"दारा सिंह": अवतरणों में अंतर
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==शुरूआती जीवन== | ==शुरूआती जीवन== | ||
दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जानते हैं। अखाड़े से फिल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था। | दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जानते हैं। अखाड़े से फिल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क/धर्मूचाक) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था। | ||
दारा सिंह ने अपनी जीवन के शुरूआती दौर में ही काफी मुश्किलें देखी हैं। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की। | दारा सिंह ने अपनी जीवन के शुरूआती दौर में ही काफी मुश्किलें देखी हैं। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की। | ||
आज दारा सिंह के भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। उन्हें टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमानजी के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली जिसके परिणाम स्वरूप 2003 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान की। दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सासद रह चुके हैं। 1978 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया। | |||
==कुश्ती में करियर== | ==कुश्ती में करियर== | ||
दारा सिंह अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान हैं। साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। कद | दारा सिंह अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान हैं। साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। बचपन अपने फार्म पर काम करते-करते गुजर गया, जिसके बाद ऊंचे कद मजबूत काठी को देखते हुए उन्हें कुश्ती लड़ने की प्रेरणा मिलती रही। दारा सिंह ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए। | ||
दारा सिंह ने अखाड़े में पहलवानी सीखी। उस दौर में दारा सिंह को राजा महाराजाओं की ओर कुश्ती लड़ने का न्यौता मिला करता था। हाटों और मेलों में भी कुश्ती की और कई पहलवानों को पटखनी दी। | |||
आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। करीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी। | आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। करीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी। | ||
दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। अपने दौर में दुनिया के सभी पहलवानों को उनके घर में ही धूल चटाने वाले रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह ने 1983 में उन्होंने अपराजेय पहलवान के रूप में कुश्ती से संन्यास ले लिया। दारा सिंह ने करीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और 500 से | दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। अपने दौर में दुनिया के सभी पहलवानों को उनके घर में ही धूल चटाने वाले रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह ने 1983 में उन्होंने अपराजेय पहलवान के रूप में कुश्ती से संन्यास ले लिया। दारा सिंह ने करीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और अब तक लड़ी कुल 500 कुश्तियों में से दारा सिंह एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज है। | ||
कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर। | कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर। | ||
==फिल्मी करियर== | ==फिल्मी करियर== | ||
दारा सिंह अपनी मजबूत कद काठी की वजह से फिल्मों में आए। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया और कई फिल्मों में अभिनेता बने। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। | दारा सिंह अपनी मजबूत कद काठी की वजह से फिल्मों में आए। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया और कई फिल्मों में अभिनेता बने। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। दारा सिंह ने कई हिंदी फिल्मों का निर्माण किया और उसमें खुद हीरो रहे। | ||
कुश्ती की दुनिया में देश विदेश में अपनी कामयाबी का लोहा मनवाने वाले दारा सिंह ने 1962 में हिंदी फिल्मों से अभिनय की दुनिया में कदम रखा। बॉलीवुड में दारा सिंह की पहली फिल्म ‘संगदिल’ थी। लेकिन उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। साल 1966 में दारा की पहली फिल्म नौजवान आई। | दारा सिंह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में कई फिल्मों में नायक के तौर पर नज़र आ चुके हैं। कुश्ती की दुनिया में देश विदेश में अपनी कामयाबी का लोहा मनवाने वाले दारा सिंह ने 1962 में हिंदी फिल्मों से अभिनय की दुनिया में कदम रखा। बॉलीवुड में दारा सिंह की पहली फिल्म ‘संगदिल’ थी। लेकिन उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। साल 1966 में दारा की पहली फिल्म नौजवान आई। | ||
वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी और इस तरह से अन्य कई फिल्में। अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें सबसे ज्यादा 16 फिल्में अभिनेत्री मुमताज के साथ की। लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा शोहरत मिली वर्ष 1986 में रामानंद सागर के टेलीविजन के चर्चित धारावाहिक 'रामायण' से। इस सीरियल में उन्होंने हनुमान का किरदार निभाया। इसकी वजह से दारा सिंह को देखते हीं लोगों के जेहन में आज भी जो पहला अक्स उभरता है वो बजरंग बली का ही होता है। | वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी और इस तरह से अन्य कई फिल्में। अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें सबसे ज्यादा 16 फिल्में अभिनेत्री मुमताज के साथ की। लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा शोहरत मिली वर्ष 1986 में रामानंद सागर के टेलीविजन के चर्चित धारावाहिक 'रामायण' से। इस सीरियल में उन्होंने हनुमान का किरदार निभाया। इसकी वजह से दारा सिंह को देखते हीं लोगों के जेहन में आज भी जो पहला अक्स उभरता है वो बजरंग बली का ही होता है। | ||
