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* प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र | * प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र | ||
* मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद | * मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* संसार में अपने पंखों को फैलाना सीखो क्योंकि दूसरों के पंखों के सहारे उड़ना संभव नहीं। ~ इकबाल | * संसार में अपने पंखों को फैलाना सीखो क्योंकि दूसरों के पंखों के सहारे उड़ना संभव नहीं। ~ इकबाल | ||
* तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम | |||
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास | |||
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण | |||
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन | |||
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी | |||
===संकल्प बनाए छोटा-बड़ा=== | ===संकल्प बनाए छोटा-बड़ा=== |
19:10, 21 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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विषय सूची
- 1 स
- 1.1 सुंदर दिखना
- 1.2 स्त्री विश्वास चाहती है
- 1.3 सत्याग्रह की तलवार
- 1.4 संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है
- 1.5 संतुलन की कला
- 1.6 सच्ची शिक्षा
- 1.7 साहस और धैर्य
- 1.8 साहस के मुताबिक संकल्प
- 1.9 सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति
- 1.10 सरलता कुटिलों के प्रति नीति नहीं
- 1.11 सोच-विचार कर करो
- 1.12 सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है
- 1.13 सत्य सदा का है
- 1.14 सभी आभूषण भार हैं
- 1.15 सोच-विचार कर करो
- 1.16 सौन्दर्य पवित्रता में रहता है
- 1.17 संयम से वैर नहीं बढ़ता है
- 1.18 सत्य सदैव निराला होता है
- 1.19 संगत से चरित्र में परिवर्तन
- 1.20 संतोष में सर्वोत्तम सुख है
- 1.21 स्वार्थ बड़ा बलवान है
- 1.22 संकल्प बनाए छोटा-बड़ा
- 1.23 सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है
- 1.24 सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है
- 1.25 सुख दूसरों को सुखी करने में है
- 1.26 सेवा करके विज्ञापन मत करो
- 1.27 संगति बुद्धि के अंधकार को हरती
- 1.28 संतुष्ट मनवाला सदा सुखी रहता है
- 1.29 सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है
- 1.30 सच पर विश्वास रखो
- 1.31 साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती
- 1.32 सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं
- 1.33 समग्र विश्व एक ही परिवार है
- 1.34 सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है
- 1.35 स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है
- 1.36 संकल्पित लोग इतिहास बदल सकते हैं
- 1.37 संवेदनशील बनो और निर्मल भी
- 1.38 सुकर्म के बीज से ही महान फल
- 1.39 संसार वीरों की चित्रशाला है
- 1.40 सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता
- 1.41 सज्जन लोग अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते
- 1.42 सारा संसार ही कुटुंब है
- 1.43 संसार और स्वप्न
- 1.44 सुदिन सबके लिए आते हैं
- 1.45 सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है
- 1.46 संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री
- 1.47 सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं
- 1.48 सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता
- 2 म
- 2.1 मनुष्य की चाहत
- 2.2 मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है
- 2.3 मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती
- 2.4 मन से सत्य शुद्ध होता है
- 2.5 मन को शुभ संकल्प बनाओ
- 2.6 मुहब्बत रूह की खुराक
- 2.7 महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें
- 2.8 मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर
- 2.9 मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे
- 2.10 मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं
- 2.11 मनुष्य अकेला आता है
- 2.12 मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है
- 2.13 मनुष्य गोत्र और धन से शुद्ध नहीं होता
- 2.14 मान-बड़ाई मीठी छुरी है
- 2.15 मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए
- 2.16 मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है
- 2.17 महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके
- 3 प
- 3.1 प्रेम के मार्ग में चतुराई बुरी है
- 3.2 पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है
- 3.3 पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं
- 3.4 परोपकार से पुण्य होता है
- 3.5 पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है
- 3.6 प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है
- 3.7 प्रीति नहीं प्रयोजन ने किया बेड़ा गर्क
- 3.8 पहले जैसी स्थिति
- 3.9 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'
- 3.10 परोपकार का आचरण मत त्यागो
- 3.11 प्रेम में स्मृति का ही सुख है
- 3.12 पत्नी और पति
- 3.13 परिवर्तन ही सृष्टि है
- 3.14 प्रार्थना धर्म का निचोड़ है
- 3.15 प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती
- 3.16 प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है
- 3.17 पूजा हमेशा गुण की होती है
- 3.18 प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना
- 3.19 प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए
- 3.20 परोपकार का आचरण मत त्यागो
- 3.21 प्रेमी हृदय उदार होता है
- 3.22 पीड़ितों की सेवा
- 3.23 प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें
- 3.24 परंपरा और विद्रोह
- 3.25 पतित होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है
- 3.26 पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए
- 3.27 प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं
- 3.28 प्रेम का एक कण संसार पर भारी
- 3.29 प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है
- 3.30 परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है
- 3.31 प्रतीक्षा भी सेवा
- 3.32 पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें
- 3.33 पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है
- 3.34 परिचय के पीछे स्वार्थ न हो
- 3.35 प्रार्थना
- 3.36 प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है
- 3.37 प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है
- 3.38 प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है
- 3.39 प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है
- 3.40 प्रेम से शांत होता है वैर
- 3.41 पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है
- 3.42 प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है
- 3.43 परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर
- 4 व
- 4.1 विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है
- 4.2 विश्राम की बात कैसे
- 4.3 विचार ही कार्य का मूल है
- 4.4 विजय सदा ही भव्य होती है
- 4.5 वह पशुओं से भी गया-बीता है
- 4.6 विवेकहीन बल
- 4.7 विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत
- 4.8 विचार ही कार्य का मूल है
- 4.9 विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है
- 4.10 विशेष भाव से प्रेम करना बंधन है
- 4.11 वीर संसार को हिला सकते हैं
- 4.12 विरोध अनिवार्य है
- 4.13 विद्या ही पूजनीय बनाती है
- 4.14 विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न होती है
- 4.15 वही मंगल है जिससे मन प्रसन्न हो
- 4.16 विद्या, तप और कीर्ति अतिधन है
- 4.17 वाणी न होती तो धर्म-अधर्म का ज्ञान भी न होता
- 4.18 विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है
- 5 श
- 5.1 शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं
- 5.2 शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं
- 5.3 शांति की अपनी विजयें होती हैं
- 5.4 शोक का भागी होता है
- 5.5 शंका का अंत शांति का प्रारंभ है
- 5.6 शांति से क्रोध को जीतें
- 5.7 शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती
- 5.8 शक्ति भय के अभाव में रहती है
- 5.9 शस्त्र जहां हार जाते हैं, वहीं बुद्धि जीतती है
- 5.10 शील के लिए सात्विक हृदय
- 5.11 शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है
- 5.12 शांति सदा अच्छी नहीं होती
- 5.13 शिष्टाचार का मूल सिद्धांत
- 6 भ
- 7 ह
- 8 य
- 9 ल
- 10 ब
- 11 ज्ञ
- 12 र
- 13 क्ष
- 14 श्र
- 15 फ
- 16 टीका टिप्पणी और संदर्भ
- 17 बाहरी कड़ियाँ
- 18 संबंधित लेख
स
सुंदर दिखना
- यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
- सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। ~ सुदर्शन
- जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। ~ भगवतीचरण वर्मा
- सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। ~ अज्ञात
स्त्री विश्वास चाहती है
- जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। ~ गीता
- स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। ~ प्रेमचंद
- स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। ~ वेदव्यास
- संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। ~ लक्ष्मीनारायण लाल
- प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। ~ जैनेंद्र कुमार
सत्याग्रह की तलवार
- सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। ~ महात्मा गांधी
- सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। ~ ईशावास्योपनिषद
- प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। ~ सत्य साईं बाबा
- सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। ~ विश्वामित्र
संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है
- संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है। वह विद्युत की भांति एकाएक उदय होती है और नष्ट हो जाती है। ~ दण्डी
- पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है। ~ रवीन्द्र
- विपत्ति में पड़े हुए पुरुषों की पीड़ा हर लेना ही सत्पुरुषों की संपत्ति का सच्चा फल है। संपत्ति पाकर भी मनुष्य अगर विपत्ति-ग्रस्त लोगों के काम न आया तो वह संपत्ति किस काम की। ~ कालिदास
- बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी। ~ अज्ञात
संतुलन की कला
- जीने का सबसे अच्छा और सर्वाधिक सुरक्षित तरीका जीवन में संतुलन रखना है। आपने आसपास और अपने भीतर की ताकत को पहचानना है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं और इस तरह जीते हैं तो आप सचमुच एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। ~ यूरीपिडीज
- इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है। ~ फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड
- मैं जिस चीज का स्वप्न देखता हूं वह है संतुलन की कला। ~ हेनरी मातीस
- इस दुनिया की बनावट इतनी दैवीय है कि यहां हममें से हर कोई अपने स्थान और समय में अन्य दूसरी चीजों से एक विरल संतुलन में अवस्थित है। ~ गाइथे
सच्ची शिक्षा
- सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा का आधार है। ~ महात्मा गांधी
- संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियां हैं, शिक्षा सबसे बढ़कर है। ~ निराला
- शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है। ~ अज्ञात
साहस और धैर्य
- साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। ~ महात्मा गांधी
- साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। ~ नारायण पंडित
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
साहस के मुताबिक संकल्प
- जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी
- यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। ~ गेटे
- हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। ~ ऋग्वेद
- निष्काम होकर नित्य पराक्रम करने वाले की गोद में उत्सुक होकर सफलता आती ही है। ~ भारवि
- सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। ~ जॉनसन
सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति
- बैर के कारण उत्पन होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। ~ वेदव्यास
- ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी
- सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
- ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग ही भक्ति है। ~ भक्तिदर्शन
सरलता कुटिलों के प्रति नीति नहीं
- देवता श्रम करने वाले के अतिरिक्त किसी और से मित्रता नहीं करते हैं। ~ ऋग्वेद
- सरलता कुटिल व्यक्तियों के प्रति नीति नहीं है। ~ नैषिधीपंचारत
- युक्तिपूर्वक कार्य करनेवाले मनुष्य के कार्य भी असावधान हो जाने से नष्ट हो जाते हैं। ~ शिशुपालवध
- धन में आसक्त लोगों का न कोई गुरु होता है और न कोई बंधु। ~ नीतिशास्त्र
- चींटी चलती रहे तो हजारों योजन पार कर जाती है। न चलता हुआ गरुण भी एक कदम आगे नहीं चलता। ~ मार्कण्डेय पुराण
सोच-विचार कर करो
- कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। ~ शेक्सपियर
- हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल
- अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। ~ फारसी कहावत
- बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट
सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है
- सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। ~ एडलाइ स्टीवेन्स
- दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। ~ वीणावासवदत्ता
- भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता
- परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ बाण भट्ट
- बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। ~ एरिस्टोफेनिज
सत्य सदा का है
- सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
- प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। ~ सेंट एम्ब्रोज
- सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। ~ अरविंद
सभी आभूषण भार हैं
- सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। ~ उत्तराध्ययन
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
सोच-विचार कर करो
- कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। ~ शेक्सपियर
- हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल
- अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। ~ फारसी कहावत
- बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट
सौन्दर्य पवित्रता में रहता है
- प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
- सौन्दर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। - शिवानंद
- सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। - स्वामी विवेकानंद
- अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। - तुलसीदास
- जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। - जॉर्ज हरबर्ट
संयम से वैर नहीं बढ़ता है
- जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
- सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
- जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
- संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
- संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान
सत्य सदैव निराला होता है
- जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
- सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी
- झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
- जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
- सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन
संगत से चरित्र में परिवर्तन
- मनुष्य जिस संगति में रहता है, उसकी छाप उस पर पड़ती है। उसका निज का गुण छिप जाता है और वह संगति का गुण प्राप्त कर लेता है। ~ एकनाथ
- यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है। ~ उमर खैयाम
- मुझे बताओ कि तुम किनके साथ रहते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कौन हो। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
- संगत से चरित्र में परिवर्तन नहीं होता। ढाल और तलवार सदा एक साथ रहती है, पर फिर भी एक घातक है और दूसरी रक्षक। दोनों का स्वभाव भिन्न है। ~ दयाराम
संतोष में सर्वोत्तम सुख है
- अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ नहीं। ~ वेदव्यास
- जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है न सुख- वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद्
- संतोष से सर्वोत्तम सुख प्राप्त होता है। ~ पतंजलि
- जो कुछ तुझे मिल गया है, उसी पर संतोष कर और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करता रह। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। ~ हाफिज
स्वार्थ बड़ा बलवान है
- स्वार्थ बड़ा बलवान है। इसी कारण कभी-कभी मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र। ~ वेदव्यास
- दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंक कर आगे बढ़ जाती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र
- मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद
- संसार में अपने पंखों को फैलाना सीखो क्योंकि दूसरों के पंखों के सहारे उड़ना संभव नहीं। ~ इकबाल
- तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
- कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
- संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
- जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
- विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी
संकल्प बनाए छोटा-बड़ा
- संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होता है और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराता है। ~ जेम्स एलेन
- सबकुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योगवासिष्ठ
- संकल्प और भावना जीवन के दो पलड़े हैं। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए वही नीचे चला जाएगा। संकल्प कर्त्तव्य है और भावना कला। दोनों में समान समन्वय की आवश्यकता है। ~ वृंदावन लाल वर्मा
- संकल्प शक्ति मानसिक शक्तियों का शिरोमणि है। ~ शिवानंद
- मनुष्य में शक्ति की कमी नहीं होती, संकल्प की कमी होती है। ~ मेरी विक्टर ह्यूगो
सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है
- सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है। ~ बालकृष्ण भट्ट
- जिसे धर्म की शक्ति पर, धर्मस्वरूप भगवान की अनंत करुणा पर पूर्ण विश्वास है, नैराश्य का दुख उसके पास नहीं फटक सकता। ~ रामचंद्र शुक्ल
- साधन की सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है। ~ अशोकानंद
- मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
- वे विजयी हो सकते हैं जिन्हें विश्वास है कि वे कर सकते हैं। ~ एमर्सन
सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है
- दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
- हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
- संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
- जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
- सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास
सुख दूसरों को सुखी करने में है
- जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। - प्रेमचंद
- पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। - अज्ञात
- साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी
- दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हंसी हंसता है, वैसी ही हंसी, मस्ती बिखेरने वाली हंसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। - रामचरण महेंद्र
- साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित
- सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। - जेम्स एलेन
सेवा करके विज्ञापन मत करो
- जो स्वाभवत: सुंदर हैं, उनकी विकृति भी शोभादायक होती है। ~ भारवि
- सामने वाले आदमी में जिस गुण की कमी है, उस सद्गुण के प्रत्यक्ष दर्शन उसे अपने व्यवहार द्वारा करा देना ही उसकी बड़ी से बड़ी सेवा है। ~ अरुण्डेल
- सेवा करने वाले हाथ स्तुति करने वाले होठों की अपेक्षा अधिक पवित्र हैं। ~ सत्य साईं बाबा
- सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो। ~ हनुमानप्रसाद पोद्दार
- सेवा छोटी है या बड़ी, इसकी कीमत नहीं है। किस भावना से, किस दृष्टि से वह की जा रही है, उसकी कीमत है। ~ विनोबा
संगति बुद्धि के अंधकार को हरती
- अच्छी संगति बुद्धि के अंधकार को हरती है, वचनों को सत्य की धार से सींचती है, मान को बढ़ती है, पाप को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न रखती है और चारों ओर यश फैलाकर मनुष्यों को क्या क्या लाभ नहीं पहुंचाती? ~ भर्तृहरि
- मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित हो जाते हैं। ~ एमर्सन
- संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन
- वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं। ~ मलूकदास
संतुष्ट मनवाला सदा सुखी रहता है
- मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। ~ वेदव्यास
- अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद्
- संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ भागवत
सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है
- जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। ~ प्रेमचंद
- पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। ~ अज्ञात
- साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। ~ नारायण पंडित
- सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन
- हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
- अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
सच पर विश्वास रखो
- वह सत्य नहीं हे जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया-युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है। ~ देवीभागवत
- सच पर विश्वास रखो, सच ही बोलो, सच ही करो। असत्य जीतता क्यों न लगे, सत्य का मुकाबला नहीं कर सकता। ~ महात्मा गांधी
- प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों न निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। ~ संत एम्ब्रोज
- सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही सनातन ब्रह्मा है, सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है। ~ वेदव्यास
साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती
- अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है, जितनी कि किसी काम को सही ढंग से सीखने की इच्छा न होना। ~ बेंजामिन फ्रैंकलिन
- असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा
- कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
- प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है। ~ लाला हरदयाल
सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं
- शोक के मूल में प्रिय व्यक्ति या वस्तु होता है। ~ आचार्य नारायण राम
- किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दुख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं। ~ कालिदास
- मन से दुखों का चिंतन न करना ही दुखों के निवारण की औषधि है। ~ वेदव्यास
- सब कुछ दूसरे के वश में होना दुख है और सब कुछ अपने वश में होना सुख है। ~ मनुस्मृति
- जो दुख अभी तक आया नहीं है, वह दूर किया जा सकता है। ~ योगसूत्रम
समग्र विश्व एक ही परिवार है
- सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद्
- मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है ओर मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं। ~ महात्मा गांधी
- समग्र विश्व एक ही परिवार है। वर्णभेद सब असत्य है। प्रेम बंधन अमूल्य है। ~ गुरजाडा अप्पाराव
सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है
- सत्य वह नहीं हें जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आंतरिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- सभी दीपक नहीं हैं। बुद्धिमानों के लिए सत्य वचन रूपी दीपक ही दीपक है। ~ तिरुवल्लुवर
- अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटकरा हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न है। ~ अरविंद
- मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। ~ खलील जिब्रान
- सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन
स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है
- हृदयों को अर्पित करो पर उसे एक-दूसरे के संरक्षण में मत रखो। ~ खलील जिब्रान
- स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है। यही तो कारण है कि अधिकांश मनुष्य उससे डरते हैं। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शा
- एक का कर्म देखकर दूसरा भी निंदनीय कर्म करता है। लोक गतानुगतिक होता है, वास्तविकता का विचार कर कार्य नहीं करता। ~ विष्णु शर्मा
- प्रत्येक पदार्थ प्रति क्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और नित्य भी रहता है। ~ प्राकृत
- इस संसार को बाजार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। ~ विद्यापति
संकल्पित लोग इतिहास बदल सकते हैं
- दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। ~ शंकराचार्य
- कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
- मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
- सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव
संवेदनशील बनो और निर्मल भी
- ईश्वर के सामने शीष नवाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
- संवेदनशील बनो और निर्मल भी। प्रेमी बनो और पवित्र भी। ~ बायरन
- अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष
- पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं। ~ एकनाथ
- हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता
सुकर्म के बीज से ही महान फल
- सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। ~ कथासरित्सागर
- प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है। ~ चाणक्य
- द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा
- बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल
संसार वीरों की चित्रशाला है
- वीर कभी बड़े मौकों का इंतजार नहीं करते, छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
- शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना सहन नहीं होता। वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते हैं। ~ वाल्मीकि
- संपूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। वीरता भी एक सुंदर कला है, उस पर मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं। ~ जयशंकर प्रसाद
- बिना विवेक के वीरता महासमुद में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। ~ महात्मा गांधी
सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता
- सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता। उसे तो पैदा करती है उसकी धरती जिस पर वह पैदा होता है। इसी धरती के गुण और स्वभाव के अनुसार हमारा स्वभाव बनता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। ~ अज्ञात
- उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है। ~ विष्णु शर्मा
- सब गुणों को दबाकर स्वभाव सबके सिर पर बैठ रहता है। ~ नारायण पंडित
सज्जन लोग अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते
- जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी तरह सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
- परिचित गुणों का स्मरण रखने वाले उत्तम लोग सारे दोषों को स्मरण रखने में कुशल नहीं होते। ~ माघ
- आए हुए उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना सज्जनों का कुलव्रत है। ~ विशाखदत्त
- सज्जन पुरुष दुष्टों के संसर्ग से अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते। ~ क्षेमेन्द्र
- सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है। ~ श्री हर्ष
सारा संसार ही कुटुंब है
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
- उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना
- जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
- सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
संसार और स्वप्न
- संसार स्वप्न की तरह है। जिस प्रकार जागने पर स्वप्न झूठा प्रतीत होता है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार मिथ्या प्रतीत होता है। ~ याज्ञवल्क्य
- आवेश और क्रोध को वश में कर लेने पर शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित कर दिया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
- अमरत्व को प्राप्त करना अखिल विश्व का स्वामी बनना है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है। ~ सुभाष चन्द्र बोस
- आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
सुदिन सबके लिए आते हैं
- हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हुए हैं जिस प्रकार प्रकाश के साथ छाया। सच्चा सुखी वही है जिसकी दृष्टि में दोनों समान हैं। ~ धम्मपद
- लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण दुख होते हैं। अत: लोभ, रस और स्नेह का त्याग करके सुखी हो जाओ। ~ नारायण स्वामी
- सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात
- सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन
सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है
- हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
- प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन
- प्रेरणा की हर अभिव्यक्ति में पुरुषार्थ और पराक्रम की आवश्यकता है। ~ जैनेंद्र
- चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता। ~ कालिदास
- सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रयाजी
संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री
- क्षीण हुआ चंद्रमा पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
- यद्यपि संतोष कड़वा वृक्ष है, तथापि इसका फल बड़ा ही मीठा और लाभदायक है। ~ मौलाना रूमी
- संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। उदान
- संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है। ~ सनाई
- आपत्ति काल में प्रकृति बदल देना अच्छा, परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छी नहीं। ~ अभिनंद
सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं
- सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आत्यंतिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- जब हम सत्य को पाते हैं तब वह अपने सारे अभाव और अपूर्णता के बावजूद हमारी आत्मा को तृप्त करता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सत्य सर्वदा स्वाबलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है। ~ महात्मा गांधी
- सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। ~ सुत्तनिपात
सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता
- सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी
- प्रेम हृदय के समस्त सद्भावों का शांत, स्थिर, उद्गारहीन समावेश है। ~ प्रेमचंद
- प्रेम दुख और वेदना का बंधु है। इस संसार में जहां दुख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
- पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन
- प्रेम बिना तर्क का तर्क है। ~ शेक्सपियर
म
मनुष्य की चाहत
- एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
- मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
- जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
- कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद
मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है
- मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
- जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
- दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
- यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
- समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि
मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती
- जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक
- जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन
- अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
- जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
मन से सत्य शुद्ध होता है
- जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
- शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार
- शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता हे और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेदव्यास
मन को शुभ संकल्प बनाओ
- आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
- इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
- जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात
- हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद
मुहब्बत रूह की खुराक
- मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
- प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
- प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद
- प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल
- कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह
महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें
- विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी
- दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
- किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
- विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण
मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर
- ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है। ~ भर्तृहरि
- प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की। ~ प्रेमचंद
- मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। ~ विवेकानंद
- मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है। ~ वेदव्यास
मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे
- कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति
- ऐच्छिक प्रेम उत्तम है, परंतु बिना याचना के दिया हुआ प्यार बेहतर है। ~ शेक्सपियर
- प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है। ~ महात्मा गांधी
- मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे। ~ मारकस आंटोनियस
- जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। ~ अज्ञेय
मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं
- निरंतर अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
- परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। - सोमदेव
- परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है। - कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
- जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। - बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
मनुष्य अकेला आता है
- मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
- परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
- तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
- किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
- विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेम चंद
मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है
- जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
- हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। ~ वाल्मीकि
- मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
मनुष्य गोत्र और धन से शुद्ध नहीं होता
- सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
- शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। ~ मिल्टन
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिम निकाय
- किसी के धन का लालच मत करो। ~ ईशावास्योपनिषद्
मान-बड़ाई मीठी छुरी है
- प्रशंसा कीजिए जब हम दौड़ें, सांत्वना दीजिए जब हम गिरें, प्रोत्साहित कीजिए जब हमारा पुनरुत्थान हो, किंतु भगवान के लिए हमें बढ़ने दीजिए। ~ एडमंड बर्क
- देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता। ~ ऋग्वेद
- तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
- ईश्वर के सामने सिर झुकाने से ही क्या बनता है, जब हृदय अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
- मान-बड़ाई मीठी छुरी है। विष भरा सोने का घड़ा है। ~ शिव
- अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उडि़या लोकोक्ति
मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए
- जो दूसरों में दोष निकालते हैं, वे अपने दोषों से अनभिज्ञ रहते हैं। ~ वेमना
- धन तो असमय के मेघ के समान अकस्मात आता है और चला जाता है। ~ सोमदेव
- किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
- यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा? ~ कालिदास
- यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
- जहां धन होता है, वहां त्याग-बुद्धि नहीं होती है। जहां शौर्य होता है, वहां विवेक शून्य होता है। ~ पानुगंटि
मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है
- भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
- उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है। ~ भट्टनारायण
- यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
- पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो। ~ यूरोपिडीज
- सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है। ~ जयशंकर प्रसाद
महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके
- जो प्रकृति से ही महान हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक)ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती। - चाणक्य
- संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। - विष्णु शर्मा
- विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। - इत्तिवृत्तक
- मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। - गुरुदत्त
प
प्रेम के मार्ग में चतुराई बुरी है
- प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
- प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
- हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
- कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
- राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है। - कालिदास
- किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। - गेटे
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
- जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स ऐंथनी फ्राउड
- जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। - वल्लभदेव
- जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है
- मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। - जयशंकर प्रसाद
- जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। - स्वामी रामतीर्थ
- जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है। - महात्मा गांधी
- पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है। - सुदर्शन
पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं
- पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
- जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
- तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति
परोपकार से पुण्य होता है
- जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र
- दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि
- परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। - पंचतंत्र
- वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है। - कालिदास
- त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम
पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है
- दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान
- यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम
- पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
- असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। - शेख सादी
- यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन
प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है
- असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा
- जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन
- प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
- प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। - बफां
- प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स
प्रीति नहीं प्रयोजन ने किया बेड़ा गर्क
- आप दूसरों को तभी ऊपर उठा सकते हैं, जब आप स्वयं भी ऊपर उठ चुके हों। ~ शिवानंद
- दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी फेंक कर आगे बढ़ जाती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र
- मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद
पहले जैसी स्थिति
- हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद
- पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी
- कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन : ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। - लोकोक्ति
- राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ
'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'
- इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व
- आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
- 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है। - आंगिरसस्मृति
- आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार
परोपकार का आचरण मत त्यागो
- मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा
- परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य
- अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
- संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
- शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात
प्रेम में स्मृति का ही सुख है
- प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी
- जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
- प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
- प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
पत्नी और पति
- पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक
- हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा
- अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख
- जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड
- पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां
परिवर्तन ही सृष्टि है
- परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है। ~ जयशंकर प्रसाद
- पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है। ~ महात्मा गांधी
- परोपकार के लिए कुछ जाल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है। ~ प्रेमचंद
प्रार्थना धर्म का निचोड़ है
- प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। प्रार्थना दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है, यह हृदय के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम है। ~ महात्मा गांधी
- मैं भगवान से अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता। मेरी यही एक प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अंत:करण में स्थित होकर मैं ही उनके समस्त दुखों को सहूं। ~ श्रीमद्भागवत
- बारिश का परिणाम शरीर पर और उसके द्वारा मन पर होता है तो प्रार्थना का परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है। ~ विनोबा
प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती
- उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं। ~ वल्लभदेव
- प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती। जो परिश्रमी है, वही सब कुछ प्राप्त करता है। ~ महादेवी वर्मा
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
- सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात
- जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं। ~ मिल्टन
प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है
- हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरु जी
- जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। ~ प्रेमचंद
- प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है वहां प्रेम नहीं है। ~ अश्विनीकुमार दत्त
- प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। ~ जयशंकर प्रसाद
पूजा हमेशा गुण की होती है
- गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं। ठीक वैसे ही जैसे पूर्ण चंद्रमा उतना वंदनीय नहीं है जितना निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
- जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है। ~ भगवान महावीर
- सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात
प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना
- हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी
- जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
- स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए
- जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। ~ शेक्सपियर
- बंधन बहुत तरह के हैं, पर प्रेम की डोर से बंध जाना तो कुछ और ही है। ~ अज्ञात
- संसार में स्नेह के बंधनपाश लोहे से भी बढ़कर कठोर होते हैं। ~ बाणभट्ट
- अतिशय प्रेम अनेक बार परिचित वस्तु को भी नया-नया कर देता है। ~ माघ
- प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए। ~ कालिदास
परोपकार का आचरण मत त्यागो
- मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
- विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेमचंद
- किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
- परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
- तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
प्रेमी हृदय उदार होता है
- प्रेमी हृदय उदार होता है, वह दया और क्षमा का सागर है, ईर्ष्या और दंभ के नाले उसमें मिल कर उसे विशाल बना देते हैं। ~ प्रेमचंद
- जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह चढ़ता है। ~ गांधी
- जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न पाने पर खिन्न होता है। ~ वाल्मीकि
पीड़ितों की सेवा
- जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध
- सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद
- सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी
- निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा
प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
- जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
परंपरा और विद्रोह
- अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, परायी बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उड़िया लोकोक्ति
- जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
- जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
- परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर
- किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी जरूरत पड़ती है। ~ गेटे
पतित होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है
- बच्चों का हृदय कोमल थाला है, चाहे इसमें कटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे। ~ जयशंकर प्रसाद
- सद्बुद्धि वाले पुरुष को अल्प सुख एवं अधिक क्लेश वाला कार्य नहीं करना चाहिए। ~ अचिन्त्यानन्द वर्णी
- मरुस्थल की मरीचिका जैसी लक्ष्मी बुद्धिमान को मोहित नहीं कर पाती। ~ सोमदेव
- बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि। ~ भल्लट भट्ट
- पतित अथवा पथभ्रष्ट होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है। ~ क्षेमेंद्र
पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए
- ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते। न वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों के हाथों ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आंखों से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान बिखेरता है। ~ खलील जिब्रान
- दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडिसन
- यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए। ~ लाओ-त्से
- दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। ~ तुकाराम
- तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं
- भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
