"प्रयोग:गोविन्द3": अवतरणों में अंतर
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"मैं अच्छी तरह समझ गया सास्तरी जी ! अब मेरा सनीचर तो जिंदगी भर को परमानेन्ट उतर गया" | "मैं अच्छी तरह समझ गया सास्तरी जी ! अब मेरा सनीचर तो जिंदगी भर को परमानेन्ट उतर गया" | ||
ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म हुआ... | ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म हुआ... | ||
अब ज़रा ये सोचें कि अपनी असफलता को कुण्डली के दोष से जोड़ना कहाँ की अक़्लमंदी है। | अब ज़रा ये सोचें कि अपनी असफलता को कुण्डली के दोष से जोड़ना कहाँ की अक़्लमंदी है। | ||
कहते हैं कि ज़िम्मेदारियाँ सदैव 'ज़िम्मेदार इंसान' को ढूँढ लेती हैं। यदि लोग किसी को एक ज़िम्मेदार इंसान नहीं समझते तो ग़लती लोगों की नहीं बल्कि उसकी ख़ुद की ही है। | कहते हैं कि ज़िम्मेदारियाँ सदैव 'ज़िम्मेदार इंसान' को ढूँढ लेती हैं। यदि लोग किसी को एक ज़िम्मेदार इंसान नहीं समझते तो ग़लती लोगों की नहीं बल्कि उसकी ख़ुद की ही है। | ||
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* [[भारतकोश सम्पादकीय 24 मार्च 2012|गुड़ का सनीचर]] | |||
* [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2012|ज़माना]] | |||
* [[भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012|राज की नीति]] | |||
* [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012|कौऔं का वायरस]] | |||
* [[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|छापाख़ाने का आभार]] | |||
* [[भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012|बात का घाव]] | |||
* [[भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012|चिल्ला जाड़ा]] | |||
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13:06, 29 मार्च 2012 का अवतरण
![]() गुड़ का 'सनीचर' -आदित्य चौधरी
![]() "पंडिज्जी ! पहले पुराना हिसाब साफ़ करो फिर गुड़ की भेली दूँगा। पुराना ही पैसा बहुत बक़ाया है। ऐसे तो मेरी दुकान ही बंद हो जाएगी" |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ |