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[[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]] | [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]] | ||
जैसे नेताओं को हम वोटर और वकीलों को हम क्लाइंट दिखाई देते हैं, वैसे ही विज्ञापन एजेंसियों और विक्रेता को हम ग्राहक और उपभोक्ता दिखाई देते हैं। हरेक दुकानदार मरने से पहले अपनी औलाद को वसीयत के साथ साथ एक नसीहत भी देकर मरता है- | |||
जब | "मेरे बच्चों हमेशा ध्यान रखना कि मौत और ग्राहक का क्या पता कब आ जाये।" | ||
जब हम ग्राहक बनकर किसी दुकान पर जाते हैं तो दुकानदार जो हमसे बहुत अच्छा व्यवहार करता है उसका मतलब आप लगा सकते हैं कि वो हमें अपने बाप की नसीहत के हिसाब से हमें 'क्या' समझ रहा होता है। [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|पूरा पढ़ें]] | |||
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14:53, 25 जून 2012 का अवतरण
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