"प्रयोग:शिल्पी": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{[[पाण्डव]] [[नकुल]] की माता का नाम था | {[[पाण्डव]] [[नकुल]] की माता का नाम था- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[कुंती]] | -[[कुंती]] | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
-[[जानकी]] | -[[जानकी]] | ||
-[[सुभद्रा]] | -[[सुभद्रा]] | ||
||मद्रदेश (आधुनिक [[पंजाब]]) के राजा ॠतायन की पुत्री और [[शल्य]] की बहिन जो [[पांडव]] [[नकुल]] और [[सहदेव]] की माता थी। बहुत-सा धन देकर इस सुन्दरी को [[भीष्म]] [[पाण्डु]] के लिये मांग लाये थे। इसने बाद में [[कुन्ती]] को प्राप्त [[दुर्वासा]] के मन्त्र का उपयोग करके [[अश्विनीकुमार|अश्विनी कुमारों]] से नकुल और सहदेव नामक सुन्दर पुत्र प्राप्त किये थे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[माद्री]] | ||मद्रदेश (आधुनिक [[पंजाब]]) के राजा ॠतायन की पुत्री और [[शल्य]] की बहिन, जो [[पांडव]] [[नकुल]] और [[सहदेव]] की माता थी। बहुत-सा धन देकर इस सुन्दरी को [[भीष्म]] [[पाण्डु]] के लिये मांग लाये थे। इसने बाद में [[कुन्ती]] को प्राप्त [[दुर्वासा]] के मन्त्र का उपयोग करके [[अश्विनीकुमार|अश्विनी कुमारों]] से नकुल और सहदेव नामक सुन्दर पुत्र प्राप्त किये थे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[माद्री]] | ||
{[[अर्जुन]] ने [[जयद्रथ]] को | {[[अर्जुन]] ने [[जयद्रथ]] को कब तक मार देने की प्रतिज्ञा की थी? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+सूर्यास्त से पहले | +सूर्यास्त से पहले | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
-प्रातकाल से पहले | -प्रातकाल से पहले | ||
{[[कर्ण]] को अमोघ शक्ति प्रदान की थी | {[[कर्ण]] को अमोघ शक्ति प्रदान की थी- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[सूर्यदेव|सूर्य]] ने | -[[सूर्यदेव|सूर्य]] ने | ||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
+[[इन्द्र]] ने | +[[इन्द्र]] ने | ||
-[[वरुण देवता|वरुण]] | -[[वरुण देवता|वरुण]] | ||
||[[ॠग्वेद]] के प्राय: 250 सूक्तों में [[इन्द्र]] का वर्णन है तथा 50 सूक्त ऐसे हैं जिनमें दूसरे देवों के साथ इन्द्र का वर्णन है। इस प्रकार लगभग ऋग्वेद के चतुर्थांश में इन्द्र का वर्णन पाया जाता है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इन्द्र वैदिक युग का सर्वप्रिय देवता था। इन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ अस्पष्ट है। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इन्द्र]] | ||[[ॠग्वेद]] के प्राय: 250 सूक्तों में [[इन्द्र]] का वर्णन है तथा 50 सूक्त ऐसे हैं, जिनमें दूसरे देवों के साथ इन्द्र का वर्णन है। इस प्रकार लगभग ऋग्वेद के चतुर्थांश में इन्द्र का वर्णन पाया जाता है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि, इन्द्र वैदिक युग का सर्वप्रिय देवता था। इन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ अस्पष्ट है। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इन्द्र]] | ||
{[[बलराम]] की पत्नी का नाम था? | {[[बलराम]] की पत्नी का क्या नाम था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[रुक्मणी]] | -[[रुक्मणी]] | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
-भद्रा | -भद्रा | ||
{[[कृष्ण]] के वंश का नाम था? | {[[कृष्ण]] के वंश का क्या नाम था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] | -[[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
+भीमसात्वत | +भीमसात्वत | ||
{[[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से लड़ने वाला [[कौरव]] था | {[[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से लड़ने वाला [[कौरव]] था- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+युयुत्स | +युयुत्स | ||
पंक्ति 68: | पंक्ति 68: | ||
{[[महाभारत]] में [[कृष्ण]] की सेना किसकी ओर से लड़ी? | {[[महाभारत]] में [[कृष्ण]] की सेना किसकी ओर से लड़ी? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आधी [[कौरव]] आधी [[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से | -आधी [[कौरव]] और आधी [[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से | ||
