"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] द्वारा रात में किये गए आक्रमण से [[कौरव]] बहुत क्रोधित थे। युद्ध के 15वें दिन [[द्रोणाचार्य]] भी क्रोध से भरे हुए थे। उन्होंने हज़ारों [[पांडव]] सैनिकों को मार डाला तथा [[युधिष्ठिर]] की रक्षा में खड़े [[द्रुपद]] तथा [[विराट]] दोनों का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के इस रूप को देखकर [[कृष्ण]] भी चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने [[अर्जुन]] से कहा कि वे आचार्य को यह समाचार दें कि [[अश्वत्थामा]] का निधन हो गया है। अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोण पर्व महाभारत]] | ||[[चित्र:Dronacharya.jpg|right|100px|धृष्टद्युम्न के हाथों द्रोणाचार्य का वध]][[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] द्वारा रात में किये गए आक्रमण से [[कौरव]] बहुत क्रोधित थे। युद्ध के 15वें दिन [[द्रोणाचार्य]] भी क्रोध से भरे हुए थे। उन्होंने हज़ारों [[पांडव]] सैनिकों को मार डाला तथा [[युधिष्ठिर]] की रक्षा में खड़े [[द्रुपद]] तथा [[विराट]] दोनों का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के इस रूप को देखकर [[कृष्ण]] भी चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने [[अर्जुन]] से कहा कि वे आचार्य को यह समाचार दें कि [[अश्वत्थामा]] का निधन हो गया है। अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोण पर्व महाभारत]] | ||
{[[महाभारत]] युद्ध के कौन-से दिन पितामह [[भीष्म]] शर-शेय्या को प्राप्त हुए? | {[[महाभारत]] युद्ध के कौन-से दिन पितामह [[भीष्म]] शर-शेय्या को प्राप्त हुए? | ||
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||इन्द्रपुरी में [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] [[अर्जुन]] पर मोहित हो गई, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उसने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसी शाप के कारण अर्जुन को '[[बृहन्नला]]' के रूप में [[विराट]] की कन्या [[उत्तरा]] को [[नृत्य]] की शिक्षा देनी पड़ी थी। बाद के समय में नागकन्या [[उलूपी]] से अर्जुन को [[इरावत]] नामक पुत्र प्राप्त हुआ। [[मणिपुर]] के राजा की कन्या [[चित्रांगदा]] से भी अर्जुन ने [[विवाह]] किया, जिसने 'बभ्रु वाहन' को जन्म दिया। [[श्रीकृष्ण]] की बहन [[सुभद्रा]] भी अर्जुन की पत्नी थी, जिसके गर्भ से [[अभिमन्यु]] का जन्म हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अर्जुन]] | ||इन्द्रपुरी में [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] [[अर्जुन]] पर मोहित हो गई, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उसने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसी शाप के कारण अर्जुन को '[[बृहन्नला]]' के रूप में [[विराट]] की कन्या [[उत्तरा]] को [[नृत्य]] की शिक्षा देनी पड़ी थी। बाद के समय में नागकन्या [[उलूपी]] से अर्जुन को [[इरावत]] नामक पुत्र प्राप्त हुआ। [[मणिपुर]] के राजा की कन्या [[चित्रांगदा]] से भी अर्जुन ने [[विवाह]] किया, जिसने 'बभ्रु वाहन' को जन्म दिया। [[श्रीकृष्ण]] की बहन [[सुभद्रा]] भी अर्जुन की पत्नी थी, जिसके गर्भ से [[अभिमन्यु]] का जन्म हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अर्जुन]] | ||
{[[कर्ण]] | {[[कर्ण]] वध के पश्चात किसने [[दुर्योधन]] को [[पाण्डव|पाण्डवों]] से संधि का विचार दिया? | ||
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-[[अश्वत्थामा]] | -[[अश्वत्थामा]] | ||
-[[संजय]] | -[[संजय]] | ||
||कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाने पर, वह पहिये को निकालने के लिये रथ से नीचे उतरा। [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को समझाया और उससे कहा कि यही समय है, [[कर्ण]] पर [[बाण अस्त्र|बाण]] चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही [[कौरव|कौरवों]] में हाहाकार मच गया। रात को [[दुर्योधन]] चिंताग्रस्त था। [[कृपाचार्य]] ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि अभी आप हैं, [[अश्वत्थामा]] हैं और सेनापति [[शल्य]] भी हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण पर्व]] | ||[[चित्र:Karn1.jpg|right|100px|अर्जुन द्वारा कर्ण का वध]]कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाने पर, वह पहिये को निकालने के लिये रथ से नीचे उतरा। [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को समझाया और उससे कहा कि यही समय है, [[कर्ण]] पर [[बाण अस्त्र|बाण]] चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही [[कौरव|कौरवों]] में हाहाकार मच गया। रात को [[दुर्योधन]] चिंताग्रस्त था। [[कृपाचार्य]] ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि अभी आप हैं, [[अश्वत्थामा]] हैं और सेनापति [[शल्य]] भी हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण पर्व]] | ||
{[[मगध]] नरेश [[जरासंध]] ने [[मथुरा]] पर कितनी बार चढ़ाई की थी? | {[[मगध]] नरेश [[जरासंध]] ने [[मथुरा]] पर कितनी बार चढ़ाई की थी? | ||
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||[[जरासंध]] अत्यन्त पराक्रमी एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। [[हरिवंश पुराण]] से ज्ञात होता है कि उसने [[काशी]], [[कोशल]], [[चेदि]], [[मालवा]], [[विदेह]], अंग, वंग, [[कलिंग]], [[पांड्य साम्राज्य|पांडय]], सौबिर, मद्र, [[काश्मीर]] और [[गांधार]] के राजाओं को परास्त किया था। इसी कारण [[पुराण|पुराणों]] में जरासंध को 'महाबाहु', 'महाबली' और 'देवेन्द्र' के समान तेज़ वाला कहा गया है। पुराणों के अनुसार जरासंध ने अठारह बार [[मथुरा]] पर चढ़ाई की। अपने इस अभियान में वह सत्रह बार असफल रहा था। अंतिम चढ़ाई में उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासक [[कालयवन]] को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जरासंध]] | ||[[चित्र:Jarasandh1.jpg|right|100px|भीम-जरासंध युद्ध]][[जरासंध]] अत्यन्त पराक्रमी एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। [[हरिवंश पुराण]] से ज्ञात होता है कि उसने [[काशी]], [[कोशल]], [[चेदि]], [[मालवा]], [[विदेह]], अंग, वंग, [[कलिंग]], [[पांड्य साम्राज्य|पांडय]], सौबिर, मद्र, [[काश्मीर]] और [[गांधार]] के राजाओं को परास्त किया था। इसी कारण [[पुराण|पुराणों]] में जरासंध को 'महाबाहु', 'महाबली' और 'देवेन्द्र' के समान तेज़ वाला कहा गया है। पुराणों के अनुसार जरासंध ने अठारह बार [[मथुरा]] पर चढ़ाई की। अपने इस अभियान में वह सत्रह बार असफल रहा था। अंतिम चढ़ाई में उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासक [[कालयवन]] को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जरासंध]] | ||
{[[दुशासन]] की छाती का [[रक्त]] पीने का प्रण किस [[पाण्डव]] ने किया था? | {[[दुशासन]] की छाती का [[रक्त]] पीने का प्रण किस [[पाण्डव]] ने किया था? | ||
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+[[भीम]] | +[[भीम]] | ||
-[[युधिष्ठिर]] | -[[युधिष्ठिर]] | ||
||[[दुर्योधन]] के कहने पर [[दुशासन]] [[द्रौपदी]] के [[वस्त्र]] उतारने लगा। द्रौपदी को इस संकट की घड़ी में [[श्रीकृष्ण]] की याद आई। उसने श्रीकृष्ण से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की और सभा में एक चमत्कार हुआ। दुशासन जैसे-जैसे द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता, वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र खींचते-खींचते दुशासन थककर बैठ गया। इसी समय [[भीम]] ने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुशासन की छाती चीरकर उसके गरम ख़ून से अपनी प्यास नहीं बुझाऊँगा, तब तक इस संसार को छोड़कर पितृलोक को नहीं जाऊँगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत]] | ||[[चित्र:Bhim-Dushasan.jpg|right|100px|भीम