"साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{| style="background:transparent; width:100%" | {| style="background:transparent; width:100%" | ||
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[ | |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font> | ||
|- | |- | ||
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}} | {{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}} | ||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
|- valign="top" | |- valign="top" | ||
| | | | ||
<center>[[ | <center>[[कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी|कुछ तो कह जाते]]</center> | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Microphone01.jpg|right|border|100px|link=कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी]] | ||
<poem> | <poem> | ||
सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनिया में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। [[कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी|पूरा पढ़ें]] | |||
</poem> | </poem> | ||
<center> | <center> | ||
{| style="margin:0; background:transparent" cellspacing="3" | {| style="margin:0; background:transparent" cellspacing="3" | ||
|- | |- | ||
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] → | | [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] → | ||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016|हिन्दी के ई-संसार का संचार]] | | [[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]] | ||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016|हिन्दी के ई-संसार का संचार]] | |||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015|ये तेरा घर ये मेरा घर]] | | [[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015|ये तेरा घर ये मेरा घर]] | ||
|} | |} |
07:58, 23 अगस्त 2016 का अवतरण
|