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[[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|लक्ष्य और साधना]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|लक्ष्य और साधना]]
        जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए। वह एकदम उत्तेजित और परेशान हो गया। उसके साथ में जो तीन-चार लोग थे, वह भी एकदम से चौंक गए। वो खड़े हुए और कहने लगे-
          [[महात्मा गांधी]] और [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को भारत से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। [[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|पूरा पढ़ें]]
"ये आप क्या रहे हैं ? आपने इस तरह से क्यों पीटना शुरू कर दिया ? [[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|पूरा पढ़ें]]
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12:20, 10 जून 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

लक्ष्य और साधना
          महात्मा गांधी और सरदार भगत सिंह का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को भारत से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। पूरा पढ़ें

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