"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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{सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना किसने की थी? | {सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना किसने की थी? | ||
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-[[लॉर्ड वेलेज़ली]] | -[[लॉर्ड वेलेज़ली]] | ||
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||[[चित्र:Lord-Dalhousie.jpg|right|100px|लॉर्ड डलहौज़ी]]'लॉर्ड डलहौज़ी', जिसे "अर्ल ऑफ़ डलहौज़ी" भी कहा जाता है, वर्ष 1848 ई. में [[गवर्नर-जनरल]] बनकर [[भारत]] आया था। उसका शासन काल [[आधुनिक भारत का इतिहास|आधुनिक भारत के इतिहास]] में एक स्मरणीय काल रहा, क्योंकि [[लॉर्ड डलहौज़ी]] ने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त के आधार पर [[ब्रिटिश साम्राज्य]] का विस्तार करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को सम्पन्न किया। पहली बार डलहौज़ी ने ही [[भारत]] में [[डाक टिकट|डाक टिकटों]] का प्रचलन प्रारम्भ किया। उसने पृथक रूप से भारत में पहली बार '''सार्वजनिक निर्माण विभाग''' की स्थापना की। गंगा नहर का निर्माण कर [[8 अप्रैल]], 1854 ई. में उसे सिंचाई आदि के लिए खुलवा दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लॉर्ड डलहौज़ी]] | ||[[चित्र:Lord-Dalhousie.jpg|right|100px|लॉर्ड डलहौज़ी]]'लॉर्ड डलहौज़ी', जिसे "अर्ल ऑफ़ डलहौज़ी" भी कहा जाता है, वर्ष 1848 ई. में [[गवर्नर-जनरल]] बनकर [[भारत]] आया था। उसका शासन काल [[आधुनिक भारत का इतिहास|आधुनिक भारत के इतिहास]] में एक स्मरणीय काल रहा, क्योंकि [[लॉर्ड डलहौज़ी]] ने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त के आधार पर [[ब्रिटिश साम्राज्य]] का विस्तार करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को सम्पन्न किया। पहली बार डलहौज़ी ने ही [[भारत]] में [[डाक टिकट|डाक टिकटों]] का प्रचलन प्रारम्भ किया। उसने पृथक रूप से भारत में पहली बार '''सार्वजनिक निर्माण विभाग''' की स्थापना की। गंगा नहर का निर्माण कर [[8 अप्रैल]], 1854 ई. में उसे सिंचाई आदि के लिए खुलवा दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लॉर्ड डलहौज़ी]] | ||
{1774 ई. में सर्वोच्च न्यायालय कहाँ गठित हुआ था? | {1774 ई. में सर्वोच्च न्यायालय कहाँ गठित हुआ था? | ||
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-[[मद्रास]] | -[[मद्रास]] | ||
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||[[चित्र:Chhatrapati-Shivaji-Terminus.jpg|right|100px|छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई ]][[महाराष्ट्र]] प्रायद्वीपीय [[भारत]] के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। यह राज्य [[गुजरात]], [[मध्य प्रदेश]], [[आंध्र प्रदेश]], [[कर्नाटक]] और [[गोवा]] राज्यों से घिरा हुआ है। महाराष्ट्र और गुजरात का स्थापना दिवस '[[1 मई]]' को मनाया जाता है। कभी ये दोनों राज्य [[मुंबई]] का हिस्सा थे। जब मुंबई राज्य से [[महाराष्ट्र]] और [[गुजरात]] के गठन का प्रस्ताव आया तो तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने मुंबई को अलग केन्द्रशासित प्रदेश बनाने की वकालत की। उनका तर्क था कि अगर मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी बने रहना है तो यह करना आवश्यक है। किंतु पंडित नेहरू की नहीं चली। देश की आज़ादी के बाद मध्य भारत के सभी [[मराठी भाषा]] के स्थानों का समीकरण करके एक राज्य बनाने को लेकर बड़ा आंदोलन चला और [[1 मई]], [[1960]] को [[कोंकण]], मराठवाडा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र ([[खानदेश]]) तथा [[विदर्भ]], सभी संभागों को जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]] | ||[[चित्र:Chhatrapati-Shivaji-Terminus.jpg|right|100px|छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई ]][[महाराष्ट्र]] प्रायद्वीपीय [[भारत]] के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। यह राज्य [[गुजरात]], [[मध्य प्रदेश]], [[आंध्र प्रदेश]], [[कर्नाटक]] और [[गोवा]] राज्यों से घिरा हुआ है। महाराष्ट्र और गुजरात का स्थापना दिवस '[[1 मई]]' को मनाया जाता है। कभी ये दोनों राज्य [[मुंबई]] का हिस्सा थे। जब मुंबई राज्य से [[महाराष्ट्र]] और [[गुजरात]] के गठन का प्रस्ताव आया तो तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने मुंबई को अलग केन्द्रशासित प्रदेश बनाने की वकालत की। उनका तर्क था कि अगर मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी बने रहना है तो यह करना आवश्यक है। किंतु पंडित नेहरू की नहीं चली। देश की आज़ादी के बाद मध्य भारत के सभी [[मराठी भाषा]] के स्थानों का समीकरण करके एक राज्य बनाने को लेकर बड़ा आंदोलन चला और [[1 मई]], [[1960]] को [[कोंकण]], मराठवाडा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र ([[खानदेश]]) तथा [[विदर्भ]], सभी संभागों को जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]] | ||
{[[भारत]] में 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता' किसे कहा जाता है? | {[[भारत]] में 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता' किसे कहा जाता है? | ||
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-[[लॉर्ड कर्ज़न]] | -[[लॉर्ड कर्ज़न]] | ||
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||'सर चार्ल्स मेटकॉफ़' 1835 से 1836 ई. [[भारत]] का [[गवर्नर-जनरल]] रहा था। एक [[वर्ष]] तक भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर कार्य करने वाले [[चार्ल्स मेटकॉफ़]] को प्रेस पर से नियंत्रण हटाने के लिए याद किया जाता है। उसके इस सराहनीय कार्य के लिए उसे "समाचार पत्रों का मुक्तिदाता" के रूप में संबोधित किया गया है। [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] के इस होनहार व्यक्ति ने अपने अच्छे कार्यों से [[भारतीय इतिहास]] में एक अमिट छाप छोड़ी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चार्ल्स मेटकॉफ़]] | ||'सर चार्ल्स मेटकॉफ़' 1835 से 1836 ई. [[भारत]] का [[गवर्नर-जनरल]] रहा था। एक [[वर्ष]] तक भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर कार्य करने वाले [[चार्ल्स मेटकॉफ़]] को प्रेस पर से नियंत्रण हटाने के लिए याद किया जाता है। उसके इस सराहनीय कार्य के लिए उसे "समाचार पत्रों का मुक्तिदाता" के रूप में संबोधित किया गया है। [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] के इस होनहार व्यक्ति ने अपने अच्छे कार्यों से [[भारतीय इतिहास]] में एक अमिट छाप छोड़ी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चार्ल्स मेटकॉफ़]] | ||
{'[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]' की स्थापना [[अक्टूबर]], [[1920]] में [[मानवेन्द्र नाथ राय]] ने कहाँ पर की थी? | {'[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]' की स्थापना [[अक्टूबर]], [[1920]] में [[मानवेन्द्र नाथ राय]] ने कहाँ पर की थी? | ||
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-[[अफ़ग़ानिस्तान]] | -[[अफ़ग़ानिस्तान]] | ||
