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| <quiz display=simple>
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| {निम्नलिखित में से किस स्थान पर [[गौतम बुद्ध]] का जन्म हुआ था?
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| -[[कौशाम्बी]]
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| +[[लुम्बनी]]
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| -[[कपिलवस्तु]]
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| -[[सारनाथ]]
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| ||[[चित्र:The-World-Peace-Pagoda-Lumbini.jpg|right|90px|विश्व शांति स्तूप, लुम्बनी]]शाक्य गणराज्य की राजधानी [[कपिलवस्तु]] के निकट [[उत्तर प्रदेश]] के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और [[नेपाल]]-[[भारत]] सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर '[[रुमिनोदेई]]' नामक ग्राम ही '[[लुम्बनी|लुम्बनीग्राम]]' है, जो [[गौतम बुद्ध]] के जन्म स्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध है। नौतनवाँ स्टेशन से यह स्थान दस मील दूर है। बुद्ध की माता मायादेवी कपिलवस्तु से [[कोलिय गणराज्य]] की राजधानी [[देवदह]] जाते समय लुम्बनीग्राम में एक [[साल वृक्ष]] के नीचे ठहरी थीं। उसी समय [[बुद्ध]] का जन्म हुआ था। रुम्मिनदेई से प्राप्त [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि [[सम्राट अशोक]] अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद यहाँ आया था। उसने यहाँ [[पूजा]] की, क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लुम्बनी]], [[देवदह]], [[रुम्मिनदेई]]
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| {निम्नलिखित में से कौन [[सम्राट अशोक]] के [[पिता]] थे?
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| |type="()"}
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| -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
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| -[[अजातशत्रु]]
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| +[[बिन्दुसार]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||[[चित्र:Bindusara-Coin.png|right|100px|बिन्दुसार कालीन सिक्का]]'बिन्दुसार' [[मौर्य]] सम्राट [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] का पुत्र था, जो 297-98 ईसा पूर्व में शासक बना और उसने 272 ईसा पूर्व तक राजकाज किया। [[बिन्दुसार]] को 'अमित्रघात' भी कहा जाता है। [[यूनानी]] इतिहासकार उसे 'अमित्रोचेट्स' के नाम से पुकारते हैं। बिन्दुसार ने अपने [[पिता]] द्वारा जीते गए क्षेत्रों को पूर्ण रूप से अक्षुण्ण रखा था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र [[अशोक]] [[मौर्य साम्राज्य]] का स्वामी बना था। बिन्दुसार को यूनानियों ने 'अमित्रोचेट्स' कहा, जो संभवत: [[संस्कृत]] शब्द 'अमित्रघट' से लिया गया है, जिसका अर्थ है- 'शत्रुनाशक'। यह उपाधि सम्भवत: दक्षिण में उनके सफल सैनिक अभियानों के लिये दी गई होगी, क्योंकि [[उत्तर भारत]] पर तो उनके पिता [[चंद्रगुप्त मौर्य]] ने पहले ही विजय प्राप्त कर ली थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बिन्दुसार]], [[अशोक]], [[चंद्रगुप्त मौर्य]]
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| {"आपका कोई भी काम महत्त्वहीन हो सकता है, पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।" यह कथन किस महापुरुष का है?
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| |type="()"}
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| +[[महात्मा गाँधी]]
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| -[[मदनमोहन मालवीय]]
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| -[[सरदार पटेल]]
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| -[[भगत सिंह]]
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| ||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। '[[साबरमती आश्रम]]' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से [[महात्मा गाँधी]] आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली थी। [[जुलाई]], [[1891]] में जब गाँधीजी [[भारत]] लौटे, तो उनकी अनुपस्थिति में उनकी [[माता]] का देहान्त हो चुका था और उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि बैरिस्टर की डिग्री से अच्छे पेशेवर जीवन की गारंटी नहीं मिल सकती। वकालत के पेशे में पहले ही काफ़ी भीड़ हो चुकी थी और गाँधीजी उनमें अपनी जगह बनाने के मामले में बहुत संकोची थे। बंबई न्यायालय में पहली ही बहस में वह नाकाम रहे थे। यहाँ तक की 'बंबई उच्च न्यायालय' में अल्पकालिक शिक्षक के पद के लिए भी उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गाँधी]]
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| {सन [[1917]] से [[1924]] तक [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में किसने सेवाएँ प्रदान की थीं?
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| |type="()"}
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| -[[सी. राजगोपालाचारी]]
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| +[[वल्लभ भाई पटेल]]
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| -[[बाल गंगाधर तिलक]]
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| -[[गणेशशंकर विद्यार्थी]]
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| ||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभ भाई पटेल]]
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| {[[दिल्ली]] की राजगद्दी पर [[अफ़ग़ान]] शासकों के शासन का निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम है?
