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'''दास प्रथा''' [[भारत]] में प्राय: सभी युगों में विद्यमान रही है। यद्यपि चौथी शताब्दी ई.पू. में [[मेगस्थनीज]] ने लिखा था कि, 'भारतवर्ष में दास प्रथा नहीं है, तथापि [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]] तथा [[अशोक के अभिलेख|अशोक के अभिलेखों]] में [[प्राचीन भारत]] में दास प्रथा प्रचलित होने के संकेत उपलब्ध होते हैं।
'''दास प्रथा''' काफ़ी पुराने समय से सिर्फ़ [[भारत]] में ही बल्कि दुनिया के कई देशों में व्याप्त रही है। यद्यपि चौथी शताब्दी ई. पू. में भारत के विषय में [[मेगस्थनीज]] ने लिखा था कि "भारतवर्ष में दास प्रथा नहीं है", तथापि [[कौटिल्य]] के '[[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]]' तथा [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक के अभिलेख|अशोक के अभिलेखों]] में [[प्राचीन भारत]] में 'दास प्रथा' प्रचलित होने के संकेत उपलब्ध होते हैं। दास प्रथा के द्वारा प्राय: ऋणग्रस्त अथवा युद्धों में बन्दी होने वाले व्यक्तियों को दास बनाया जाता था। फिर भी प्राचीन भारत में [[यूरोप]] की भाँति दास प्रथा न तो व्यापक थी और न ही दासों के प्रति वैसा क्रूर व्यवहार होता था।
 
==प्रथा की शुरुआत==
*दास प्रथा के द्वारा प्राय: ऋणग्रस्त अथवा युद्धों में बन्दी होने वाले व्यक्तियों को दास बनाया जाता था।
'दास प्रथा' की शुरुआत कई सदियों पहले ही हो चुकी थी। माना जाता है कि चीन में 18वीं-12वीं शताब्दी ईसा पूर्व 'ग़ुलामी प्रथा' का ज़िक्र मिलता है। भारत के प्राचीन [[ग्रंथ]] '[[मनुस्मृति]]' में भी दास प्रथा का उल्लेख किया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 650 ईस्वी से [[1905]] ई. के दौरान पौने दो क़रोड़ से ज़्यादा लोगों को इस्लामी साम्राज्य में बेचा गया। 15वीं शताब्दी में [[अफ़्रीका]] के लोग भी इस अनैतिक व्यापार में शामिल हो गए। वर्ष [[1867]] में क़रीब छह करोड़ लोगों को बंधक बनाकर दूसरे देशों में ग़ुलाम के तौर पर बेच दिया गया। [[भारत]] में [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] के शासन काल में दास प्रथा में बहुत वृद्धि हुई। यहाँ तक की दासों को नपुंसक तक बना डालने की क्रूर प्रथा का प्रारम्भ हुआ। यह प्रथा भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित हो जाने के उपरान्त भी यथेष्ट दिनों तक चलती रही।<ref>{{cite web |url= http://www.starnewsagency.in/2010/10/blog-post_21.htm|title= दास प्रथा|accessmonthday=17 फ़रवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
*फिर भी प्राचीन भारत में [[यूरोप]] की भाँति दास प्रथा न तो व्यापक थी और न ही दासों के प्रति वैसा क्रूर व्यवहार होता था।
==प्रतिबंध==
*[[भारत]] में [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] के शासन काल में दास प्रथा में वृद्धि हुई और उन्हें नपुंसक बना डालने की क्रूर प्रथा का प्रारम्भ हुआ।
दास प्रथा के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में आवाज़ें भी बुलंद हुईं। सन 1807 में [[ब्रिटेन]] ने दास प्रथा उन्मूलन क़ानून के तहत अपने देश में अफ़्रीकी ग़ुलामों की ख़रीद-फ़रोख्त पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी। 1808 में अमेरिकी कांग्रेस ने ग़ुलामों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। वर्ष [[1833]] तक यह क़ानून पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में लागू कर दिया। भारत ब्रिटिश शासन के समय 1843 ई. में इस प्रथा को बन्द करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया था। यद्यपि [[भारत]] में बंधुआ मज़दूरी पर पाबंदी लग चुकी है, किंतु फिर भी सच्चाई यह है कि आज भी यह अमानवीय प्रथा जारी है। बढ़ते औद्योगिकरण ने इसे बढ़ावा दिया है। साथ ही श्रम क़ानूनों के लचीलेपन के कारण भी मजदूरों के शोषण का सिलसिला जारी है। शिक्षित और जागरूक न होने के कारण इस तबक़े की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया। 'संयुक्त राष्ट्र संघ' को ऐसे श्रम क़ानूनों का सख्ती से पालन करवाना चाहिए, जिससे मज़दूरों को शोषण से निजात मिल सके। संयुक्त राष्ट्र संघ और मानवाधिकार जैसे संगठनों को ग़ुलाम प्रथा के ख़िलाफ़ अपनी मुहिम को और तेज़ करने की आवश्यकता है।
*यह प्रथा भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित हो जाने के उपरान्त भी यथेष्ट दिनों तक चलती रही।
*1843 ई. में इसे बन्द करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया था।


