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*आरिज़े मुमालिक- यह दीवाने-ए-अर्ज (सैन्य विभाग) का सर्वोच्च अधिकारी होता था। | *आरिज़े मुमालिक- यह दीवाने-ए-अर्ज (सैन्य विभाग) का सर्वोच्च अधिकारी होता था। | ||
*अक़ता- यह वह भूमि होती थी जिसकी आय सेना के सरदारों को सेना रखने एवं उचित देखभाल के लिए दी जाती थी। अक़ता भूमि उनसे वापस ले ली जाती थी जो सेना में रहने योग्य नहीं रहते थे। | *अक़ता- यह वह भूमि होती थी जिसकी आय सेना के सरदारों को सेना रखने एवं उचित देखभाल के लिए दी जाती थी। अक़ता भूमि उनसे वापस ले ली जाती थी जो सेना में रहने योग्य नहीं रहते थे। | ||
*अमीर-ए-दाद - सुल्तान के राजधानी में अनुपस्थित होने पर यह दीवान-ए-मजलिस की अध्यक्षता करता था। इसे दादबक भी कहा जाता था। | *अमीर-ए-दाद - [[सुल्तान]] के राजधानी में अनुपस्थित होने पर यह दीवान-ए-मजलिस की अध्यक्षता करता था। इसे दादबक भी कहा जाता था। | ||
*अमीर-ए-बहार- नौकाओं का प्रबंध करने वाला अधिकारी। | *अमीर-ए-बहार- नौकाओं का प्रबंध करने वाला अधिकारी। | ||
*आमिल- ग्रामों में भूमि कर वसूल कर अधिकारी। | *आमिल- ग्रामों में भूमि कर वसूल कर अधिकारी। | ||
*इतलाकी- यह वह भूमि होती थी जिसकी देख-रेख सुल्तान के कर्मचारी करते थे। | *इतलाकी- यह वह भूमि होती थी जिसकी देख-रेख [[सुल्तान]] के कर्मचारी करते थे। | ||
*इद्रार- विद्वानो एवं धार्मिक लोगो को दी जाने वाली आर्थिक मदद। | *इद्रार- विद्वानो एवं धार्मिक लोगो को दी जाने वाली आर्थिक मदद। | ||
*क़ुब्बा- ख़ुशी के समय मार्गो में बनने वाला एक प्रकार का तोरण द्वार या गुम्बद। | *क़ुब्बा- ख़ुशी के समय मार्गो में बनने वाला एक प्रकार का तोरण द्वार या गुम्बद। | ||
*कु - उस व्यक्ति को ‘कु’ कहा जाता था जो अल्लाह एवं क़ुरान में विश्वास नहीं करता था। | *कु - उस व्यक्ति को ‘कु’ कहा जाता था जो अल्लाह एवं [[क़ुरान]] में विश्वास नहीं करता था। | ||
*ख़ान- | *ख़ान- सरख़ैलों, सिपहसालारों, अमीरों एवं मालिकों के अधिकारी को ख़ान कहते थे। | ||
*ख़ानक़ाह- | *ख़ानक़ाह- सूफ़ी-सन्तों के आरामगाह को ख़ानक़ाह कहा जाता था। | ||
*ख़लासा भूमि- इस भूमि का प्रबन्ध स्वंय सुल्तान करता था।इस भूमि से होने वाली आय सुल्तान के | *ख़लासा भूमि- इस भूमि का प्रबन्ध स्वंय [[सुल्तान]] करता था।इस भूमि से होने वाली आय सुल्तान के ख़ज़ाने में जाती थी। | ||
* | *ख़ासख़ैल- शाही महल से सम्बन्धित सेना होती थी। | ||
*ख़ासदार- सुल्तान के अस्त्र-शस्त्र का प्रबंध करने वाला अधिकारी। | *ख़ासदार- सुल्तान के अस्त्र-शस्त्र का प्रबंध करने वाला अधिकारी। | ||
*ख़िर्क़ा- शेख़ों द्वारा पहना जाने वाला ऊपरी वस्त्र। शब्दकोश में इसका अर्थ है- गुदड़ी, फटा-पुराना लिबास; किसी ऋषि या वली के शरीर से उतरा हुआ लिबास। | *ख़िर्क़ा- शेख़ों द्वारा पहना जाने वाला ऊपरी वस्त्र। शब्दकोश में इसका अर्थ है- गुदड़ी, फटा-पुराना लिबास; किसी ऋषि या वली के शरीर से उतरा हुआ लिबास। | ||