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| |type="()"}
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| -[[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]], [[बहलोल लोदी]]
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| -[[सिकन्दर शाह लोदी]], [[बहलोल लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]]
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| +[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||'बहलोल लोदी' [[दिल्ली]] में प्रथम [[अफ़ग़ान]] राज्य का संस्थापक था। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के 'गिलजाई कबीले' की महत्त्वपूर्ण शाखा 'शाहूखेल' में पैदा हुआ था। [[19 अप्रैल]], 1451 को [[बहलोल लोदी]] 'बहलोल शाह गाजी' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। चूँकि वह लोदी कबीले का अग्रगामी था, इसलिए उसके द्वारा स्थापित वंश को '[[लोदी वंश]]' कहा जाता है। बहलोल अपने सरदारों को 'मसनद-ए-अली' कहकर पुकारता था। उसका राजत्व सिद्धान्त समानता पर आधारित था। वह [[अफ़ग़ान]] सरदारों को अपने समकक्ष मानता था। अपने सरदारों के खड़े रहने पर वह खुद भी खड़ा रहता था। बहलोल लोदी ने 'बहलोली सिक्के' का प्रचलन करवाया, जो [[अकबर]] के समय तक [[उत्तर भारत]] में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]]
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| {वर्ष [[1947]] में [[भारत]] के पूर्ण स्वतंत्र होने के बाद किसे [[बंगाल]] का [[राज्यपाल]] नियुक्त किया गया था।
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| |type="()"}
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| -[[अरविन्दो घोष]]
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| -[[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]]
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| +[[सी. राजगोपालाचारी]]
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| -[[बारीन्द्र कुमार घोष]]
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| ||[[चित्र:Chakravarthi-Rajagopalachari.jpg|right|100px|सी. राजगोपालाचारी]]'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे, जो "राजाजी" के नाम से भी जाने जाते हैं। [[सी. राजगोपालाचारी|राजगोपालाचारी]] वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र [[भारत]] के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। जब [[1946]] में देश की अंतरिम सरकार बनी तो उन्हें केन्द्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया था। [[1947]] में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें [[बंगाल]] का [[राज्यपाल]] नियुक्त किया गया। इसके अगले ही [[वर्ष]] वह स्वतंत्र भारत के प्रथम 'गवर्नर जनरल' जैसे अति महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त किए गये। सन् [[1950]] में वे पुन: केन्द्रीय मंत्रिमंडल में ले लिए गये। इसी वर्ष [[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] की मृत्यु होने पर वे केन्द्रीय गृह मंत्री बनाये गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सी. राजगोपालाचारी]]
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| {'[[हड़प्पा सभ्यता]]' का एक अंग [[कालीबंगा]] कहाँ स्थित है?
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| |type="()"}
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| +[[राजस्थान]]
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| -[[पाकिस्तान]]
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| -[[सिन्ध प्रांत|सिन्ध]]
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| -[[पंजाब]]
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| ||[[चित्र:Kalibanga.jpg|right|100px|कालीबंगा के अवशेष]]'राजस्थान' [[भारत|भारत गणराज्य]] के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में [[पाकिस्तान]], दक्षिण-पश्चिम में [[गुजरात]], दक्षिण-पूर्व में [[मध्य प्रदेश]], उत्तर में [[पंजाब]], उत्तर-पूर्व में [[उत्तर प्रदेश]] और [[हरियाणा]] राज्य हैं। [[राजस्थान]] में [[काला रंग|काले]], [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]], [[भूरा रंग|भूरे]] तथा हल्के [[सलेटी रंग|सलेटी]], [[हरा रंग|हरे]], [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] पत्थर से बनी मूर्तियों के अतिरिक्त [[पीतल]] या [[धातु]] की मूर्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। [[गंगानगर ज़िला|गंगानगर ज़िले]] के [[कालीबंगा]] तथा [[उदयपुर]] के निकट आहड़-सभ्यता की खुदाई में पकी हुई [[मिट्टी]] से बनाई हुई खिलौनाकृति की मूर्तियाँ भी मिलती हैं। [[राजस्थान]] में [[गुप्त]] शासकों के प्रभावस्वरूप गुप्त शैली में निर्मित मूर्तियाँ, आभानेरी, कामवन तथा [[कोटा राजस्थान|कोटा]] में कई स्थलों पर उपलब्ध हुई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजस्थान]], [[कालीबंगा]]
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| {किस शासक को '[[कैलाशनाथ मन्दिर कांचीपुरम|काँची कैलाश मन्दिर]]' एवं '[[मामल्लपुरम]]' में मन्दिर के निर्माण का श्रेय जाता है?
