"भूमध्य सागर": अवतरणों में अंतर
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तृतीय हिमाच्छादन के समय भूमध्य सागर का अस्तित्व दो झीलों के रूप में था, जो नदी द्वारा संबद्ध हो सकती थीं। पूर्वी झील में, जो शायद मीठे पानी की थी, [[नील नदी]] और आसपास का जल आता था। भूमध्य सागर आज भी एक प्यासा सागर है। | तृतीय हिमाच्छादन के समय भूमध्य सागर का अस्तित्व दो झीलों के रूप में था, जो नदी द्वारा संबद्ध हो सकती थीं। पूर्वी झील में, जो शायद मीठे पानी की थी, [[नील नदी]] और आसपास का जल आता था। भूमध्य सागर आज भी एक प्यासा सागर है। सूर्य के ताप से पानी अधिक उड़ने से वह सिकुड़ता रहता है, जैसे - मृत सागर (Dead Sea) सिकुड़ रहा है। इस संकुचन को दूर करने के लिए आज पानी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्टर जलसंधि से होकर तथा काला सागर से दानियाल (Dardanelles) जलसंधि होकर भूमध्य सागर में आता है। [[चित्र:Mediterranean-Sea-1.jpg|thumb|250px|left|भूमध्य सागर <br /> Mediterranean Sea]] काला सागर को आवश्यकता से अधिक जल नदियों से प्राप्त होता है। जब भूमध्य सागर की घाटी दोनों ओर सागरों से संबद्ध न थी तब आज जहाँ नील सागर लहराता है वहाँ हरी-भरी घाटी में मनुष्य स्वच्छंद घूमते थे। | ||
पर बर्फ पिघलने से महासागरों के जल की सतह ऊपर उठने लगी। तभी संभवतया किसी आकाशीय पिंड ने पास आकर भयंकर ज्वार-तरंगे उत्पन्न कीं। फलत: अटलांटिक महासागर का जल पश्चिम से [[यूरोप]] और [[अफ्रीका]] के बीच की घाटी में फूट निकला। उसने मिट्टी बहा दी। आज भी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्टर जलसंधि होकर भूमध्य सागर तल तक एक गहरा गलियारा रूपी महाखड्ड विद्यमान है। वहाँ की सीधी चट्टानों को ‘हरकुलिस’ के स्तंभ (Pillars of Hercules) कहते हैं। हरकुलिस (बलराम का दूसरा नाम) के साहसिक कार्यों की कहानियाँ विदित हैं। सारे संसार में ज्वार तरंगे उठीं। पहले थोड़ी धारा में और फिर भयंकर गहराता सागर ‘भूमध्य घाटी’ की झीलों के किनारों की आदिम बस्तियों पर उमड़ पड़ा। शनै:-शनै: वह खारा पानी बस्तियों और पेड़ों के ऊपर पहाड़ों को छूने लगा। वहॉं पनपता सभ्यता का बीज मिट गया और अफ्रीका का यूरोप से स्थल-संबंध टूट गया। अफ्रीकी प्रजातियों का बड़ी मात्रा में यूरोप में निर्गमन समाप्त हुआ। प्रारंभिक मानव इतिहास के कुछ रहस्यों को गर्भ में धारण किए आज भूमध्य सागर लहरा रहा है।<ref>{{cite web|url=http://v-k-s-c.blogspot.com/2007_12_01_archive.html|title=जल प्लावनः सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं|accessmonthday=08-11|accessyear=2010|last= |first= |authorlink= |format=html|publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | पर बर्फ पिघलने से महासागरों के जल की सतह ऊपर उठने लगी। तभी संभवतया किसी आकाशीय पिंड ने पास आकर भयंकर ज्वार-तरंगे उत्पन्न कीं। फलत: अटलांटिक महासागर का जल पश्चिम से [[यूरोप]] और [[अफ्रीका]] के बीच की घाटी में फूट निकला। उसने मिट्टी बहा दी। आज भी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्टर जलसंधि होकर भूमध्य सागर तल तक एक गहरा गलियारा रूपी महाखड्ड विद्यमान है। वहाँ की सीधी चट्टानों को ‘हरकुलिस’ के स्तंभ (Pillars of Hercules) कहते हैं। हरकुलिस (बलराम का दूसरा नाम) के साहसिक कार्यों की कहानियाँ विदित हैं। सारे संसार में ज्वार तरंगे उठीं। पहले थोड़ी धारा में और फिर भयंकर गहराता सागर ‘भूमध्य घाटी’ की झीलों के किनारों की आदिम बस्तियों पर उमड़ पड़ा। शनै:-शनै: वह खारा पानी बस्तियों और पेड़ों के ऊपर पहाड़ों को छूने लगा। वहॉं पनपता सभ्यता का बीज मिट गया और अफ्रीका का यूरोप से स्थल-संबंध टूट गया। अफ्रीकी प्रजातियों का बड़ी मात्रा में यूरोप में निर्गमन समाप्त हुआ। प्रारंभिक मानव इतिहास के कुछ रहस्यों को गर्भ में धारण किए आज भूमध्य सागर लहरा रहा है।