"साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
| style="background:transparent;"|
| style="background:transparent;"|
{| style="background:transparent; width:100%"
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|-
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
|- valign="top"
|- valign="top"
|  
|  
[[चित्र:Editorial-5-may.jpg|right|border|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012]]
[[चित्र:Pyaz-01.jpg|right|border|110px|link=भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012]]
<poem>
<poem>
[[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|काम की खुन्दक]]
       इस बात का पता 'चंद लोगों' को ही था कि छोटे पहलवान दुनियाँ का सबसे अक़्लमंद लड़का है। इन 'चंद लोगों' में थे- एक तो छोटे पहलवान ख़ुद और बाक़ी उसके माता-पिता और परिवारी जन। बाहर की दुनियाँ से छोटे का ज़्यादा सम्पर्क हुआ नहीं था। इसी दौर में उसे यह भी महसूस होने लगा कि वह दुनियाँ का महानतम विद्वान भी है... [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
       "प्याज़ खाने में क्या है कितनी भी खा जाओ। आप लोग तो बिना बात प्याज़ का हौव्वा बना रहे हैं।" छोटे ने खुन्दक में कहा।
"अच्छा ! तो तू कितनी खा जाएगा ?" पंडित जी बोले
"मैं... मेरा क्या है मैं तो सौ भी खा जाऊँगा"
"क्या ? सौ प्याज़ ?...[[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
</poem>
</poem>
<center>
<center>
पंक्ति 18: पंक्ति 21:
|-
|-
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|मैं तो एक भूत हूँ]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अप्रॅल 2012|सफलता का शॉर्ट-कट]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|मैं तो एक भूत हूँ]]  
|}</center>
|}</center>
|}  
|}  
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

13:42, 12 मई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

काम की खुन्दक
      "प्याज़ खाने में क्या है कितनी भी खा जाओ। आप लोग तो बिना बात प्याज़ का हौव्वा बना रहे हैं।" छोटे ने खुन्दक में कहा।
"अच्छा ! तो तू कितनी खा जाएगा ?" पंडित जी बोले
"मैं... मेरा क्या है मैं तो सौ भी खा जाऊँगा"
"क्या ? सौ प्याज़ ?..." पूरा पढ़ें

पिछले लेख बस एक चान्स ! · मैं तो एक भूत हूँ