*ख़राज- ग़ैर | *ख़राज- ग़ैर मुसलमानों पर लगाया जाने वाला भू-राजस्व। | ||
*ज़िम्मी- किसी स्वतंत्र राज्य को जीतने के बाद यदि वहां की जनता इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करती थी परन्तु [[जज़िया]] कर देना स्वीकार कर लेती थी उसे | *ज़िम्मी- किसी स्वतंत्र राज्य को जीतने के बाद यदि वहां की जनता इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करती थी परन्तु [[जज़िया]] कर देना स्वीकार कर लेती थी उसे ज़िम्मी कहा जाता था। | ||
*जहांदारी- राज्य व्यवस्था या शासन प्रबन्ध। | *जहांदारी- राज्य व्यवस्था या शासन प्रबन्ध। | ||
*तज़्कीर- एक प्रकार का धर्मोपदेश। | *तज़्कीर- एक प्रकार का धर्मोपदेश। | ||
*तफ़सीर- [[क़ुरान]] का अनुवाद एवं समीक्षा। | *तफ़सीर- [[क़ुरान]] का अनुवाद एवं समीक्षा। | ||
*तलीआ- तलाया या | *तलीआ- तलाया या तलीया सेना का अग्रमि भाग जो शत्रुओं की वास्तविक स्थिति का पता लगाता था। | ||
*दबीर- शाही पत्र व्यवहार की देखभाल करने वाले विभाग का अधिकारी। | *दबीर- शाही पत्र व्यवहार की देखभाल करने वाले विभाग का अधिकारी। | ||
*दीवाने-क़ज़ा - साधारण | *दीवाने-क़ज़ा - साधारण झगड़ों के बारे में निर्णय देने वाला अधिकारी। | ||
*नायक बारबक - दरबार के समस्त | *नायक बारबक - दरबार के समस्त कार्यों की देख-भाल करने वाले कर्मचारियों का अधिकारी नायक बारबक कहलाता था। | ||
*नौबत- नगाड़ा, तुराही, बिगुल, झांझ, बांसुरी आदि वाद्ययन्त्रो के सम्मिलित | *नौबत- नगाड़ा, तुराही, बिगुल, झांझ, बांसुरी आदि वाद्ययन्त्रो के सम्मिलित समूह को को नौबत कहा जाता था। यह ख़ुशी के मौक़े पर बजाई जाती थी। | ||
*पायक- सेना के पैदल सैनिको को पायक कहते थे। | *पायक- सेना के पैदल सैनिको को पायक कहते थे। | ||
*फ़तवा- शरीयत के आधार पर किसी समस्या के समाधान का निर्णय। | *फ़तवा- शरीयत के आधार पर किसी समस्या के समाधान का निर्णय। | ||
*फ़िक़ह- इस्लामी धर्मनीति के ज्ञान को फ़िक़ह कहा जाता था। | *फ़िक़ह- इस्लामी धर्मनीति के ज्ञान को फ़िक़ह कहा जाता था। | ||
*फ़वाजिल/विभाग फ़ाजिल- अधिशेष भूराजस्व। | *फ़वाजिल / विभाग फ़ाजिल- अधिशेष भूराजस्व। | ||
*बरीद- समाचार वाहक। | *बरीद- समाचार वाहक। | ||
*बलाहर- साधारण | *बलाहर- साधारण किसानों को कहा जाता था। | ||
*मावास- उस घने जंगल एवं पहाड़ी | *मावास- उस घने जंगल एवं पहाड़ी इलाक़े वाले भाग को कहते थे जहां प्रायः विद्रोही विद्रोह करके छिप जाते थे। | ||
*मसाहत- भूमि की पैमाइश। | *मसाहत- भूमि की पैमाइश। | ||
*मिल्क़- वह भूमि जो विद्वानो एवं धार्मिक कार्यो के लिए दी जाती थी। यह भूमि वंशानुगत होती थी। | *मिल्क़- वह भूमि जो विद्वानो एवं धार्मिक कार्यो के लिए दी जाती थी। यह भूमि वंशानुगत होती थी। | ||
*मुक़ता- बड़ी अक़ता के मालिक मुक़ता कहलाते थे। | |||
* | *मुतसर्रिफ़- गांवो में किसानों से भूमिकर वसूल करने वाले अधिकारी। | ||
* | *मुहतसिब- ऐसी सभी बातो को रोकने वाले अधिकारी जो ग़ैर-इस्लामी है मुहतसिब कहलाता था। शराब पीने से रोकने वाला अधिकारी। | ||