+[[कौरव|कौरवों]] की ओर से | +[[कौरव|कौरवों]] की ओर से | ||
-[[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से | -[[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से | ||
-उदासीन रही | -उदासीन रही | ||
{[[महाभारत]] युद्ध में [[कर्ण]] के सारथी का नाम था? | {[[महाभारत]] युद्ध में [[कर्ण]] के सारथी का नाम क्या था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[शल्य]] | +[[शल्य]] | ||
पंक्ति 81: | पंक्ति 81: | ||
||[[शल्य]], मद्रराज महारथी था। [[पांडव|पांडवों]] ने [[माद्री]] के भाई, मामा शल्य को युद्ध में सहायतार्थ आमन्त्रित किया। शल्य अपनी विशाल सेना के साथ पांडवों की ओर जा रहा था। मार्ग में [[दुर्योधन]] ने उन सबका अतिथि-सत्कार कर उन्हें प्रसन्न किया। शल्य ने [[महाभारत]]-युद्ध में सक्रिय भाग लिया। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[शल्य]] | ||[[शल्य]], मद्रराज महारथी था। [[पांडव|पांडवों]] ने [[माद्री]] के भाई, मामा शल्य को युद्ध में सहायतार्थ आमन्त्रित किया। शल्य अपनी विशाल सेना के साथ पांडवों की ओर जा रहा था। मार्ग में [[दुर्योधन]] ने उन सबका अतिथि-सत्कार कर उन्हें प्रसन्न किया। शल्य ने [[महाभारत]]-युद्ध में सक्रिय भाग लिया। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[शल्य]] | ||
{[[कर्ण]] ने अपने कवच कुण्डल किसे दान दिये? | {[[कर्ण]] ने अपने कवच-कुण्डल किसे दान दिये? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[दुर्वासा]] ऋषि को | -[[दुर्वासा]] ऋषि को | ||
-[[वसिष्ठ]] | -[[वसिष्ठ]] ऋषि को | ||
-[[परशुराम]] | -[[परशुराम]] ऋषि को | ||
+[[इन्द्र]] | +[[इन्द्र]] देव को | ||
||[[ॠग्वेद]] के प्राय: 250 सूक्तों में [[इन्द्र]] का वर्णन है तथा 50 सूक्त ऐसे हैं जिनमें दूसरे देवों के साथ इन्द्र का वर्णन है। इस प्रकार लगभग ऋग्वेद के चतुर्थांश में इन्द्र का वर्णन पाया जाता है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इन्द्र वैदिक युग का सर्वप्रिय देवता था। इन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ अस्पष्ट है। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इन्द्र]] | ||[[ॠग्वेद]] के प्राय: 250 सूक्तों में [[इन्द्र]] का वर्णन है तथा 50 सूक्त ऐसे हैं, जिनमें दूसरे देवों के साथ इन्द्र का वर्णन है। इस प्रकार लगभग ऋग्वेद के चतुर्थांश में इन्द्र का वर्णन पाया जाता है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इन्द्र वैदिक युग का सर्वप्रिय देवता था। इन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ अस्पष्ट है। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इन्द्र]] | ||
{निम्न में से कौन अतिरथी नहीं था? | {निम्न में से कौन अतिरथी नहीं था? | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 95: | ||
-[[कृष्ण]] | -[[कृष्ण]] | ||
+[[अर्जुन]] | +[[अर्जुन]] | ||
||[[ | ||[[अर्जुन]] महाराज [[पाण्डु]] एवं रानी [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। जब पाण्डु संतान उत्पन्न करने में असफल रहे तो, कुन्ती ने उनको एक वरदान के बारे में याद दिलाया। कुन्ती को कुंआरेपन में महर्षि [[दुर्वासा]] ने एक वरदान दिया था, जिससे कुंती किसी भी [[देवता]] का आवाहन कर सकती थीं और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थीं। पाण्डु एवं कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं [[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]], [[वायु देव|वायु]] एवं [[इन्द्र]] देवता का आवाहन किया। अर्जुन तीसरे पुत्र थे, जो देवताओं के राजा इन्द्र से हुए।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अर्जुन]] | ||
{[[भीष्म]] कितनी सेना समाप्त करके [[जल]] गृहण करते थे? | {[[भीष्म]] कितनी सेना समाप्त करके [[जल]] गृहण करते थे? | ||
पंक्ति 110: | पंक्ति 110: | ||
-[[जयद्रथ]] | -[[जयद्रथ]] | ||
-[[विदुर]] | -[[विदुर]] | ||