- प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
- प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
- प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
- प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन
प्रेम का एक कण संसार पर भारी
- नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
- जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
- प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
- सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद
प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है
- सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
- प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
- जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
- प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
- प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर
परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है
- परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही असली प्रगति है। - दिनकर
- परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि जीवंत आत्मा का सतत आवास है। - राधाकृष्णन
- परंपरा बंधन नहीं है, वह मनुष्य की मुक्ति (अपने लिए ही नहीं, सबके लिए मुक्ति) की निरंतर तलाश है। - विद्यानिवास मिश्र
- आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। - धम्मपद
प्रतीक्षा भी सेवा
- जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं। ~ मिल्टन
- काया के पिंजरे चाहे जितने रंगों के हों, पर मन का पंछी तो सबमें एक ही जैसा है। ~ अमृतलाल नागर
- यदि मन में प्रपंच हो तो मन में भगवान का वास नहीं हो सकता, और यदि मन में भगवान हों तो प्रपंच हो नहीं सकता। ~ दयाराम
- जब तक अन्त:करण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता। ~ प्रेमचंद
पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें
- तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठ पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
- तपस्या से लोगों को विस्मित न करें। यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। ~ मनुस्मृति
- युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडल होम्स
- संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
- कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा
पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है
- समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर ) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। - भास
- मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
- दूसरों की प्राण रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है। - बाणभट्ट
- पुण्य रूपी वृक्ष में तत्काल ही अचिंतनीय फल उत्पन्न होते हैं। - सोमदेव
- पीड़ा का सीमातीत हो जाना ही उसकी चिकित्सा है। जैसे बिंदु का समुद्र में विलीन होना ही उसका सुख व विश्राम पा जाना है। - गालिब
परिचय के पीछे स्वार्थ न हो
- प्रियतम की स्मृति भक्तों का परम धन है जो ज्ञान उन्हें इस धन से वंचित करता हुआ रस शून्य बनाने की प्रेरणा देता है उनकी दृष्टि में वह सर्वथा घातक है। ~ राम किंकर उपाध्याय
- पराजय से सत्याग्रही और अहिंसक की आत्मा को निराशा नहीं होती। उससे तो कार्य-क्षमता और लगन बढ़ती है और सत्य से मनुष्य की बुद्धि परिष्कृत होकर उसका मार्ग-दर्शन करती है। ~ महात्मा गांधी
- किसी को अपना परिचय देना बुरा नहीं है, बुरा तभी है जब वह किसी स्वार्थ या अहंकार से दिया जाता है। ~ अज्ञात
प्रार्थना
- प्रार्थना तभी प्रार्थना है जब वह अपने आप हृदय से निकलती है। ~ महात्मा गांधी
- दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं। ~ विनोबा
- क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। ~ वेदव्यास
- गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु मूर्ख के सिवा कोई उसे जारी नहीं रख सकता। ~ सिसरो
- जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं। ~ अज्ञात
प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है
- बिना प्रेम किए मर जाने से ज्यादा दुखद कुछ कोई और नहीं हो सकता। लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह है कि जिसे आप प्रेम करते हों, उसे बिना यह बताए ही दुनिया से विदा हो जाएं, कि आप उससे प्रेम करते थे। ~ अज्ञात
- प्रेम निकाल दो तो यह पृथ्वी कब्र है। ~ रॉबर्ट ब्राउनिंग
- जितनी गहराई, ऊंचाई और विस्तार तक मेरी आत्मा जा सकती है, वहां तक मैं तुमसे प्रेम करती हूं। ~ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
- जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी
- हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट(कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास) ~ कोलरिज
प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है
- प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है। ~ बाणभट्ट
- अतिशय संपन्नता को पाकर भी गर्वरहित लोग किसी को तनिक नहीं भूलते। ~ माघ
- यह स्त्री है, यह पुरुष है- यह निरर्थक बात है। वास्तव में तो सत्पुरुषों का चरित्र ही पूजा योग्य होता है। ~ कालिदास
- सज्जन लोग रत्न पाकर उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने प्रसन्न उस रत्न को किसी निर्लोभ पात्र को देकर होते हैं। ~ भास
- जो धर्माचरण करता है, जीव मात्र के प्रति तितिक्षा रखता है, जो अन्यों से तप्त किए जाने पर भी तप्त नहीं होता, वही मनुष्य श्रेय का पात्र है। ~ मत्स्यपुराण
प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है
- मन को विषाद ग्रस्त नहीं बनाना चाहिए। विषाद में बहुत बड़ा दोष है। जैसे क्रोध में भरा हुआ सांप बालक को काट खाता है, उसी प्रकार विषाद व्यक्ति का नाश कर डालता है। ~ वाल्मीकि
- वृक्ष अपने सिर पर गर्मी सह लेता है लेकिन अपनी छाया से औरों को गर्मी से बचाता है। ~ कालिदास
- विपत्ति आती है और चली जाती है, वीर वही है जो धीर रहे और न्याय, सचाई का त्याग न करे। ~ सुदर्शन
- प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है। ~ जयशंकर प्रसाद
प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है
- सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
- निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
- वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
- जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
- प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
- हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। - वासुदेवशरण अग्रवाल
- जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। - अज्ञात
- वही अच्छी प्रार्थना है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। - कॉलरिज
प्रेम से शांत होता है वैर
- संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होता है। ~ धम्मपद
- तृण वृत्ति वाले मृग, जल वृत्ति वाले मीन और संतोष वृत्ति वाले सज्जनों के भी इस संसार में शिकारी, मछुवा और चुगलखोर बिना कारण के ही वैरी रहते हैं। ~ भर्तृहरि
- व्यंग्य वचन दूसरों का हृदय छेदने में तीर का काम करते हैं। ~ अज्ञात
पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है
- प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
- जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है। ~ सेनेका
प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है
- चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। ~ कालिदास
- प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
- प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
- जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
- साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन
परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर
- चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर
- करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि
- वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास
- परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि
व
विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है
- विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
- जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
- विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
- विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
- विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क
विश्राम की बात कैसे
- जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा
- विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
- सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
- इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
- विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
विचार ही कार्य का मूल है
- हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
- मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
- सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
- अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
- विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी
विजय सदा ही भव्य होती है
- अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
- विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
- विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
- जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट
वह पशुओं से भी गया-बीता है
- मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
- जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद
- बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। ~ सोमदेव
- उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात
विवेकहीन बल
- जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। ~ महादेवी वर्मा
- विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। ~ वेदव्यास
- सभी सच्चे काम आराम हैं। रामतीर्थ
- इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। ~ विवेकानंद
- विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत
- आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
- न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
- भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
- मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
- अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित
विचार ही कार्य का मूल है
- हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद
- मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। ~ चाणक्य
- सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। ~ विवेकानंद
- अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। ~ योगवासिष्ठ
- विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी
विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है
- विद्या शील के अभाव में शोचनीय हो जाती है और द्वेष से अपवित्र हो जाती है। ~ क्षेमेंद्र
- जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है। ~ विष्णु पुराण
- विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न है, वह सदा फल देने वाली है। परदेश में माता के समान है। विद्या को गुप्त धन कहा गया है। ~ वृद्ध चाणक्य
- विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है। भाग्य का नाश होने के बावजूद यह मनुष्य का आश्रय बनी रहती है। ~ अज्ञात
- जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया- वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। ~ शेख सादी
विशेष भाव से प्रेम करना बंधन है
- प्राणों में छिपा हुआ प्रेम पवित्र होता है। हृदय के अंधकार में वह माणिक्य के समान जलता है, किंतु प्रकाश में वह काले कलंक के समान दिखाई देता है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। उसके अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
- प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता, दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम
- किसी व्यक्ति से विशेष भाव से प्रेम करना बंधन है। सभी से समान रूप से प्रेम करो, तब तुम्हारी सभी वासनाएं विलीन हो जाएंगी। ~ विवेकानंद
- पुष्प से भी मृदुल होता है प्रेम। बिरले ही उसकी वास्तविकता को समझ कर उससे लाभान्वित होते हैं। ~ तिरुवल्लुवर
वीर संसार को हिला सकते हैं
- शूर जन जल हीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। ~ वाल्मीकि
- वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च' करते हैं, क्योंकि हृदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
- वरात्माएं सत्कार्य में विरोध की परवा नहीं करतीं और अंत में उस पर विजय ही पाती हैं। ~ प्रेमचंद्र
- जो महान है वह महान पर ही वीरता दिखाता है। ~ नारायण पंडित
- बिना विवेक की वीरता महासमुद्र की लहर में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
विरोध अनिवार्य है
- हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। ~ महात्मा गांधी
- दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। ~ शेख सादी
- मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
- यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। ~ नवविधान
- समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। ~ भारवि
विद्या ही पूजनीय बनाती है
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
- दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
- संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
- कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
- जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
- वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। - विमल मित्र
- जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न होती है
- जो विद्या केवल पुस्तकों में रहती है और जो धन दूसरे के हाथों में रहता है, समय पड़ने पर न वह विद्या है और न वह धन। ~ लघुचाणक्य
- विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न होती है। वह सदा फल देनेवाली है। परदेश में वह माता के समान है। विद्या को इसीलिए गुप्त धन कहा जाता है। ~ वृद्धचाणक्य
- जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया, वह उसके समान है जिसने बैल जोता पर बीज नहीं बिखेरे। ~ शेख सादी
- विद्या शील के अभाव में शोचनीय और द्वेष से अपवित्र हो जाती है। ~ क्षेमेंद्र
- जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है। ~ विष्णुपुराण
वही मंगल है जिससे मन प्रसन्न हो
- वही मंगल है जिससे मन प्रसन्न हो। वही जीवन है जो परसेवा में बीते। वही अर्जित है जिसका भोग स्वजन करें। ~ गरुड़पुराण
- गलती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं। ~ रामतीर्थ
- जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ रिचर्ड कंबरलैंड
- परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ सोमदेव
- निरंतर और अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर
विद्या, तप और कीर्ति अतिधन है
- धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरु पर्वत के समान होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शांड़्धर-पद्धति
- अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है और विद्या, तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त जल्हण
- मनस्विता धन की गरमी से लता के समान झुलस जाती है। ~ बाणभट्ट
- मोहांध और अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं रहती। ~ सोमदेव
वाणी न होती तो धर्म-अधर्म का ज्ञान भी न होता
- वाणी न होती तो धर्म-अधर्म का ज्ञान भी न होता। सत्य, असत्य, साधु, असाधु ये सब वाणी की वजह से ही हमें ज्ञात हैं। ~ छन्दोग्योपनिषद
- बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किंतु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता। ~ वेदव्यास
- शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझते हैं। ~ अश्वघोष
- उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव
विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है
- प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
- विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
- पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
- जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति
श
शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं
- शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
- निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
- अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
- जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
- मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ
शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं
- अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास
- शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
- शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
- अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ
शांति की अपनी विजयें होती हैं
- शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय
- जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। - वेदव्यास
- किसी के धन का लालच मत करो। - ईशावास्योपनिषद्
- सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि
शोक का भागी होता है
- जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल-प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न खाने पर खिन्न होता है। ~ वाल्मीकि
- जब तक तकलीफ सहने की तैयारी नहीं होती तब तक फायदा दिखाई दे ही नहीं सकता। फायदे की इमारत नुकसान की धूप में बनी है। ~ विनोबा
- समय गंवाना सभी खर्चों से कीमती और व्यर्थ होता है। ~ अज्ञात
- प्रेम द्वेष को परास्त करता है। ~ गांधी
शंका का अंत शांति का प्रारंभ है
- शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
- दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
- अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
- गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
- शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क
शांति से क्रोध को जीतें
- अपने सम्मान, सत्य और वास्तविकता के लिए प्राण देनेवाला ही वास्तविक विजेता होता है। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
- जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। ~ मिल्टन
- वाकपटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुर
- जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म हाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- शांति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें तथा संतोष से लाभ को जीतें। ~ दशवैकालिक
शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती
- लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
- अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
- सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
- हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
- कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा
शक्ति भय के अभाव में रहती है
- अपने खजाने में वृद्धि करने के लिए दूसरे के हिस्से को हड़प लेने वाला व्यक्ति निकृष्ट है। - तिरुवल्लुवर
- धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। - अलेक्जेंडर पोप
- शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांस या पुट्ठों के गुणों में, जो कि हमारे शरीर में होते हैं। - महात्मा गांधी
- जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
- केवल शरीर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से उत्पन्न होता है। - स्कंदपुराण
शस्त्र जहां हार जाते हैं, वहीं बुद्धि जीतती है
- पराई बुद्धि से राजा होने से कहीं बेहतर है अपनी बुद्धि से पथिक होना। ~ लोकोक्ति
- बुद्धि बिना शक्ति के छल और कलपना मात्र है और शक्ति के बिना बुद्धि मूर्खता और उन्माद है। ~ शेख सादी
- मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए। ~ जयशंकर प्रसाद
- ब्रह्मांड कितना बड़ा है, यह सवाल नहीं है, मनुष्य की बुद्धि कितनी बड़ी है, यही सवाल है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- शस्त्र जहां हार जाते हैं, वहीं बुद्धि जीतती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
शील के लिए सात्विक हृदय
- केवल नाम की इच्छा रखनेवाला पाखंडी भी नियम का पालन कर सकता है और पूरी तरह कर सकता है, पर शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। ~ रामचंद्र शुक्ल
- अपार संपन्नता पाकर भी अहंकार से मुक्त सज्जन किसी को तनिक भी नहीं भूलता। ~ माघ
- साधु जन दुर्लभ वस्तु प्राप्त करके भी स्वार्थ-साधन में प्रवृत्त नहीं होते। ~ सोमदेव
- सज्जनों का हृदय समृद्धि में कोमल और विपत्ति के समय कठोर हो जाता है। ~ क्षेमेन्द्र
शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है
- वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
- शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
- मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
- प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात
शांति सदा अच्छी नहीं होती
- जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। ~ प्रेमचंद
- दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। ~ शेख सादी
- यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। ~ नवविधान
- समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। ~ भारवि
- किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। ~ लाला लाजपत राय
शिष्टाचार का मूल सिद्धांत
- पक्षपात, गुणों को दोष और दोष को गुण बना देता है। ~ राजशेखर
- धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी सब शील के ही आश्रय पर रहते हैं। शील ही सबकी नींव है। ~ वेदव्यास
- शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना। ~ अज्ञात
- योग्य शिष्य को जो शिक्षा दी जाती है, वह अवश्य फलती है। ~ कालिदास
भ
भलाई का जीवन
- दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम
- नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद
- भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु
- अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना
- जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस
भलाई करने वाला भलाई सिखाता है
- चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास
- प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन
- प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
- जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर
- साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन
भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं
- भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि
- भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
- यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्रनाथ
- जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन
भूखा मनुष्य
- जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। ~ तांड्य महाब्राह्मण
- केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख जगत में ख्याति नहीं पा सकता। गुफा में छिपे रहने पर भी विद्वान की सर्वत्र प्रसिद्धि होती है। ~ महाभारत
- संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है। ~ पंचतंत्र
- अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति
- भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं कर सकता? ~ हितोपदेश
भलाई करो इसी में कल्याण है
- भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्ल नारायण दासु
- अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। ~ तिक्कना
- नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। ~ प्रेमचंद
- जो मेरे साथ भलाई करता हे वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
- दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। ~ उमर खैयाम
भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां?
- आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। ~ विवेकानंद
- भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? ~ माघ
- मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। ~ खलील जिब्रान
- अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। ~ नारायण पंडित
- न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। ~ चाणक्य नीति
भूतकाल स्वप्न और भविष्यकाल अनुमान
- जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में समभाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास
- जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है। ~ आचारांग
- भूतकाल स्वप्न है और भविष्य काल अनुमान है और वह समय जो वर्तमान है, उसे गनीमत समझ। ~ फारसी लोकोक्ति
- सभ्यताओं का जन्म असाधारण रूप से कठिन परिवेशों में होता है, न कि असाधारण रूप से सरल परिवेशों में। ~ आर्नोल्ड टायनबी
- दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है। ~ विसुद्धिमग्ग
भगवान तुम्हारे सामने है
- मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा
- भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
- भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। - सत्य साईं बाबा
- यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्र
- जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन
ह
हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति की तरह हो
- एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
- जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
- प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
- माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात
- जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। - खलील जिब्रान
- हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। - महात्मा गांधी
- चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हो जाती हैं। - समर्थ रामदास
- शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील ही श्रेष्ठ आभूषण और रक्षा करनेवाला कवच है। - थेर गाथा
हृदय की पुस्तक
- संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
- ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
- संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
- मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
- जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
- प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर
हर मन एक माणिक्य है
- वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
- समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
- शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
- हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी
हर शरीर में सात ऋषि हैं
- प्रत्येक शरीर में सात ऋषि हैं। ये सातों प्रमाद रहित हो कर उसका रक्षण करते हैं। जब ऋषि सोने जाते हैं, तब भी भीतर बैठे देव जागते हैं और इस यज्ञशाला की रक्षा करते हैं। - यजुर्वेद
- अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है। - कालिदास
- जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार वेद ही है। - साने गुरु जी
- अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। - रामतीर्थ
- उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। - अज्ञात
हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है
- यदि तुम भूलों को रोकने के लिए द्वार बंद कर दोगे तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- सोई हुई आत्मा को जगाने के लिए भूलें एक प्रकार की दैविक यंत्रणाएं जो हमें सदा के लिए सतर्क कर देती हैं। ~ प्रेमचंद
- दूसरों की भूलों से बुद्धिमान लोग अपनी भूलें सुधारते हैं। ~ साइरस
- यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ शिक्षा दे सकती है। ~ डिकेंस
य
यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण
- मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात
- हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी
- सब लोग हृदय के दृढ़ संकल्प से श्रद्धा की उपासना करते हैं, क्योंकि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। - ऋगवेद
- यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। - रामचंद्र शुक्ल
- श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। - अज्ञेय
- चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। - समर्थ रामदास
- अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर
योग्यता और व्यक्तित्व
- न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित
- किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
- दीपक के नीचे का अंधकार दूर करने के लिए दूसरा दीपक जलाने का प्रयत्न करना चाहिए। - संस्कृत लोकोक्ति
- किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। - लाला लाजपतराय
- दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। - एपिक्युरस
योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है
- व्यक्ति की पूजा की बजाय गुण-पूजा करनी चाहिए। व्यक्ति तो गलत साबित हो सकता है और उसका नाश तो होगा ही, गुणों का नाश नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
- पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
- अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
ये तो पहिए के घेरे के समान हैं
- दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
- इस संसार में दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प हैं। इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योगवासिष्ठ
- बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे। ~ वेदव्यास
- जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख स्वयं को भी प्राप्त होता है। ~ अज्ञात
ल
लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता है
- मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास
- आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति
- वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना एक फैशन ही है। - डिजरायली
- ज्यों-ज्यों लाभ होता है त्यों-त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। - उत्तराध्ययन
- जो भविष्य का भय नहीं करता वही वर्तमान का आनंद ले सकता है। - टॉमस फुलर
- वर्तमान तो कर्म चाहता है, स्वप्न नहीं, यथार्थ के दर्शन चाहता है। - हरिकृष्ण प्रेमी
- हर स्थिति नहीं, हर क्षण अनंत मूल्य का है, क्योंकि यह संपूर्ण अनंतता का प्रतिनिधि है। - गेटे
- 'आज' निश्चित है, जो 'कल' है, वह अनिश्चित है। - शतपथ
लक्ष्मी का निवास
- उत्साही, आलस्यहीन, बहादुर और पक्की मित्रता निभाने वाले मनुष्य के पास लक्ष्मी निवास करने के लिए स्वयं चली आती है। - नारायण पंडित
- परिस्थितियां ही मनुष्य में साहस का संचार करती हैं। - हरिकृष्ण प्रेमी
- दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। - अज्ञात
- जो मारता है वह सबल है, जो भय करता है वह निर्बल है। - यशपाल
- कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। - प्रेमचंद
लोभ कभी बूढ़ा नहीं होता
- इंसान अगर लालच को ठुकरा दे, तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्योंकि संतोष ही इंसान का माथा ऊंचा रख सकता है। ~ सादी
- गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती हैं परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता, उस प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए, पर लोभी तृप्त नहीं होता। ~ वेदव्यास
- जिसमें लोभ है, उसे दूसरे अवगुण की क्या आवश्यकता? ~ भर्तृहरि
- मनुष्य बूढ़ा हो जाता है परंतु लोभ बूढ़ा नहीं होता। ~ सुदर्शन
लज्जा और संकोच करने पर ही शील
- ऐसा विनय प्रवंचकों का आवरण है, जिसमें शील न हो। शील तो परस्पर सम्मान की घोषणा करता है। ~ जयशंकर प्रसाद
- वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाता। ~ विवेकानंद
- जल से शरीर शुद्ध होता है, मन सत्य से शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
- शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करनेवाला अद्भुत कवच है। ~ थेर गाथा
- लज्जा और संकोच करने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्ध्मिग्ग
ब
बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है
- बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
- बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
- किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
- जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी
बुराई के बीज
- बुराई के बीज चाहे गुप्त से गुप्त स्थान में बोओ, वह स्थान किले की तरह चाहे सुरक्षित ही क्यों न हो, पर प्रकृति के अत्यंत कठोर , निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य कानून के अनुसार तुम्हें ब्याज सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा। ~ स्वामी रामतीर्थ
- सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है। ~ रामचन्द्र शुक्ल
- मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव समाज पर एक लांछन है। ~ विवेकानंद
- जिस आदमी का मान उसके अपने ख्याल से मर चुका है, वह जितनी हानि अपने को पहुंचा सकता है उतनी दूसरा कोई और नहीं पहुंचा सकता। ~ महात्मा गांधी