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||[[चित्र:CPI-banner.svg|right|100px|चुनाव चिह्न, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]'[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]' (सी.पी.आई.) एक 'भारतीय साम्यवादी दल' है, जिसकी स्थापना [[26 दिसम्बर]], [[1925]] ई. को [[कानपुर]], [[उत्तर प्रदेश]] में की गई थी। वर्ष [[1920]] ईं. में [[मानवेन्द्र नाथ राय]] एवं उनके कुछ अन्य सहयोगियों ने एक 'साम्यवादी दल' बनाने की घोषणा की थी। एस. पी. घाटे इस दल के महामंत्री नियुक्त किये गए थे। मानवेन्द्र नाथ राय की सलाह से कम्युनिस्ट पार्टी को 'कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल' की शाखा मान लिया गया और वर्ष [[1928]] ई. में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल ने ही [[भारत]] में '[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी|कम्युनिस्ट पार्टी]]' की कार्य प्रणाली निश्चित की। इस दल का प्रभाव [[केरल]], [[पश्चिम बंगाल]], [[त्रिपुरा]] में मुख्य रूप से है। दल में समय-समय पर कई विभाजन भी हुए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]], [[मानवेन्द्र नाथ राय]], [[ताशकन्द]] | ||[[चित्र:CPI-banner.svg|right|100px|चुनाव चिह्न, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]'[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]' (सी.पी.आई.) एक 'भारतीय साम्यवादी दल' है, जिसकी स्थापना [[26 दिसम्बर]], [[1925]] ई. को [[कानपुर]], [[उत्तर प्रदेश]] में की गई थी। वर्ष [[1920]] ईं. में [[मानवेन्द्र नाथ राय]] एवं उनके कुछ अन्य सहयोगियों ने एक 'साम्यवादी दल' बनाने की घोषणा की थी। एस. पी. घाटे इस दल के महामंत्री नियुक्त किये गए थे। मानवेन्द्र नाथ राय की सलाह से कम्युनिस्ट पार्टी को 'कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल' की शाखा मान लिया गया और वर्ष [[1928]] ई. में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल ने ही [[भारत]] में '[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी|कम्युनिस्ट पार्टी]]' की कार्य प्रणाली निश्चित की। इस दल का प्रभाव [[केरल]], [[पश्चिम बंगाल]], [[त्रिपुरा]] में मुख्य रूप से है। दल में समय-समय पर कई विभाजन भी हुए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]], [[मानवेन्द्र नाथ राय]], [[ताशकन्द]] | ||
{'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? | {'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? | ||
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-[[बाल गंगाधर तिलक]] | -[[बाल गंगाधर तिलक]] | ||
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||[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|लाला लाजपत राय]]'लाला लाजपत राय' को [[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले [[लाला लाजपत राय]] 'पंजाब केसरी' भी कहे जाते हैं। जब वी. पी. वाडिया ने भारत में 'मद्रास श्रमिक संघ' की स्थापना की, तब लालाजी के प्रयासों से ही [[1926]] ई. में 'श्रमिक संघ अधिनियम' पारित किया गया। [[1920]] ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (ए.आई.टी.यू.सी.) में तत्कालीन, लगभग 64 श्रमिक संघ शामिल हो गये। [[एन. एम. जोशी]], [[लाला लाजपत राय]] एवं जोसेफ़ बैपटिस्टा के प्रयत्नों से [[1920]] ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' पर वामपंथियों का प्रभाव बढ़ने लगा। 'एटक' (ए.आई.टी.यू.सी) के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। यह सम्मेलन 1920 ई. में [[बम्बई]] में हुआ था। इसके उपाध्यक्ष जोसेफ़ बैप्टिस्टा तथा महामंत्री दीवान चमनलाल थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लाला लाजपत राय]] | ||[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|लाला लाजपत राय]]'लाला लाजपत राय' को [[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले [[लाला लाजपत राय]] 'पंजाब केसरी' भी कहे जाते हैं। जब वी. पी. वाडिया ने भारत में 'मद्रास श्रमिक संघ' की स्थापना की, तब लालाजी के प्रयासों से ही [[1926]] ई. में 'श्रमिक संघ अधिनियम' पारित किया गया। [[1920]] ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (ए.