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07:10, 17 फ़रवरी 2013 का अवतरण

दास प्रथा काफ़ी पुराने समय से सिर्फ़ भारत में ही बल्कि दुनिया के कई देशों में व्याप्त रही है। यद्यपि चौथी शताब्दी ई. पू. में भारत के विषय में मेगस्थनीज ने लिखा था कि "भारतवर्ष में दास प्रथा नहीं है", तथापि कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' तथा मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेखों में प्राचीन भारत में 'दास प्रथा' प्रचलित होने के संकेत उपलब्ध होते हैं। दास प्रथा के द्वारा प्राय: ऋणग्रस्त अथवा युद्धों में बन्दी होने वाले व्यक्तियों को दास बनाया जाता था। फिर भी प्राचीन भारत में यूरोप की भाँति दास प्रथा न तो व्यापक थी और न ही दासों के प्रति वैसा क्रूर व्यवहार होता था।

प्रथा की शुरुआत

'दास प्रथा' की शुरुआत कई सदियों पहले ही हो चुकी थी। माना जाता है कि चीन में 18वीं-12वीं शताब्दी ईसा पूर्व 'ग़ुलामी प्रथा' का ज़िक्र मिलता है। भारत के प्राचीन ग्रंथ 'मनुस्मृति' में भी दास प्रथा का उल्लेख किया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 650 ईस्वी से 1905 ई. के दौरान पौने दो क़रोड़ से ज़्यादा लोगों को इस्लामी साम्राज्य में बेचा गया। 15वीं शताब्दी में अफ़्रीका के लोग भी इस अनैतिक व्यापार में शामिल हो गए। वर्ष 1867 में क़रीब छह करोड़ लोगों को बंधक बनाकर दूसरे देशों में ग़ुलाम के तौर पर बेच दिया गया। भारत में मुस्लिमों के शासन काल में दास प्रथा में बहुत वृद्धि हुई। यहाँ तक की दासों को नपुंसक तक बना डालने की क्रूर प्रथा का प्रारम्भ हुआ। यह प्रथा भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित हो जाने के उपरान्त भी यथेष्ट दिनों तक चलती रही।[1]

प्रतिबंध

दास प्रथा के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में आवाज़ें भी बुलंद हुईं। सन 1807 में ब्रिटेन ने दास प्रथा उन्मूलन क़ानून के तहत अपने देश में अफ़्रीकी ग़ुलामों की ख़रीद-फ़रोख्त पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी। 1808 में अमेरिकी कांग्रेस ने ग़ुलामों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। वर्ष 1833 तक यह क़ानून पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में लागू कर दिया। भारत ब्रिटिश शासन के समय 1843 ई. में इस प्रथा को बन्द करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया था। यद्यपि भारत में बंधुआ मज़दूरी पर पाबंदी लग चुकी है, किंतु फिर भी सच्चाई यह है कि आज भी यह अमानवीय प्रथा जारी है। बढ़ते औद्योगिकरण ने इसे बढ़ावा दिया है। साथ ही श्रम क़ानूनों के लचीलेपन के कारण भी मजदूरों के शोषण का सिलसिला जारी है। शिक्षित और जागरूक न होने के कारण इस तबक़े की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया। 'संयुक्त राष्ट्र संघ' को ऐसे श्रम क़ानूनों का सख्ती से पालन करवाना चाहिए, जिससे मज़दूरों को शोषण से निजात मिल सके। संयुक्त राष्ट्र संघ और मानवाधिकार जैसे संगठनों को ग़ुलाम प्रथा के ख़िलाफ़ अपनी मुहिम को और तेज़ करने की आवश्यकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दास प्रथा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 फ़रवरी, 2013।

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