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| <center><h2>भारतकोश साप्ताहिक सम्पादकीय लेख सूची</h2></center>
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| <div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012]]</div>
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| [[चित्र:Raj-ki-niti.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012|राज की नीति]]
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| आपकी हैसियत ही क्या है मेरे सामने। आपके पिता मेरे पिता के यहाँ फ़र्नीचर पर पॉलिश किया करते थे। लिंकन ने कहा कि यह सही है कि मेरे पिता फ़र्नीचर पर पॉलिश करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ख़राब पॉलिश नहीं की होगी। उन्होंने अपना काम सर्वश्रेष्ठ तरीक़े से किया और इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने बेटे को [[भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| <div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012]]</div>
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| [[चित्र:4-crow-meeting.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012|कौऔं का वायरस]]
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| 23 दिनों तक लगातार कोई कार्य, किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती है और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है। [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| <div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012]]</div>
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| [[चित्र:Gutenberg.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|छापाख़ाने का आभार]]
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| मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी (ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) अर्थात सूर्य का पुत्र। सोचने वाली बात ये है कि भगवान 'राम' का नाम भी इसी प्रकार का है और वे भी सूर्य वंशी ही हैं। अगर ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है तो बेहद दिलचस्प इत्तफ़ाक़ है। नाम कोई भी रहा हो रेमसी, इमहोतेप या टॉलेमी; स्वरों के बिना उन्हें सही पढ़ना बहुत कठिन था। [[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| <div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012]]</div>
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| [[चित्र:Shrer-raghu.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012|बात का घाव]]
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| घरवाले पहले डरे फिर शेर के साथ सहज हो गये लेकिन महीने भर में ही शेर की ख़ुराक ने लकड़हारे के घर का बजट और उसकी बीवी का दिमाग़ ख़राब कर दिया। असल में शेर खायेगा भी तो अपने शरीर और आदत के हिसाब से। एक बार में तीस चालीस किलो मांस और वह भी रोज़ाना। बाज़ार से मांस और दूध ख़रीदने में रघु के घर के बर्तन तक बिकने की नौबत आ गई। [[भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| <div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012]]</div>
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| [[चित्र:Chilla.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012|चिल्ला जाड़ा]]
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| बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी [[भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| [[Category:सम्पादकीय]]
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