आई.टी.यू.सी.) में तत्कालीन, लगभग 64 श्रमिक संघ शामिल हो गये। [[एन. एम. जोशी]], [[लाला लाजपत राय]] एवं जोसेफ़ बैपटिस्टा के प्रयत्नों से [[1920]] ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' पर वामपंथियों का प्रभाव बढ़ने लगा। 'एटक' (ए.आई.टी.यू.सी) के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। यह सम्मेलन 1920 ई. में [[बम्बई]] में हुआ था। इसके उपाध्यक्ष जोसेफ़ बैप्टिस्टा तथा महामंत्री दीवान चमनलाल थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लाला लाजपत राय]] | ||
{'स्ट्रेची आयोग' निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित था? | {'स्ट्रेची आयोग' निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित था? | ||
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-[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]] से | -[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]] से | ||
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||[[चित्र:Dry-Field.jpg|right|100px|अकाल]]'अकाल' से अभिप्राय है- 'ऐसा समय, जिसमें अनाज आदि खाने की वस्तुओं की बहुत अधिक कमी हो जाये और वे बड़ी कठिनाई से प्राप्त हों।' [[अकाल]] का सबसे बड़ा कारण होता है- [[वर्षा]] का न होना, जिस कारण अन्न आदि खाद्य वस्तुओं की पैदावार नहीं हो पाती और सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है। '[[अकाल]]' [[भारत]] के आर्थिक जीवन की एक दु:खद विशेषता है। [[मेगस्थनीज़]] ने लिखा है कि- "[[भारत]] में अकाल नहीं पड़ता", लेकिन यह कथन बाद के [[इतिहास]] में सही नहीं सिद्ध होता। सच तो यह है कि भारत जैसे देश में मुख्यत: खेती ही जीवन-यापन का साधन है और वह मुख्यत: अनिश्चित [[मानसून]] की वर्षा पर निर्भर रहती है। अत: यहाँ अकाल प्राय: पड़ता रहता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकाल]], [[अकाल आयोग]], | ||[[चित्र:Dry-Field.jpg|right|100px|अकाल]]'अकाल' से अभिप्राय है- 'ऐसा समय, जिसमें अनाज आदि खाने की वस्तुओं की बहुत अधिक कमी हो जाये और वे बड़ी कठिनाई से प्राप्त हों।' [[अकाल]] का सबसे बड़ा कारण होता है- [[वर्षा]] का न होना, जिस कारण अन्न आदि खाद्य वस्तुओं की पैदावार नहीं हो पाती और सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है। '[[अकाल]]' [[भारत]] के आर्थिक जीवन की एक दु:खद विशेषता है। [[मेगस्थनीज़]] ने लिखा है कि- "[[भारत]] में अकाल नहीं पड़ता", लेकिन यह कथन बाद के [[इतिहास]] में सही नहीं सिद्ध होता। सच तो यह है कि भारत जैसे देश में मुख्यत: खेती ही जीवन-यापन का साधन है और वह मुख्यत: अनिश्चित [[मानसून]] की वर्षा पर निर्भर रहती है। अत: यहाँ अकाल प्राय: पड़ता रहता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकाल]], [[अकाल आयोग]], | ||
{निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना की थी? | {निम्नलिखित में से किसने 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना की थी? | ||
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-[[गोपाल कृष्ण गोखले]] | -[[गोपाल कृष्ण गोखले]] | ||
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||[[चित्र:M-g-ranade.jpg|right|100px|महादेव गोविन्द रानाडे]]'महादेव गोविन्द रानाडे' [[भारत]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान और न्यायविद थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। [[प्रार्थना समाज]], [[आर्य समाज]] और [[ब्रह्म समाज]] का [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के जीवन पर बहुत प्रभाव था। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने [[महाराष्ट्र]] में अंधविश्वास और हानिकारक रूढ़ियों का जमकर विरोध किया था। [[धर्म]] में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे '[[बाल विवाह]]' के कट्टर विरोधी और 'विधवा विवाह' के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी। महादेव गोविन्द रानाडे 'दकन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महादेव गोविन्द रानाडे]] | ||[[चित्र:M-g-ranade.jpg|right|100px|महादेव गोविन्द रानाडे]]'महादेव गोविन्द रानाडे' [[भारत]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान और न्यायविद थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। [[प्रार्थना समाज]], [[आर्य समाज]] और [[ब्रह्म समाज]] का [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के जीवन पर बहुत प्रभाव था। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने [[महाराष्ट्र]] में अंधविश्वास और हानिकारक रूढ़ियों का जमकर विरोध किया था। [[धर्म]] में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे '[[बाल विवाह]]' के कट्टर विरोधी और 'विधवा विवाह' के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी। महादेव गोविन्द रानाडे 'दकन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महादेव गोविन्द रानाडे]] | ||
{किस स्थान पर '[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]]' लागू नहीं हुआ था? | {किस स्थान पर '[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]]' लागू नहीं हुआ था? | ||
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-[[कोलकाता]] | -[[कोलकाता]] | ||
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||[[चित्र:University-of-Madras.jpg|right|100px|मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई]]'चेन्नई' (भूतपूर्व [[मद्रास]]), [[तमिलनाडु|तमिलनाडु राज्य]] की राजधानी, [[दक्षिण भारत]], '[[बंगाल की खाड़ी]]' के कोरोमण्डल तट पर स्थित है। तमिलनाडु की राजधानी [[चेन्नई]] [[भारत]] के चार महानगरों में से एक है। [[समुद्र]] किनारे बसे इस शहर में बंदरगाह भी हैं। पहले इस शहर को 'मद्रास' के नाम से जाना जाता था। [[मद्रास]] मछुआरे के गाँव मद्रासपटनम का छोटा रूप था, जहाँ ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने 1639-1640 में एक क़िले और व्यापारिक चौकी का निर्माण किया था। उस समय सूती कपड़े की बुनाई एक स्थानीय उद्योग था और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने बुनकरों तथा स्थानीय व्यापारियों को क़िले के आस-पास बसने के लिए बुलाया था। 1652 तक फ़ोर्ट सेंट जार्ज फ़ैक्ट्री को प्रेज़िडेंसी की प्रतिष्ठा मिल गई और 1668 और 1749 के बीच कम्पनी ने अपने नियंत्रण का विस्तार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चेन्नई]], [[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]] | ||[[चित्र:University-of-Madras.jpg|right|100px|मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई]]'चेन्नई' (भूतपूर्व [[मद्रास]]), [[तमिलनाडु|तमिलनाडु राज्य]] की राजधानी, [[दक्षिण भारत]], '[[बंगाल की खाड़ी]]' के कोरोमण्डल तट पर स्थित है। तमिलनाडु की राजधानी [[चेन्नई]] [[भारत]] के चार महानगरों में से एक है। [[समुद्र]] किनारे बसे इस शहर में बंदरगाह भी हैं। पहले इस शहर को 'मद्रास' के नाम से जाना जाता था। [[मद्रास]] मछुआरे के गाँव मद्रासपटनम का छोटा रूप था, जहाँ ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने 1639-1640 में एक क़िले और व्यापारिक चौकी का निर्माण किया था। उस समय सूती कपड़े की बुनाई एक स्थानीय उद्योग था और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने बुनकरों तथा स्थानीय व्यापारियों को क़िले के आस-पास बसने के लिए बुलाया था। 1652 तक फ़ोर्ट सेंट जार्ज फ़ैक्ट्री को प्रेज़िडेंसी की प्रतिष्ठा मिल गई और 1668 और 1749 के बीच कम्पनी ने अपने नियंत्रण का विस्तार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चेन्नई]], [[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]] | ||