*मुहतसिब- ऐसी सभी बातो को रोकने वाले अधिकारी जो | |||
*मैमार- इमारतों का निर्माण करने वाले इंजीनियर को मैमार कहा जाता था। | *मैमार- इमारतों का निर्माण करने वाले इंजीनियर को मैमार कहा जाता था। | ||
* | *मुक़द्दम- गांव का मुखिया। | ||
* | *वक़्फ़- वह धन, सम्पत्ति व भूमि जिसे धार्मिक कार्यो हेतु सुरक्षित रखा जाता है। | ||
*वली- | *वली- प्रान्तों में सुल्तान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था। प्रांत स्तर के समस्त अधिकारी उसके पास होते थे। | ||
* | *सदक़ा- एक प्रकार का धार्मिक कर। | ||
*समा- | *समा- सूफ़ियों का संगीत तथा नृत्य। | ||
* | *सरख़ैल- दस सवारों का सरदार। | ||
* | *शहन-ए-इमारत- भवनों के निर्माण एवं मरम्मत सम्बन्धी अधिकारी। | ||
*सरजानदार- सुल्तान के अंगरक्षकों का सरदार। | *सरजानदार- सुल्तान के अंगरक्षकों का सरदार। | ||
*सरजामदार- सुल्तान के | *सरजामदार- सुल्तान के वस्त्रों का मुख्य प्रबन्धक। | ||
*सरहंग- निम्न वर्ग का एक कर्मचारी। | *सरहंग- निम्न वर्ग का एक कर्मचारी। | ||
*हदीस- मुहम्मद साहब के कथनों तथा उनके जीवन से सम्बन्धित कहानियों का संग्रह। | *हदीस- [[मुहम्मद साहब]] के कथनों तथा उनके जीवन से सम्बन्धित कहानियों का संग्रह। | ||
*हश्म-ए- | *हश्म-ए-अतरफ़- प्रान्तों की सेना। | ||
*हश्म-ए- | *हश्म-ए-क़ल्ब- '''क़ल्ब''' का शाब्दिक अर्थ 'हृदय' होता है। हश्म-ए-क़ल्ब दिल्ली की सेना के लिए प्रयुक्त होता था। | ||
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सल्तनतकालीन महत्वपूर्ण शब्दावली
- आरिज़े मुमालिक- यह दीवाने-ए-अर्ज (सैन्य विभाग) का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
- अक़ता- यह वह भूमि होती थी जिसकी आय सेना के सरदारों को सेना रखने एवं उचित देखभाल के लिए दी जाती थी। अक़ता भूमि उनसे वापस ले ली जाती थी जो सेना में रहने योग्य नहीं रहते थे।
- अमीर-ए-दाद - सुल्तान के राजधानी में अनुपस्थित होने पर यह दीवान-ए-मजलिस की अध्यक्षता करता था। इसे दादबक भी कहा जाता था।
- अमीर-ए-बहार- नौकाओं का प्रबंध करने वाला अधिकारी।
- आमिल- ग्रामों में भूमि कर वसूल कर अधिकारी।
- इतलाकी- यह वह भूमि होती थी जिसकी देख-रेख सुल्तान के कर्मचारी करते थे।
- इद्रार- विद्वानो एवं धार्मिक लोगो को दी जाने वाली आर्थिक मदद।
- क़ुब्बा- ख़ुशी के समय मार्गो में बनने वाला एक प्रकार का तोरण द्वार या गुम्बद।
- कु - उस व्यक्ति को ‘कु’ कहा जाता था जो अल्लाह एवं क़ुरान में विश्वास नहीं करता था।
- ख़ान- सरख़ैलों, सिपहसालारों, अमीरों एवं मालिकों के अधिकारी को ख़ान कहते थे।
- ख़ानक़ाह- सूफ़ी-सन्तों के आरामगाह को ख़ानक़ाह कहा जाता था।
- ख़लासा भूमि- इस भूमि का प्रबन्ध स्वंय सुल्तान करता था।इस भूमि से होने वाली आय सुल्तान के ख़ज़ाने में जाती थी।
- ख़ासख़ैल- शाही महल से सम्बन्धित सेना होती थी।
- ख़ासदार- सुल्तान के अस्त्र-शस्त्र का प्रबंध करने वाला अधिकारी।
