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[[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]]
             शिशुपाल को मारने में भी कृष्ण ने एक ऐसा संदेश दिया जिससे बहुत बड़ी राजनैतिक रणनीति की शिक्षा मिलती है। शिशुपाल कोई छोटा-मोटा राजा नहीं था जिसे मारना और मारकर शांत बैठ पाना आसान हो। निन्यानवे अपराध क्षमा करना कृष्ण की एक सोची समझी रणनीति थी जिसमें छिपे हुए संदेश को समझना बहुत आवश्यक है। [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]]
             "आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात्‌ ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, क्योंकि आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे आठों अंश के पूर्णावतार, अर्थात समस्त आठों कलाओं से युक्त अवतार, 'कृष्ण' को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होगा, फिर भी आप निश्चिंत रहें, मेरी कोई आयोजना ऐसी नहीं जिससे मैं अपनी उपस्थिति को एक माँ से श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयत्त्न करूँ" [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]]
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13:31, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

शाप और प्रतिज्ञा
             "आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात्‌ ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, क्योंकि आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे आठों अंश के पूर्णावतार, अर्थात समस्त आठों कलाओं से युक्त अवतार, 'कृष्ण' को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होगा, फिर भी आप निश्चिंत रहें, मेरी कोई आयोजना ऐसी नहीं जिससे मैं अपनी उपस्थिति को एक माँ से श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयत्त्न करूँ" ...पूरा पढ़ें

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