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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[चित्र:Family-on-bike.jpg|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012|50-50 आधा खट्टा आधा मीठा]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|मौसम है ओलम्पिकाना]]
           सबसे अधिक शिक्षित, सभ्य, संस्कारवान और सामाजिक लोग आपको मध्यमवर्गीय परिवारों में ही मिलेंगे। परिवार नियोजन करना, बेटे के साथ-साथ बेटी को भी पढ़ाना, बेटी के लिए शादी के ख़र्च की व्यवस्था रखना, पति-पत्नी में बराबरी के संबंध होना, पति-पत्नी का एक दूसरे के लिए वफ़ादार होना आदि ऐसी कई विशेषताएँ हैं जो आपको मध्यवर्ग में देखने को अधिक मिलेंगी। [[भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
           "अब ज़्यादा खिलाड़ी जाएंगे तो मॅडल भी ज़्यादा आएंगे... मॅडल ज़्यादा आएँगे तो सरकार सोचेगी कि ओलम्पिक में खिलाड़ी मॅडल भी जीत सकते हैं... इससे हमारा तो चौपट ही होना है ना... अभी तो सरकार यह सोचती है कि ओलम्पिक में मॅडल-वॅडल तो मिलने नहीं है, इसलिए खिलाड़ी पर क्या बेकार खर्चा करना। इससे अच्छा तो सरकारी अधिकारी, कोच और मंत्रियों को भेजा जाए... कम से कम दूसरे देशों के कल्चर की जानकारी तो हो जाती है... तुम नहीं समझोगी, ये सरकारी बातें हैं।" [[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|शर्मदार की मौत]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012|50-50 आधा खट्टा आधा मीठा]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|मानसून का शंख]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012|शर्मदार की मौत]]  
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13:38, 31 जुलाई 2012 का अवतरण

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

मौसम है ओलम्पिकाना
          "अब ज़्यादा खिलाड़ी जाएंगे तो मॅडल भी ज़्यादा आएंगे... मॅडल ज़्यादा आएँगे तो सरकार सोचेगी कि ओलम्पिक में खिलाड़ी मॅडल भी जीत सकते हैं... इससे हमारा तो चौपट ही होना है ना... अभी तो सरकार यह सोचती है कि ओलम्पिक में मॅडल-वॅडल तो मिलने नहीं है, इसलिए खिलाड़ी पर क्या बेकार खर्चा करना। इससे अच्छा तो सरकारी अधिकारी, कोच और मंत्रियों को भेजा जाए... कम से कम दूसरे देशों के कल्चर की जानकारी तो हो जाती है... तुम नहीं समझोगी, ये सरकारी बातें हैं।" पूरा पढ़ें

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