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हालांकि अखाड़े और स्क्रीन में अपना जलवा दिखा चुके दारा सिंह की दिलचस्पी पर्दे से कम नहीं हुई। दारा सिंह बड़े पर्दे पर आखिरी बार 2007 में इम्तियाज अली की फिल्म ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का किरदार निभाया। कई धार्मिक फिल्मों में दारा सिंह ने भीम का किरदार निभाया है। अखाड़े को पहले ही अलविदा कह चुके दारा सिंह ने इसके बाद किसी फिल्म में काम नहीं किया। जिसकी वजह शायद उनकी बढ़ती उम्र और खराब सेहत ही थी। | हालांकि अखाड़े और स्क्रीन में अपना जलवा दिखा चुके दारा सिंह की दिलचस्पी पर्दे से कम नहीं हुई। दारा सिंह बड़े पर्दे पर आखिरी बार 2007 में इम्तियाज अली की फिल्म ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का किरदार निभाया। कई धार्मिक फिल्मों में दारा सिंह ने भीम का किरदार निभाया है। अखाड़े को पहले ही अलविदा कह चुके दारा सिंह ने इसके बाद किसी फिल्म में काम नहीं किया। जिसकी वजह शायद उनकी बढ़ती उम्र और खराब सेहत ही थी। | ||
एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया। | |||
12:02, 11 जुलाई 2012 का अवतरण
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दारा सिंह
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पूरा नाम | दारा सिंह रंधावा |
प्रसिद्ध नाम | दारा सिंह |
जन्म | 19 नवंबर 1928 |
जन्म भूमि | पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क) गांव |
कर्म-क्षेत्र | पहलवान, अभिनेता |
नागरिकता | भारतीय |
शुरूआती जीवन
दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जानते हैं। अखाड़े से फिल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क/धर्मूचाक) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था।
दारा सिंह ने अपनी जीवन के शुरूआती दौर में ही काफी मुश्किलें देखी हैं। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की।
आज दारा सिंह के भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। उन्हें टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमानजी के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली जिसके परिणाम स्वरूप 2003 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान की। दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सासद रह चुके हैं। 1978 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया।
कुश्ती में करियर
दारा सिंह अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान हैं। साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। बचपन अपने फार्म पर काम करते-करते गुजर गया, जिसके बाद ऊंचे कद मजबूत काठी को देखते हुए उन्हें कुश्ती लड़ने की प्रेरणा मिलती रही। दारा सिंह ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए।
दारा सिंह ने अखाड़े में पहलवानी सीखी। उस दौर में दारा सिंह को राजा महाराजाओं की ओर कुश्ती लड़ने का न्यौता मिला करता था। हाटों और मेलों में भी कुश्ती की और कई पहलवानों को पटखनी दी।
आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। करीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी।
दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। अपने दौर में दुनिया के सभी पहलवानों को उनके घर में ही धूल चटाने वाले रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह ने 1983 में उन्होंने अपराजेय पहलवान के रूप में कुश्ती से संन्यास ले लिया। दारा सिंह ने करीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और अब तक लड़ी कुल 500 कुश्तियों में से दारा सिंह एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज है।
कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर।
फिल्मी करियर
दारा सिंह अपनी मजबूत कद काठी की वजह से फिल्मों में आए। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिंदी की स्टंट फिल्मों में प्रवेश किया और कई फिल्मों में अभिनेता बने। यही नहीं कई फिल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। दारा सिंह ने कई हिंदी फिल्मों का निर्माण किया और उसमें खुद हीरो रहे।
दारा सिंह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर में कई फिल्मों में नायक के तौर पर नज़र आ चुके हैं। कुश्ती की दुनिया में देश विदेश में अपनी कामयाबी का लोहा मनवाने वाले दारा सिंह ने 1962 में हिंदी फिल्मों से अभिनय की दुनिया में कदम रखा। बॉलीवुड में दारा सिंह की पहली फिल्म ‘संगदिल’ थी। लेकिन उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। उन्होंने कई फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। साल 1966 में दारा की पहली फिल्म नौजवान आई।
वर्ष 2002 में शरारत, 2001 में फर्ज, 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे, कल हो ना हो, 1999 में ज़ुल्मी, 1999 में दिल्लगी और इस तरह से अन्य कई फिल्में। अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें सबसे ज्यादा 16 फिल्में अभिनेत्री मुमताज के साथ की। लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा शोहरत मिली वर्ष 1986 में रामानंद सागर के टेलीविजन के चर्चित धारावाहिक 'रामायण' से। इस सीरियल में उन्होंने हनुमान का किरदार निभाया। इसकी वजह से दारा सिंह को देखते हीं लोगों के जेहन में आज भी जो पहला अक्स उभरता है वो बजरंग बली का ही होता है।
हालांकि अखाड़े और स्क्रीन में अपना जलवा दिखा चुके दारा सिंह की दिलचस्पी पर्दे से कम नहीं हुई। दारा सिंह बड़े पर्दे पर आखिरी बार 2007 में इम्तियाज अली की फिल्म ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का किरदार निभाया। कई धार्मिक फिल्मों में दारा सिंह ने भीम का किरदार निभाया है। अखाड़े को पहले ही अलविदा कह चुके दारा सिंह ने इसके बाद किसी फिल्म में काम नहीं किया। जिसकी वजह शायद उनकी बढ़ती उम्र और खराब सेहत ही थी।
एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