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| अनुप्रास | | '''अनुप्रास''' | ||
| व्यंजन वर्णों की आवृत्ति | | '''व्यंजन वर्णों की आवृत्ति''' | ||
| बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग। <br />प द स र की आवृत्ति | | '''बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग। <br />प द स र की आवृत्ति''' | ||
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| छेकानुप्रास | | छेकानुप्रास | ||
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| रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून॥ ([[रहीम]])<br />मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल | | रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून॥ ([[रहीम]])<br />मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल | ||
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| वक्रोक्ति | | वक्रोक्ति | ||
| | | प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ | ||
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| (1) श्लेषमूला वक्रोक्ति <br />(2) काकुमूला वक्रोक्ति | |||
| <br />श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति <br />काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति | |||
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10:23, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण
अलंकार | लक्षण\पहचान चिह्न | उदाहरण\ टिप्पणी |
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अनुप्रास | व्यंजन वर्णों की आवृत्ति | बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग। प द स र की आवृत्ति |
छेकानुप्रास | अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृति | बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास, सरस अनुरागा॥ (तुलसीदास) पद पदुम में पद एवं सुरुचि सरस में सर - स्वरूप की आवृत्ति। पद में प के बाद द, पदुम, में प के बाद द, सुरुचि में स के बाद र सरस में स के बाद र। क्रम की आवृत्ति। |
वृत्त्यनुप्रास | अनेक व्यजनों की अनेक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृत्ति | कलावती केलिवती कलिन्दजा कल की 2 बार आवृत्ति - स्वरूपतः आवृत्ति, क ल की 2 बार आवृत्ति - क्रमतः आवृत्ति |
लाटानुप्रास | तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों की पुनरुक्ति | लड़का तो लड़का ही है - शब्द की पुनरुक्ति सामान्य लड़का रूप बुद्धि शीलादि गुण संपन्न लड़का - अर्थ की पुनरुक्ति। |
यमक | शब्दों की आवृत्ति (जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग- अलग हों) | कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय। (बिहारीलाल) कनक शब्द की एक बार आवृत्ति 1 सोना, 2 धतूरा। |
श्लेष | एक शब्द में एक से अधिक अर्थ (जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो किंतु प्रसंग भेद में उसके अर्थ अलग-अलग हों) | रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून॥ (रहीम) मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल |
वक्रोक्ति | प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ | - |
(1) श्लेषमूला वक्रोक्ति (2) काकुमूला वक्रोक्ति |
श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति |
एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है? उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है॥ (गुरुभक्त सिंह) आप जाइए तो। - आप जाइए। आप जाइए तो? - आप नहीं जाइए। |
(2)- काकुमूला वक्रोक्ति काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज आप जाइए तो। - आप जाइए।
में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति आप जाइए तो? - आप नहीं जाइए।
(5)* वीप्सा मनोभावों को प्रकट करने के लिए छिः, छिः, राम, राम, चुप, चुप,
शब्द दुहराना (वीप्सा- दुहराना) देखों, देखों।