"प्रयोग:गोविन्द3": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(पन्ने को खाली किया)
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
<noinclude>{| width="49%" align="left" cellpadding="5" cellspacing="5"
|-</noinclude>
| style="background:transparent;"|
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
{| style="background:transparent; width:100%" align="left"
|- valign="top"
|
[[चित्र:Olympicana.jpg|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012]]
<poem>
[[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|मौसम है ओलम्पिकाना]]
          "तुम हर बार अपने ही रिश्तेदारों को ले जाती हो... जितने ज़्यादा तुम रिश्तेदार ले जाओगी, उतने ही ज़्यादा खिलाड़ी भी तो ले जाने पड़ेंगे... हरेक रिश्तेदार के लिए खिलाड़ी भी तो बढ़ाने पड़ते हैं। अब ज़्यादा खिलाड़ी जाएंगे तो मॅडल भी ज़्यादा आएंगे... मॅडल ज़्यादा आएँगे तो सरकार सोचेगी कि ओलम्पिक में खिलाड़ी मॅडल भी जीत सकते हैं... इससे हमारा तो चौपट ही होना है ना... अभी तो सरकार यह सोचती है कि ओलम्पिक में मॅडल-वॅडल तो मिलने नहीं है, इसलिए खिलाड़ी पर क्या बेकार खर्चा करना।" [[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
</poem>
<center>
{| style="margin:0; background:transparent" cellspacing="3"
|-
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012|50-50 आधा खट्टा आधा मीठा]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|शर्मदार की मौत]]
|}</center>
|}
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

11:50, 31 जुलाई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

मौसम है ओलम्पिकाना
          "तुम हर बार अपने ही रिश्तेदारों को ले जाती हो... जितने ज़्यादा तुम रिश्तेदार ले जाओगी, उतने ही ज़्यादा खिलाड़ी भी तो ले जाने पड़ेंगे... हरेक रिश्तेदार के लिए खिलाड़ी भी तो बढ़ाने पड़ते हैं। अब ज़्यादा खिलाड़ी जाएंगे तो मॅडल भी ज़्यादा आएंगे... मॅडल ज़्यादा आएँगे तो सरकार सोचेगी कि ओलम्पिक में खिलाड़ी मॅडल भी जीत सकते हैं... इससे हमारा तो चौपट ही होना है ना... अभी तो सरकार यह सोचती है कि ओलम्पिक में मॅडल-वॅडल तो मिलने नहीं है, इसलिए खिलाड़ी पर क्या बेकार खर्चा करना।" पूरा पढ़ें

पिछले लेख 50-50 आधा खट्टा आधा मीठा · शर्मदार की मौत