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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[चित्र:Ghost.jpg|right|border|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|सफलता का शॉर्ट-कट]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|मैं तो एक भूत हूँ]]
       जो सफलता का मंच है वह बीसवीं सीढ़ी चढ़ कर मिलेगा और इस मंच पर  हम उन्नीस सीढ़ी चढ़ने के बाद भी नहीं पहुँच सकते क्योंकि बीसवीं तो ज़रूरी ही है। अब एक बात यह भी होती है कि उन्नीसवीं सीढ़ी से नीचे देखते हैं तो लगता है कि हमने कितनी सारी सीढ़ियाँ चढ़ ली हैं और न जाने कितनी और भी चढ़नी पड़ेंगी। इसलिए हताश हो जाना स्वाभाविक ही होता है। [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|पूरा पढ़ें]]
       "अभी-अभी मरे हो...नये-नये भूत बने हो... और एक दम से रहने के लिए फ़्लॅट चाहिए ? रूल तो रूल है... सबके लिए बराबर है तुमको बताया ना ! पहले 10 लोगों को डराओ तो खटिया मिलेगी सोने को... उसके बाद 25 लोगों को डरा लोगे तो एक कमरा मिल जायेगा इसी तरह 100 पर फ़्लॅट और 500 पर बंगला और नौकर-चाकर भी... [[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक महान डाकू की शोक सभा]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|सफलता का शॉर्ट-कट]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012|सत्ता का रंग]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक महान डाकू की शोक सभा]]  
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14:50, 28 अप्रैल 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

मैं तो एक भूत हूँ
      "अभी-अभी मरे हो...नये-नये भूत बने हो... और एक दम से रहने के लिए फ़्लॅट चाहिए ? रूल तो रूल है... सबके लिए बराबर है तुमको बताया ना ! पहले 10 लोगों को डराओ तो खटिया मिलेगी सोने को... उसके बाद 25 लोगों को डरा लोगे तो एक कमरा मिल जायेगा इसी तरह 100 पर फ़्लॅट और 500 पर बंगला और नौकर-चाकर भी... पूरा पढ़ें

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