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| |type="()"}
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| -[[नरसिंह वर्मन प्रथम]]
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| +[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]]
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| -[[परमेश्वर वर्मन द्वितीय]]
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| -[[महेन्द्र पाल|महेन्द पाल प्रथम]]
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| ||नरसिंह वर्मन द्वितीय का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो में [[महाबलीपुरम]] का समुद्र तटीय मंदिर, [[कैलाशनाथार मंदिर कांची|कांची का कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है। [[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद [[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई। 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]]
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| {प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था?
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| |type="()"}
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| +[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]]
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| -[[झेलम नदी|झेलम]] तथा [[चिनाब नदी|चिनाब]]
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| -[[चिनाब नदी|चिनाब]] तथा [[रावी नदी|रावी]]
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| -[[रावी नदी|रावी]] तथा [[व्यास नदी|व्यास]]
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| ||[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|right|100px|सिन्धु नदी]]'सिन्धु नदी' संसार की प्रमुख नदियों में से एक [[पाकिस्तान]] की सबसे बड़ी नदी है। [[तिब्बत]] के [[कैलाश मानसरोवर|मानसरोवर]] के निकट 'सिन-का-बाब' नामक जलधारा [[सिन्धु नदी]] का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और [[कश्मीर]] के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर [[अरब सागर]] में मिलती है। वैदिक संस्कृति में सिन्धु नदी तथा मानसरोवर का उल्लेख अत्यंत श्रद्धा के साथ किया जाता रहा है। [[तिब्बत]], [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] से होकर बहने वाली इस नदी में कई अन्य नदियाँ आकर मिलती हैं, जिनमे [[क़ाबुल नदी]], स्वात, [[झेलम नदी|झेलम]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], [[रावी नदी|रावी]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] मुख्य हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]]
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| {[[मोहनजोदड़ो]] में पाई गई मुहरें किससे निर्मित हैं?
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| |type="()"}
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| -[[लोहा]]
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| -[[ताँबा]]
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| -[[पीतल]]
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| +पकाई हुई [[मिट्टी]]
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| ||[[चित्र:Mohenjo-Daro-Seal.gif|right|100px|मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर]]'मोहनजोदड़ो' के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को 'स्तूप टीला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में, कुम्भकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपाल खण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबें]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं [[कांसा|कांसे]] की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं, जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मुहरे, बर्तन पकाने के छः भट्टे, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र था। जालीदार अलंकरण युक्त [[मिट्टी]] का बर्तन, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, [[शिव]] की मूर्ति, [[ध्यान]] की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]]
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| {[[मराठा|मराठों]] से पूर्व 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' का प्रयोग किसने किया था?
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| |type="()"}
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| -[[महावत ख़ाँ]]
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| +[[मलिक अम्बर]]
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| -[[राणा प्रताप]]
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| -[[मलिक काफ़ूर]]
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| ||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था। वह तरक्की करके वज़ीर के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में उस समय नाम क़माया, जब एक भीषण युद्ध में [[मुग़ल]] सेना को हरा दिया। [[मलिक अम्बर]] एक 'अबीसीनियायी' था और उसका जन्म 'इथियोपिया' में हुआ था। अम्बर 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' में निपुण था, उसने [[मराठा|मराठों]] को भी इस युद्ध पद्धति में निपुणता प्रदान कर दी थी। 'गुरिल्ला युद्ध प्रणाली' [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और [[मलिक अम्बर]] के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए, लेकिन मुग़ल इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]]
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| {[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था?
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| |type="()"}
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| +उस्ताद ईसा
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| -उस्ताद अहमद लाहौरी
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| -मोहम्मद हनीफ़
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| -अमानत ख़ाँ
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| ||[[चित्र:Tajmahal-03.jpg|right|100px|ताजमहल]]'[[ताजमहल]]' [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] शहर के बाहरी इलाके में [[यमुना नदी]] के दक्षिणी तट पर बना हुआ है। इसे प्रेम की निशानी कहा जाता है। ताजमहल [[मुग़ल कालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल कालीन शासन]] की सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। सफ़ेद संगमरमर की यह कृति संसार भर में प्रसिद्ध है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंन्द्र है। ताजमहल विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। [[मुग़ल]] [[शाहजहाँ|बादशाह शाहजहाँ]] ने [[ताजमहल]] को अपनी पत्नी [[अर्जुमंद बानो बेगम]], जिन्हें 'मुमताज़ महल' भी कहा जाता था, की याद में बनवाया था। ताजमहल को शाहजहाँ ने मुमताज़ महल की क़ब्र के ऊपर बनवाया था। मृत्यु के बाद शाहजहाँ को भी वहीं दफ़नाया गया। मुमताज़ महल के नाम पर ही इस मक़बरे का नाम 'ताजमहल' पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ताजमहल]], [[शाहजहाँ]], [[मुमताज़ महल]]
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| {'करोड़ी' नामक नये अधिकारी की नियुक्ति किस [[मुग़ल]] शासक ने की थी?
