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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|भारतकोश सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[चित्र:Hippocampus-brain.jpg|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|यादों का फंडा]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]]
          मस्तिष्क को वैज्ञानिकों ने एक कम्प्यूटर की तरह मानकर ही इसका अध्ययन किया है और यह अध्ययन लगातार जारी है। वैज्ञानिक मस्तिष्क की याददाश्त की क्षमता को अद्‌भुत मानते हैं और यह भी प्रमाणित है कि मस्तिष्क को जितने भी संदेश मिलते हैं वह उन्हें संचित कर लेता है। किंतु हिप्पोकॅम्पस में संचित इन संदेशों को पुन: प्रस्तुत करने के लिए मनुष्य के मस्तिष्क के पास कोई सुगम प्रणाली नहीं होती। [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|...पूरा पढ़ें]]
            "आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात्‌ ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, क्योंकि आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे आठों अंश के पूर्णावतार, अर्थात समस्त आठों कलाओं से युक्त अवतार, 'कृष्ण' को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होगा, फिर भी आप निश्चिंत रहें, मेरी कोई आयोजना ऐसी नहीं जिससे मैं अपनी उपस्थिति को एक माँ से श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयत्न करूँ" [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|यादों का फंडा]] ·
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|मौसम है ओलम्पिकाना]]
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14:45, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

शाप और प्रतिज्ञा
             "आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात्‌ ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, क्योंकि आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे आठों अंश के पूर्णावतार, अर्थात समस्त आठों कलाओं से युक्त अवतार, 'कृष्ण' को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होगा, फिर भी आप निश्चिंत रहें, मेरी कोई आयोजना ऐसी नहीं जिससे मैं अपनी उपस्थिति को एक माँ से श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयत्न करूँ" ...पूरा पढ़ें

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