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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[चित्र:Jugad-2.jpg|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012|कहता है जुगाड़ सारा ज़माना]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|मानसून का शंख]]
           "अरे यार ! सब जानते हैं कि इंडिया में जुगाड़ टेक्नीक यूज़ होती है, लेकिन ये टेक्नीक है क्या ? और हम कैसे इसे सीख सकते हैं ? ये पता नहीं चल पा रहा है... इस 'जुगाड़' की वजह से ही हम परेशान हैं। भारत ये जुगाड़ टेक्नोलॉजी, वर्ल्ड में किसी को नहीं देता। जबकि उन्होंने कोई पेटेन्ट भी नहीं करा रखा है और उनका सारा विकास इसी टेक्नोलॉजी पर आधारित होता है। जब भी हम कोई नई टेक्नोलॉजी लाते हैं, वो हमारी टेक्नोलॉजी को इस जुगाड़ से फ़ेल कर देते हैं।" [[भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
           "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" [[कैलास पर्वत]] पर [[पार्वती देवी|पार्वती मैया]] ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। [[शिव|शंकर जी]] ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले-
"तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो [[नंदी]] की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?" [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012|कहता है जुगाड़ सारा ज़माना]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012|चमचारथी]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]]
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15:31, 8 जुलाई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

मानसून का शंख
          "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" कैलास पर्वत पर पार्वती मैया ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। शंकर जी ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले-
"तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो नंदी की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?" पूरा पढ़ें

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