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| |type="()"}
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| -[[जहाँगीर]]
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| -[[शाहजहाँ]]
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| +[[अकबर]]
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| -[[औरंगज़ेब]]
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| ||[[चित्र:Akbar.jpg|right|100px|अकबर]]'अकबर' [[भारत]] का महानतम [[मुग़ल]] शंहशाह (शासनकाल 1556-1605 ई.) था, जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अपने साम्राज्य की एकता बनाए रखने के लिए [[अकबर]] द्वारा ऐसी नीतियाँ अपनाई गईं, जिनसे गैर [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] की राजभक्ति जीती जा सके। अकबर के विजय अभियानों में [[गुजरात]] की विजय भी ख़ास थी। 1573 ई. गुजरात को जीतने के बाद [[अकबर]] ने पूरे [[उत्तर भारत]] में 'करोड़ी' नाम के एक अधिकारी की नियुक्ति की। इस अधिकारी को अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था। 'करोड़ी' की सहायता के लिए 'आमिल' नियुक्त किये गए थे। ये क़ानूनगों द्वारा बताये गये आंकड़े की भी जाँच करते थे। वास्तविक उत्पादन, स्थानीय क़ीमतें, उत्पादकता आदि पर उनकी सूचना के आधार पर [[अकबर]] ने 1580 ई. में 'दहसाला' नाम की नवीन प्रणाली को प्रारम्भ किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]]
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| {[[मुस्लिम]] शासन के दौरान [[दिल्ली]] के सिंहासन पर अधिकार करने वाला एक मात्र [[हिन्दू]] कौन था?
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| |type="()"}
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| +[[हेमू]]
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| -[[टोडरमल]]
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| -[[बीरबल]]
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| -[[शिवाजी]]
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| ||'हेमू' या 'हेमचन्द्र' का [[पिता]] राय पूरनमल [[राजस्थान]] के [[अलवर ज़िला|अलवर ज़िले]] से आकर [[रेवाड़ी ज़िला|रेवाड़ी]] के कुतुबपुर में बस गया था। इस समय [[हेमू]] अल्प आयु ही था। युवा होने पर वह भी अपने [[पिता]] के व्यवसाय में जुट गया। हेमू [[शेरशाह सूरी]] की सेना को शोरा की आपूर्ति किया करता था। शेरशाह उसके व्यक्तित्व से काफ़ी प्रभावित था। उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया। सेना में आने के बाद हेमू ने अपने रणकौशल से 22 युद्ध जीते और '[[दिल्ली सल्तनत]]' का सम्राट बना। [[मुग़ल|मुग़लों]] से हुए युद्ध में [[हेमू]] को [[बैरम ख़ाँ]] की रणनीति पर छल से मारा गया। हेमचंद्र शेरशाह सूरी का योग्य [[दीवान]], कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का हाथ सबसे बड़ा हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हेमू]], [[शेरशाह सूरी]]
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| {[[1 अगस्त]], [[1920]] को कौन-सा आन्दोलन [[महात्मा गाँधी]] द्वारा प्रारम्भ किया गया?
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| |type="()"}
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| -[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]
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| -[[सत्याग्रह आन्दोलन]]
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| -[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]
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| +[[असहयोग आन्दोलन]]
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| ||[[चित्र:Gandhistatue.jpg|right|100px|गाँधीजी की प्रतिमा]]'असहयोग आन्दोलन' स्वराज की माँग को लेकर चलाया गया था। इस आन्दोलन को शुरू करने से पहले [[गाँधीजी]] ने "कैसर-ए-हिन्द" पुरस्कार को लौटा दिया था। अन्य सैकड़ों लोगों ने भी गाँधीजी के पदचिह्नों पर चलते हुए अपनी पदवियों एवं उपाधियों को त्याग दिया। 'रायबहादुर' की उपाधि से सम्मानित जमनालाल बजाज ने भी यह उपाधि वापस कर दी। '[[असहयोग आन्दोलन]]' महात्मा गाँधी ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया। [[पश्चिमी भारत]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] तथा [[उत्तरी भारत]] में 'असहयोग आन्दोलन' को अभूतपूर्व सफलता मिली। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ, जैसे- '[[काशी विद्यापीठ]]', 'बिहार विद्यापीठ', 'गुजरात विद्यापीठ', 'बनारस विद्यापीठ', 'तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ' एवं '[[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]]' आदि स्थापित की गईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]], [[महात्मा गाँधी]]
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| </quiz>
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