"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर

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{[[हरिद्वार]] में 2 मील दूर, [[गंगा नदी]] और नीलधारा के संगम पर स्थित [[तीर्थ]] का नाम क्या है?
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-[[अनूपक]]
-[[काम्यकवन]]
-[[बैराट]]
+[[कनखल]]
||[[चित्र:Garwhal-Gangotri-Waterfall.jpg|right|100px|गंगोत्री झरना, गढ़्वाल]][[कनखल]] [[हरिद्वार]] के निकट अति प्राचीन स्थान है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[दक्ष]] प्रजापति ने अपनी राजधानी कनखल में ही वह [[यज्ञ]] किया था, जिसमें अपने पति भगवान [[शिव]] का अपमान सहन न करने के कारण दक्षकन्या [[सती]] जलकर भस्म हो गई थी। कनखल में दक्ष का मंदिर तथा यज्ञ स्थान आज भी बने हैं। [[मेघदूत]] में [[कालिदास]] ने कनखल का उल्लेख मेध की अलका-यात्रा के प्रसंग में किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनखल]]
{[[शकुंतला]] के पोषक [[पिता]] का नाम क्या था?
{[[शकुंतला]] के पोषक [[पिता]] का नाम क्या था?
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-[[गौतम ऋषि|गौतम]]
-[[गौतम ऋषि|गौतम]]
||देवी [[शकुंतला]] के धर्मपिता के रूप में महर्षि [[कण्व ऋषि|कण्व]] की अत्यन्त प्रसिद्धि है। महाकवि [[कालिदास]] ने अपने '[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]' में महर्षि के तपोवन, उनके आश्रम-प्रदेश तथा उनका जो धर्माचारपरायण उज्ज्वल एवं उदात्त चरित प्रस्तुत किया है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। उनके मुख से एक भारतीय कथा के लिये [[विवाह]] के समय जो शिक्षा निकली है, वह उत्तम गृहिणी का आदर्श बन गयी। [[वेद]] में ये बातें तो वर्णित नहीं हैं, पर इनके उत्तम ज्ञान, तपस्या, मन्त्रज्ञान, अध्यात्मशक्ति आदि का आभास प्राप्त होता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कण्व ऋषि|कण्व]]
||देवी [[शकुंतला]] के धर्मपिता के रूप में महर्षि [[कण्व ऋषि|कण्व]] की अत्यन्त प्रसिद्धि है। महाकवि [[कालिदास]] ने अपने '[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]' में महर्षि के तपोवन, उनके आश्रम-प्रदेश तथा उनका जो धर्माचारपरायण उज्ज्वल एवं उदात्त चरित प्रस्तुत किया है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। उनके मुख से एक भारतीय कथा के लिये [[विवाह]] के समय जो शिक्षा निकली है, वह उत्तम गृहिणी का आदर्श बन गयी। [[वेद]] में ये बातें तो वर्णित नहीं हैं, पर इनके उत्तम ज्ञान, तपस्या, मन्त्रज्ञान, अध्यात्मशक्ति आदि का आभास प्राप्त होता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कण्व ऋषि|कण्व]]
{[[द्रोणाचार्य]] की पत्नी का नाम क्या था?
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-[[दमयंती]]
-[[रेणुका]]
+कृपि
-[[देवयानी]]
||[[चित्र:Dronacharya.jpg|right|100px|द्रोणाचार्य वध]][[द्रोणाचार्य]] [[भारद्वाज|भारद्वाज मुनि]] के पुत्र थे। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे। द्रोण अपने [[पिता]] भारद्वाज मुनि के आश्रम में ही रहते हुये चारों [[वेद|वेदों]] तथा [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्रों]] के ज्ञान में पारंगत हो गये थे। द्रोण का जन्म [[उत्तरांचल]] की राजधानी [[देहरादून]] में बताया जाता है, जिसे 'देहराद्रोण' (मिट्टी का सकोरा) भी कहते थे। द्रोणाचार्य का [[विवाह]] [[कृपाचार्य]] की बहिन 'कृपि' के साथ हुआ था, जिससे इन्हें पुत्ररत्न के रूप में [[अश्वत्थामा]] नामक एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोणाचार्य]]
{महर्षि [[भृगु]] की पत्नी का नाम क्या था?
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+पुलोमा
-[[अनुसूया]]
-[[दिति]]
-[[अरुन्धती]]


