"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर
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-[[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]] | -[[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]] | ||
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||[[श्रीकृष्ण]] की कई रानियाँ थीं। इनमें से कई रानियों को तो उनके माता-पिता ने [[विवाह]] में प्रदान किया था और शेष को कृष्ण विजय में प्राप्त कर लाये थे। सतांन-पुराणों से ज्ञात होता है कि कृष्ण के संतानों की संख्या बड़ी थी। [[ | ||[[श्रीकृष्ण]] की कई रानियाँ थीं। इनमें से कई रानियों को तो उनके माता-पिता ने [[विवाह]] में प्रदान किया था और शेष को कृष्ण विजय में प्राप्त कर लाये थे। सतांन-पुराणों से ज्ञात होता है कि कृष्ण के संतानों की संख्या बड़ी थी। [[रुक्मणी]] से दस पुत्र और एक कन्या थी। इनमें सबसे बड़ा [[प्रद्युम्न]] था। [[भागवत]] आदि [[पुराण|पुराणों]] में कृष्ण के गृहस्थ-जीवन तथा उनकी दैनिक चर्या का हाल विस्तार से मिलता है। प्रद्युम्न के पुत्र [[अनिरुद्ध]] का विवाह 'शोणितपुर' के राजा [[बाणासुर]] की पुत्री [[ऊषा]] के साथ हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीकृष्ण]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन [[श्रीकृष्ण]] के [[नाना]] थे? | {निम्नलिखित में से कौन [[श्रीकृष्ण]] के [[नाना]] थे? | ||
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||सम्पूर्ण [[महाभारत]] 18 पर्वों में विभक्त है। कई पर्व बहुत बड़े हैं और कई पर्व बहुत छोटे। अध्यायों में भी श्लोकों की संख्या अनियत है। किन्हीं अध्यायों में 50 से भी कम [[श्लोक]] हैं और किन्हीं-किन्हीं में संख्या 200 से भी अधिक है। लक्षश्लोकात्मक महाभारत की सम्पूर्ति के लिए इन 18 पर्वों के पश्चात 'खिलपर्व' के रूप में '[[हरिवंश पुराण]]' की योजना की गयी है। हरिवंश पुराण में 3 पर्व हैं- 'हरिवंश पर्व', 'विष्णु पर्व' और 'भविष्य पर्व'। इन तीनों पर्वों में कुल मिलाकर 318 अध्याय और 12,000 श्लोक हैं। महाभारत का पूरक तो यह है ही, स्वतन्त्र रूप से भी इसका विशिष्ट महत्त्व है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | |||
{[[दुर्योधन]] कितनी अक्षौहिणी सेना का स्वामी था? | {[[दुर्योधन]] कितनी अक्षौहिणी सेना का स्वामी था? | ||
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-9 अक्षौहिणी | -9 अक्षौहिणी | ||
-7 अक्षौहिणी | -7 अक्षौहिणी | ||
||धर्मराज [[युधिष्ठिर]] 7 अक्षौहिणी सेना के स्वामी होकर [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध करने को तैयार हुए थे। पहले भगवान [[श्रीकृष्ण]] परम क्रोधी [[दुर्योधन]] के पास दूत बनकर गये। उन्होंने 11 अक्षौहिणी सेना के स्वामी दुर्योधन से कहा, "राजन! तुम युधिष्ठिर को आधा राज्य दे दो या उन्हें 5 गाँव देकर ही संतुष्ट हो जाओ; नहीं तो उनके साथ युद्ध करो।' कृष्ण की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा, 'मैं उन्हें सुई की नोंक के बराबर भी भूमि नहीं दूँगा; हाँ, उनसे युद्ध अवश्य करूँगा।' ऐसा कहकर वह भगवान कृष्ण को बंदी बनाने के लिये उद्यत हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | |||
{[[कुरुक्षेत्र]] में किस स्थान पर [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश दिया? | {[[कुरुक्षेत्र]] में किस स्थान पर [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश दिया? | ||
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-[[करुष]] | -[[करुष]] | ||
-[[अपरसेक]] | -[[अपरसेक]] | ||
||[[कुरुक्षेत्र]] [[हरियाणा]] राज्य का एक प्रमुख ज़िला है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा [[अम्बाला]], [[यमुनानगर ज़िला|यमुना नगर]], [[करनाल]] और [[कैथल]] से घिरा हुवा है। माना जाता है कि यहीं [[महाभारत]] की लड़ाई हुई थी और भगवान [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश यहीं पर 'ज्योतीसर' नामक स्थान पर दिया था। यह ज़िला 'बासमती चावल' के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता है। इसका [[ऋग्वेद]] और [[यजुर्वेद]] में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुरुक्षेत्र]] | |||
{निम्नलिखित में किस स्थान को '[[ब्रह्मा]] की यज्ञीय वेदी' कहा जाता है? | {निम्नलिखित में किस स्थान को '[[ब्रह्मा]] की यज्ञीय वेदी' कहा जाता है? | ||
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+[[कुरुक्षेत्र]] | +[[कुरुक्षेत्र]] | ||
-[[इन्द्रप्रस्थ]] | -[[इन्द्रप्रस्थ]] | ||
||ब्राह्मण-काल में अत्यन्त पुनीत नदी [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] [[कुरुक्षेत्र]] से होकर ही बहती थी, जहाँ यह मरुभूमि में अन्तर्हित हो गयी थी उसे 'विनशन' कहा जाता था और वहाँ भी एक [[तीर्थ स्थान]] था। आरम्भिक रूप में कुरुक्षेत्र '[[ब्रह्मा]] की यज्ञिय वेदी' कहा जाता था। आगे चलकर इसे 'समन्तपञ्चक' कहा गया। जबकि [[परशुराम]] ने अपने [[पिता]] की हत्या के प्रतिशोध में [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] के [[रक्त]] से पाँच कुण्ड बना डाले, जो [[पितर|पितरों]] के आशीर्वचनों से कालान्तर में पाँच पवित्र जलाशयों में परिवर्तित हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुरुक्षेत्र]] | |||
{[[शिखंडी]] किसके शिष्य थे? | {[[शिखंडी]] किसके शिष्य थे? | ||
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-[[वसिष्ठ]] | -[[वसिष्ठ]] | ||
+[[द्रोणाचार्य]] | +[[द्रोणाचार्य]] | ||
||राजा [[द्रुपद]] की पटरानी के कोई पुत्र नहीं था। [[कौरव|कौरवों]] के वध के लिए पुत्र-प्राप्ति के हेतु द्रुपद ने घोर तपस्या की और [[शिव]] ने उन्हें भी दर्शन देकर कहा कि वे कन्या को प्राप्त करेंगे, जो बाद में पुत्र में परिणत हो जायेगी। अत: जब 'शिखंडिनी' का जन्म हुआ, तब उसका लालन-पालन पुत्रवत किया गया। हिरण्यवर्मा को जब यह विदित हुआ कि [[शिखंडी]] पुरुष है, युद्ध-विद्या में [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य है, तब उसने शिखंडी का निरीक्षण-परीक्षण कर द्रुपद के प्रति पुन: मित्रता का हाथ बढ़ाया तथा अपनी कन्या को मिथ्या वाचन के लिए डांटकर राजा द्रुपद के घर से ससम्मान प्रस्थान किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिखंडी]] | |||
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10:54, 5 फ़रवरी 2012 का अवतरण
महाभारत सामान्य ज्ञान
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