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[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|मेरे देस की धरती]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|मानसून का शंख]]
           "सब लोग ध्यान से सुनो... अब बारह साल तक बारिश नहीं होगी... भोलेबाबा याने शंकर भगवान को किसी ने बहका दिया है तो वो शंख नहीं बजाएँगे।"
           "मेरे अलावा कोई दूसरी इस कमबख्त नंदी पर बैठ कर घूमने को तैयार भी तो नहीं होगी... बताओ, हद हो गई... भला नंदी भी कोई सवारी हुई... ज़रा किसी दूसरी देवी को बिठा कर तो देखो नंदी पर... लक्ष्मी जी होतीं तो दो दिन में भाग जातीं... वो तो मैं ही हूँ जो तुम्हारे भूत-प्रेतों के साथ निभा रही हूँ।" अब तक साड़ी कमर में खोंसी जा चुकी थी। नंदी की आँखों में उदासी छा गई थी, दोनों कान लटक गए और गर्दन झुक गई... [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
गाँव की चौपाल पर, छोटे पहलवान ने ये घोषणा सुनी और अपने घर से हल-बैल लेकर सीधे जा पहुँचा खेत में, और हल चलाने लगा। उधर पार्वती जी को चैन नहीं पड़ रहा था कि देखें तो सही कि पृथ्वी पर हो क्या रहा है ? इसलिए शंकर-पार्वती धरती पर विचरण करने लगे। संयोग से छोटे पहलवान के गाँव पहुँच गए तो देखा कि छोटे तो हल चला रहा है। [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
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15:00, 8 जुलाई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

मानसून का शंख
          "मेरे अलावा कोई दूसरी इस कमबख्त नंदी पर बैठ कर घूमने को तैयार भी तो नहीं होगी... बताओ, हद हो गई... भला नंदी भी कोई सवारी हुई... ज़रा किसी दूसरी देवी को बिठा कर तो देखो नंदी पर... लक्ष्मी जी होतीं तो दो दिन में भाग जातीं... वो तो मैं ही हूँ जो तुम्हारे भूत-प्रेतों के साथ निभा रही हूँ।" अब तक साड़ी कमर में खोंसी जा चुकी थी। नंदी की आँखों में उदासी छा गई थी, दोनों कान लटक गए और गर्दन झुक गई... पूरा पढ़ें

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