{निम्नलिखित में से कौन [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] के बड़े पुत्र थे?
{निम्नलिखित में से कौन [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] के बड़े पुत्र थे?
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-[[भूरिश्रवा]]
-[[भूरिश्रवा]]
||देवगुरु [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] पीत वर्ण के हैं। उनके सिर पर स्वर्णमुकुट तथा गले में सुन्दर माला है। वे पीत [[वस्त्र]] धारण करते हैं तथा [[कमल]] के आसन पर विराजमान है। उनके चार हाथों में क्रमश: दण्ड, [[रुद्राक्ष]] की माला, पात्र और वरदमुद्रा सुशोभित है। देवगुरु बृहस्पति की एक पत्नी का नाम शुभा और दूसरी का [[तारा (बृहस्पति की पत्नी)|तारा]] है। शुभा से सात कन्याएँ और तारा से सात पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई। बृहस्पति की तीसरी पत्नी ममता से [[कच देवयानी|कच]] तथा [[भारद्वाज]] नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]]
||देवगुरु [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] पीत वर्ण के हैं। उनके सिर पर स्वर्णमुकुट तथा गले में सुन्दर माला है। वे पीत [[वस्त्र]] धारण करते हैं तथा [[कमल]] के आसन पर विराजमान है। उनके चार हाथों में क्रमश: दण्ड, [[रुद्राक्ष]] की माला, पात्र और वरदमुद्रा सुशोभित है। देवगुरु बृहस्पति की एक पत्नी का नाम शुभा और दूसरी का [[तारा (बृहस्पति की पत्नी)|तारा]] है। शुभा से सात कन्याएँ और तारा से सात पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई। बृहस्पति की तीसरी पत्नी ममता से [[कच देवयानी|कच]] तथा [[भारद्वाज]] नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]]
{[[हरिद्वार]] में 2 मील दूर, [[गंगा नदी]] और नीलधारा के संगम पर स्थित [[तीर्थ]] का नाम क्या है?
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-[[अनूपक]]
-[[काम्यकवन]]
-[[बैराट]]
+[[कनखल]]
||[[चित्र:Garwhal-Gangotri-Waterfall.jpg|right|120px|गंगोत्री झरना, गढ़्वाल]][[कनखल]] [[हरिद्वार]] के निकट अति प्राचीन स्थान है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[दक्ष]] प्रजापति ने अपनी राजधानी कनखल में ही वह [[यज्ञ]] किया था, जिसमें अपने पति भगवान [[शिव]] का अपमान सहन न करने के कारण दक्षकन्या [[सती]] जलकर भस्म हो गई थी। कनखल में दक्ष का मंदिर तथा यज्ञ स्थान आज भी बने हैं। [[मेघदूत]] में [[कालिदास]] ने कनखल का उल्लेख मेध की अलका-यात्रा के प्रसंग में किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनखल]]
{[[द्रोणाचार्य]] की पत्नी का नाम क्या था?
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-[[दमयंती]]
-[[रेणुका]]
+कृपि
-[[देवयानी]]
||[[चित्र:Dronacharya.jpg|right|120px|द्रोणाचार्य वध]][[द्रोणाचार्य]] [[भारद्वाज|भारद्वाज मुनि]] के पुत्र थे। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे। द्रोण अपने [[पिता]] भारद्वाज मुनि के आश्रम में ही रहते हुये चारों [[वेद|वेदों]] तथा [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्रों]] के ज्ञान में पारंगत हो गये थे। द्रोण का जन्म [[उत्तरांचल]] की राजधानी [[देहरादून]] में बताया जाता है, जिसे 'देहराद्रोण' (मिट्टी का सकोरा) भी कहते थे। द्रोणाचार्य का [[विवाह]] [[कृपाचार्य]] की बहिन 'कृपि' के साथ हुआ था, जिससे इन्हें पुत्ररत्न के रूप में [[अश्वत्थामा]] नामक एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोणाचार्य]]


