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[[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|शर्मदार की मौत]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|शर्मदार की मौत]]
           "और सब कुछ तो ठीक है माँ, लेकिन मुझे दूसरे छात्रों के अनुपात में चार गुना दंड दिया जाता है। जबकि दूसरे छात्रों में से कोई भी राजकुमार नहीं है। सभी हमारे राज्य की प्रजा ही हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि जैसे ही आचार्य विद्याधर को मेरी किसी भूल का पता चलता है, तो वे मुझे दूसरे छात्रों की अपेक्षा दोगुना, कभी कभी तीन गुना और कभी चार गुना दंड देते हैं।" [[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
           जानवर अपनी बुद्धि का प्रयोग तार्किक धरातल पर नहीं कर सकते। इसीलिए जानवर को दो प्रकार से ही शिक्षित किया जा सकता है- डरा कर और भोजन के लालच से किंतु मनुष्य के लिए एक तीसरा तरीक़ा भी प्रयोग में लाया गया। वह था प्रेम द्वारा सीखना। तीसरा याने प्रेम से सीखना वाला तरीक़ा सबसे अधिक सहज और प्रभावशाली होता है। [[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
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09:07, 16 जुलाई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

शर्मदार की मौत
          जानवर अपनी बुद्धि का प्रयोग तार्किक धरातल पर नहीं कर सकते। इसीलिए जानवर को दो प्रकार से ही शिक्षित किया जा सकता है- डरा कर और भोजन के लालच से किंतु मनुष्य के लिए एक तीसरा तरीक़ा भी प्रयोग में लाया गया। वह था प्रेम द्वारा सीखना। तीसरा याने प्रेम से सीखना वाला तरीक़ा सबसे अधिक सहज और प्रभावशाली होता है। पूरा पढ़ें

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