द्वारा दुशासन का वध]][[दुर्योधन]] के कहने पर [[दुशासन]] [[द्रौपदी]] के [[वस्त्र]] उतारने लगा। द्रौपदी को इस संकट की घड़ी में [[श्रीकृष्ण]] की याद आई। उसने श्रीकृष्ण से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की और सभा में एक चमत्कार हुआ। दुशासन जैसे-जैसे द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता, वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र खींचते-खींचते दुशासन थककर बैठ गया। इसी समय [[भीम]] ने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुशासन की छाती चीरकर उसके गरम ख़ून से अपनी प्यास नहीं बुझाऊँगा, तब तक इस संसार को छोड़कर पितृलोक को नहीं जाऊँगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत]] | ||
{[[कर्ण]] के वध के उपरान्त किसके कहने पर [[दुर्योधन]] ने [[शल्य]] को सेनापति नियुक्त किया? | |||
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-[[कृपाचार्य]] | |||
-[[कृतवर्मा]] | |||
+[[अश्वत्थामा]] | |||
-[[धृतराष्ट्र]] | |||
||कर्ण-वध के उपरान्त [[दुर्योधन]] ने [[अश्वत्थामा]] के कहने से [[शल्य]] को सेनापति बनाया। [[श्रीकृष्ण]] ने [[युधिष्ठिर]] को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जानी चाहिए कि शल्य [[पांडव|पांडवों]] के मामा हैं। [[कौरव|कौरवों]] ने परस्पर विचार कर यह नियम बनाया कि कोई भी एक योद्धा अकेला पांडवों से युद्ध नहीं करेगा। शल्य का प्रत्येक पांडव से युद्ध हुआ। कभी वह पराजित हुआ, कभी पांडवगण। अंत में युधिष्ठिर ने उस पर शक्ति से प्रहार किया, जिसके कारण शल्य वीरगति को प्राप्त हो गये। दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को बहुत कोसा कि जब यह निश्चित हो गया था कि कोई भी अकेला योद्धा शत्रुओं से लड़ने नहीं जायेगा, शल्य पांडवों की ओर क्यों बढ़ा?{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शल्य]] | |||
{पितामह [[भीष्म]] ने कितने दिनों तक शर-शेय्या पर पड़े रहने के बाद अपने प्राण त्यागे? | {पितामह [[भीष्म]] ने कितने दिनों तक शर-शेय्या पर पड़े रहने के बाद अपने प्राण त्यागे? | ||
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||[[युधिष्ठिर]] तथा शेष [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने भी शेय्या पर पड़े हुए पितामह [[भीष्म]] के चरण-स्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को तरह-तरह के उपदेश दिए। अगले दिन जब [[सूर्य]] 'उत्तरायण' हो गया, उचित समय जानकर युधिष्ठिर सभी भाइयों, [[धृतराष्ट्र]], [[गांधारी]] एवं [[कुंती]] को साथ लेकर भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर-शेय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को [[चंदन]] की चिता पर रखा तथा [[अंत्येष्टि संस्कार|दाह-संस्कार]] किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] | ||[[चित्र:Bhishma2.jpg|right|100px|शर-शेय्या पर पितामह भीष्म]][[युधिष्ठिर]] तथा शेष [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने भी शेय्या पर पड़े हुए पितामह [[भीष्म]] के चरण-स्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को तरह-तरह के उपदेश दिए। अगले दिन जब [[सूर्य]] 'उत्तरायण' हो गया, उचित समय जानकर युधिष्ठिर सभी भाइयों, [[धृतराष्ट्र]], [[गांधारी]] एवं [[कुंती]] को साथ लेकर भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर-शेय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को [[चंदन]] की चिता पर रखा तथा [[अंत्येष्टि संस्कार|दाह-संस्कार]] किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] | ||
{रणभूमि में [[श्रीकृष्ण]] के विराट स्वरूप के दर्शन [[अर्जुन]] के अतिरिक्त और किसने किये? | {रणभूमि में [[श्रीकृष्ण]] के विराट स्वरूप के दर्शन [[अर्जुन]] के अतिरिक्त और किसने किये? | ||