||महर्षि [[भारद्वाज]] का वीर्य किसी द्रोणी (यज्ञकलश अथवा पर्वत की गुफ़ा) में स्खलित होने से जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसे द्रोण कहा गया। ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि भारद्वाज ने [[गंगा]] में स्नान करती घृताची को देखा, आसक्त होने के कारण जो वीर्य स्खलन हुआ, उसे उन्होंने द्रोण (यज्ञकलश) में रख दिया। उससे उत्पन्न बालक द्रोण कहलाया। [[द्रोणाचार्य]] भारद्वाज मुनि के पुत्र थे। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[द्रोणाचार्य]] | ||महर्षि [[भारद्वाज]] का वीर्य किसी द्रोणी (यज्ञकलश अथवा पर्वत की गुफ़ा) में स्खलित होने से जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसे द्रोण कहा गया। ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि, भारद्वाज ने [[गंगा]] में स्नान करती घृताची को देखा, आसक्त होने के कारण जो वीर्य स्खलन हुआ, उसे उन्होंने द्रोण (यज्ञकलश) में रख दिया। उससे उत्पन्न बालक द्रोण कहलाया। [[द्रोणाचार्य]] भारद्वाज मुनि के पुत्र थे। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[द्रोणाचार्य]] | ||
{[[महाभारत]] का युद्ध कहाँ हुआ था? | {[[महाभारत]] का युद्ध कहाँ हुआ था? | ||
पंक्ति 118: | पंक्ति 118: | ||
-[[पानीपत युद्ध|पानीपत]] | -[[पानीपत युद्ध|पानीपत]] | ||
+[[कुरुक्षेत्र]] | +[[कुरुक्षेत्र]] | ||
||कुरुक्षेत्र [[हरियाणा]] राज्य का एक प्रमुख ज़िला | ||कुरुक्षेत्र [[हरियाणा]] राज्य का एक प्रमुख ज़िला है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा [[अम्बाला]], यमुना नगर, करनाल और [[कैथल]] से घिरा हुवा है। माना जाता है कि, यहीं [[महाभारत]] की लड़ाई हुई थी और भगवान [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश यहीं पर ज्योतीसर नामक स्थान पर दिया था। यह ज़िला बासमती [[चावल]] के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्व अधिक माना जाता है। इसका [[ॠग्वेद]] और [[यजुर्वेद]] मे अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है। यहाँ की पौराणिक नदी [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] का भी अत्यन्त महत्व है। इसके अतिरिक्त अनेक [[पुराण|पुराणों]], स्मृतियों और महर्षि [[वेदव्यास]] रचित [[महाभारत]] में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं। विशेष तथ्य यह है कि, कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा 48 कोस की मानी गई है, जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल, करनाल, पानीपत और जिंद का क्षेत्र सम्मिलित हैं।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुरुक्षेत्र]] | ||
{[[शकुनि]] के राज्य का क्या नाम था? | {[[शकुनि]] के राज्य का क्या नाम था? | ||
पंक्ति 126: | पंक्ति 126: | ||
-[[अंग महाजनपद|अंग]] | -[[अंग महाजनपद|अंग]] | ||
+[[गांधार महाजनपद|गांधार]] | +[[गांधार महाजनपद|गांधार]] | ||
||पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक। पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र। इसे आधुनिक | ||पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक। [[पाकिस्तान]] का पश्चिमी तथा [[अफ़ग़ानिस्तान]] का पूर्वी क्षेत्र। इसे आधुनिक [[कंधार]] से जोड़ने की ग़लती कई बार लोग कर देते हैं, जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक [[पेशावर]] और आसपास के इलाके थे। इस [[महाजनपद]] के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा [[तक्षशिला]] इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। [[कुषाण]] शासकों के दौरान यहाँ [[बौद्ध धर्म]] बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[गांधार महाजनपद]] | ||
{[[अर्जुन]] ने [[द्रोणाचार्य]] के जिस मित्र को परास्त किया उसका नाम था? | {[[अर्जुन]] ने [[द्रोणाचार्य]] के जिस मित्र को परास्त किया, उसका नाम क्या था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[कृपाचार्य]] | -[[कृपाचार्य]] | ||
पंक्ति 134: | पंक्ति 134: | ||
-[[शल्य]] | -[[शल्य]] | ||
-[[विदुर]] | -[[विदुर]] | ||
