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| '''उर्फ़ी शीराजी''' [जन्म- 964 [[हिजरी]] (1557 ई.) अथवा 963 हिजरी (1556 ई.; मृत्यु- 999 [[हिजरी]] ([[1 अगस्त]], 1591)] [[मुग़ल]] दरबार में बादशाह [[अकबर]] के प्रसिद्ध कवियों में से एक था। उसकी प्रतिभा ने उसे स्वाभिमानी बना दिया था। उर्फ़ी शीराजी [[10 मार्च]], 1585 ई. को [[ईरान]] से [[फ़तेहपुर सीकरी]], [[आगरा]] पहुँचा था, जहाँ अकबर के दरबार के प्रसिद्ध कवि [[फ़ैज़ी]] के सेवकों में सम्मिलित हो गया और उन्हीं के साथ [[नवम्बर]], 1585 ई. में अकबर के शिविर में [[अटक]] पहुँचा। उर्फ़ी के लिखे [[क़सीदा|क़सीदे]] बहुत प्रसिद्ध हैं।
| | #REDIRECT [[उर्फ़ी शीराज़ी]] |
| {{tocright}}
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| ==परिचय==
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| उर्फ़ी शीराजी ईरान का मूल [[कवि]] था। वह 1585 ई. में [[भारत]] आ गया था। वह शीराज़ का निवासी था। उसका जन्म 964 हि. (1557 ई.) अथवा 963 हि. (1556 ई.) में हुआ था। उर्फ़ी शीराजी का [[पिता]] ज़ैनुद्दीन बलवी शीराज़ में एक उच्च पद पर नियुक्त था। उसने तत्कालीन प्रचलित ज्ञानों के साथ-साथ चित्रकला की भी शिक्षा प्राप्त की और अपने पिता के उच्च पद के अनुरूप अपना तख़ल्लुस उर्फ़ी रखा।
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| ==भारत आगमन==
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| 20 वर्ष की अवस्था में [[चेचक]] के कारण उर्फ़ी शीराजी कुरूप हो गया था। लेकिन उसके पिता के उच्च पद तथा उसकी प्रतिभा ने उसे स्वाभिमानी बना दिया था। परिणामस्वरूप युवावस्था में ही अपने समकालीन प्रसिद्ध ईरानी कवियों से टक्कर लेने के कारण उसे [[ईरान]] त्यागकर [[भारत]] आना पड़ा। उस समय केवल [[अकबर]] का ही दरबार विदेशी कलाकारों को आकर्षित नहीं करता था अपितु अकबर के उच्च पदाधिकारी भी कलाकारों को आश्रय देने में ईरान के शाह तहमस्प एवं शाह अब्बास से कम न थे। उर्फ़ी शीराजी [[समुद्र]] के मार्ग से 1585 ई. [[अहमदनगर]] और वहाँ से [[10 मार्च]], 1585 ई. को [[फ़तेहपुर सीकरी]] पहुँचा।
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| ====मुग़ल आश्रय====
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| [[आगरा]] आने के बाद उर्फ़ी शीराजी [[अकबर]] के दरबार के प्रसिद्ध कवि [[फ़ैज़ी]] के सेवकों में सम्मिलित हो गया। कुछ समय उपरांत वह अकबर के एक अन्य अमीर मसीहुद्दीन हकीम अबुल फ़तह का आश्रित हो गया। 1589 ई. में हकीम की मृत्यु हो गई। इसके बाद वह [[अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना]] के आश्रितों में रहा। फलत: उर्फ़ी की कला को क्रमश: और अधिक परिमार्जित तथा उन्नत होने का अवसर मिलता रहा। ख़ानख़ाना उसके प्रति विशेष उदारता प्रदर्शित करता था। बाद में वह अकबर के दरबारी कवियों में सम्मिलित हो गया। शाहजादा सलीम से, जो जहाँगीर के नाम से सिंहासनारूढ़ हुआ, उसे बड़ा प्रेम था।
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| ==रचना कार्य==
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| उर्फ़ी शीराजी की कुशाग्र बुद्धि, वाक्पटुता एवं व्यंगप्रियता ने लोगों को उससे रुष्ट कर दिया था। यद्यपि उसकी असामयिक मृत्यु के कारण उसकी प्रतिभा का पूर्ण विकास न हो सका, तथापि [[कवि]] के रूप में उसने अपने जीवनकाल में ही ईरान तथा भारतवर्ष दोनों में लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी। उसकी अधिक प्रसिद्धि का कारण उसके [[क़सीदा|क़सीदे]] थे, जिनकी जोरदार भाषा, नवीन तथा मौलिक वाक्यांशों की रचना, प्रकरणों की क्रमबद्धता तथा नए [[अलंकार|अलंकारों]] एवं नवीन उपमाओं ने उसे एक नई रचना [[शैली]] का आविष्कारक बना दिया। उसकी रचनाएँ सर्वप्रथम 1587-88 ई. संकलित हुईं। इस संकलन में 26 क़सीदे, 270 गजलें एवं 320 शेरों के क़ितआत तथा 380 शेरों की रुबाइयाँ थीं। उसने कुछ मसनवियों तथा [[सूफ़ी मत]] के आत्मासंबंधी सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए 'नफ़सिया' नामक गद्य की एक पुस्तक की भी रचना की थी।
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| ====निधन====
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| उर्फ़ी शिराजी अधिक दिनों जीवित नहीं रहा। 999 हिजरी ([[1 अगस्त]], 1591 ई.) में 35 अथवा 36 वर्ष की अवस्था में आमातिसार के कारण [[लाहौर]] में उसका निधन हो गया।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{मुग़ल साम्राज्य}}
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| [[Category:मुग़ल साम्राज्य]][[Category:मध्य काल]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:इतिहास कोश]]
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