- ख़िर्क़ा- शेख़ों द्वारा पहना जाने वाला ऊपरी वस्त्र। शब्दकोश में इसका अर्थ है- गुदड़ी, फटा-पुराना लिबास; किसी ऋषि या वली के शरीर से उतरा हुआ लिबास।
- ख़राज- ग़ैर मुसलमानों पर लगाया जाने वाला भू-राजस्व।
- ज़िम्मी- किसी स्वतंत्र राज्य को जीतने के बाद यदि वहां की जनता इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करती थी परन्तु जज़िया कर देना स्वीकार कर लेती थी उसे ज़िम्मी कहा जाता था।
- जहांदारी- राज्य व्यवस्था या शासन प्रबन्ध।
- तज़्कीर- एक प्रकार का धर्मोपदेश।
- तफ़सीर- क़ुरान का अनुवाद एवं समीक्षा।
- तलीआ- तलाया या तलीया सेना का अग्रमि भाग जो शत्रुओं की वास्तविक स्थिति का पता लगाता था।
- दबीर- शाही पत्र व्यवहार की देखभाल करने वाले विभाग का अधिकारी।
- दीवाने-क़ज़ा - साधारण झगड़ों के बारे में निर्णय देने वाला अधिकारी।
- नायक बारबक - दरबार के समस्त कार्यों की देख-भाल करने वाले कर्मचारियों का अधिकारी नायक बारबक कहलाता था।
- नौबत- नगाड़ा, तुराही, बिगुल, झांझ, बांसुरी आदि वाद्ययन्त्रो के सम्मिलित समूह को को नौबत कहा जाता था। यह ख़ुशी के मौक़े पर बजाई जाती थी।
- पायक- सेना के पैदल सैनिको को पायक कहते थे।
- फ़तवा- शरीयत के आधार पर किसी समस्या के समाधान का निर्णय।
- फ़िक़ह- इस्लामी धर्मनीति के ज्ञान को फ़िक़ह कहा जाता था।
- फ़वाजिल / विभाग फ़ाजिल- अधिशेष भूराजस्व।
- बरीद- समाचार वाहक।
- बलाहर- साधारण किसानों को कहा जाता था।
- मावास- उस घने जंगल एवं पहाड़ी इलाक़े वाले भाग को कहते थे जहां प्रायः विद्रोही विद्रोह करके छिप जाते थे।
- मसाहत- भूमि की पैमाइश।
- मिल्क़- वह भूमि जो विद्वानो एवं धार्मिक कार्यो के लिए दी जाती थी। यह भूमि वंशानुगत होती थी।
- मुक़ता- बड़ी अक़ता के मालिक मुक़ता कहलाते थे।
- मुतसर्रिफ़- गांवो में किसानों से भूमिकर वसूल करने वाले अधिकारी।
- मुहतसिब- ऐसी सभी बातो को रोकने वाले अधिकारी जो ग़ैर-इस्लामी है मुहतसिब कहलाता था। शराब पीने से रोकने वाला अधिकारी।
- मैमार- इमारतों का निर्माण करने वाले इंजीनियर को मैमार कहा जाता था।
- मुक़द्दम- गांव का मुखिया।
- वक़्फ़- वह धन, सम्पत्ति व भूमि जिसे धार्मिक कार्यो हेतु सुरक्षित रखा जाता है।
- वली- प्रान्तों में सुल्तान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था। प्रांत स्तर के समस्त अधिकारी उसके पास होते थे।
- सदक़ा- एक प्रकार का धार्मिक कर।
- समा- सूफ़ियों का संगीत तथा नृत्य।
- सरख़ैल- दस सवारों का सरदार।
- शहन-ए-इमारत- भवनों के निर्माण एवं मरम्मत सम्बन्धी अधिकारी।
- सरजानदार- सुल्तान के अंगरक्षकों का सरदार।
- सरजामदार- सुल्तान के वस्त्रों का मुख्य प्रबन्धक।
- सरहंग- निम्न वर्ग का एक कर्मचारी।
- हदीस- मुहम्मद साहब के कथनों तथा उनके जीवन से सम्बन्धित कहानियों का संग्रह।
- हश्म-ए-अतरफ़- प्रान्तों की सेना।
- हश्म-ए-क़ल्ब- क़ल्ब का शाब्दिक अर्थ 'हृदय' होता है। हश्म-ए-क़ल्ब दिल्ली की सेना के लिए प्रयुक्त होता था।
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