<ref>{{cite web|url=http://v-k-s-c.blogspot.com/2007_12_01_archive.html|title=जल प्लावनः सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं|accessmonthday=08-11|accessyear=2010|last= |first= |authorlink= |format=html|publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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07:07, 11 नवम्बर 2010 का अवतरण

Mediterranean Sea
इतिहास में भूमध्य सागर के दोनों ओर के देश ही यूरोप की दुनिया थी। इसी से इसे 'भूमध्य सागर' कहा जाता है। यूरोपीय विद्वान प्रारम्भ में यही सभ्यताएँ जानते थे और इन्हें ही प्राचीनतम मानव सभ्यता समझते थे। इनमें भी सबसे प्राचीन सभ्यता है- मिस्र की सभ्यता। भूमध्य सागर का क्षेत्रफल लगभग 25 लाख वर्ग किलोमीटर है जो भारत के क्षेत्रफल का लगभग तीन-चौथाई है । प्राचीन काल में यूनान, तुर्की, कार्थेज, स्पेन, रोम, येरुशलम, अरब तथा मिस्र जैसे देशों और नगरों के बीच स्थित होने के कारण इसे भूमध्य (धरती के मध्य का) सागर कहा जाता था। यह अटलांटिक महासागर से जिब्राल्टर द्वारा जुड़ा हुआ है जो लगभग 14 किलोमीटर चौड़ा एक जलडमरू मध्य है।[1]
तृतीय हिमाच्छादन के समय
तृतीय हिमाच्छादन के समय भूमध्य सागर का अस्तित्व दो झीलों के रूप में था, जो नदी द्वारा संबद्ध हो सकती थीं। पूर्वी झील में, जो शायद मीठे पानी की थी, नील नदी और आसपास का जल आता था। भूमध्य सागर आज भी एक प्यासा सागर है। सूर्य के ताप से पानी अधिक उड़ने से वह सिकुड़ता रहता है, जैसे - मृत सागर (Dead Sea) सिकुड़ रहा है। इस संकुचन को दूर करने के लिए आज पानी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्टर जलसंधि से होकर तथा काला सागर से दानियाल (Dardanelles) जलसंधि होकर भूमध्य सागर में आता है।

Mediterranean Sea
काला सागर को आवश्यकता से अधिक जल नदियों से प्राप्त होता है। जब भूमध्य सागर की घाटी दोनों ओर सागरों से संबद्ध न थी तब आज जहाँ नील सागर लहराता है वहाँ हरी-भरी घाटी में मनुष्य स्वच्छंद घूमते थे।
पर बर्फ पिघलने से महासागरों के जल की सतह ऊपर उठने लगी। तभी संभवतया किसी आकाशीय पिंड ने पास आकर भयंकर ज्वार-तरंगे उत्पन्न कीं। फलत: अटलांटिक महासागर का जल पश्चिम से यूरोप और अफ्रीका के बीच की घाटी में फूट निकला। उसने मिट्टी बहा दी। आज भी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्टर जलसंधि होकर भूमध्य सागर तल तक एक गहरा गलियारा रूपी महाखड्ड विद्यमान है। वहाँ की सीधी चट्टानों को ‘हरकुलिस’ के स्तंभ (Pillars of Hercules) कहते हैं। हरकुलिस (बलराम का दूसरा नाम) के साहसिक कार्यों की कहानियाँ विदित हैं। सारे संसार में ज्वार तरंगे उठीं। पहले थोड़ी धारा में और फिर भयंकर गहराता सागर ‘भूमध्य घाटी’ की झीलों के किनारों की आदिम बस्तियों पर उमड़ पड़ा। शनै:-शनै: वह खारा पानी बस्तियों और पेड़ों के ऊपर पहाड़ों को छूने लगा। वहॉं पनपता सभ्यता का बीज मिट गया और अफ्रीका का यूरोप से स्थल-संबंध टूट गया। अफ्रीकी प्रजातियों का बड़ी मात्रा में यूरोप में निर्गमन समाप्त हुआ। प्रारंभिक मानव इतिहास के कुछ रहस्यों को गर्भ में धारण किए आज भूमध्य सागर लहरा रहा है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ (हिन्दी) (html)। । अभिगमन तिथि: 08-11, 2010।
- ↑ जल प्लावनः सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं (हिन्दी) (html)। । अभिगमन तिथि: 08-11, 2010।