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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font> | |||
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[[चित्र:Vigyapan-lok.png|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012]] | |||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]] | |||
एक उपभोक्ता यूँही उपभोक्ता नहीं बनता, बल्कि उसे पहले ग्राहक बनने का संकल्प करके 'विज्ञापन-लोक' में अपनी जगह बनानी पड़ती है। हज़ारों विज्ञापनों से गुज़र कर, ग्राहक बनते ही लोग उसे उपभोक्ता बनाने का मिशन शुरू कर देते हैं। कितना भी चालाक ग्राहक हो, उसे बेचारा और मासूम उपभोक्ता बनना ही पड़ता है। | |||
जब आप ग्राहक होते हैं, तब तो आप आदर के पात्र होते हैं, लोग आपको हाथों-हाथ लेते हैं- | |||
"यस सर ! कॅन आई हॅल्प यू ?" जैसी बातें सुनने को मिलती हैं। [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|पूरा पढ़ें]] | |||
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] → | |||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|चमचारथी]] · | |||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012|लक्ष्य और साधना]] | |||
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|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude> |
14:33, 25 जून 2012 का अवतरण
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