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| |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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| [[चित्र:Helecopter-01.jpg|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|चमचारथी]]
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| सुबह उठे टहलने गए तो देखा चूना पड़ा था। सुबह-सुबह बिजली भी नहीं गई तो पक्का ही हो गया कि राजधानी से कोई वी.आई.पी. आने वाला है। ज़िला केन्द्र होने के कारण अधिकारियों ने वही सब करना शुरू कर दिया जो ऐसे मौक़े पर किया जाता है और विभिन्न लेखक और पत्रकार उसे अपने-अपने तरीक़े से लिखते हैं। एक अख़बार ने लिखा 'हड़कम्प मचा' दूसरे ने लिखा 'आपाधापी शुरू' तीसरे ने 'सरगर्मी चालू' चौथे ने 'मारा-मारी शुरू'... , और अधिकारी गण भी, बैठक, आदेश, निर्देश, समाचार, पत्राचार, अत्याचार के साथ-साथ भ्रष्टाचार में भी लग गए। [[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|पूरा पढ़ें]]
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|लक्ष्य और साधना]] ·
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 2 जून 2012|लेकिन एक रिटेक और लेते हैं]]
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| |}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
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