||[[द्रुपद]], [[पांचाल]] के राजा और परिशत के पुत्र थे। ये [[शिखंडी]], [[धृष्टद्युम्न]] व [[द्रौपदी]] के पिता थे। [[भीष्म]], [[द्रोणाचार्य]], और द्रुपद [[परशुराम]] के शिष्य थे। शिक्षा काल में द्रुपद और द्रोण की गहरी मित्रता थी। द्रोण ग़रीब होने के कारण प्राय: दुखी रहते थे तो द्रुपद ने उन्हें राजा बनने पर आधा राज्य देने का वचन दिया परंतु कालांतर में वे अपने वचन से न केवल मुकर गए वरन उन्होंने द्रोण का अपमान भी किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[द्रुपद]] | ||[[द्रुपद]], [[पांचाल]] के राजा और परिशत के पुत्र थे। ये [[शिखंडी]], [[धृष्टद्युम्न]] व [[द्रौपदी]] के पिता थे। [[भीष्म]], [[द्रोणाचार्य]], और द्रुपद [[परशुराम]] के शिष्य थे। शिक्षा काल में द्रुपद और द्रोण की गहरी मित्रता थी। द्रोण ग़रीब होने के कारण प्राय: दुखी रहते थे, तो द्रुपद ने उन्हें राजा बनने पर आधा राज्य देने का वचन दिया था, परंतु कालांतर में वे अपने वचन से न केवल मुकर गए वरन उन्होंने द्रोण का अपमान भी किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[द्रुपद]] | ||
{युद्ध में जिस [[हाथी]] को [[भीम]] ने मारा था उसका नाम था? | {युद्ध में जिस [[हाथी]] को [[भीम]] ने मारा था, उसका नाम क्या था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-कुवलिया पीढ़ | -कुवलिया पीढ़ | ||
पंक्ति 142: | पंक्ति 142: | ||
-चाणुर | -चाणुर | ||
-[[ऐरावत]] | -[[ऐरावत]] | ||
||[[महाभारत]] युद्ध में [[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]] नामक [[हाथी]] को [[भीम]] ने मार दिया और यह शोर किया कि अश्वत्थामा मारा गया। चूँकि [[द्रोणाचार्य]] के पुत्र का नाम भी [[अश्वत्थामा]] था और यह भी निश्चित था कि अपने पुत्र से प्रेम करने के कारण द्रोणाचार्य अश्वत्थामा की मृत्यु का सामाचार सुनकर स्वयं भी प्राण त्याग देगें। इसलिए [[कृष्ण]] की योजनानुसार यह पूर्व नियोजित ही था। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]] | ||[[महाभारत]] युद्ध में [[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]] नामक [[हाथी]] को [[भीम]] ने मार दिया और यह शोर किया कि, अश्वत्थामा मारा गया। चूँकि [[द्रोणाचार्य]] के पुत्र का नाम भी [[अश्वत्थामा]] था और यह भी निश्चित था कि, अपने पुत्र से प्रेम करने के कारण द्रोणाचार्य अश्वत्थामा की मृत्यु का सामाचार सुनकर स्वयं भी प्राण त्याग देगें। इसलिए [[कृष्ण]] की योजनानुसार यह पूर्व नियोजित ही था। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]] | ||
{[[अश्वत्थामा]] द्वारा छोड़े गये [[ब्रह्मास्त्र]] को किसने शांत किया था? | {[[अश्वत्थामा]] द्वारा छोड़े गये [[ब्रह्मास्त्र]] को किसने शांत किया था? | ||
पंक्ति 150: | पंक्ति 150: | ||
+[[वेदव्यास|व्यास]] | +[[वेदव्यास|व्यास]] | ||
-[[भीष्म]] | -[[भीष्म]] | ||
||[[वेदव्यास]] भगवान [[नारायण]] के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम [[पराशर]] ऋषि तथा माता का नाम [[सत्यवती]] था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने पिता-माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[वेदव्यास|व्यास]] | ||[[वेदव्यास]] भगवान [[नारायण]] के ही कलावतार थे। व्यास जी के [[पिता]] का नाम [[पराशर]] ऋषि तथा माता का नाम [[सत्यवती]] था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने पिता-माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[वेदव्यास|व्यास]] | ||
{[[गांधारी]] ने कितनी बार अपने आँखों की पट्टी खोली? | {[[गांधारी]] ने कितनी बार अपने आँखों की पट्टी खोली? | ||
पंक्ति 159: | पंक्ति 159: | ||
-तीन बार | -तीन बार | ||
{[[महाभारत]] युद्ध का मुख्य कारण था? | {[[महाभारत]] युद्ध का मुख्य कारण क्या था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[दुर्योधन]] द्वारा [[कृष्ण]] का अपमान | -[[दुर्योधन]] द्वारा [[कृष्ण]] का अपमान | ||
पंक्ति 175: | पंक्ति 175: | ||
{[[द्रौपदी]] का महान कार्य क्या था? | {[[द्रौपदी]] का महान कार्य क्या था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[दुर्वासा]] के | -[[दुर्वासा]] के हज़ारों शिष्यों को भोजन कराना | ||
-अज्ञातवास का जीवन गुजारना | -अज्ञातवास का जीवन गुजारना | ||
-[[अभिमन्यु]] को शिक्षा देना | -[[अभिमन्यु]] को शिक्षा देना | ||
पंक्ति 187: | पंक्ति 187: | ||
-[[विश्वामित्र]] का श्राप | -[[विश्वामित्र]] का श्राप | ||
{[[युधिष्ठिर]] के स्वर्ग जाने पर साथ | {[[युधिष्ठिर]] के स्वर्ग जाने पर कौन उनके साथ गया था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[द्रौपदी]] | -[[द्रौपदी]] | ||
पंक्ति 193: | पंक्ति 193: | ||
-[[भीम]] | -[[भीम]] | ||
+एक कुत्ता | +एक कुत्ता | ||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} |