बिना त्याग के धन की शोभा नहीं
- बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती। ~ अग्नि पुराण
- रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना। ~ महात्मा गांधी
- दुखती आंखों वाले को सामने रखी दीपशिखा अच्छी नहीं लगती है। ~ कालिदास
- लोभी न परमार्थ को समझता है और न धर्म को। ~ इतिवुत्तक
- राग मिलाने वाला वासना है और द्वेष अलग करने वाली। ~ रामचंद्र शुक्ल
- मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष
बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है
- दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है - मन से दुखों की चिंता न करना। ~ वेदव्यास
- 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो। ~ डिजरायली
- बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। ~ बेकन
- शरीर जल से पवित्र होता है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है। ~ मनुस्मृति
- परोपकार के लिए कुछ छल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है। ~ प्रेमचंद
बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक
- मनुष्य को कभी अपना अनादर नहीं करना चाहिए। जो स्वयं अपना अनादर करता है, उसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता। ~ वेदव्यास
- जिस प्रकार दीवाल पर फेंकी गेंद अपने ऊपर आ गिरती है उसी प्रकार दूसरे के लिए चाही हुई हानि अपने ऊपर आ पड़ती है। ~ सोमदेव
- भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित
- जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट
- प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक
- जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन
बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत करें
- दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कहें कि यदि वे मित्र बन जाएं तो आपको लज्जित न होना पड़े। ~ शेख सादी
- कर्णि, नालीक और नाराच नामक बाणों को शरीर से निकाल सकते हैं, पर कटु वचन रूपी बाण नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि वह हृदय के भीतर धंस जाता है। ~ वेदव्यास
- हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
- जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं। ~ ऋग्वेद
बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है
- जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां धान्य भविष्य के लिए संगृहित किया हुआ है, जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं- वहां मानो लक्ष्मी स्वयंमेव आई हुई है। ~ चाणक्यनीति
- बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है। ~ सत्य साईं बाबा
- मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष
- लोक-निंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य-मार्ग में बाधक है तो उससे डरना कायरता है। ~ प्रेमचंद
- वचन का पालन करने वाला कंजूस की भांति तोल कर अपने मुख से शब्द निकालता है। ~ महात्मा गांधी
ज्ञ
ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण
- मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
- अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
- ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
- ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
- ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी
ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
- जल से शरीर शुद्ध होता है, मन सत्य से शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
- लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
- शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट
- शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है। ~ क्षेमेंद्र
ज्ञान से मन शांत
- जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
- प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। ~ गौतम बुद्ध
- जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। ~ माघ
र
रुपया वापस दिया जा सकता है, लेकिन
- जब हम अपने पैर की धूल से भी अधिक अपने को नम्र समझते हैं तो ईश्वर हमारी सहायता करता है। ~ महात्मा गांधी
- किसी का रुपया वापस दिया जा सकता है, परंतु सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण है जिसे चुकाना मनुष्य के सार्मथ्य के बाहर है। ~ सुदर्शन
- दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। ~ प्रेमचंद
- सम्मान सच्चे परिश्रम में है। ~ जी. क्लीवलैंड
राज्य का अस्तित्व
- राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
- विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो। ~ अज्ञात
- जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
- अपनी डिगनिटी को बनाए रखने के लिए मैं सदा संतोष की धूप में खड़ा रहता हूं और स्वयं को इच्छाओं की छाया से दूर रखता हूं। ~ ब्रह्माकुमार
राजलक्ष्मी तो चंचल होती है
- प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का अपना हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। ~ चाणक्य
- राजलक्ष्मी तो सर्प की जिह्वा के समान चंचल होती है। ~ भास
- राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीने के लिए नहीं। ~ अरस्तू
- वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है। ~ अज्ञात
रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता
- गूंगा कौन है? जो समयानुसार प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष
- दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है। ~ अज्ञात
- भली प्रकार प्रयुक्त की गई वाणी को विद्वानों ने कामनापूर्ण करनेवाली कामधेनु कहा है। ~ दण्डी
- प्रियजन द्वारा कही गई प्रिय बातें प्रियतर होती हैं। ~ भास
- शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता है। ~ अश्वघोष
रुपया और भय सगे भाई हैं
- अपने उपायों से ही उपकारी का उपकार करना चाहिए। उपकार बड़ा है या छोटा- इस प्रकार का विद्वानों का विशेष आग्रह नहीं होता। ~ श्रीहर्ष
- धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
- पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
- मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
- रुपया और भय संसार में साथ ही आते हैं और साथ ही चले जाते हैं। ऐसा ज्ञात होता है मानो वे दोनों सगे भाई हैं। ~ सनाई
क्ष
क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है
- जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूं, क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है। ~ गौतम बुद्ध
- क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। ~ वेदव्यास
- क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है। ~ जयशंकर प्रसाद
- यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करे तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना ही वीरों का काम है, परंतु यदि अपमान करने वाला बलवान हो तो उसे अवश्य दंड दो। ~ गुरु गोविंद सिंह
श्र
श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं
- विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है पर शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
- वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। - विवेकानंद
- शोक करनेवाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेदव्यास
- श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। - महात्मा गांधी
श्रम से सब कार्य सिद्ध
- जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते। ~ ऋग्वेद
- श्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं। ~ हितोपदेश
- श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है। ~ स्वामी कृष्णानंद
- श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करनेवाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता। ~ राम प्रताप त्रिपाठी
श्रेष्ठ वही है जो पराये को अपना ले
- सत्यप्रतिज्ञ श्रेष्ठ व्यक्ति को कटु वचन कह कर भी कौन क्षुब्ध कर सकता है? (कोई नहीं)। ~ माघ
- मुक्ति चाहने वाले विरक्त लोगों को भी अच्छे लोगों के प्रति पक्षपात होता है। ~ भारवि
- जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं। ~ योगवासिष्ठ
- पूर्ण मनुष्य वही है जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी
- वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को अपना बना ले। ~ विमल मित्र
श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है
- जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान
- श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
- उस मनुष्य पर विश्वास करो जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है। ~ जॉर्ज सांतायना
- जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। ~ वाल्मीकि
फ
फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा
- इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
- शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता। ~ अज्ञात
- संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान पाप है। ~ लोकमान्य तिलक
- मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद
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टीका टिप्पणी और संदर्भ