{[[श्रीकृष्ण]] के [[रुक्मणी]] से उत्पन्न पुत्र का नाम क्या था?
{[[श्रीकृष्ण]] के [[रुक्मणी]] से उत्पन्न पुत्र का नाम क्या था?
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-[[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]]
-[[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]]
-[[जन्मेजय]]
-[[जन्मेजय]]
||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|120px|श्रीकृष्ण तथा अर्जुन]][[श्रीकृष्ण]] की कई रानियाँ थीं। इनमें से कई रानियों को तो उनके माता-पिता ने [[विवाह]] में प्रदान किया था और शेष को कृष्ण विजय में प्राप्त कर लाये थे। सतांन-पुराणों से ज्ञात होता है कि कृष्ण के संतानों की संख्या बड़ी थी। [[रुक्मणी]] से दस पुत्र और एक कन्या थी। इनमें सबसे बड़ा [[प्रद्युम्न]] था। [[भागवत]] आदि [[पुराण|पुराणों]] में कृष्ण के गृहस्थ-जीवन तथा उनकी दैनिक चर्या का हाल विस्तार से मिलता है। प्रद्युम्न के पुत्र [[अनिरुद्ध]] का विवाह 'शोणितपुर' के राजा [[बाणासुर]] की पुत्री [[ऊषा]] के साथ हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीकृष्ण]]
||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|श्रीकृष्ण तथा अर्जुन]][[श्रीकृष्ण]] की कई रानियाँ थीं। इनमें से कई रानियों को तो उनके माता-पिता ने [[विवाह]] में प्रदान किया था और शेष को कृष्ण विजय में प्राप्त कर लाये थे। सतांन-पुराणों से ज्ञात होता है कि कृष्ण के संतानों की संख्या बड़ी थी। [[रुक्मणी]] से दस पुत्र और एक कन्या थी। इनमें सबसे बड़ा [[प्रद्युम्न]] था। [[भागवत]] आदि [[पुराण|पुराणों]] में कृष्ण के गृहस्थ-जीवन तथा उनकी दैनिक चर्या का हाल विस्तार से मिलता है। प्रद्युम्न के पुत्र [[अनिरुद्ध]] का विवाह 'शोणितपुर' के राजा [[बाणासुर]] की पुत्री [[ऊषा]] के साथ हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीकृष्ण]]


{निम्नलिखित में से कौन [[श्रीकृष्ण]] के [[नाना]] थे?
{निम्नलिखित में से कौन [[श्रीकृष्ण]] के [[नाना]] थे?
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-[[कंस]]
-[[कंस]]
+[[देवक]]
+[[देवक]]
{महर्षि [[भृगु]] की पत्नी का नाम क्या था?
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+पुलोमा
-[[अनुसूया]]
-[[दिति]]
-[[अरुन्धती]]
{वभ्रुवाहन किसका पुत्र था?
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-[[भीम]]
-[[युधिष्ठिर]]
+[[अर्जुन]]
-[[नकुल]]
||[[अर्जुन]] सबसे अच्छे तीरंदाज थे। वे माता [[कुंती]] के पुत्र थे। गुरु [[द्रोणाचार्य]] के वे सर्वश्रेष्ठ और प्रिय शिष्य थे। अपनी वीरता का उन्होंने अनेक अवसरों पर परिचय दिया था। [[द्रौपदी]] को स्वयंवर में जीतने वाले भी वही थे। अर्जुन की कई रानियाँ थीं, जिनमें द्रौपदी से उन्हें 'श्रुतकर्मा', [[सुभद्रा]] से '[[अभिमन्यु]]' और [[उलूपी]] से '[[इरावत]]' तथा [[चित्रांगदा]] से 'वभ्रुवाहन' नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अर्जुन]]


{[[सरस्वती नदी|सरस्वती]] और [[दृषद्वती नदी|दृषद्वती]] नदियों के बीच का भाग क्या कहलाता था?
{[[सरस्वती नदी|सरस्वती]] और [[दृषद्वती नदी|दृषद्वती]] नदियों के बीच का भाग क्या कहलाता था?
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||[[चित्र:Puran-1.png|right|120px|पुराण]]सम्पूर्ण [[महाभारत]] 18 पर्वों में विभक्त है। कई पर्व बहुत बड़े हैं और कई पर्व बहुत छोटे। अध्यायों में भी श्लोकों की संख्या अनियत है। किन्हीं अध्यायों में 50 से भी कम [[श्लोक]] हैं और किन्हीं-किन्हीं में संख्या 200 से भी अधिक है। लक्षश्लोकात्मक महाभारत की सम्पूर्ति के लिए इन 18 पर्वों के पश्चात 'खिलपर्व' के रूप में '[[हरिवंश पुराण]]' की योजना की गयी है। हरिवंश पुराण में 3 पर्व हैं- 'हरिवंश पर्व', 'विष्णु पर्व' और 'भविष्य पर्व'। इन तीनों पर्वों में कुल मिलाकर 318 अध्याय और 12,000 श्लोक हैं। महाभारत का पूरक तो यह है ही, स्वतन्त्र रूप से भी इसका विशिष्ट महत्त्व है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
||[[चित्र:Puran-1.png|right|120px|पुराण]]सम्पूर्ण [[महाभारत]] 18 पर्वों में विभक्त है। कई पर्व बहुत बड़े हैं और कई पर्व बहुत छोटे। अध्यायों में भी श्लोकों की संख्या अनियत है। किन्हीं अध्यायों में 50 से भी कम [[श्लोक]] हैं और किन्हीं-किन्हीं में संख्या 200 से भी अधिक है। लक्षश्लोकात्मक महाभारत की सम्पूर्ति के लिए इन 18 पर्वों के पश्चात 'खिलपर्व' के रूप में '[[हरिवंश पुराण]]' की योजना की गयी है। हरिवंश पुराण में 3 पर्व हैं- 'हरिवंश पर्व', 'विष्णु पर्व' और 'भविष्य पर्व'। इन तीनों पर्वों में कुल मिलाकर 318 अध्याय और 12,000 श्लोक हैं। महाभारत का पूरक तो यह है ही, स्वतन्त्र रूप से भी इसका विशिष्ट महत्त्व है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]


{[[दुर्योधन]] कितनी अक्षौहिणी सेना का स्वामी था?
{वभ्रुवाहन किसका पुत्र था?
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+11 अक्षौहिणी
-[[भीम]]
-10 अक्षौहिणी
-[[युधिष्ठिर]]
-9 अक्षौहिणी
+[[अर्जुन]]
-7 अक्षौहिणी
-[[नकुल]]
||धर्मराज [[युधिष्ठिर]] 7 अक्षौहिणी सेना के स्वामी होकर [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध करने को तैयार हुए थे। पहले भगवान [[श्रीकृष्ण]] परम क्रोधी [[दुर्योधन]] के पास दूत बनकर गये। उन्होंने 11 अक्षौहिणी सेना के स्वामी दुर्योधन से कहा, "राजन! तुम युधिष्ठिर को आधा राज्य दे दो या उन्हें 5 गाँव देकर ही संतुष्ट हो जाओ; नहीं तो उनके साथ युद्ध करो।' कृष्ण की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा, 'मैं उन्हें सुई की नोंक के बराबर भी भूमि नहीं दूँगा; हाँ, उनसे युद्ध अवश्य करूँगा।' ऐसा कहकर वह भगवान कृष्ण को बंदी बनाने के लिये उद्यत हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]
||[[अर्जुन]] सबसे अच्छे तीरंदाज थे। वे माता [[कुंती]] के पुत्र थे। गुरु [[द्रोणाचार्य]] के वे सर्वश्रेष्ठ और प्रिय शिष्य थे। अपनी वीरता का उन्होंने अनेक अवसरों पर परिचय दिया था। [[द्रौपदी]] को स्वयंवर में जीतने वाले भी वही थे। अर्जुन की कई रानियाँ थीं, जिनमें द्रौपदी से उन्हें 'श्रुतकर्मा', [[सुभद्रा]] से '[[अभिमन्यु]]' और [[उलूपी]] से '[[इरावत]]' तथा [[चित्रांगदा]] से 'वभ्रुवाहन' नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अर्जुन]]