{[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास|समाचार पत्रों के इतिहास]] में निम्न में से कौन-सा [[अख़बार]] ब्रिटिश सरकार का समर्थक और भारतीयों का आलोचक था? | {[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास|समाचार पत्रों के इतिहास]] में निम्न में से कौन-सा [[अख़बार]] ब्रिटिश सरकार का समर्थक और भारतीयों का आलोचक था? | ||
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||[[चित्र:Pile-Of-News-Papers.jpg|right|100px|समाचार पत्रों का ढेर]][[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास]] यूरोपीय लोगों के [[भारत]] में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] को दिया जाता है। 1557 ई. में [[गोवा]] के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में [[अंग्रेज़]] [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने [[भारत]] की पहली पुस्तक की छपाई की। ब्रिटिश शासन में [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधायें उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्र पर प्रतिबन्ध लगा था। सभी [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' ब्रिटिश सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास]], [[पायनियर]] | ||[[चित्र:Pile-Of-News-Papers.jpg|right|100px|समाचार पत्रों का ढेर]][[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास]] यूरोपीय लोगों के [[भारत]] में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] को दिया जाता है। 1557 ई. में [[गोवा]] के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में [[अंग्रेज़]] [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने [[भारत]] की पहली पुस्तक की छपाई की। ब्रिटिश शासन में [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधायें उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्र पर प्रतिबन्ध लगा था। सभी [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' ब्रिटिश सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास]], [[पायनियर]] | ||
{वह [[कांग्रेस]] प्रेसिडेंट कौन था, जिसने [[1942]] में क्रिप्स के साथ शिमला कांफ़्रेंस में [[लॉर्ड वेवेल]] के साथ वार्ता की? | {वह [[कांग्रेस]] प्रेसिडेंट कौन था, जिसने [[1942]] में क्रिप्स के साथ शिमला कांफ़्रेंस में [[लॉर्ड वेवेल]] के साथ वार्ता की? | ||
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-[[जवाहरलाल नेहरू]] | -[[जवाहरलाल नेहरू]] | ||
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||[[चित्र:Abul-Kalam-Azad.gif|right|100px|अबुल कलाम आज़ाद]]'मौलाना अबुल कलाम मुहीउद्दीन अहमद' [[मुस्लिम]] विद्वान थे। उन्होंने '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। [[अबुल कलाम आज़ाद]] ने [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। स्वतंत्र [[भारत]] में वह भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें 'मौलाना आज़ाद' के नाम से भी जाना जाता है। जब [[जवाहरलाल नेहरू]] और अबुल कलाम को ऐतिहासिक 'शिमला कॉन्फ्रेंस में भाग लेने जाना पड़ा, तब मौलाना बहुत बीमार थे। उनके डॉक्टर ने प्रार्थना की कि कॉन्फ्रेंस दो हफ्ते तक स्थगित कर दी जाये। लेकिन [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]] इसके लिए राजी नहीं हुए। उनकी हालत देखकर [[लॉर्ड वेवेल|वाइसराय लॉर्ड वेवेल]] ने इन्हें वाइसरीगल इस्टेट में ही एक मकान में ठहराया और उनकी देखभाल के लिए अपने