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[[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|कुछ तो कह जाते]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|कुछ तो कह जाते]]
      अगर इनमें से कुछ भी ऐसा नहीं है जो कि आप कर सकते हों तो आप नेता नहीं बन सकते।"
        कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनियाँ में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। [[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
उन्होंने एक लम्बी सांस ली और फिर बोलने लगे "बोलो क्‍या कहते हो, बनना है नेता ?"
"वो तो ठीक है लेकिन नेता बनने के बाद करना क्या होगा... मेरा मतलब है कि मान लीजिए मंत्री बन गए तो फिर पॉलिसी क्या अपनाएँगे हम ?" [[भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
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15:46, 26 मई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

कुछ तो कह जाते
        कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनियाँ में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। पूरा पढ़ें

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