{[[कुरुक्षेत्र]] में किस स्थान पर [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश दिया?
{[[कुरुक्षेत्र]] में किस स्थान पर [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश दिया?
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-[[करुष]]
-[[करुष]]
-[[अपरसेक]]
-[[अपरसेक]]
||[[चित्र:Gita-Krishna-1.jpg|right|120px|अर्जुन को गीता का उपदेश देते श्रीकृष्ण]][[कुरुक्षेत्र]] [[हरियाणा]] राज्य का एक प्रमुख ज़िला है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा [[अम्बाला]], [[यमुनानगर ज़िला|यमुना नगर]], [[करनाल]] और [[कैथल]] से घिरा हुवा है। माना जाता है कि यहीं [[महाभारत]] की लड़ाई हुई थी और भगवान [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश यहीं पर 'ज्योतीसर' नामक स्थान पर दिया था। यह ज़िला 'बासमती चावल' के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता है। इसका [[ऋग्वेद]] और [[यजुर्वेद]] में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुरुक्षेत्र]]
||[[चित्र:Gita-Krishna-1.jpg|right|90px|अर्जुन को गीता का उपदेश देते श्रीकृष्ण]][[कुरुक्षेत्र]] [[हरियाणा]] राज्य का एक प्रमुख ज़िला है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा [[अम्बाला]], [[यमुनानगर ज़िला|यमुना नगर]], [[करनाल]] और [[कैथल]] से घिरा हुवा है। माना जाता है कि यहीं [[महाभारत]] की लड़ाई हुई थी और भगवान [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश यहीं पर 'ज्योतीसर' नामक स्थान पर दिया था। यह ज़िला 'बासमती चावल' के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता है। इसका [[ऋग्वेद]] और [[यजुर्वेद]] में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुरुक्षेत्र]]
 
{[[दुर्योधन]] कितनी अक्षौहिणी सेना का स्वामी था?
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+11 अक्षौहिणी
-10 अक्षौहिणी
-9 अक्षौहिणी
-7 अक्षौहिणी
||धर्मराज [[युधिष्ठिर]] 7 अक्षौहिणी सेना के स्वामी होकर [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध करने को तैयार हुए थे। पहले भगवान [[श्रीकृष्ण]] परम क्रोधी [[दुर्योधन]] के पास दूत बनकर गये। उन्होंने 11 अक्षौहिणी सेना के स्वामी दुर्योधन से कहा, "राजन! तुम युधिष्ठिर को आधा राज्य दे दो या उन्हें 5 गाँव देकर ही संतुष्ट हो जाओ; नहीं तो उनके साथ युद्ध करो।' कृष्ण की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा, 'मैं उन्हें सुई की नोंक के बराबर भी भूमि नहीं दूँगा; हाँ, उनसे युद्ध अवश्य करूँगा।' ऐसा कहकर वह भगवान कृष्ण को बंदी बनाने के लिये उद्यत हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]]


{निम्नलिखित में किस स्थान को '[[ब्रह्मा]] की यज्ञीय वेदी' कहा जाता है?
{निम्नलिखित में किस स्थान को '[[ब्रह्मा]] की यज्ञीय वेदी' कहा जाता है?
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+[[कुरुक्षेत्र]]
+[[कुरुक्षेत्र]]
-[[इन्द्रप्रस्थ]]
-[[इन्द्रप्रस्थ]]
||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|120px|कृष्ण तथा अर्जुन]]ब्राह्मण-काल में अत्यन्त पुनीत नदी [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] [[कुरुक्षेत्र]] से होकर ही बहती थी, जहाँ यह मरुभूमि में अन्तर्हित हो गयी थी उसे 'विनशन' कहा जाता था और वहाँ भी एक [[तीर्थ स्थान]] था। आरम्भिक रूप में कुरुक्षेत्र '[[ब्रह्मा]] की यज्ञिय वेदी' कहा जाता था। आगे चलकर इसे 'समन्तपञ्चक' कहा गया। जबकि [[परशुराम]] ने अपने [[पिता]] की हत्या के प्रतिशोध में [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] के [[रक्त]] से पाँच कुण्ड बना डाले, जो [[पितर|पितरों]] के आशीर्वचनों से कालान्तर में पाँच पवित्र जलाशयों में परिवर्तित हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुरुक्षेत्र]]
||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|130px|कृष्ण तथा अर्जुन]]ब्राह्मण-काल में अत्यन्त पुनीत नदी [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] [[कुरुक्षेत्र]] से होकर ही बहती थी, जहाँ यह मरुभूमि में अन्तर्हित हो गयी थी उसे 'विनशन' कहा जाता था और वहाँ भी एक [[तीर्थ स्थान]] था। आरम्भिक रूप में कुरुक्षेत्र '[[ब्रह्मा]] की यज्ञिय वेदी' कहा जाता था। आगे चलकर इसे 'समन्तपञ्चक' कहा गया। जबकि [[परशुराम]] ने अपने [[पिता]] की हत्या के प्रतिशोध में [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] के [[रक्त]] से पाँच कुण्ड बना डाले, जो [[पितर|पितरों]] के आशीर्वचनों से कालान्तर में पाँच पवित्र जलाशयों में परिवर्तित हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुरुक्षेत्र]]


{[[शिखंडी]] किसके शिष्य थे?
{[[शिखंडी]] किसके शिष्य थे?

11:28, 5 फ़रवरी 2012 का अवतरण

महाभारत सामान्य ज्ञान

1 हरिद्वार में 2 मील दूर, गंगा नदी और नीलधारा के संगम पर स्थित तीर्थ का नाम क्या है?

अनूपक
काम्यकवन
बैराट
कनखल

2 शकुंतला के पोषक पिता का नाम क्या था?

कण्व
भृगु
कर्दम
गौतम

3 द्रोणाचार्य की पत्नी का नाम क्या था?

दमयंती
रेणुका
कृपि
देवयानी

4 महर्षि भृगु की पत्नी का नाम क्या था?

पुलोमा
अनुसूया
दिति
अरुन्धती

5 निम्नलिखित में से कौन बृहस्पति के बड़े पुत्र थे?

अधिरथ
कच
अचल
भूरिश्रवा

6 श्रीकृष्ण के रुक्मणी से उत्पन्न पुत्र का नाम क्या था?

भूरिश्रवा
प्रद्युम्न
उग्रसेन
जन्मेजय

7 निम्नलिखित में से कौन श्रीकृष्ण के नाना थे?

चित्ररथ
शशबिन्दु
कंस
देवक

8 सरस्वती और दृषद्वती नदियों के बीच का भाग क्या कहलाता था?

आर्यावर्त
ब्रह्मावर्त
पंचनद क्षेत्र
अच्युतस्थल

9 निम्नलिखित में से द्रोणाचार्य के पिता कौन थे?

अंगिरा
अगस्त्य
भारद्वाज
कश्यप

10 हरिवंश पुराण में तीन पर्व हैं। इन पर्वों में कुल कितने अध्याय हैं?

321
311
318

11 वभ्रुवाहन किसका पुत्र था?

भीम
युधिष्ठिर
अर्जुन
नकुल

12 कुरुक्षेत्र में किस स्थान पर कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया?

इझुला
ज्योतीसर
करुष
अपरसेक

13 दुर्योधन कितनी अक्षौहिणी सेना का स्वामी था?

11 अक्षौहिणी
10 अक्षौहिणी
9 अक्षौहिणी
7 अक्षौहिणी

14 निम्नलिखित में किस स्थान को 'ब्रह्मा की यज्ञीय वेदी' कहा जाता है?

आदित्य तीर्थ
अश्वतीर्थ
कुरुक्षेत्र
इन्द्रप्रस्थ