निजी स्टाफ के कुछ लोगों को तैनात किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल कलाम आज़ाद]] | ||[[चित्र:Abul-Kalam-Azad.gif|right|100px|अबुल कलाम आज़ाद]]'मौलाना अबुल कलाम मुहीउद्दीन अहमद' [[मुस्लिम]] विद्वान थे। उन्होंने '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। [[अबुल कलाम आज़ाद]] ने [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। स्वतंत्र [[भारत]] में वह भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें 'मौलाना आज़ाद' के नाम से भी जाना जाता है। जब [[जवाहरलाल नेहरू]] और अबुल कलाम को ऐतिहासिक 'शिमला कॉन्फ्रेंस में भाग लेने जाना पड़ा, तब मौलाना बहुत बीमार थे। उनके डॉक्टर ने प्रार्थना की कि कॉन्फ्रेंस दो हफ्ते तक स्थगित कर दी जाये। लेकिन [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]] इसके लिए राजी नहीं हुए। उनकी हालत देखकर [[लॉर्ड वेवेल|वाइसराय लॉर्ड वेवेल]] ने इन्हें वाइसरीगल इस्टेट में ही एक मकान में ठहराया और उनकी देखभाल के लिए अपने निजी स्टाफ के कुछ लोगों को तैनात किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल कलाम आज़ाद]] | ||
{[[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने [[भारत]] का प्रथम प्रिटिंग प्रेस कहाँ पर स्थापित किया? | {[[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने [[भारत]] का प्रथम प्रिटिंग प्रेस कहाँ पर स्थापित किया? | ||
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||[[चित्र:Dona-Paula-Beach-Goa.jpg|right|100px|डोना पॉला तट, गोवा]][[पुर्तग़ाल]] देश के निवासियों को '[[पुर्तग़ाली]]' कहा जाता है। [[वास्कोडिगामा]] भी एक पुर्तग़ाली नाविक था। वास्कोडिगामा के द्वारा की गई [[भारत]] यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से 'केप ऑफ़ गुड होप' होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]] रखा था, वह आज का छोटा-सा [[समुद्र]] तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' है। कालान्तर में इस क्षेत्र को 'गोवा' कहा जाने लगा, जिस पर पुर्तग़ालियों ने क़ब्ज़ा किया था। [[भारत]] में 'गोधिक स्थापत्य कला' का आगमन भी [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] के साथ ही हुआ था। पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]], [[दमन और दीव]] पर 1661 ई. तक शासन किया। उनके आगमन से भारत में [[तम्बाकू]] की खेती, जहाज़ निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई। भारत में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना वर्ष 1556 ई. में गोवा में हुई थी। यह पुर्तग़ालियों की भारतवासियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण देन थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पुर्तग़ाली]], [[गोवा]] | ||[[चित्र:Dona-Paula-Beach-Goa.jpg|right|100px|डोना पॉला तट, गोवा]][[पुर्तग़ाल]] देश के निवासियों को '[[पुर्तग़ाली]]' कहा जाता है। [[वास्कोडिगामा]] भी एक पुर्तग़ाली नाविक था। वास्कोडिगामा के द्वारा की गई [[भारत]] यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से 'केप ऑफ़ गुड होप' होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]] रखा था, वह आज का छोटा-सा [[समुद्र]] तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' है। कालान्तर में इस क्षेत्र को 'गोवा' कहा जाने लगा, जिस पर पुर्तग़ालियों ने क़ब्ज़ा किया था। [[भारत]] में 'गोधिक स्थापत्य कला' का आगमन भी [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] के साथ ही हुआ था। पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]], [[दमन और दीव]] पर 1661 ई. तक शासन किया। उनके आगमन से भारत में [[तम्बाकू]] की खेती, जहाज़ निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई। भारत में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना वर्ष 1556 ई. में गोवा में हुई थी। यह पुर्तग़ालियों की भारतवासियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण देन थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पुर्तग़ाली]], [[गोवा]] | ||
