धा की वस्तु समझता है। ~ रामकुमार वर्मा

कुल की प्रशंसा करने से क्या?

  • कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। - शूदक
  • शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। - बाणभट्ट
  • शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। - भर्तृहरि
  • उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? - स्वयंभूदेव
  • शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। - रामचंद्र शुक्ल

क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है

  • तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। - वृंद
  • अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। - संत तिरुवल्लुवर
  • घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। - धम्मपद
  • गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। - भगवान महावीर
  • क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? - सेठ गोविंददास

किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है

  • किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। - जयशंकर प्रसाद
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। - हैजलिट
  • सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। - अज्ञात
  • दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे/ जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे। - दाग देहलवी
  • सब कार्य प्रसन्नता से करने का प्रयत्न करो, परंतु प्रसन्नता कभी तुम्हारे कार्य का प्रेरक भाव न बनने पाए। - श्रीमां

क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है

  • जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
  • क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। - अज्ञात
  • क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सजा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। - शरतचंद्र
  • क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। - प्रेमचंद

कौन धनी है, कौन निर्धन

  • अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। - इल्लीस जातक
  • दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। - महात्मा गांधी
  • सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास (महाभारत)

कृतज्ञता हृदय की स्मृति है

  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। - कहावत
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
  • संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। - गोविंद दास
  • काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। - कालिदास

कलियुग में रहना है

  • याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है। ~ अज्ञात
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। ~ विनोबा
  • यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं। ~ प्रेमचंद

कायर दैव का भरोसा करता है

  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक - दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
  • तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ मनुस्मृति
  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि

कार्य और सिद्धांत

  • कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
  • बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। - जवाहर लाल नेहरू
  • शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। - लोकमान्य तिलक

कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है

  • कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। - भर्तृहरि
  • अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूद्रक
  • जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। - वेदव्यास

करुणा के नेत्र खुल जाएं तो

  • जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ राजगोपालाचारी
  • वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है। ~ विनोबा
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। ~ भागवत गीता

करुणा में शीतल अग्नि होती है

  • करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। ~ सुदर्शन
  • कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए। ~ विनोबा
  • इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करनेवाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ वेद
  • निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ

कष्ट हृदय की कसौटी है

  • कष्ट हृदय की कसौटी है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
  • कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगंध है। ~ सुकरात
  • मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं। ~ अज्ञात

कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो

  • अनुभूति अपनी सीमा में जितनी सबल है, उतनी बुद्धि नहीं। हमारे स्वयं जलने की हलकी अनुभूति भी दूसरे के राख हो जाने के ज्ञान से अधिक स्थायी रहती है। ~ महादेवी वर्मा
  • व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात
  • कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन
  • दुर्बल चरित्रवाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंकें से झुक जाता है। ~ माघ

सुंदर दिखना

  • यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी
  • सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। - सुदर्शन
  • जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। - भगवतीचरण वर्मा
  • सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। - अज्ञात

स्त्री विश्वास चाहती है

  • जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। - गीता
  • स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। - प्रेमचंद
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
  • संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। - लक्ष्मीनारायण लाल
  • प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। - जैनेंद्र कुमार

सत्याग्रह की तलवार

  • सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। - महात्मा गांधी
  • सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। - ईशावास्योपनिषद
  • प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। - सत्य साईं बाबा
  • सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। - विश्वामित्र

संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है

  • संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है। वह विद्युत की भांति एकाएक उदय होती है और नष्ट हो जाती है। - दण्डी
  • पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है। - रवीन्द्र
  • विपत्ति में पड़े हुए पुरुषों की पीड़ा हर लेना ही सत्पुरुषों की संपत्ति का सच्चा फल है। संपत्ति पाकर भी मनुष्य अगर विपत्ति-ग्रस्त लोगों के काम न आया तो वह संपत्ति किस काम की। - कालिदास
  • बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी। - अज्ञात

संतुलन की कला

  • जीने का सबसे अच्छा और सर्वाधिक सुरक्षित तरीका जीवन में संतुलन रखना है। आपने आसपास और अपने भीतर की ताकत को पहचानना है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं और इस तरह जीते हैं तो आप सचमुच एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। - यूरीपिडीज
  • इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है। - फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड
  • मैं जिस चीज का स्वप्न देखता हूं वह है संतुलन की कला। - हेनरी मातीस
  • इस दुनिया की बनावट इतनी दैवीय है कि यहां हममें से हर कोई अपने स्थान और समय में अन्य दूसरी चीजों से एक विरल संतुलन में अवस्थित है। - गाइथे

सच्ची शिक्षा

  • सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा का आधार है। ~ महात्मा गांधी
  • संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियां हैं, शिक्षा सबसे बढ़कर है। ~ निराला
  • शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है। ~ अज्ञात