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-[[युधिष्ठिर]] | -[[युधिष्ठिर]] | ||
-[[विदुर]] | -[[विदुर]] | ||
||[[संजय]] को [[व्यास|श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास]] द्वारा दिव्य-दृष्टि का वरदान दिया गया था। जिसके कारण [[महाभारत]] युद्ध में होने वाली प्रत्येक घटना का [[आँख|आँखों]] देखा हाल बताने में संजय सक्षम था। [[श्रीमद्भगवद गीता]] का उपदेश, जो रणभूमि में [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को दिया, वह संजय द्वारा भी देखा और सुना गया। श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप, जो कि केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने भी दिव्य-दृष्टि से देख लिया था। संजय को दिव्य-दृष्टि मिलने का कारण, संजय का ईश्वर में नि:स्वार्थ विश्वास था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[संजय]] | ||[[चित्र:Sanjaya-Dhritarashtra.jpg|right|100px|संजय, धृतराष्ट्र को युद्ध का हाल बताते हुए]][[संजय]] को [[व्यास|श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास]] द्वारा दिव्य-दृष्टि का वरदान दिया गया था। जिसके कारण [[महाभारत]] युद्ध में होने वाली प्रत्येक घटना का [[आँख|आँखों]] देखा हाल बताने में संजय सक्षम था। [[श्रीमद्भगवद गीता]] का उपदेश, जो रणभूमि में [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को दिया, वह संजय द्वारा भी देखा और सुना गया। श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप, जो कि केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने भी दिव्य-दृष्टि से देख लिया था। संजय को दिव्य-दृष्टि मिलने का कारण, संजय का ईश्वर में नि:स्वार्थ विश्वास था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[संजय]] | ||
{[[महाभारत]] में [[सुषेण]] किसका पुत्र था? | {[[महाभारत]] में [[सुषेण]] किसका पुत्र था? | ||
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-[[धृष्टद्युम्न]] ने | -[[धृष्टद्युम्न]] ने | ||
+[[श्रीकृष्ण]] ने | +[[श्रीकृष्ण]] ने | ||
||श्रीकृष्ण ने [[जरासंध]] के कारागार से सभी बंदी राजाओं को मुक्त कर दिया तथा [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में शामिल होने का निमंत्रण दिया और जरासंध के पुत्र 'सहदेव' को [[मगध]] की राजगद्दी पर बिठाया। [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] चारों दिशाओं में गए तथा सभी राजाओं को युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। देश-देश के राजा [[यज्ञ]] में शामिल होने के लिए आये। [[भीष्म]] और [[द्रोण]] को यज्ञ की कार्य-विधि का निरीक्षण करने का कार्य सौंपा गया तथा [[श्रीकृष्ण]] ने स्वयं [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के चरण धोने का कार्य स्वीकार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत]] | ||[[चित्र:Radha-Krishna-1.jpg|right|100px|राधा-कृष्ण]]श्रीकृष्ण ने [[जरासंध]] के कारागार से सभी बंदी राजाओं को मुक्त कर दिया तथा [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में शामिल होने का निमंत्रण दिया और जरासंध के पुत्र 'सहदेव' को [[मगध]] की राजगद्दी पर बिठाया। [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] चारों दिशाओं में गए तथा सभी राजाओं को युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। देश-देश के राजा [[यज्ञ]] में शामिल होने के लिए आये। [[भीष्म]] और [[द्रोण]] को यज्ञ की कार्य-विधि का निरीक्षण करने का कार्य सौंपा गया तथा [[श्रीकृष्ण]] ने स्वयं [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के चरण धोने का कार्य स्वीकार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत]] | ||
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13:25, 9 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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