{[[भारत]] का प्रथम श्रमिक संघ 'बम्बई मिल हैण्ड एसोसिएशन' कब स्थापित हुआ था? | {[[भारत]] का प्रथम श्रमिक संघ 'बम्बई मिल हैण्ड एसोसिएशन' कब स्थापित हुआ था? | ||
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-[[1894]] ई. | -[[1894]] ई. | ||
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-[[1904]] ई. | -[[1904]] ई. | ||
{किस इतिहासकार ने [[हल्दी घाटी का युद्ध|हल्दी घाटी युद्ध]] का [[आँख|आँखों]] देखा वर्णन किया है? | {किस इतिहासकार ने [[हल्दी घाटी का युद्ध|हल्दी घाटी युद्ध]] का [[आँख|आँखों]] देखा वर्णन किया है? | ||
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-निज़ामुद्दीन अहमद | -निज़ामुद्दीन अहमद | ||
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||[[चित्र:Pratap-Singh-And-Chetak-Attacking-Man-Singh.jpg|right|100px|मान सिंह पर हमला करते हुए महाराणा प्रताप और चेतक]]'अब्द-उल क़ादिर बदायूँनी' [[फ़ारसी भाषा]] का भारतीय इतिहासकार एवं अनुवादक था। [[बदायूँनी]] का जन्म सन् 1540 ई. में [[बदायूँ]] में हुआ था। वह [[भारत]] में [[मुग़ल कालीन शासन व्यवस्था|मुग़लकालीन इतिहास]] के प्रमुखतम लेखकों में से एक था। बचपन में बदायूँनी बसबार में रहा और बाद में उसने [[संभल]] व [[आगरा]] में शिक्षा प्राप्ति के लिए अध्ययन किया। वह 1562 में बदायूँ आया और यहाँ से [[पटियाला]] जाकर एक स्थानीय राजा हुसैन ख़ाँ की सेवा में चला गया। यहाँ वह नौ वर्षों तक रहा। दरबार छोड़ने के बाद भी उसने अपनी शिक्षा जारी रखी और विभिन्न [[मुस्लिम]] रहस्यवादियों के साथ अध्ययन किया। 1574 में [[बदायूँनी]] [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] के दरबार में पेश किया गया, जहाँ अकबर ने उसे धार्मिक कार्यों के लिए नियुक्त किया और पेंशन भी दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अब्दुल कादिर बदायूँनी]], [[हल्दीघाटी का युद्ध]] | ||[[चित्र:Pratap-Singh-And-Chetak-Attacking-Man-Singh.jpg|right|100px|मान सिंह पर हमला करते हुए महाराणा प्रताप और चेतक]]'अब्द-उल क़ादिर बदायूँनी' [[फ़ारसी भाषा]] का भारतीय इतिहासकार एवं अनुवादक था। [[बदायूँनी]] का जन्म सन् 1540 ई. में [[बदायूँ]] में हुआ था। वह [[भारत]] में [[मुग़ल कालीन शासन व्यवस्था|मुग़लकालीन इतिहास]] के प्रमुखतम लेखकों में से एक था। बचपन में बदायूँनी बसबार में रहा और बाद में उसने [[संभल]] व [[आगरा]] में शिक्षा प्राप्ति के लिए अध्ययन किया। वह 1562 में बदायूँ आया और यहाँ से [[पटियाला]] जाकर एक स्थानीय राजा हुसैन ख़ाँ की सेवा में चला गया। यहाँ वह नौ वर्षों तक रहा। दरबार छोड़ने के बाद भी उसने अपनी शिक्षा जारी रखी और विभिन्न [[मुस्लिम]] रहस्यवादियों के साथ अध्ययन किया। 1574 में [[बदायूँनी]] [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] के दरबार में पेश किया गया, जहाँ अकबर ने उसे धार्मिक कार्यों के लिए नियुक्त किया और पेंशन भी दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अब्दुल कादिर बदायूँनी]], [[हल्दीघाटी का युद्ध]] | ||
{'[[तुज़्क-ए-बाबरी]]' किस [[भाषा]] की रचना है? | {'[[तुज़्क-ए-बाबरी]]' किस [[भाषा]] की रचना है? | ||
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-[[उर्दू भाषा]] | -[[उर्दू भाषा]] |
08:03, 4 जुलाई 2013 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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