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[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान]]
       ""अगर तुम्हारी जगह कोई और यहाँ जेल में बन्द हो जाय... जिससे कि अगर तुम नहीं लौटे तो तुम्हारी जगह उसे फाँसी दे दी जाय...सिर्फ़ यही तरीक़ा है... लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं है क्योंकि कोई भी किसी की फाँसी की ज़मानत थोड़े ही देता है।"
       ""अगर तुम्हारी जगह कोई और यहाँ जेल में बन्द हो जाय... जिससे कि अगर तुम नहीं लौटे तो तुम्हारी जगह उसे फाँसी दे दी जाय...सिर्फ़ यही तरीक़ा है... लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं है क्योंकि कोई भी किसी की फाँसी की ज़मानत थोड़े ही देता है।"
"आप मेरे गाँव से मेरे दोस्त धीर को बुलवा दीजिए... मेहरबानी करके जल्दी उसे बुलवा दें"
"आप मेरे गाँव से मेरे दोस्त धीर को बुलवा दीजिए... मेहरबानी करके जल्दी उसे बुलवा दें" [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
"पागल हो क्या ! कोई दोस्त-वोस्त नहीं होता ऐसे मौक़े के लिए..."" [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
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09:06, 19 मई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान
      ""अगर तुम्हारी जगह कोई और यहाँ जेल में बन्द हो जाय... जिससे कि अगर तुम नहीं लौटे तो तुम्हारी जगह उसे फाँसी दे दी जाय...सिर्फ़ यही तरीक़ा है... लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं है क्योंकि कोई भी किसी की फाँसी की ज़मानत थोड़े ही देता है।"
"आप मेरे गाँव से मेरे दोस्त धीर को बुलवा दीजिए... मेहरबानी करके जल्दी उसे बुलवा दें" पूरा पढ़ें

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