साहस और धैर्य

  • साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी
  • साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
  • संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा
  • योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश

साहस के मुताबिक संकल्प

  • जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। - मुतनब्बी
  • यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। - गेटे
  • हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। - ऋग्वेद
  • निष्काम होकर नित्य पराक्रम करने वाले की गोद में उत्सुक होकर सफलता आती ही है। - भारवि
  • सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। - जॉनसन

सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति

  • बैर के कारण उत्पन होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। ~ वेदव्यास
  • ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
  • ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग ही भक्ति है। ~ भक्तिदर्शन

सोच-विचार कर करो

  • कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। - शेक्सपियर
  • हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। - वर्जिल
  • अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। - फारसी कहावत
  • बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। - जॉर्ज इलियट

सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है

  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेन्स
  • दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। - वीणावासवदत्ता
  • भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। - अष्टावक्र गीता
  • परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - बाण भट्ट
  • बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। - एरिस्टोफेनिज

सत्य सदा का है

  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
  • प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। - सेंट एम्ब्रोज
  • सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। - अरविंद

सभी आभूषण भार हैं

  • सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। - उत्तराध्ययन
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
  • संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा

सौन्दर्य पवित्रता में रहता है

  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
  • सौन्दर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। - शिवानंद
  • सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। - स्वामी विवेकानंद
  • अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। - तुलसीदास
  • जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। - जॉर्ज हरबर्ट

संयम से वैर नहीं बढ़ता है

  • जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
  • सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
  • जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
  • संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
  • संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान

सत्य सदैव निराला होता है

  • जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
  • सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी
  • झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
  • जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
  • सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन

सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है

  • दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
  • हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
  • संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
  • जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
  • सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास

सुख दूसरों को सुखी करने में है

  • जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। - प्रेमचंद
  • पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। - अज्ञात
  • साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी
  • दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हंसी हंसता है, वैसी ही हंसी, मस्ती बिखेरने वाली हंसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। - रामचरण महेंद्र
  • साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित
  • सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। - जेम्स एलेन

संगति बुद्धि के अंधकार को हरती

  • अच्छी संगति बुद्धि के अंधकार को हरती है, वचनों को सत्य की धार से सींचती है, मान को बढ़ती है, पाप को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न रखती है और चारों ओर यश फैलाकर मनुष्यों को क्या क्या लाभ नहीं पहुंचाती? ~ भर्तृहरि
  • मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित हो जाते हैं। ~ एमर्सन
  • संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन
  • वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं। ~ मलूकदास

सुकर्म के बीज से ही महान फल

  • सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। ~ कथासरित्सागर
  • प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है। ~ चाणक्य
  • द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा
  • बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल

सारा संसार ही कुटुंब है

  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
  • संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
  • उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना
  • जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
  • सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद

संसार और स्वप्न

  • संसार स्वप्न की तरह है। जिस प्रकार जागने पर स्वप्न झूठा प्रतीत होता है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार मिथ्या प्रतीत होता है। ~ याज्ञवल्क्य
  • आवेश और क्रोध को वश में कर लेने पर शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित कर दिया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • अमरत्व को प्राप्त करना अखिल विश्व का स्वामी बनना है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है। ~ सुभाष चन्द्र बोस
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ

सुदिन सबके लिए आते हैं

  • हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हुए हैं जिस प्रकार प्रकाश के साथ छाया। सच्चा सुखी वही है जिसकी दृष्टि में दोनों समान हैं। ~ धम्मपद
  • लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण दुख होते हैं। अत: लोभ, रस और स्नेह का त्याग करके सुखी हो जाओ। ~ नारायण स्वामी
  • सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात
  • सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन

सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता

  • सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी
  • प्रेम हृदय के समस्त सद्भावों का शांत, स्थिर, उद्गारहीन समावेश है। ~ प्रेमचंद
  • प्रेम दुख और वेदना का बंधु है। इस संसार में जहां दुख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
  • पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन
  • प्रेम बिना तर्क का तर्क है। ~ शेक्सपियर

मनुष्य की चाहत

  • एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
  • मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
  • जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
  • कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद

मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है

  • मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
  • यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
  • समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि

मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती

  • जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक
  • जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
  • जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास

मन को शुभ संकल्प बनाओ

  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
  • इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
  • जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात
  • हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद

मुहब्बत रूह की खुराक

  • मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
  • प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
  • प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद
  • प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल
  • कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह

महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें

  • विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी
  • दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
  • किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
  • विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण

मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर

  • ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है। ~ भर्तृहरि
  • प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की। ~ प्रेमचंद
  • मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। ~ विवेकानंद
  • मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है। ~ वेदव्यास

मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे

  • कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति
  • ऐच्छिक प्रेम उत्तम है, परंतु बिना याचना के दिया हुआ प्यार बेहतर है। ~ शेक्सपियर
  • प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है। ~ महात्मा गांधी
  • मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे। ~ मारकस आंटोनियस
  • जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। ~ अज्ञेय

मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं

  • निरंतर अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
  • परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। - सोमदेव
  • परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है। - कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। - बिशप रिचर्ड कंबरलैंड

मनुष्य अकेला आता है

  • मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
  • तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
  • किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेम चंद

मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है

  • जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। ~ वाल्मीकि
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर

मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है

  • भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
  • उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है। ~ भट्टनारायण
  • यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
  • पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो। ~ यूरोपिडीज
  • सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है। ~ जयशंकर प्रसाद

महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके

  • जो प्रकृति से ही महान हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक)ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती। - चाणक्य
  • संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। - विष्णु शर्मा
  • विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। - इत्तिवृत्तक
  • मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। - गुरुदत्त

प्रेम में चतुराई बुरी चीज

  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
  • प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
  • हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
  • कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य

पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है

  • मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। - जयशंकर प्रसाद
  • जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। - स्वामी रामतीर्थ
  • जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है। - महात्मा गांधी
  • पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है। - सुदर्शन

पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं

  • पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
  • जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति

परोपकार से पुण्य होता है

  • जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र
  • दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि
  • परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। - पंचतंत्र
  • वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है। - कालिदास
  • त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम

पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है

  • दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान
  • यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम
  • पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
  • असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। - शेख सादी
  • यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन

प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है

  • असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा
  • जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन
  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
  • प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। - बफां
  • प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स

पहले जैसी स्थिति

  • हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद
  • पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी
  • कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन : ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। - लोकोक्ति
  • राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ

'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'

  • इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व
  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
  • 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है। - आंगिरसस्मृति
  • आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार

परोपकार का आचरण मत त्यागो

  • मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य
  • अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
  • संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
  • शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात

प्रेम में स्मृति का ही सुख है

  • प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी
  • जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
  • प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
  • प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल

पत्नी और पति

  • पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक
  • हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा
  • अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख
  • जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड
  • पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां

परिवर्तन ही सृष्टि है

  • परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है। ~ महात्मा गांधी
  • परोपकार के लिए कुछ जाल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है। ~ प्रेमचंद

प्रार्थना धर्म का निचोड़ है

  • प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। प्रार्थना दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है, यह हृदय के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम है। ~ महात्मा गांधी
  • मैं भगवान से अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता। मेरी यही एक प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अंत:करण में स्थित होकर मैं ही उनके समस्त दुखों को सहूं। ~ श्रीमद्भागवत
  • बारिश का परिणाम शरीर पर और उसके द्वारा मन पर होता है तो प्रार्थना का परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है। ~ विनोबा

पूजा हमेशा गुण की होती है

  • गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं। ठीक वैसे ही जैसे पूर्ण चंद्रमा उतना वंदनीय नहीं है जितना निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
  • जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात

प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना

  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र

प्रेमी हृदय उदार होता है

  • प्रेमी हृदय उदार होता है, वह दया और क्षमा का सागर है, ईर्ष्या और दंभ के नाले उसमें मिल कर उसे विशाल बना देते हैं। ~ प्रेमचंद
  • जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह चढ़ता है। ~ गांधी
  • जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न पाने पर खिन्न होता है। ~ वाल्मीकि

पीड़ितों की सेवा

  • जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध
  • सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद
  • सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी
  • निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा

प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं

  • भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
  • प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
  • प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
  • प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन

प्रेम का एक कण संसार पर भारी

  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
  • जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
  • प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
  • सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद

प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है

  • सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
  • प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
  • जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
  • प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
  • प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर

परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है

  • परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही असली प्रगति है। - दिनकर
  • परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि जीवंत आत्मा का सतत आवास है। - राधाकृष्णन
  • परंपरा बंधन नहीं है, वह मनुष्य की मुक्ति (अपने लिए ही नहीं, सबके लिए मुक्ति) की निरंतर तलाश है। - विद्यानिवास मिश्र
  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। - धम्मपद

प्रतीक्षा भी सेवा

  • जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं। ~ मिल्टन
  • काया के पिंजरे चाहे जितने रंगों के हों, पर मन का पंछी तो सबमें एक ही जैसा है। ~ अमृतलाल नागर
  • यदि मन में प्रपंच हो तो मन में भगवान का वास नहीं हो सकता, और यदि मन में भगवान हों तो प्रपंच हो नहीं सकता। ~ दयाराम
  • जब तक अन्त:करण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता। ~ प्रेमचंद

पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें

  • तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठ पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करें। यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। ~ मनुस्मृति
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडल होम्स
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा

पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है

  • समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर ) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। - भास
  • मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
  • दूसरों की प्राण रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है। - बाणभट्ट
  • पुण्य रूपी वृक्ष में तत्काल ही अचिंतनीय फल उत्पन्न होते हैं। - सोमदेव
  • पीड़ा का सीमातीत हो जाना ही उसकी चिकित्सा है। जैसे बिंदु का समुद्र में विलीन होना ही उसका सुख व विश्राम पा जाना है। - गालिब

परिचय के पीछे स्वार्थ न हो

  • प्रियतम की स्मृति भक्तों का परम धन है जो ज्ञान उन्हें इस धन से वंचित करता हुआ रस शून्य बनाने की प्रेरणा देता है उनकी दृष्टि में वह सर्वथा घातक है। ~ राम किंकर उपाध्याय
  • पराजय से सत्याग्रही और अहिंसक की आत्मा को निराशा नहीं होती। उससे तो कार्य-क्षमता और लगन बढ़ती है और सत्य से मनुष्य की बुद्धि परिष्कृत होकर उसका मार्ग-दर्शन करती है। ~ महात्मा गांधी
  • किसी को अपना परिचय देना बुरा नहीं है, बुरा तभी है जब वह किसी स्वार्थ या अहंकार से दिया जाता है। ~ अज्ञात

प्रार्थना

  • प्रार्थना तभी प्रार्थना है जब वह अपने आप हृदय से निकलती है। ~ महात्मा गांधी
  • दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं। ~ विनोबा
  • क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु मूर्ख के सिवा कोई उसे जारी नहीं रख सकता। ~ सिसरो
  • जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं। ~ अज्ञात

प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है

  • बिना प्रेम किए मर जाने से ज्यादा दुखद कुछ कोई और नहीं हो सकता। लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह है कि जिसे आप प्रेम करते हों, उसे बिना यह बताए ही दुनिया से विदा हो जाएं, कि आप उससे प्रेम करते थे। ~ अज्ञात
  • प्रेम निकाल दो तो यह पृथ्वी कब्र है। ~ रॉबर्ट ब्राउनिंग
  • जितनी गहराई, ऊंचाई और विस्तार तक मेरी आत्मा जा सकती है, वहां तक मैं तुमसे प्रेम करती हूं। ~ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
  • जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी
  • हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट(कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास) ~ कोलरिज

प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है

  • मन को विषाद ग्रस्त नहीं बनाना चाहिए। विषाद में बहुत बड़ा दोष है। जैसे क्रोध में भरा हुआ सांप बालक को काट खाता है, उसी प्रकार विषाद व्यक्ति का नाश कर डालता है। ~ वाल्मीकि
  • वृक्ष अपने सिर पर गर्मी सह लेता है लेकिन अपनी छाया से औरों को गर्मी से बचाता है। ~ कालिदास
  • विपत्ति आती है और चली जाती है, वीर वही है जो धीर रहे और न्याय, सचाई का त्याग न करे। ~ सुदर्शन
  • प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है। ~ जयशंकर प्रसाद

प्रेम से शांत होता है वैर

  • संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होता है। ~ धम्मपद
  • तृण वृत्ति वाले मृग, जल वृत्ति वाले मीन और संतोष वृत्ति वाले सज्जनों के भी इस संसार में शिकारी, मछुवा और चुगलखोर बिना कारण के ही वैरी रहते हैं। ~ भर्तृहरि
  • व्यंग्य वचन दूसरों का हृदय छेदने में तीर का काम करते हैं। ~ अज्ञात

पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है

  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है। ~ सेनेका

प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है

  • चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। ~ कालिदास
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन

परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर

  • चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर
  • करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि
  • वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास
  • परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि

विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है

  • विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
  • जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
  • विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
  • विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
  • विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क

विश्राम की बात कैसे

  • जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा
  • विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
  • सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
  • इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
  • विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र

विचार ही कार्य का मूल है

  • हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
  • मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
  • सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
  • अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
  • विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी

विजय सदा ही भव्य होती है

  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
  • विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
  • विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
  • जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट

वह पशुओं से भी गया-बीता है

  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
  • जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद
  • बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। ~ सोमदेव
  • उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात

विवेकहीन बल

  • जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। ~ महादेवी वर्मा
  • विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। ~ वेदव्यास
  • सभी सच्चे काम आराम हैं। रामतीर्थ
  • इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। ~ विवेकानंद
  • विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र

विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत

  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
  • न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
  • भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
  • मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
  • अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित

विचार ही कार्य का मूल है

  • हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद
  • मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। ~ चाणक्य
  • सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। ~ विवेकानंद
  • अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। ~ योगवासिष्ठ
  • विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी

विरोध अनिवार्य है

  • हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। ~ शेख सादी
  • मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। ~ नवविधान
  • समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। ~ भारवि

विद्या ही पूजनीय बनाती है

  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
  • कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य

विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है

  • प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
  • विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
  • पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
  • जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति

शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं

  • शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
  • निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
  • अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
  • जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
  • मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ

शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं

  • अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास
  • शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
  • शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
  • अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ

शांति की अपनी विजयें होती हैं

  • शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन
  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय
  • जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। - वेदव्यास
  • किसी के धन का लालच मत करो। - ईशावास्योपनिषद्
  • सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि

शोक का भागी होता है

  • जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल-प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न खाने पर खिन्न होता है। ~ वाल्मीकि
  • जब तक तकलीफ सहने की तैयारी नहीं होती तब तक फायदा दिखाई दे ही नहीं सकता। फायदे की इमारत नुकसान की धूप में बनी है। ~ विनोबा
  • समय गंवाना सभी खर्चों से कीमती और व्यर्थ होता है। ~ अज्ञात
  • प्रेम द्वेष को परास्त करता है। ~ गांधी

शंका का अंत शांति का प्रारंभ है

  • शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
  • दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
  • गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
  • शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क

शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती

  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
  • सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
  • हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा

शक्ति भय के अभाव में रहती है

  • अपने खजाने में वृद्धि करने के लिए दूसरे के हिस्से को हड़प लेने वाला व्यक्ति निकृष्ट है। - तिरुवल्लुवर
  • धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। - अलेक्जेंडर पोप
  • शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांस या पुट्ठों के गुणों में, जो कि हमारे शरीर में होते हैं। - महात्मा गांधी
  • जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • केवल शरीर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से उत्पन्न होता है। - स्कंदपुराण

शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है

  • वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
  • मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
  • प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात

शिष्टाचार का मूल सिद्धांत

  • पक्षपात, गुणों को दोष और दोष को गुण बना देता है। ~ राजशेखर
  • धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी सब शील के ही आश्रय पर रहते हैं। शील ही सबकी नींव है। ~ वेदव्यास
  • शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना। ~ अज्ञात
  • योग्य शिष्य को जो शिक्षा दी जाती है, वह अवश्य फलती है। ~ कालिदास

भलाई का जीवन

  • दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम
  • नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद
  • भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु
  • अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना
  • जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस

भलाई करने वाला भलाई सिखाता है

  • चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन

भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं

  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि
  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्रनाथ
  • जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन

भगवान तुम्हारे सामने है

  • मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा
  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
  • भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। - सत्य साईं बाबा
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्र
  • जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन

भजन जीभ से नहीं हृदय से

  • सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
  • निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
  • वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी

धन का उपयोग

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - महात्मा गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। - ओलिवर वेंडेल होल्म्स

धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है

  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। - हाल सातवाहन
  • आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। - महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। - वेमना

धर्म का अर्थ

  • धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। - विवेकानंद
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? - भामह
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
  • अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। - प्रेमचंद्र

धोखा देने वाला धोखा खाता है

  • हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। - महात्मा गांधी
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। - जामी
  • विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। - सोमदेव

धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं

  • धर्म से अर्थ उत्पन होता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है। ~ वाल्मीकि
  • जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद
  • धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ राधाकृष्णन

धन पाला हुआ शत्रु

  • जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। - भगवान बुद्ध
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - एक चीनी कहावत
  • 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। - गार्डनर
  • अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। - सोलन
  • यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। - वेदव्यास

धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है

  • प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। - सुदर्शन
  • प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। - विल्मट
  • धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। - डिजरायली
  • महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - नेहरू
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। - गेटे

धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो

  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
  • मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। - वेदव्यास
  • हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। - महात्मा गांधी
  • स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। - विनोबा

धन की तीन गति- दान, भोग और नाश

  • दान, भोग और नाश -ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। - भर्तृहरि
  • मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। - कथासरित्सागर
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। - भगदत्त जल्हण
  • संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। - विष्णु शर्मा

धर्म व्यवहार अधिक है

  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। - विवेकानंद
  • जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है। - दुर्गा भागवत
  • मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है। - राधाकृष्णन
  • धर्म के विषय में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं होती। - कुरान

धन आता-जाता रहता है

  • जैसे रथ का पहिया इधर-उधर नीचे-ऊपर घूमता रहता है, वैसे ही धन भी विभिन्न व्यक्तियों के पास आता-जाता रहता है, वह कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। ~ ऋग्वेद
  • हे राजन्, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। ~ नारायण पंडित
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है। ~ कालिदास
  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। ~ वेदव्यास

दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो

  • लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। - डेल कारनेगी
  • सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। - रस्किन
  • दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। - बाइबिल
  • महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। - कार्लाइल

दो प्रकार के सच

  • सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। - रामतीर्थ
  • तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। - रामचंद्र शुक्ल
  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। - खलील जिब्रान
  • जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। - नवविधान

दुख में मिलते हैं ईश्वर

  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन। ~ वेदव्यास
  • धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है। ~ तुलसीदास
  • ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दुख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दुख का साथी ईश्वर है। ~ रामचंद डोंगरे
  • स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दुख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है। ~ शरत

दुख का दर्शन

  • पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। - भानुदत्त
  • दुख स्वयं ही एक औषधि है। - विलियम कोपर
  • तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। - खलील जिब्रान
  • दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। - तिरुवल्लुवर

दूसरों का भरोसा मत करो

  • अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। - स्वामी रामतीर्थ
  • उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। - अज्ञात
  • मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। - महात्मा गांधी

दीर्घायु होना सब चाहते हैं

  • सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं। ~ भगवान महावीर
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। ~ अज्ञात

दरिद्र कौन है

  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव

निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है

  • निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। - अज्ञात
  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। - संत तिरुवल्लुवर
  • अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। - कालिदास
  • नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। - सुदर्शन

निंदा सहना

  • जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। - वेदव्यास
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ टैगोर
  • हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। - कन्फ्यूशस
  • यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। - चाणक्य
  • चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। - महात्मा गांधी

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। - कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। - वेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। - नारायण पंडित

न मित्र न शत्रु

  • न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। - वेदव्यास
  • महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। - भट्टाचार्य
  • गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। - भट्टनारायण
  • अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। - विमल मित्र
  • नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। - हरमन हेस

नूर फ़कीर जानै नहीं

  • नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। - नूरूद्दीन
  • किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? - बृहस्पति नीति सार
  • अपने को विद्वान मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है।

कल्हण

  • उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। - माघ
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। - डिजरायली

निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है

  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। - तुकाराम
  • जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। - दयानंद
  • बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। - सोमदेव
  • उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। - अज्ञात

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ pवेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित

नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है

  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख। ~ धम्मपद
  • मनुष्य पराक्रम के द्वारा दुखों से पार पाता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
  • सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है। ~ पिंगलि सूरना
  • घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी

हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए

  • एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
  • जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
  • प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
  • माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात

हृदय की पुस्तक

  • संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
  • ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
  • संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
  • मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
  • जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
  • प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर

हर मन एक माणिक्य है

  • वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
  • समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
  • शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
  • हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी

हर शरीर में सात ऋषि हैं

  • प्रत्येक शरीर में सात ऋषि हैं। ये सातों प्रमाद रहित हो कर उसका रक्षण करते हैं। जब ऋषि सोने जाते हैं, तब भी भीतर बैठे देव जागते हैं और इस यज्ञशाला की रक्षा करते हैं। - यजुर्वेद
  • अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है। - कालिदास
  • जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार वेद ही है। - साने गुरु जी
  • अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। - रामतीर्थ
  • उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। - अज्ञात

हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है

  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए द्वार बंद कर दोगे तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • सोई हुई आत्मा को जगाने के लिए भूलें एक प्रकार की दैविक यंत्रणाएं जो हमें सदा के लिए सतर्क कर देती हैं। ~ प्रेमचंद
  • दूसरों की भूलों से बुद्धिमान लोग अपनी भूलें सुधारते हैं। ~ साइरस
  • यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ शिक्षा दे सकती है। ~ डिकेंस

चापलूसी का जहरीला प्याला

  • चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। - प्रेमचंद
  • मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। - हरिऔध
  • घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। - सुदर्शन
  • भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - चाणक्य

चैंपियन कौन?

  • चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। - जैक डेंपसी
  • खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। - पिएर द कु बर्तिन
  • मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। - बिली जीन किंग
  • एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। - पैट रिले
  • हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। - ओलिवर गोल्डस्मिथ

चापलूसी कब आती है

  • मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। - गुरु रामदास
  • जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। - कहावत
  • चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। - स्माइल्स
  • चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। - डिजराइली

चिंता शहद की मक्खी

  • चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। - सुदर्शन
  • यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। - रुडयार्ड किप्लिंग
  • आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। - अज्ञात
  • प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। - स्वामी शंकराचार्य

चतुराई बहुत बुरी चीज है

  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। ~ मौलाना रूम
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

चले चलो, चले चलो

  • बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सोने वाले का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है। इसलिए चले चलो, चले चलो। ~ वेदवाणी
  • जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं। ~ गौतम बुद्ध
  • अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। ~ डिजराइली
  • ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर

खुद को समझो

  • विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। - महात्मा गांधी
  • निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - विनोबा
  • आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। - अज्ञात
  • यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। - यशपाल
  • जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। - धम्मपदं

खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है

  • खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। - शिवानंद
  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
  • सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। - रामतीर्थ
  • सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। - चार्ल्स कैलब काल्टन
  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेंसन

यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण

  • मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी
  • सब लोग हृदय के दृढ़ संकल्प से श्रद्धा की उपासना करते हैं, क्योंकि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। - ऋगवेद
  • यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। - रामचंद्र शुक्ल
  • श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। - अज्ञेय
  • चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। - समर्थ रामदास
  • अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर

योग्यता और व्यक्तित्व

  • न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित
  • किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू
  • योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
  • दीपक के नीचे का अंधकार दूर करने के लिए दूसरा दीपक जलाने का प्रयत्न करना चाहिए। - संस्कृत लोकोक्ति
  • किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। - लाला लाजपतराय
  • दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। - एपिक्युरस

लोभ निरंतर बढ़ता है

  • मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है , किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास
  • आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना एक फैशन ही है। - डिजरायली
  • ज्यों-ज्यों लाभ होता है त्यों-त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। - उत्तराध्ययन

लक्ष्मी का निवास

  • उत्साही, आलस्यहीन, बहादुर और पक्की मित्रता निभाने वाले मनुष्य के पास लक्ष्मी निवास करने के लिए स्वयं चली आती है। - नारायण पंडित
  • परिस्थितियां ही मनुष्य में साहस का संचार करती हैं। - हरिकृष्ण प्रेमी
  • दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। - अज्ञात
  • जो मारता है वह सबल है, जो भय करता है वह निर्बल है। - यशपाल
  • कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। - प्रेमचंद

लोभ कभी बूढ़ा नहीं होता

  • इंसान अगर लालच को ठुकरा दे, तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्योंकि संतोष ही इंसान का माथा ऊंचा रख सकता है। ~ सादी
  • गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती हैं परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता, उस प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए, पर लोभी तृप्त नहीं होता। ~ वेदव्यास
  • जिसमें लोभ है, उसे दूसरे अवगुण की क्या आवश्यकता? ~ भर्तृहरि
  • मनुष्य बूढ़ा हो जाता है परंतु लोभ बूढ़ा नहीं होता। ~ सुदर्शन

गोत्र और धन से शुद्धता नहीं

  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। - मज्झिमनिकाय
  • शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। - थेर गाथा
  • लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। - विसुद्धिमग्ग
  • विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
  • जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। - शुक्रनीति

गुण ही गुण को परखते हैं

  • जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। ~ चाणक्य
  • महान की उपासना करना स्वयं महान होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर
  • प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं। ~ एमर्सन
  • गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात

तीन प्रकार के इंसान

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। - खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेद व्यास

तृष्णा संतोष की बैरिन है

  • तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है। ~ सुदर्शन
  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मजदूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। ~ वेदव्यास
  • जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। ~ चाणक्य
  • त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है। ~ प्लूटार्क

तुम आगे बढ़े चलो

  • फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। ~ प्रेमचंद्र
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं, तब आयु रूपी नदी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर

तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम

  • अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है। ~ दीनानाथ दिनेश
  • सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो। ~ स्वामी शंकराचार्य
  • ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है। ~ चाणक्य

बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है

  • बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
  • बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
  • किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
  • जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी

बुराई के बीज

  • बुराई के बीज चाहे गुप्त से गुप्त स्थान में बोओ, वह स्थान किले की तरह चाहे सुरक्षित ही क्यों न हो, पर प्रकृति के अत्यंत कठोर , निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य कानून के अनुसार तुम्हें ब्याज सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है। ~ रामचन्द्र शुक्ल
  • मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव समाज पर एक लांछन है। ~ विवेकानंद
  • जिस आदमी का मान उसके अपने ख्याल से मर चुका है, वह जितनी हानि अपने को पहुंचा सकता है उतनी दूसरा कोई और नहीं पहुंचा सकता। ~ महात्मा गांधी

बिना त्याग के धन

  • बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती। ~ अग्नि पुराण
  • रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना। ~ महात्मा गांधी
  • दुखती आंखों वाले को सामने रखी दीपशिखा अच्छी नहीं लगती है। ~ कालिदास
  • लोभी न परमार्थ को समझता है और न धर्म को। ~ इतिवुत्तक
  • राग मिलाने वाला वासना है और द्वेष अलग करने वाली। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष

बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है

  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है - मन से दुखों की चिंता न करना। ~ वेदव्यास
  • 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो। ~ डिजरायली
  • बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। ~ बेकन
  • शरीर जल से पवित्र होता है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है। ~ मनुस्मृति
  • परोपकार के लिए कुछ छल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है। ~ प्रेमचंद

ज्ञ

ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण

  • मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
  • अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
  • ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
  • ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
  • ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी

ज्ञान से मन शांत

  • जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। ~ गौतम बुद्ध
  • जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। ~ माघ

उन्नति करने वाले पर ही आती है विपत्ति

  • जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
  • आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं। ~ अश्वघोष
  • बिना विनय के विजय नहीं टिकती। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

उड़ने से बेहतर है झुकना

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। ~ चाणक्य
  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात

ईश्वर जानता है, हमारे लिए क्या अच्छा है

  • धैर्य सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है। ~ भगवान बुद्ध
  • प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। ~ महात्मा गांधी
  • उसकी प्रार्थना सर्वोत्तम है, जिसका प्यार सर्वोत्तम है। ~ कॉलरिज
  • हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। ~ सुकरात

ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, उसकी चेतना में है

  • धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है। ~ विनोबा भावे
  • धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है। ~ वेदव्यास
  • ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, बल्कि इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तू
  • लोगों के छिपे हुए ऐब जाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत जरूर घट जाएगी, मगर तुम्हारा तो एतबार ही उठ जाएगा। ~ शेख सादी
  • प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल

रुपया वापस दिया जा सकता है, लेकिन

  • जब हम अपने पैर की धूल से भी अधिक अपने को नम्र समझते हैं तो ईश्वर हमारी सहायता करता है। ~ महात्मा गांधी
  • किसी का रुपया वापस दिया जा सकता है, परंतु सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण है जिसे चुकाना मनुष्य के सार्मथ्य के बाहर है। ~ सुदर्शन
  • दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। ~ प्रेमचंद
  • सम्मान सच्चे परिश्रम में है। ~ जी. क्लीवलैंड

राज्य का अस्तित्व

  • राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
  • विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो। ~ अज्ञात
  • जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
  • अपनी डिगनिटी को बनाए रखने के लिए मैं सदा संतोष की धूप में खड़ा रहता हूं और स्वयं को इच्छाओं की छाया से दूर रखता हूं। ~ ब्रह्माकुमार

घृणा प्रेम से ही कम होती है

  • गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
  • जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • इस संसार में घृणा घृणा से भी कभी कम नहीं, घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। ~ धम्मपद
  • हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। ~ अज्ञात

क्ष

क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है

  • जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूं, क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है। ~ गौतम बुद्ध
  • क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। ~ वेदव्यास
  • क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करे तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना ही वीरों का काम है, परंतु यदि अपमान करने वाला बलवान हो तो उसे अवश्य दंड दो। ~ गुरु गोविंद सिंह

झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है

  • यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है। - राउपाख
  • सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। - हाफिज
  • झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है। - विमल मित्र
  • स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। - अश्वघोष
  • यह संभव नहीं कि कोई व्यक्ति निरंतर मुस्कराता ही रहे और वह दुष्ट भी हो। - शेक्सपियर
  • जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की जरूरत नहीं होती। जरूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है। - विनोबा भावे
  • तू ने स्वर्ग और नर्क नहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है। - अज्ञात

झुककर चलने वाला

  • राग मिलाने वाली वासना है और द्वेष अलग करने वाली। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या
  • हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
  • वृद्ध व्यक्ति जो झुककर चलता है, वह धरती में क्या खोजता चलता है? उसका जो यौवन रूपी रत्न खो गया है, उसे ही खोजता है कि शायद कहीं पर गिरा हुआ हो। ~ जायसी
  • काम करने वाला मरने से कुछ घंटे पूर्व ही वृद्ध होता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • राजधर्म एक नौका के समान है। यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है। ~ वेदव्यास

श्र

श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं

  • विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है पर शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
  • वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। - विवेकानंद
  • शोक करनेवाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेदव्यास
  • श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। - महात्मा गांधी

श्रम से सब कार्य सिद्ध

  • जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते। ~ ऋग्वेद
  • श्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं। ~ हितोपदेश
  • श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है। ~ स्वामी कृष्णानंद
  • श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करनेवाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता। ~ राम प्रताप त्रिपाठी

डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है

  • डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। - प्रेमचंद
  • डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। - विनोबा भावे
  • तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। - चाणक्य

डॉक्टर आशावादी होते हैं

  • डॉक्टर असंख्य गलतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर
  • डॉक्टर ज्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फर्क यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। ~ एंटन चेखव
  • डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं। ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
  • बीमारी से भी कहीं ज्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत
  • डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को जमीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत



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