"साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
| style="background:transparent;"|
| style="background:transparent;"|
{| style="background:transparent; width:100%"
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|भारतकोश सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012|भारतकोश सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|-
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
|- valign="top"
|- valign="top"
|  
|  
[[चित्र:Football-01.jpg|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012]]
[[चित्र:Haveli.jpg|right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012]]
<poem>
<poem>
[[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|चौकोर फ़ुटबॉल]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012|उसके सुख का दु:ख]]
             ये दुनिया जितनी भी तरक़्क़ी कर रही है वह पहली श्रेणी वाले लोगों के कारण कर रही है और दुनिया में व्यवस्था संभालने का ज़िम्मा उनका है जो दूसरी श्रेणी के लोग हैं, अब रह जाते हैं तीसरी श्रेणी के लोग... तो आप ख़ुद ही सोच सकते हैं कि वे किस श्रेणी में आते हैं। ये लोग होते हैं चौकोर फ़ुटबॉल।  [[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]]
             ईर्ष्या के बारे में सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ईर्ष्या 'की' नहीं जाती ईर्ष्या 'हो' जाती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता जो सोच समझकर ईर्ष्या कर पाये। ईर्ष्या मानव के सहज स्वभाव के मूल में निहित है। यह प्रकृति की देन है। इसी तरह ईर्ष्या सामाजिक शिक्षा या संस्था नहीं है, जिसके लिए किसी को प्रशिक्षित किया जा सके। [[भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012|...पूरा पढ़ें]]
</poem>
</poem>
<center>
<center>
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
|-
|-
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|चौकोर फ़ुटबॉल]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|यादों का फंडा]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]]  
|}</center>
|}</center>
|}  
|}  
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

10:41, 30 अक्टूबर 2012 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

उसके सुख का दु:ख
             ईर्ष्या के बारे में सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ईर्ष्या 'की' नहीं जाती ईर्ष्या 'हो' जाती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता जो सोच समझकर ईर्ष्या कर पाये। ईर्ष्या मानव के सहज स्वभाव के मूल में निहित है। यह प्रकृति की देन है। इसी तरह ईर्ष्या सामाजिक शिक्षा या संस्था नहीं है, जिसके लिए किसी को प्रशिक्षित किया जा सके। ...पूरा पढ़ें

पिछले लेख चौकोर फ़ुटबॉल · शाप और प्रतिज्ञा