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<poem>आवारगी में हद से गुज़र जाना चाहिये
<poem>आवारगी में हद से गुज़र जाना चाहिये

13:18, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण

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एलबम ग़ज़ल पैकार
गायिका मुन्नी बेगम
संगीत कंपनी एच.एम.वी
बाहरी कड़ियाँ आवारगी में हद से (म्यूज़िक इन्डिया ऑनलाइन)

आवारगी में हद से गुज़र जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार तो घर जाना चाहिये

मुझसे बिछड़ कर इन दिनों किस रंग में हैं वो
ये देखने रक़ीब के घर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

उस बुत से इश्क कीजिये लेकिन कुछ इस तरह
पूछे कोई तो साफ मुकर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

अफ़सोस अपने घर का पता हम से खो गया
अब सोचना ये है कि किधर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

बैठे हैं हर फसील पे कुछ लोग ताक में
अच्छा है थोड़ी देर से घर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

रब बेमिसाल वज़्म का मौसम भी गया
अब तो मेरा नसीब संवर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

नादान जवानी का ज़माना गुज़र गया
अब आ गया बुढ़ापा सुधर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

बैठे रहोगे दश्त में कब तक हसन रज़ा
जीना अगर नहीं है तो मर जाना चाहिये
लेकिन कभी कभार ...

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